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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रथम प्रश्नपत्र - शिक्षा के दार्शनिक परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :232
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2697
आईएसबीएन :0

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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रथम प्रश्नपत्र - शिक्षा के दार्शनिक परिप्रेक्ष्य

प्रश्न- यथार्थवाद क्या है ? उसने शिक्षा की धाराओं को किस प्रकार प्रभावित किया है ? भारतीय शिक्षा पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
यथार्थवादी शिक्षा दर्शन के वर्तमान शिक्षा पर प्रभावों की विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. यथार्थवाद क्या है ?
2. यथार्थवाद और शिक्षा के उद्देश्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
3. यथार्थवाद और पाठ्यचर्या पर प्रकाश डालिए।
4. यथार्थवाद व शिक्षण विधि पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए |
5. यथार्थवादी दर्शन के अनुसार शिक्षक एवं शिक्षार्थी पर प्रकाश डालिए।
6. यथार्थवाद किस प्रकार के अनुशासन की कल्पना करता है ?
7. भारतीय शिक्षा पर यथार्थवाद के प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

यथार्थवाद
(Realism)


यथार्थवाद का अंग्रेजी रूपान्तर 'Realism' है। 'Real' शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के 'realis' से हुई तथा ' realis' शब्द से बना है जिसका अर्थ है- 'वस्तु'। इस प्रकार 'Realism 'का शाब्दिक अर्थ हुआ - वस्तु वाद या वस्तु सम्बन्धी विचारधारा। वस्तुतः यथार्थवाद वस्तु सम्बन्धी विचारों के प्रति एक दृष्टिकोण है जिसके अनुसार संसार की वस्तुएँ यथार्थ हैं। इस वाद के अनुसार, केवल इन्द्रियज ज्ञान ही सत्य है।

यथार्थवाद का मानना है कि बाह्य जगत मिथ्या नहीं वरन् सत्य है। आदर्शवाद इस सृष्टि का अस्तित्त्व विचारों के आधार पर मानता है किन्तु यथार्थवाद के अनुसार जगत विचारों पर आश्रित नहीं है। यथार्थवाद के अनुसार, हमारा अनुभव स्वतन्त्र न होकर बाह्य पदार्थों के प्रति प्रतिक्रिया का निर्धारण करता है। अनुभव बाह्य जगत से प्रभावित है और बाह्य जगत की वास्तविक सत्ता है। इस वाद के अनुसार, मनुष्य को वातावरण का ज्ञान होना चाहिए तथा यह पता होना चाहिए कि वह वातावरण को परिवर्तित कर सकता है या नहीं और इसी ज्ञान के अनुसार, उसे कार्य करना चाहिए।

यथार्थवाद की परिभाषा
(Definition of Realism)

स्वामी रामतीर्थ - " यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास का सिद्धान्त है, जो जगत को वैसा ही स्वीकार करता है, जैसा कि हमें दिखाई देता है।"

जे० एस० रॉस - " यथार्थवाद यह स्वीकार करता हैं कि जो कुछ हम प्रत्यक्ष में अनुभव करते हैं, उसके पीछे तथा मिलता-जुलता वस्तुओं का एक यथार्थ जगत है।"
बटलर - " यथार्थवाद संसार की सामान्यतः उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह हमें दिखाई देता है।"
नेफ (Neft) - " यथार्थवाद, आत्मगत, आदर्शवाद का प्रतिकार है, जो सत्य का निवास, मानव मस्तिष्क में मानता है। सब यथार्थवादी इस बात से सहमत हैं कि सत्य और वास्तविकता का अस्तित्त्व है और रहेगा, भले ही किसी व्यक्ति को उनके अस्तित्त्व का ज्ञान न हो।"

यथार्थवाद के मूल सिद्धान्त
(Basic Principles of Realism)

यथार्थवाद के मूल सिद्धान्त निम्न प्रकार हैं-

(1) प्रत्यक्ष जगत् ही सत्य हैं (Phenomenal world is true ) - यथार्थवादियों के मतानुसार, केवल प्रत्यक्ष जगत, जिसे हम देखते, सुनते या अनुभव करते हैं, ही सत्य है। अर्थात् यह भौतिक संसार ही सत्य है।

(2) इन्द्रियाँ ज्ञान के द्वार हैं (Senses are the Gateways of Knowledge ) - यथार्थवादियों के अनुसार, हमें ज्ञान की प्राप्ति इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त संवेदना के आधार पर होती है। इसलिए इन्हें ज्ञान का द्वार कहा जाता है।

(3) आंगिक सिद्धान्त (Theory of Organism) - ह्वाइटहैड के अनुसार, “संसार की प्रत्येक वस्तु समष्टि का एक अंग है तथा समस्त अवयवों में सम्मिलित रूप से तरंगित प्रक्रिया हो रही है। परिवर्तन इसी का परिणाम है।" जगत के सभी तत्त्वों, नियमों व विचारों में इसी परिवर्तनशीलता के कारण परिवर्तन होते रहते हैं। इस सिद्धान्त के समर्थक वैज्ञानिक नियमों को शाश्वत न मानकर परिवर्तनशील मानते हैं।

(4) पारलौकिकता को अस्वीकार करना (To Reject the Concept of Transcen dentalism) - यथार्थवाद के अनुसार, इस लोक से परे अन्य कोई लोक नहीं है। इस प्रकार यह विचारधारा वस्तुनिष्ठ एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देती है। यह विचारधारा आत्म-परमात्मा के अस्तित्त्व सम्बन्धी विचारधारा का भी खण्डन करती है। यथार्थवादी मनुष्य के मन को आत्मा न मानकर मात्र एक भौतिक सत्ता मानते हैं।

(5) वस्तु-जगत में नियमितता स्वीकार करना (To accept Regularity in objective work) - यथार्थवादियों के अनुसार, “अनुभव और ज्ञान के लिये नियमितता का होना आवश्यक है।" वस्तुत: वस्तु-जगत में नियमितता के सिद्धान्त को स्वीकार करने के कारण यथार्थवादियों का दृष्टिकोण यान्त्रिक बन जाता है, इसीलिये वे मन को भी यान्त्रिक ढंग से क्रियाशील मानते हैं।

(6) प्रयोग पर बल (Emphasis on Experiments) – यथार्थवादी विचारधारा निरीक्षण, अवलोकन तथा प्रयोग पर बल देती है। इसके अनुसार, किसी अनुभव को तब तक स्वीकार नहीं किया जा सकता है जब तक कि वह निरीक्षण व प्रयोग की कसौटी पर सिद्ध न हो जाए।

(7) मानव के वर्तमान व्यावहारिक जीवन पर बल (Emphasis of Present Practical Life of Man) - यथार्थवादी आत्मा, परमात्मा, परलोक आदि आध्यात्मिक बातों में कोई रुचि नहीं लेते। वे मनुष्य को एक जैविक पदार्थ मानकर उसका लक्ष्य सुखी जीवन व्यतीत करना मानते हैं।

यथार्थवाद और शिक्षा के उद्देश्य
(Realism and Aims of Education)


यथार्थवादी शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(1) बालक को यथार्थ जीवन के लिये तैयार करना (Preparing the child for a real life ) - यथार्थवादी भौतिक संसार तथा भौतिक जीवन को ही यथार्थ मानते हैं। उनके अनुसार, बालक को भौतिक जीवन की वास्तविकता से अवगत कराना ही शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिए।

(2) बालक को मानव समाज तथा प्रकृति का ज्ञान कराना (To Provide the Knowledge of Human Society and Nature to the child) - बालक का सम्बन्ध समाज तथा प्रकृति से होता है। बालक को इसका ज्ञान होना चाहिए।.

(3) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास (Development of Sceintific outlook ) - यथार्थवाद इस तथ्य को प्रमुखता देता है कि शिक्षा द्वारा बालकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास हो। इसके लिये आवश्यक है कि बालकों को अपने वातावरण का ज्ञान हो, वे भौतिक विज्ञानों का अध्ययन करें तथा उनके सीखने हेतु वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाये।

(4) बालक को एक सुखी जीवन के लिये तैयार करना (Preparing the child for a child for a Happy Life ) - यथार्थवादी जीवन के किसी अन्तिम उद्देश्य में विश्वास नहीं करते। उनके अनुसार, यह संसार एक पदार्थ है तथा जीवन एक प्रक्रिया है। उनके अनुसार, शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जिसे प्राप्त कर मनुष्य अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण से समायोजन कर सके तथा सुखी जीवन व्यतीत कर सके।

(5) मानसिक शक्तियों का विकास (Development of Mental Powers) - मनोविज्ञान में विश्वास करने के कारण यथार्थवादी शिक्षा द्वारा बालकों की मानसिक शक्तियों - स्मरण, विवेक तथा निर्णय आदि का विकास करने पर बल देते हैं। उनके अनुसार मानसिक शक्तियों के विकास के फलस्वरूप ही बालक अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याओं को सुलझाने में समर्थ हो सकता है।
(6) व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करना (Imparting Vocational Education) - यथार्थवादी विचारधारा बालकों के जीवन को सुखमय बनाने की बात सोचती है और इस हेतु आवश्यकता होती है विभिन्न उपयोगी वस्तुओं के उत्पादन की इसीलिये यथार्थवादी व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष बल देते हैं।

पाठ्यचर्या और यथार्थवाद
(Curriculum and Realism)

सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया का केन्द्र-बिन्दु या आधारभूत माध्यम वे विविध विषय हैं जो कक्षा में पढ़ाये जाते हैं। प्रत्येक विषय के अपने आन्तरिक मूल्य और सामाजिक मूल्य होते हैं। इसीलिए सभी विषयों को एक ही कोटि में नहीं रख सकते।

शिक्षा के निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप इन असंख्य विषयों में से चयन करना पड़ता है। यथार्थवादी दृष्टिकोण के अनुसार, इस सम्बन्ध में यह आधारभूत मान्यता है कि पाठ्य विषय विविध और विस्तृत होने चाहिए। छात्र को अपनी योग्यता और रुचि के अनुसार इसमें से चयन का अधिकार होना चाहिए।

इस सम्बन्ध में यथार्थवादी दर्शन की अन्य मान्यताएँ निम्न प्रकार हैं-

(1) छात्र को सर्वाधिक उपयोगी विषय ही पढ़ाने चाहिए।
(2) सर्वाधिक उपयोगी विषयों के चयन का काम बालकों पर ही नहीं छोड़ना चाहिए, इस कार्य में शिक्षक और माता-पिता का उचित मार्ग-दर्शन मिलना चाहिए।
(3) चयन किये गये विषयों में परस्पर सम्बन्ध हों।
(4) सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप ही विषयों का चयन होना चाहिए।
(5) ज्ञान - ज्ञान के लिए या कला-कला के लिए जैसी मान्यताएँ निरर्थक हैं, उपयोगिता-हीन विषय पढ़ने से कोई लाभ नहीं है।
(6) आधुनिक भाषाएँ ही पढ़ायी जानी चाहिए।
(7) 'स्वान्तः सुखाय' साहित्य का अध्यापन नहीं करना चाहिए।
(8) कला, संगीत आदि ललित कलाओं का वास्तविक जीवन के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है, अतः इसका कोई महत्त्व नहीं है।
(9) विज्ञान का शिक्षण अनिवार्य होना चाहिए क्योंकि विज्ञान यथार्थ-जगत का परिचय देता है।
(10) पाठ्यक्रम व्यापक होना चाहिए।
(11) क्रिया प्रधान पाठ्यक्रम हो।
(12) व्यक्तिगत विभिन्नता को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

इस प्रकार यथार्थवादी विचारक अपने पाठ्यक्रम के अन्तर्गत व्यावसायिक विषयों एवं विज्ञान को मुख्य, भूगोल, कानून, राजनीति को गौण एवं साहित्य कला, संगीत को निम्नवत् स्थान देते हैं। परन्तु वह मातृभाषा में प्रमुख स्थान देते हैं क्योंकि वह बालक के विकास की आधारशिला है।

शिक्षण - विधि और यथार्थवाद
(Teaching Methods and Realism)

यथार्थवाद बालक को सामाजिक प्राणी बनाना चाहता है ताकि वह सामाजिक परिस्थितियों को समझकर व्यावहारिक जीवन को सफल बना सके। यह स्वाभाविक होगा कि शिक्षा को इन यथार्थवादी उद्देश्यों के अनुरूप ही पाठ्य विषयों का चयन हो और मूल्याँकन की विधि भी इसके अनुरूप ही हो। निश्चय ही यथार्थवादी मूल्याँकन में काल्पनिक, अवास्तविक, निरर्थक, उपयोगिता विहीन, प्रभाववादी परीक्षण के उपकरणों का कोई महत्त्व नहीं है। ऐसे प्रश्न पत्रों का इसमें कोई स्थान नहीं है जो केवल 'ज्ञान, ज्ञान के लिए' के सिद्धान्त पर पूछे जाते हैं। काल्पनिक, अविश्वसनीय और अवैध प्रश्नों को पूछना इसमें निषिद्ध है। तथ्यपूर्ण, यथार्थ जीवन और समाज से सम्बन्धित वस्तुनिष्ठ ज्ञान का मापन ही यथार्थवादी मूल्यांकन में ग्रहणीय है।

शिक्षक और यथार्थवाद
(Teacher and Realism)

यथार्थवाद दर्शन के अनुसार, शिक्षक का अपना एक विशेष चरित्र, दृष्टिकोण और लक्ष्य होता है। यथार्थवाद शिक्षकों के प्रशिक्षण पर विशेष बल देता है। शिक्षक अपनी कला में निपुण होता है और उसे यह ज्ञात होता है कि किस समय क्या और कितना पढ़ाना है? ज्ञान और अनुभव के प्रति उसकी एक विशिष्ट धारणा होती है।

यथार्थवाद के अनुसार, शिक्षक की परिकल्पना की विशेषताएँ निम्नलिखित होनी चाहिए-

(1) शिक्षक का विज्ञान में अटूट विश्वास होता है।
(2) प्रत्येक वस्तु को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करता है।
(3) कल्पना की अपेक्षा वस्तुनिष्ठ और उपयोगी ज्ञान को वह पसन्द करता है।
(4) वह सच्चा अन्वेषक होता है। वैज्ञानिक विधि द्वारा अन्वेषित ज्ञान पर ही वह विश्वास करता है।
(5) वह यह मानता है कि विश्व के सभी तत्त्वों को कोई भी पूरी तरह से नहीं जान सकता, अत: वह तत्त्व विशेष की विशेषता पर बल देता है।
(6) यथार्थवादी शिक्षक अपने छात्रों की आवश्यकताओं, रुचियों और इच्छाओं से परिचित होता है और उनकी परिपुष्टि वैज्ञानिक ढंग से करता है।
(7) अपने छात्रों पर वह अपनी व्यक्तिगत मान्यताएँ नहीं थोपता। वह तटस्थ भाव से वस्तु का यथार्थ विवेचन करता है।
(8) 'यथार्थवादी शिक्षक बाल मनोविज्ञान और किशोर मनोविज्ञान से परिचित होता है। इसलिए वह पाठ को सरस और आकर्षक विधि से पढ़ाता है।

छात्र और यथार्थवाद
(Student and Realism)

यथार्थवाद के अनुसार, सम्पूर्ण शिक्षा प्रक्रिया में छात्र का सर्वाधिक महत्त्व है। यथार्थवाद के अनुसार, बालक एक यथार्थ इकाई है जो अनेक भावनाओं, इच्छाओं और शक्तियों से परिपूर्ण है। शिक्षा में इनका आदर होना चाहिए। वैज्ञानिक विधियों से इन शक्तियों के यथोचित विकास में सहयोग देना चाहिए। यह सहयोग इसलिए भी आवश्यक है कि छात्र स्वतन्त्र नहीं छोड़ा जा सकता। उसे शिक्षक का मार्ग-दर्शन मिलना चाहिए। इस प्रकार यथार्थवाद के अनुसार छात्र की कुछ विशेषताएँ होती हैं जो इस प्रकार हैं-

(1) छात्र विवेक से ही सीखकर यथार्थ के निकट पहुँचने की चेष्टा करता है। बुद्धि ही सीखने में उसकी सहायता करती है।
(2) छात्र अपनी बुद्धि के विकास के लिए अधिक-से-अधिक स्वतन्त्रता चाहता है।
(3) तथ्यों के आधार पर वह आगे बढ़ता है। इसमें वह कोरी कल्पना का सहारा नहीं लेता है।
(4) वह सिद्धान्तों की अपेक्षा वास्तविक ज्ञान और उपयोगी व्यवहारों पर अधिक विश्वास करता है।
(5) यथार्थवाद के अनुसार छात्र देवता नहीं है। वह मात्र मनुष्य है, सामाजिक प्राणी है। अतः सामाजिक सामंजस्य उसके ज्ञान और व्यवहार का विशेष गुण होना चाहिए।

अनुशासन और यथार्थवाद

विद्यालय के सुचारु संचालन के लिए अनुशासन अनिवार्य आवश्यकता है इसलिए अनुशासन के प्रति अधिकारियों, शिक्षकों और छात्रों के दृष्टिकोण का काफी महत्त्व होता है। शिक्षा के विभिन्न दर्शन इस दृष्टिकोण को अपने-अपने ढंग से प्रभावित करते हैं। यथार्थवाद के अनुसार अधिकारियों और शिक्षकों का कर्त्तव्य है कि विद्यालय और कर्त्तव्य पालन का वातावरण बनाये रखें। इसके लिए अनुशासन के नियमों का पालन करते रहें। अनुशासन क्या है ? यथार्थवाद के अनुसार वस्तुनिष्ठ परिस्थितियों और वातावरण के प्रति सामंजस्य तथा समायोजन ही अनुशासन है। इसलिए छात्र अपने चारों ओर के वातावरण के अनुकूल अपने को ढाल सकें और कार्य करने में अवधान केन्द्रित कर सकें; इसके लिए अनुशासन आवश्यक है। यथार्थवाद के अनुसार बालक में वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण उत्पन्न करता है, ताकि वह अपनी भावनाओं और वासनाओं पर विजय प्राप्त कर सके, अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ सके, इसके लिए भी अनुशासनात्मक भावना आवश्यक है। अनुशासित छात्र वह जो जगत की कठोरता से संसार की यातना से दुनिया की कठिनाइयों से और विश्व में व्याप्त अभावों से दूर नहीं भागता। यथार्थवाद पलायनवाद का सदा डटकर विरोध करता रहा है और दुनिया की कठोर यथार्थता का सामना करने की प्रेरणा देता रहा है। इस प्रकार यथार्थवाद छात्रों में कठिनाइयों से विचलन होने स्थान पर धैर्य, सहिष्णु और अनुशासित चरित्र पैदा करता है। इस प्रकार यथार्थवाद प्रभावात्मक व मुक्तयात्मक अनुशासन के समन्वित रूप का समर्थक है। वह सामाजिक नियमों के अनुसार अनुशासन स्थापित करना चाहते हैं।

यथार्थवाद और भारतीय शिक्षा
(Realism and Indian Education)

भारतीय शिक्षा पर एक दृष्टि डालने से ज्ञात होता है कि यथार्थवाद यहाँ पर उपेक्षित नहीं रहा है। अतीत भारत की शिक्षा के विषय में प्रायः यह कह दिया जाता है कि उस समय वहाँ की शिक्षा पूर्ण रूपेण धार्मिक एवं आदर्शात्मक थी और उसका यथार्थ जगत् में कोई सम्बन्ध नहीं था। किन्तु यह आलोचना हमारी अल्पज्ञता की द्योतक है। प्राचीन भारत में जहाँ पर कर्मकण्ड, यज्ञ विधान आदि की शिक्षा दी जाती थी- वहीं पर आयुर्वेद एवं धनुर्वेद जैसे व्यावसायिक विषयों की भी शिक्षा दी जाती थी- एक ओर ब्रह्मचारी - ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद जैसे दार्शनिक ग्रन्थों का पारायण करते थे तो दूसरी ओर वे अपने परिश्रम से आश्रम के आस-पास की भूमि को 'शस्य श्यामला' बना देते थे, मृगों एवं गायों की देख-रेख करके पशु-पालन का यथार्थ ज्ञान प्राप्त करते थे तथा नीचे तेल में परछाई देख कर ऊपर लटकती हुई मछली की आँख बेधते थे। इससे पता चलता है कि प्राचीन ऋषि व्यावहारिक विषयों की ओर सजग थे।

शिक्षण विधि में भी यथार्थवाद का पुट था। यहाँ पर निगमन और आगमन दोनों प्रकार की तर्क - प्रणाली प्रचलित थी, प्रमाणों में प्रत्यय प्रमाण को महत्त्वपूर्ण माना गया था और ज्ञानेन्द्रियों की महत्ता स्वीकार की गयी थी।

वर्तमान भारत की शिक्षा में भी हम यथार्थवाद का पुट पाते हैं। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अन्य देशों की भाँति भारतीय शिक्षा में भी यथार्थवादी विचारधारा का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है।

आज अधिकतर भारतीय विश्वविद्यालयों में व्यावसायिक एवं तकनीकी शिक्षा की व्यवस्था है। समय की माँग को देखते हुए एवं समाज की यथार्थ आवश्यकताओं की अनुभूर्ति करते हुए ये विश्वविद्यालय कानून, चिकित्सा, इन्जीनियरिंग, शिक्षण, कृषि आदि की उच्च शिक्षा प्रदान करते हैं। कुछ विश्वविद्यालय तो केवल कृषि के लिए ही अलग से खुले हैं।

माध्यामिक शिक्षा के क्षेत्र में कृषि, विज्ञान, वाणिज्य आदि विषयों की ओर रूचि बढ़ी है। विज्ञान ने लोगों का ध्यान आकृष्ट किया है। आज माध्यामिक विद्यालयों में एक कक्षा में जितने छात्र साहित्यिक विषयों को लेते हैं, कम-से-कम उससे दुगने छात्र विज्ञान विषय का अध्ययन करते हैं।

बहुउद्देशीय विद्यालयों की स्थापना यथार्थवादी शिक्षा के मार्ग में प्रभावशाली कदम है। ये विद्यालय छात्रों को समाजोपयोगी बनाने का प्रयत्न करते हैं और समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप अपने को बहुधन्धी बना लिया है।

आज भारतीय विद्यालयों का पाठ्यक्रम यथार्थवादी दृष्टिकोण से बनाया जाता है। विषयों की अधिकता एवं निर्वाचन के क्षेत्र का विस्तार इस बात के द्योतक हैं। शिक्षण विधि में भी वैज्ञानिक पद्धति का अनुसरण किया जाना अच्छा समझा जाता है।

भारतीय महाविद्यालयों में अनुसन्धान हो रहे हैं, उनमें भी वस्तुनिष्ठता का सर्वाधिक ध्यान रखा जाता है। शोधकर्त्ता अपने व्यक्तिगत विचारों को अलग ही रखने का प्रयत्न करता है।

इस प्रकार वर्तमान भारतीय शिक्षा पर यथार्थवादी विचारधारा का प्रभाव पड़ा है और शिक्षकों तथा शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा को समाज के लिए उपयोगी बनाने का भरसक प्रयत्न किया है। इस दिशा में कुछ सफलता भी मिली है। किन्तु भारतीय शिक्षक यथार्थवाद की सीमा से परिचित हैं और इसीलिए वह यथार्थवाद की सीमा से बाहर जाना पसन्द करता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा बताइये तथा इसकी परिभाषाएँ देते हुए इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके संकुचित, व्यापक एवं वास्तविक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न प्रकारों को समझाइए। शिक्षा तथा साक्षरता व अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है ?
  4. प्रश्न- भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व स्रोतों का समुचित विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?
  6. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  7. प्रश्न- "शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
  8. प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए।
  9. प्रश्न- शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
  10. प्रश्न- शिक्षा के साधनों से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के विभिन्न साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- ब्राउन ने शिक्षा के अभिकरणों को कितने भागों में बाँटा है ? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- शिक्षा के एक साधन के रूप में परिवार का क्या महत्व है ? बालक की शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए घर व विद्यालय को निकट लाने के उपाय बताइए।
  13. प्रश्न- "घर और पाठशाला में सामंजस्य न स्थापित करना बालक के साथ अनहोनी करना है।' रॉस के इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  14. प्रश्न- जनसंचार का क्या अर्थ है ? जनसंचार की परिभाषा देते हुए इसकी महत्ता का विश्लेषण कीजिए।
  15. प्रश्न- दूरसंचार के विषय में आप क्या जानते हैं ? इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दीजिए।
  16. प्रश्न- दूरसंचार के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- बालक की शिक्षा के विकास में संचार के साधन किस प्रकार सहायक हैं ? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
  18. प्रश्न- इन्टरनेट की विशेषताओं का समीक्षात्मक विश्लेषण कीजिए।
  19. प्रश्न- कम्प्यूटर किसे कहते हैं ? कम्प्यूटर के विकास का समीक्षात्मक इतिहास लिखिए।
  20. प्रश्न- सम्प्रेषण का शिक्षा में क्या महत्व है ? सम्प्रेषण की विशेषताएं लिखिए।
  21. प्रश्न- औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों के सापेक्षिक सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  22. प्रश्न- शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में जनसंचार के साधनों का क्या योगदान है ?
  23. प्रश्न- अनौपचारिक और औपचारिक शिक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  24. प्रश्न- "घर, शिक्षा का सर्वोत्तम स्थान और बालक का प्रथम विद्यालय है।' समझाइए
  25. प्रश्न- जनसंचार प्रक्रिया के प्रमुख तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- जनसंचार माध्यमों की उपयोगिता पर टिप्पणी लिखिए।
  27. प्रश्न- इंटरनेट के विकास की सम्भावनाओं का उल्लेख कीजिए।
  28. प्रश्न- भारत में कम्प्यूटर के उपयोग की महत्ता का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- हिन्दी में संदेश देने वाले सामाजिक माध्यमों में 'फेसबुक' के महत्व बताइए तथा इसके खतरों के विषय में भी विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- 'व्हाट्सअप' किस प्रकार की सेवा है ? सामाजिक माध्यमों में संदेश देने हेतु यह किस प्रकार कार्य करता है ?
  31. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा: अर्थ, अवधारणा, प्रकृति और शिक्षा के उद्देश्य)
  32. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा के अभिकरण )
  33. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए
  34. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए (i) तत्व - मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  35. प्रश्न- "पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।' व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- आधुनिक पाश्चात्य दर्शन के लक्षण बताइए। आप आधुनिक पाश्चात्य दर्शन का जनक किसे मानते हैं ?
  37. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  38. प्रश्न- एक अध्यापक के लिए शिक्षा दर्शन की क्या उपयोगिता है ? समझाइये।
  39. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है ?
  40. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं ? परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (दर्शन तथा शैक्षिक दर्शन के कार्य )
  42. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है ? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  45. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  46. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  47. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  48. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  49. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  50. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है ?
  51. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है ? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  52. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  53. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादितं शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  54. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  55. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है ?
  56. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्यादवाद) को समझाइए।
  57. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  58. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त क्या-क्या हैं ?
  60. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में शिक्षक संकल्पना पर टिप्पणी लिखिए।
  61. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में छात्र-शिक्षक के सम्बन्ध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  62. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में छात्र/ शिक्षार्थी की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा की वर्तमान शिक्षा पद्धति में उपादेयता बताइए।
  64. प्रश्न- बौद्ध शिक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  65. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं ? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  67. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के रूप में आदर्शवाद का मूल्याँकन कीजिए।
  68. प्रश्न- "भारतीय आदर्शवादी दर्शन अद्वितीय है।" उक्त कथन पर प्रकाश डालते हुए भारतीय आदर्शवादी दर्शन की प्रकृति की विवेचना कीजिए तथा इसका पाश्चात्य आदर्शवाद से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक का क्या स्थान है ?
  70. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है ?
  71. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  72. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  73. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा पर आदर्शवादी दर्शन का प्रभाव बताइये।
  74. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  76. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  77. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  78. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
  79. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है ? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों ?
  80. प्रश्न- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है ?
  81. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  82. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है ?
  83. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है ?
  84. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  85. प्रश्न- आदर्शवाद और प्रकृतिवाद में अनुशासन की संकल्पना किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न है ? सोदाहरण समझाइए।
  86. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  87. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  88. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  89. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  90. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  91. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  92. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसके मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  93. प्रश्न- शिक्षा में यथार्थवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा संक्षेप में यथार्थवाद के रूपों को बताइए।
  94. प्रश्न- यथार्थवाद क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  95. प्रश्न- यथार्थवाद द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों तथा शिक्षण पद्धति की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- यथार्थवाद क्या है ? उसने शिक्षा की धाराओं को किस प्रकार प्रभावित किया है ? भारतीय शिक्षा पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
  97. प्रश्न- नव यथार्थवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  98. प्रश्न- वैज्ञानिक यथार्थवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  99. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : वेदान्त दर्शन)
  100. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : जैन दर्शन )
  101. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। ( भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : बौद्ध दर्शन )
  102. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (दर्शन की विचारधारा - आदर्शवाद)
  103. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। ( प्रकृतिवाद )
  104. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (प्रयोजनवाद )
  105. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (यथार्थवाद)
  106. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  107. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं ?
  108. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है ?
  109. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  110. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  111. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है ?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में गिज्जूभाई की विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा इनके सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  118. प्रश्न- गिज्जूभाई के शैक्षिक विचारों का उल्लेख कीजिए।
  119. प्रश्न- गिज्जूभाई के शैक्षिक प्रयोगों का वर्णन कीजिए।
  120. प्रश्न- गिज्जूभाई कृत 'प्राथमिक शाला में भाषा शिक्षा' पर टिप्पणी लिखिए।
  121. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  122. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  123. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं ? लिखिए।
  124. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  125. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है ?
  126. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  127. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  128. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  129. प्रश्न- प्लेटो के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  130. प्रश्न- प्लेटो के शिक्षा सिद्धान्त की आलोचना तथा उसके शिक्षा जगत पर प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
  131. प्रश्न- प्लेटो का शिक्षा में योगदान बताइए।
  132. प्रश्न- स्त्री शिक्षा तथा दासों की शिक्षा के विषय में प्लेटो के विचार स्पष्ट कीजिए।
  133. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  134. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  135. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है ? सोदाहरण समझाइए।
  136. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं ?
  137. प्रश्न- पालो फ्रेरे का जीवन परिचय लिखिए। इनके जीवन की दो प्रमुख घटनाएँ कौन-सी हैं जिन्होंने इनको बहुत अधिक प्रभावित किया ?
  138. प्रश्न- फ्रेरे के जीवन की दो मुख्य घटनाएँ बताइये जिनसे वह बहुत प्रभावित हुआ।
  139. प्रश्न- फ्रेरे के पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधि पर विचार स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- फ्रेरे के शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  141. प्रश्न- फ्रेरे के शैक्षिक आदर्श क्या हैं?
  142. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  143. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  144. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : महात्मा गाँधी)
  145. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : रवीन्द्रनाथ टैगोर)
  146. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : गिज्जू भाई )
  147. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : स्वामी विवेकानन्द )
  148. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : जे० कृष्णमूर्ति )
  149. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : प्लेटो)
  150. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : रूसो )
  151. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : पाउलो फ्रेइरे)
  152. प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : जॉन ड्यूवी )

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