बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 द्वितीय प्रश्नपत्र - शिक्षा के सामाजिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
(Merits of Democracy)
(1) सभी के हितों की रक्षा - प्रजातन्त्र सरकार जनता की, जनता द्वारा तथा जनता के लिए होती है। इसमें सभी की उन्नति का ध्यान रखा जाता है, किसी वर्ग विशेष का नहीं। संसद में सभी वर्गों के व्यक्ति पहुँचते हैं, इसलिए सभी के हितों का ध्यान रखकर कानून बनाए जाते हैं जो जनहित का ध्यान नहीं रखते, उन्हें जनता अगले निर्वाचन में पद से हटा देती है।
(2) सभी को विकास का समान अवसर - प्रजातन्त्र सभी को अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने तथा विकास करने का अवसर प्रदान करता है। सभी को मतदान, निर्वाचित होने तथा पद ग्रहण का अधिकार होता है। कोई भी व्यक्ति चुनाव जीतकर तथा मन्त्री पद ग्रहण पर अपनी प्रतिभा का परिचय दे सकता है।
(3) स्वतन्त्रता की रक्षा - प्रजातन्त्र नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा करता है। अन्य सरकारों, जैसे- राजतन्त्र, तानाशाही, आदि में जनता की स्वतन्त्रता खतरे में रहती है। प्रजातन्त्र सरकार जनमत के अनुसार चलती है और चुनावों से बनती है। इसलिए वह निरंकुश नहीं बन सकती।
(4) उन्नति के समान अवसर - प्रजातन्त्र सबको उन्नति के समान अवसर प्रदान करता है। सबको समान रूप से राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं। सभी कानून की दृष्टि में समान समझे जाते हैं।
(5) नैतिक गुणों का विकास - प्रजातन्त्र नागरिकों में नैतिक गुणों का विकास करता है। व्यापक दृष्टिकोण, सहयोग, सहिष्णुता आदि गुणों का विकास होता है तथा जनता की उदासीनता समाप्त होती है। नागरिकों में आत्म-सम्मान की भावना पैदा होती है। व्यक्तियों में स्वयं शासन संचालन का भाव पैदा होता है।
(6) जन-कल्याण में वृद्धि - प्रजातन्त्र सबसे कल्याण की कामना करता है, क्योंकि यह जनता का शासन है। शासनकर्त्ता जनता के प्रतिनिधि होते हैं। इसीलिए वे जनहित को ध्यान में रखकर शासन करते हैं। शासन जनता की इच्छाओं के प्रति सजग रहता है।
(7) जनमत पर आधारित - प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित शासन है, व्यवस्थापिका जनमत का दर्पण होता है और सदैव जनता की इच्छा तथा भावना का ध्यान रखती है। शासन जनता के प्रति उत्तरदायी है। नागरिकों को जनमत व्यक्त करने की पूरी सुविधा होती है।
(8) आत्म-निर्भरता तथा स्वावलम्बन - प्रजातन्त्र में नागरिकों में आत्म-निर्भरता और स्वावलम्बन का भाव आता है। सभी को अपने विकास के पूर्ण अवसर मिलते हैं और सभी राजनीतिक अधिकार रखते हैं।
(9) उत्तरदायी शासन - प्रजातन्त्र में सरकार जनता के प्रतिनिधियों के प्रति और अन्तिम रूप से जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।
(10) राजनीतिक जागृति - प्रजातन्त्र से राजनीति जागृति आती है क्योंकि इस अवस्था में स्थानीय तथा केन्द्रीय संस्थाओं के चुनाव होते हैं जिनमें जनता भाग लेती है। राजनीतिक दल राजनीतिक जागृति में सहायता देते हैं। ये प्रचार, सभा, भाषण और समाचार-पत्र निकालकर जनता को जागरूक बनाते हैं।
(11) क्रान्ति का भय नहीं रहता - प्रजातन्त्र क्रान्ति को समाप्त करता है। जनता को शासन में भागीदार होने का अवसर देता है तथा चुनाव द्वारा सरकार को बदला जा सकता है।
(12) राजनीतिक शिक्षा - प्रजातन्त्र राजनीतिक शिक्षा का अच्छा माध्यम है। इससे जनता जागृत होती है, नए विचार आते हैं और जनता प्रशासन का संचालन सीख जाती है।
(13) राष्ट्रीय चरित्र का उत्थान - प्रजातन्त्र से एक श्रेष्ठ राष्ट्रीय चरित्र उत्पन्न होता है। इसमें स्वाभिमान, आत्म-सम्मान और देश-प्रेम की भावना जागृत होती है। इससे राष्ट्रीय चरित्र विकसित होता है। जब जनता समझाती है कि सरकार उसी की है, तब देश-प्रेम का भाव जागृत होता है।
(Demerits of Democracy)
(1) मूर्खों की सरकार - प्रजातन्त्र मूर्ख, अयोग्य तथा अज्ञानियों का शासन है। यह योग्यता पर ध्यान न देकर संख्या पर ध्यान देता है। संख्या में मूर्ख विद्वानों से कहीं अधिक हैं।
(2) प्रतिनिधित्व को कठिनाई - प्रजातन्त्र में ऐसी कोई विधि नहीं है, जिससे सम्पूर्ण जनता का प्रतिनिधित्व हो सके। प्रतिनिधित्व प्रणाली में बड़ा भाग प्रतिनिधित्व से रह जाता है। इस तरह जनता की सरकार बन ही नहीं पाती। यह भी आवश्यक नहीं है कि योग्य व्यक्ति ही प्रशासन केलिए छाँटे जा सकें
(3) साधारण व्यक्तियों की सरकार - प्रजातन्त्र साधारण व्यक्तियों की सरकार होती है, जबकि राज्य - सूत्र योग्य व्यक्तियों के हाथों में होना चाहिए। राज्य को कार्य कुशल, बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति ही चला सकते हैं।
(4) धनिकों की सरकार - प्रजातन्त्र में धन का बहुत प्रभाव होता है। धन के आधार पर चुनाव जीते जाते हैं तथा वोट खरीदे जाते हैं। धनिक व्यक्ति ही राजनीतिक दलों पर अधिकार जमा लेते हैं। वास्तविक शक्ति धनिकों के हाथों में चली जाती है और प्रजातन्त्र धनिक तन्त्र बन जाता है।
(5) राजनीतिक दलों का अनैतिक प्रभाव - प्रजातन्त्र राजनीतिक दलों के माध्यम से चलता है इसलिए इसमें दल - प्रणाली के सारे दोष आ जाते हैं। राष्ट्र-भक्ति के स्थान पर दल-भक्ति का जन्म होता है, विरोधी दल के योग्य व्यक्तियों की सेवाएँ राष्ट्र को उपलब्ध नहीं होतीं, झूठा और गन्दा, प्रचार होता है तथा सरकार अस्थाई बन जाती है। दल-तन्त्र का जन्म होता है तथा राजनीतिक भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
(6) धन का अपव्यय - प्रजातन्त्र खर्चीली शासन पद्धति है। इसलिए इसे धनी राष्ट्रों की विलासिता कहा जाता है। चुनावों में अपार धन व्यय होता है तथा प्रतिनिधियों को वेतन-भत्ते आदि दिए जाते हैं। व्यर्थ के वाद-विवाद होते हैं और एक कानून के बनाने में लाखों रुपया व्यय होता है। अनेक खर्चे और कार्य केवल दिखाने के लिए कागजों पर ही होते हैं।
(7) एकता का अभाव - प्रजातन्त्र सरकार में एकता की कमी रहती है। राजनीतिक दलों का संघर्ष, आपसी निन्दा और आलोचना तथा सरकार गिराने और सत्ता हथियाने के हथकंडे चलते रहते हैं। इससे राष्ट्र कमजोर बनता है तथा एकता को क्षति पहुँचती है। चुनाव जीतने के लिए मतभेदों को बढ़ाया जाता है जिससे देश के खण्डित होने का डर रहता है तथा कभी-कभी गृह युद्ध की स्थिति आ जाती है।
(8) निर्णय में विलम्ब - प्रजातन्त्र सरकार में किसी निर्णय को करने में बड़ा विलम्ब होता है। निर्णय पर वाद-विवाद होता है तथा संसद में प्रस्ताव रखे जाते हैं। निरर्थक वाद-विवाद में समय निकल जाता है और संकट के समय तुरन्त निर्णय नहीं हो पाता।
(9) बहुसंख्यकों की सरकार - व्यवहार में प्रजातन्त्र बहुसंख्यक सरकार होती है, जनता की सरकार नहीं है। बहुसंख्यक वर्ग अपने हित में कानून बनाता है तथा कभी-कभी अल्पमत का शोषण हों जाता है। बहुमत की तानाशाही का भय बना रहता है। साथ ही अल्पमत की योग्यता और अनुभव को प्रशासन कार्यों में प्रयोग नहीं किया जाता है। उनकी शक्ति रचनात्मक कार्य करने के स्थान पर आलोचना तथा विरोध करने में लग जाती है।
(10) नीति की अस्थिरता - प्रजातन्त्र में सरकार बदलती रहती है। मन्त्रियों का कार्य-काल अनिश्चित रहता है। सरकार अविश्वास प्रस्ताव द्वारा कभी भी गिराकर जब हटा दी जाती है। फिर अनिश्चित समय बाद चुनाव होते हैं और सरकार बदल जाती है या पुराने व्यक्ति पराजित हो जाते हैं। बहु दल-पद्धति में यह अस्थिरता और भी अधिक होती हैं।
इतने दोषों के बाद भी प्रजातन्त्र समस्त प्रचलित शासन प्रणालियों में सर्वश्रेष्ठ है, इसका कोई विकल्प नहीं। यदि यह असफल रहता है तो तानाशाही का उदय होता है, जो निकृष्ट शासन प्रणाली है तथा अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का दमन होता है। आवश्यकता इस बात की है कि प्रजातन्त्र के दोषों को दूर किया जाए तथा वे परिस्थितियाँ पैदा की जाएं जिनमें प्रजातन्त्र ठीक प्रकार से कार्य कर सके। अधिकतर दोष प्रजातन्त्र के नहीं, बल्कि इनके प्रयोग में लाने में होते हैं। जैसे-जैसे जनता में शिक्षा, अनुभव, राजनीति- जागृति आएगी, प्रजातन्त्र के दोष कम होते जायेंगे।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को जन्म देने वाली प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं?
- प्रश्न- शाब्दिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- पारिभाषिक दृष्टि से समाजशास्त्र का अर्थ समझाइये |
- प्रश्न- समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के आधुनिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बालक पर भारतीय समाज के विभिन्न प्रभावों का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
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- प्रश्न- धर्मनिरपेक्ष शिक्षा की विशेषताओं एवं इसके विकास में विद्यालय की भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता के विकास में विद्यालय की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रक्रिया, रूप एवं प्रमुख कारकों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रूप बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन और शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक विकास का क्या अर्थ है? आर्थिक विकास के साधन के रूप में शिक्षा के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? संस्कृति की आवश्यकता एवं महत्त्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक सामाजिक एवं गत्यात्मक प्रक्रिया है। " इस कथन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाजशास्त्रीय सम्प्रत्यय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा प्रक्रिया की प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक परिवर्तन से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक परिवर्तन लाने में शिक्षा की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- समाजशास्त्र और शिक्षाशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- व्यक्ति और समाज के मध्य सम्बन्धों पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- वर्तमान समाज में परिवार का स्वरूप बदल गया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय सामाजिक व्यवस्था में असमानताओं को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए।
- प्रश्न- सामाजीकरण में परिवार का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सामाजिक व्यवस्था की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले प्रमुख कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारतीय सांस्कृतिक धरोहर की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत से आप क्या समझते हैं? यह शिक्षा से किस प्रकार सम्बन्धित है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विकास की कुछ समस्याएँ बताइये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन कैसे लाती है?
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (समाजशास्त्र और शिक्षा का सम्बन्ध)
- प्रश्न- संविधान की परिभाषा दीजिये। संविधान की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान की अवधारणा बताइए। भारतीय संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों एवं कर्त्तव्यों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अन्तर्गत वर्णित शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न धाराओं का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में शिक्षा से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधान क्या-क्या हैं?
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्त्वों से आप क्या समझते हैं? भारतीय संविधान में लिखित नीति-निदेशक तत्त्वों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- समानता, बन्धुता, न्याय व स्वतंत्रता की संवैधानिक वादे के संदर्भ में शिक्षा के लक्ष्यों से सम्बन्धित संवैधानिक मूल्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- संविधान सभा के प्रमुख सदस्यों की कार्यप्रणाली के विषय में बताइए तथा संविधान निर्माण की विभिन्न समितियाँ कौन-सी थीं?
- प्रश्न- प्रस्तावना से क्या आशय है? भारतीय संविधान की प्रस्तावना तथा इसके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा उनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राज्य के नीति निदेशक तत्वों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 45 का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र का अर्थ स्पष्ट करते हुए प्रजातन्त्र के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र के प्रमुख गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र का क्या अर्थ है? भारतीय लोकतंत्र के सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्रीय समाज में शिक्षा के क्या उद्देश्य होने चाहिए? उनमें से किसी एक की सविस्तार विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "आधुनिक शिक्षा में लोकतांत्रिक प्रवृष्टि दृष्टिगोचर होती है।' स्पष्ट कीजिए तथा लोकतांत्रिक समाज में विद्यालयों की भूमिका पर भी प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जनतंत्र केवल प्रशासन की एक विधि ही नहीं है वरन् यह एक सामाजिक प्रणाली भी है। व्याख्या कीजिए |
- प्रश्न- भारत जैसे लोकतन्त्रीय राष्ट्र में शिक्षा के उद्देश्य किस प्रकार के होने चाहिए?
- प्रश्न- शिक्षा का लोकतन्त्रीकरण क्या है? स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जनतंत्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए। जनतंत्र पर शिक्षा के प्रभाव की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में जनतन्त्र से आप क्या समझते हैं? सोदाहरण पूर्णतः स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विद्यालय में प्रजातन्त्र से आप क्या समझते हैं? विद्यालय में प्रजातान्त्रिक वातावरण बनाए रखने के लिए आप क्या प्रयास करेंगे?
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और अनुशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र और शिक्षक एवं शिक्षार्थी में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- लोकतंत्र में विद्यालयों की क्या भूमिका होती है?
- प्रश्न- लोकतंत्र में शिक्षा का अन्य पहलू क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के लिए शिक्षा की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारत का संविधान )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा एवं प्रजातंत्र )
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? समानता के क्षेत्र एवं भारत में यह कहाँ तक उपलब्ध है?
- प्रश्न- अनुसूचित जातियों से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं को बताइये तथा इनके समाधान के उपायों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति की समस्याओं के समाधान के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अल्पसंख्यक की अवधारणा बताइये। अल्पसंख्यकों की शिक्षा के लिये किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- ईसाई धर्म ने हमारी शिक्षा व्यवस्था को किस प्रकार प्रभावित किया है? उचित उदाहरणों की सहायता से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में सार्वभौमीकरण से क्या तात्पर्य है? शिक्षा में सार्वभौमीकरण की कितनी अवस्थायें एवं वर्तमान में इनकी आवश्यकता एवं महत्व के कारण बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा की सार्वभौमीकरण की प्रमुख समस्याओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सार्वभौम एवं समावेशी शिक्षा में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को रोचक एवं प्रभावपूर्ण बनाने में शिक्षक की भूमिका की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना कीजिए?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है समझाइये |
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वैश्वीकरण से आप क्या समझते हैं? वैश्वीकरण के गुण एवं दोष बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय समझ की बाधाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के प्रमुख कारण स्क्रेच स्रोत क्या हैं? इन्हें दूर करने हेतु व्यावसायिक सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक चुनौतीपूर्ण बच्चों को विद्यालय पर समान शैक्षिक अवसर कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं?
- प्रश्न- कोठारी आयोग के द्वारा प्रवेश शिक्षा के अवसर व समानता व इससे सम्बन्धित सुझाव बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शिक्षा की असमानता को दूर करने के लिए क्या कदम उठाए गए?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय आयोग के शैक्षिक अवसरों की समानता सम्बन्धी सुझावों को बताइए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संविधान में अल्पसंख्यकों की सुविधाओं के लिये क्या प्रावधान किये गये हैं?
- प्रश्न- शिक्षा आयोग (1964-66) द्वारा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिये दिये गये सुझाव क्या हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता में शिक्षक की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- शिक्षा के सार्वभौमीकरण में बाधक 'शैक्षिक असमानता' को दूर करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सदभावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- विद्यालय को समाज से जोड़ने में शिक्षक की भूमिका पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- लोकतान्त्रिक अन्तःक्रिया के माध्यम से राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक अवसरों की समानता )
- प्रश्न- सर्व शिक्षा के बारे में बताइये एवं इसके लक्ष्यों, क्रियान्वयन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय साक्षरता मिशन क्या है? विस्तार पूर्वक वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सर्व शिक्षा अभियान के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?
- प्रश्न- समावेशी शिक्षा में शिक्षक की भूमिका स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय के बारे में बताइये।
- प्रश्न- आश्रम पद्धति विद्यालय की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मिड डे मील स्कीम के गुण एवं दोष की गणना कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शैक्षिक कार्यक्रम )