बी एड - एम एड >> बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रथम प्रश्नपत्र - शिक्षा के दार्शनिक परिप्रेक्ष्य बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रथम प्रश्नपत्र - शिक्षा के दार्शनिक परिप्रेक्ष्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बी.एड. सेमेस्टर-1 प्रथम प्रश्नपत्र - शिक्षा के दार्शनिक परिप्रेक्ष्य
प्रश्न- शिक्षा दर्शन के रूप में आदर्शवाद का मूल्याँकन कीजिए।
उत्तर -
(Evaluation of Idealism as a Philosophy of Education)
किसी वस्तु, क्रिया, व्यवस्था, विचार, योग्यता और क्षमता आदि का मूल्यांकन किन्हीं पूर्व निश्चित मानदण्डों के आधार पर किया जाता है। ये मानदण्ड व्यक्तिगत भी हो सकते हैं और सामाजिक भी मनोवैज्ञानिक भी हो सकते हैं और वैज्ञानिक भी अल्पमान्य भी हो सकते हैं और बहुमान्य भी। वैज्ञानिक मानदण्ड तो प्रायः सर्वमान्य होते हैं और जो मानदण्ड जितने अधिक व्यक्तियों को मान्य होता है वह उतना ही अधिक अच्छा मानदण्ड माना जाता है। शिक्षा मनुष्य के निर्माण की प्रक्रिया है, उसके ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि करने की प्रक्रिया है, उसके आचार, विचार और व्यवहार को उचित दिशा प्रदान करने की प्रक्रिया है। अब यह परिवर्तन एवं विकास किस प्रकार का हो, यह समाज विशेष को तत्कालीन परिस्थितियों और भविष्य की सम्भावनाओं और आकांक्षाओं पर निर्भर करता है। तब किसी शैक्षिक चिन्तन अथवा व्यवस्था का मूल्यांकन संसार की वर्तमान परिस्थितियों और उसकी भविष्य की सम्भावनाओं और आकांक्षाओं के आधार पर ही किया जा सकता है। हमने यहाँ ऐसा ही प्रयास किया है और आदर्शवादी शिक्षा का मूल्यांकन संसार की वर्तमान परिस्थितियों एवं भविष्य की सम्भावनाओं और आकांक्षाओं विशेष रूप से भारतीय समाज की वर्तमान परिस्थितियों और भविष्य की सम्भावनाओं और आकांक्षाओं के आधार पर किया है।
एक दर्शन के रूप में आदर्शवाद जीव, जड़ और जगत की एक विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करता है और हमें भौतिक पदार्थों की नश्वरता और आत्मा-परमात्मा की अमरता से परिचित कराता है। यह * हमें अज्ञान के अंधेरे से निकालकर ज्ञान के प्रकाश की ओर उन्मुख करता है और हमें प्रेम, सहानुभूति एवं सहयोग से भौतिक जीवन जीने तथा सच्चे ज्ञान एवं नैतिक आचरण से आध्यात्मिकता की प्राप्ति करने की ओर प्रवृत्त करता है। परन्तु आत्मिक जगत को सत्य और वस्तु जगत को असत्य मानने की बात सामान्य मनुष्य को मान्य नहीं हो सकती। आज हमें ऐसे जीवन दर्शन की आवश्यकता है जो हमारे प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक तीनों पक्षों को समान महत्व दे और तीनों के संतुलित विकास का मार्ग प्रशस्त करे।
एक शिक्षा दर्शन के रूप में यह शिक्षाशास्त्रियों को शाश्वत मूल्यों से परिचित कराता है और इन मूल्यों के आधार पर शिक्षा के सार्वभौमिक एवं सर्वकालीन उद्देश्य निश्चित करता है। इसके अनुसार मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति है। अतः शिक्षा को मनुष्य के इस उद्देश्य की प्राप्ति में सहायता करनी चाहिए। इसके लिए वह मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नैतिक एवं चारित्रिक और आध्यात्मिक, सभी प्रकार के विकास पर बल देता है। जो शिक्षा इतना कार्य करती है वह मनुष्य को इस लोक और परलोक दोनों के लिए तैयार करती है। आदर्शवादियों ने आध्यात्मिकता की प्राप्ति के लिए मनुष्य के लिए जो आचार संहिता बनाई है उसमें मनुष्य को स्वयं और उसके सम्पर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों को भौतिक सुख प्राप्त होता है और समाज का रूप बड़ा शिष्ट, सरल एवं सुखदायक बनता है। कुछ विद्वान आदर्शवादियों पर यह दोष लगाते हैं कि वे परलोक के आगे इस लोक की चिन्ता नहीं करते और मनुष्य की रोटी, कपड़े और मकान की समस्या सुलझाने के लिए 'व्यावसायिक शिक्षा का विधान नहींकरते। परन्तु यह उनका मिथ्या दोषारोपण है। आदर्शवाद के प्रतिपादक प्लेटो ने राष्ट्र के लिए विभिन्न प्रकार के नागरिकों के निर्माण की बात कही है, उन्हें उनकी योग्यतानुसार कर्मक्षेत्र की शिक्षा (व्यवसाय की शिक्षा) देने की बात कही है।
आदर्शवादी शिक्षा की पाठ्यचर्या में भाषा, साहित्य, धर्म एवं नीतिशास्त्र पर अधिक और ज्ञान की अन्य शाखाओं, व्यावसायिक विषय एवं भौतिक विज्ञान आदि पर अपेक्षाकृत कम बल देते हैं। उनकी दृष्टि से बिना भाषा, साहित्य, धर्म एवं नीति के ज्ञान के मनुष्य एक अच्छा मनुष्य नहीं बनाया जा सकता। हमारा पहला उद्देश्य मनुष्य को एक अच्छा मनुष्य बनाना ही होना चाहिए। परन्तु यह बात भी सही है कि जो शिक्षा व्यवस्था सामाजिक परिवर्तनों के साथ कदम मिलाकर नहीं चलती वह अपने में अधूरी होती है। प्रसन्नता की बात है कि आज के आदर्शवादी विचारकों का दृष्टिकोण व्यापक है और वे युग की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये पाठ्चर्या को विस्तृत बनाने पर बल देते हैं।
शिक्षण विधियों के क्षेत्र में भी आदर्शवादियों ने अनेक उत्तम विधियों का निर्माण किया है। अनुकरण को वे सीखने की स्वाभाविक विधि मानते हैं। प्राचीन आदर्शवादी विचारक अनेक अन्य उत्तम विधियों प्रश्नोत्तर, वाद-विवाद, संवाद, आगमन और निगमन का प्रयोग करते थे। आधुनिक आदर्शवादी विचारक तो मनोवैज्ञानिक तथ्यों से परिचित हैं और करके सीखने और स्वानुभव द्वारा सीखने पर बल देते हैं। इस संदर्भ में पेस्टालॉजी की अभ्यास और आवृत्ति विधि, हरबर्ट की पंचपद प्रणाली और फ्रोबेल की किण्डरगार्टन प्रणाली उल्लेखनीय है। अब आदर्शवादियों पर यह दोष लगाना उचित नहीं है कि वे व्याख्यान, प्रश्नोत्तर और विचार-विमर्श आदि प्रणालियों तक ही सीमित है और रटने तथा पुस्तक प्रणाली पर अधिक निर्भर करते हैं। पर यह बात अवश्य है कि इन सब विधियों में छात्रों की अपेक्षा शिक्षक अधिक क्रियाशील रहता है।
अनुशासन के सम्बन्ध में आदर्शवादी विचारधारा को आज अधिकतर शिक्षाशास्त्री वहाँ तक तो उत्तम समझते हैं जहाँ तक वह बच्चों को उत्तम वातावरण में रखकर उच्च आचरण का प्रशिक्षण देती है परन्तु इस सबके लिए बच्चों को कठोर नियन्त्रण में रखने और भूल करने पर दण्ड देने की वे आलोचना करते हैं। इस सन्दर्भ में हमारा यह अनुभव है कि उचित नियन्त्रण और उचित दण्ड विधान के अभाव में न तो बच्चे बाह्य दृष्टि से अनुशासित होते हैं और न आन्तरिक दृष्टि से नियन्त्रण तो होना ही चाहिए, पर यह नियन्त्रण प्रेम पर आधारित होना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर दण्ड भी दिया जाए पर बड़ी... सावधानी के साथ जिस छात्र को दण्ड दिया जाय वह यह अनुभव करें कि जो दण्ड दिया जा रहा है उसकी स्वयं की भलाई के लिए दिया जा रहा है और किसी भी स्थिति में कठोर दण्ड न दिया जाए। कठोर दण्ड तो छात्रों को और अधिक अनुशासनहीन बनाता है।
कुछ लोग आदर्शवादियों की इस बात के लिए बड़ी आलोचना करते हैं कि वे शिक्षा की प्रक्रिया में शिक्षक को मुख्य स्थान देते हैं, परन्तु हमारी दृष्टि से यह भी उनकी गलत आलोचना है। आचरण की शिक्षा आदर्श आचरण करने वाले अध्यापकों के सम्पर्क में रहकर ही प्राप्त की जा सकती है।
शिक्षार्थी को आदर्शवादी जन्म से पूर्ण मानते हैं और इस पूर्णता की अनुभूति के लिए वे उसके लिए एक कठोर आचरण संहिता बनाते हैं, शिक्षार्थी को उसका पालन करना आवश्यक होता है। सब शिक्षार्थियों को समान मानना आज के मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सही नहीं है परन्तु सब शिक्षार्थियों के साथ समान व्यवहार करना आज की लोकतन्त्रीय भावना के अनुकूल है।
शिक्षा की अन्य समस्याओं के समाधान में भी आदर्शवाद बड़ा सहायक है। कुछ विद्वान प्लेटो पर यह दोष लगाते हैं कि उसने दासों को शिक्षा का अधिकार न देकर जन शिक्षा के महत्त्व को नकारा है। वास्तविकता यह है कि वे सेवा कार्य की शिक्षा के लिए विद्यालयी शिक्षा आवश्यक नहीं मानते थे। यदि सभी मनुष्यों के जीवन का अन्तिम उद्देश्य आत्मानुभूति है तो सबको प्राकृतिक नैतिकता, सामाजिक नैतिकता और आध्यात्मिक नैतिकता की शिक्षा तो देनी होगी। फिर आधुनिक युग के आदर्शवादी विचारक तो जन शिक्षा के पक्के समर्थक हैं। आदर्शवादियों का यह विचार कि सामान्य शिक्षा सबके लिए और उच्च शिक्षा की व्यवस्था योग्यतानुसार की जानी चाहिए. आज पुनः माना जाने लगा है। लोकतन्त्र के नाम पर सब बच्चों को उच्च शिक्षा के अवसर प्रदा कर हम राष्ट्रीय धन का अपव्यय कर रहे हैं और शिक्षा जगत में अनुशासनहीनता फैला रहें हैं। इसके साथ-साथ शिक्षित बेरोजगारी भी बढ़ रही है। इस सन्दर्भ में हमें आदर्शवादी विचारधारा से सहमत होना ही पड़ेगा। आदर्शवादियों द्वारा प्रतिपादित धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा की आवश्यकता भी आज पुनः समझी जा रही है। आज के आदर्शवादी विचारक तो जीवन के कटु सत्य रोटी, कपड़ा और मकान के प्रति भी जागरूक हैं और बच्चों को व्यावसायिक शिक्षा देने पर बल देते हैं।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आदर्शवादी इस ब्रह्माण्ड के अन्तिम सत्य ईश्वर की खोज करने में तो सफल रहे है परन्तु उनके द्वारा वस्तु जगत के अस्तित्व को नकारने की बात सामान्य मनुष्यों के गले नहीं उतरती। पर मनुष्य के लिए जिस प्राकृतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक नैतिकता का विधान आदर्शवादियों ने किया है उनके पालन से मनुष्य के पारलौकिक जीवन के बारे में निश्चयपूर्वक भले ही कुछ न कहा जा सकता हो पर उससे उसका लौकिक जीवन निश्चित रूप से सुख एवं शान्तिमय होता है। बस यही कारण है कि यह दर्शन संसार में आज भी अपना आसन बरकरार बनाए हुए हैं।
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- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा बताइये तथा इसकी परिभाषाएँ देते हुए इसकी विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का शाब्दिक अर्थ स्पष्ट करते हुए इसके संकुचित, व्यापक एवं वास्तविक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न प्रकारों को समझाइए। शिक्षा तथा साक्षरता व अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है ?
- प्रश्न- भारतीय शिक्षा में आज संकटावस्था की क्या प्रकृति है ? इसके कारणों व स्रोतों का समुचित विश्लेषण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को निर्धारित करना शिक्षक के लिए आवश्यक है, क्यों ?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "शिक्षा एक त्रिमुखी प्रक्रिया है।' जॉन डीवी के इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
- प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा एक द्विमुखी प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के साधनों से आप क्या समझते हैं ? शिक्षा के विभिन्न साधनों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ब्राउन ने शिक्षा के अभिकरणों को कितने भागों में बाँटा है ? प्रत्येक का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के एक साधन के रूप में परिवार का क्या महत्व है ? बालक की शिक्षा को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए घर व विद्यालय को निकट लाने के उपाय बताइए।
- प्रश्न- "घर और पाठशाला में सामंजस्य न स्थापित करना बालक के साथ अनहोनी करना है।' रॉस के इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार का क्या अर्थ है ? जनसंचार की परिभाषा देते हुए इसकी महत्ता का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- दूरसंचार के विषय में आप क्या जानते हैं ? इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी दीजिए।
- प्रश्न- दूरसंचार के प्रमुख साधनों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बालक की शिक्षा के विकास में संचार के साधन किस प्रकार सहायक हैं ? उदाहरणों सहित स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- इन्टरनेट की विशेषताओं का समीक्षात्मक विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- कम्प्यूटर किसे कहते हैं ? कम्प्यूटर के विकास का समीक्षात्मक इतिहास लिखिए।
- प्रश्न- सम्प्रेषण का शिक्षा में क्या महत्व है ? सम्प्रेषण की विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- औपचारिक, निरौपचारिक और अनौपचारिक अभिकरणों के सापेक्षिक सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अनौपचारिक साधनों में जनसंचार के साधनों का क्या योगदान है ?
- प्रश्न- अनौपचारिक और औपचारिक शिक्षा में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "घर, शिक्षा का सर्वोत्तम स्थान और बालक का प्रथम विद्यालय है।' समझाइए
- प्रश्न- जनसंचार प्रक्रिया के प्रमुख तत्वों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार माध्यमों की उपयोगिता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- इंटरनेट के विकास की सम्भावनाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में कम्प्यूटर के उपयोग की महत्ता का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी में संदेश देने वाले सामाजिक माध्यमों में 'फेसबुक' के महत्व बताइए तथा इसके खतरों के विषय में भी विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- 'व्हाट्सअप' किस प्रकार की सेवा है ? सामाजिक माध्यमों में संदेश देने हेतु यह किस प्रकार कार्य करता है ?
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा: अर्थ, अवधारणा, प्रकृति और शिक्षा के उद्देश्य)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (शिक्षा के अभिकरण )
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए (i) तत्व - मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- "पदार्थों के सनातन स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना ही दर्शन है।' व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक पाश्चात्य दर्शन के लक्षण बताइए। आप आधुनिक पाश्चात्य दर्शन का जनक किसे मानते हैं ?
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- एक अध्यापक के लिए शिक्षा दर्शन की क्या उपयोगिता है ? समझाइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है ?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं ? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (दर्शन तथा शैक्षिक दर्शन के कार्य )
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है ? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है ?
- प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है ? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादितं शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है ?
- प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्यादवाद) को समझाइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के प्रमुख सिद्धान्त क्या-क्या हैं ?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में शिक्षक संकल्पना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में छात्र-शिक्षक के सम्बन्ध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में छात्र/ शिक्षार्थी की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा की वर्तमान शिक्षा पद्धति में उपादेयता बताइए।
- प्रश्न- बौद्ध शिक्षा की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं ? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के रूप में आदर्शवाद का मूल्याँकन कीजिए।
- प्रश्न- "भारतीय आदर्शवादी दर्शन अद्वितीय है।" उक्त कथन पर प्रकाश डालते हुए भारतीय आदर्शवादी दर्शन की प्रकृति की विवेचना कीजिए तथा इसका पाश्चात्य आदर्शवाद से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक का क्या स्थान है ?
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है ?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- वर्तमान शिक्षा पर आदर्शवादी दर्शन का प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है ? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों ?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी और आदर्शवादी शिक्षा व्यवस्था में क्या अन्तर है ?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है ?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है ?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- आदर्शवाद और प्रकृतिवाद में अनुशासन की संकल्पना किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न है ? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ एवं परिभाषा बताते हुए इसके मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में यथार्थवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा संक्षेप में यथार्थवाद के रूपों को बताइए।
- प्रश्न- यथार्थवाद क्या है ? इसकी प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- यथार्थवाद द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों तथा शिक्षण पद्धति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- यथार्थवाद क्या है ? उसने शिक्षा की धाराओं को किस प्रकार प्रभावित किया है ? भारतीय शिक्षा पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नव यथार्थवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- वैज्ञानिक यथार्थवाद पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : वेदान्त दर्शन)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : जैन दर्शन )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। ( भारतीय दर्शन एवं इसका योगदान : बौद्ध दर्शन )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (दर्शन की विचारधारा - आदर्शवाद)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। ( प्रकृतिवाद )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (प्रयोजनवाद )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (यथार्थवाद)
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं ?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है ?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं ? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है ?
- प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षक के रूप में गिज्जूभाई की विशेषताओं का वर्णन कीजिए तथा इनके सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गिज्जूभाई के शैक्षिक विचारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गिज्जूभाई के शैक्षिक प्रयोगों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गिज्जूभाई कृत 'प्राथमिक शाला में भाषा शिक्षा' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं ? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है ?
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्लेटो के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्लेटो के शिक्षा सिद्धान्त की आलोचना तथा उसके शिक्षा जगत पर प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- प्लेटो का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा तथा दासों की शिक्षा के विषय में प्लेटो के विचार स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है ? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं ?
- प्रश्न- पालो फ्रेरे का जीवन परिचय लिखिए। इनके जीवन की दो प्रमुख घटनाएँ कौन-सी हैं जिन्होंने इनको बहुत अधिक प्रभावित किया ?
- प्रश्न- फ्रेरे के जीवन की दो मुख्य घटनाएँ बताइये जिनसे वह बहुत प्रभावित हुआ।
- प्रश्न- फ्रेरे के पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधि पर विचार स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फ्रेरे के शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- फ्रेरे के शैक्षिक आदर्श क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : महात्मा गाँधी)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : रवीन्द्रनाथ टैगोर)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : गिज्जू भाई )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : स्वामी विवेकानन्द )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (भारतीय शैक्षिक विचारक : जे० कृष्णमूर्ति )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : प्लेटो)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : रूसो )
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : पाउलो फ्रेइरे)
- प्रश्न- निम्नलिखित में प्रत्येक प्रश्न के उत्तर के लिए चार-चार विकल्प दिये गये हैं, जिनमें केवल एक सही है। सही विकल्प ज्ञात कीजिए। (पाश्चात्य शैक्षिक विचारक : जॉन ड्यूवी )