बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - द्वितीय प्रश्नपत्र - फैशन डिजाइन एवं परम्परागत वस्त्र
प्रश्न- गृहोपयोगी वस्त्र कौन-कौन से हैं? सभी का विवरण दीजिए।
उत्तर -
गृहोपयोगी वस्त्र निम्नलिखित होते हैं-
(1) चादरें (Bed Sheets)
(2) मेजपोश (Table Cloth)
(3) तकिये के गिलाफ (Pillow Cases)
(4) बेड कवर्स (Bed Covers)
(5) टेबिल नेपकिन (Table napkin)
(6) दरी (Carpet)
(7) कम्बल (Blanket )
(8) परदे व ड्रेपरी (Curtain & Draperies)
(9) तौलिए (Towels)
(10) अपहोल्सट्री (Upholestry)।
1. चादरें
(Bed Sheets)
चादरों का चयन बैड की लम्बाई व चौड़ाई पर निर्भर करता है। चादरें बिछावन के साथ-साथ पूरे शयन कक्ष को सौन्दर्य प्रदान करती हैं।
चादर को जिस पलंग या बिछावन (तख्त आदि) के प्रयोग के लिए खरीदना है, उससे चादर एवं चौड़ाई में इतनी बड़ी अवश्य हो ताकि वह गद्दे के चारों ओर 6' से 8' तक दबायी जा सके।
सिंगल बैड के लिए चादर 108* x 36' तथा डबल बैड (Double Bed) के लिए 108' x 90', मीडियम साइज की चादर के लिए यह आकार 108' x 72' तथा किंग साइज बैड के लिए यही आकार 122' x 108' का पर्याप्त रहता हैं।
चादर के चयन करने में उसके तन्तुओं की संरचना व टिकाऊपन पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। चादर जिस तन्तु की भी बनी हो, उसमें चिकनाहट का गुण होना आवश्यक है।
चादर में तन्तुओं की रचना सघन होने से उसमें टिकाऊपन के गुण की वृद्धि होती है। बुनाई जितनी सघन होगी, उतनी ही टिकाऊ होगी। चादर को प्रकाश की ओर उठाकर देख लेना चाहिए कि बुनाई सघन हो व धांगे पास-पास हों, बीच में कोई छिद्र गाँठ आदि न हो। साथ ही यह भी देख लेना चाहिए कि वयन में धागे दोनों ओर के सीधे व बिना टूटे हुए होने चाहिए। चादर के दोनों ओर की किनारी टैप सेलवेज (tape salvedge) रहे जिससे इसमें कुछ अधिक धागे बुने रहते हैं। किनारी चाहे कैसी भी क्यों न हों पर साफ-सुथरी व मजबूत अवश्य हो।
सूक्ष्म तन्तुओं से बनी, सघन संरचना व स्थायी परिसज्जा वाली चादरों में घर्षण का प्रतिरोध करने की भी क्षमता रहती है जिससे इनकी शक्ति में यथोचित मात्रा में वृद्धि हो जाती है।
चादरें यदि न सिकुड़ने वाले वस्त्र से बनायी जायें तो आरामदायक होने के साथ-साथ बिछावन के सौन्दर्य में अभूतपूर्व वृद्धि करती हैं।
चादरें सफेद हो सकती हैं और रंगीन भी; यह पसन्द पर निर्भर करता है। सफेद चादरें शयन कक्ष की सौन्दर्यता में वृद्धि तो करती हैं परन्तु यह जल्दी-जल्दी गन्दी भी होती हैं जरा-सी भी चूक से लगा दाग-धब्बा इन पर बहुत बुरा प्रतीत होता है। कभी-कभी कमरे की रंग संयोजकता (Combination) के अनुसार पलंग पर चादर बिछानी पड़ती हैं।
चादरें बनी-बनायी (Readymade) भी मिलती हैं तथा इच्छित आकार व प्रकार की स्वयं भी बनायी जा सकती हैं। चादरों के लिए लट्ठा (Long Clothe) पॉपलीन, टेरीलीन आदि वस्त्र प्रयोग किये जाते हैं। कोलियर (Collier) ने कपास से निर्मित चादरों का सर्वोत्तम व गृहोपयोगी माना है। लिनन की चादरें सुन्दर दिखती हैं परन्तु शीत में यह ठण्डी व चिपचिपी प्रतीत होती हैं।
(Table Cloth)
मेज-पोश के लिए वस्त्र का चयन करते समय उन्हीं सब बातों को दृष्टिगत रखना चाहिए जो चादर, तकिये के खोल व टेबिल नेपकिन के लिए अपेक्षित हैं। मेज-पोश आसानी से धोए जा सकने वाले (easy to wash), शिकन अवरोधक तथा सघन रचना वाले वस्त्र के होने चाहिए।
मेज-पोश का चयन करते समय मेज के साइज को अवश्य ध्यान रखना चाहिए। मेज-पोश इतना बड़ा अवश्य हो जो मेज के चारों ओर एक-एक फीट तक लटकता रहे। ये मेज-पोश विभिन्न साइजों के उपलब्ध रहते हैं
जैसे - 36x54, 45 x 54, 64 x 54 व 64 x 72 व इससे भी अधिक। मेज के साइज के अनुसार इनका साइज का चयन किया जाना चाहिए।
सफेद रंग के मेज-पोश ही अधिक उत्तम माने जाते हैं लेकिन कमरे की रंग सादृध्य योजना के अनुसार इन्हें रंगीन भी रखा जा सकता है।
मेज-पोश का चयन करते समय इस पर दी गयी परिसज्जाओं पर भी अवश्य ध्यान देना चाहिए। मेज-पोश के वस्त्र पर थोड़ा कड़कपन (Stiffness) का गुण होना आवश्यक है। लेकिन अत्यधिक माँड़ी न हो, नहीं तो धुलाई के बाद माँड़ी छूट जाने पर वस्त्र की रचना लुजलुजी व झीनी हो जाती है और वस्त्र बेजान व भद्दा हो जाता है। मेज-पोश पर बने विभिन्न डिजाइन व नमूने कमरे के सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं।
3. तकिये के गिलाफ
(Pillow Cases)
तकिये के खोल के वस्त्र के चुनाव में वही बातें अपेक्षित हैं जिन्हें चादरों के लिए आवश्यक माना जाता है।
तकिये के गिलाफ का वस्त्र पर्याप्त चिकना व मुलायम होना चाहिए क्योंकि तकिये का चेहरे की त्वचा से प्रत्यक्ष सम्पर्क रहता है। वस्त्र की रचना सघन तथा बिना गंठे धागे से होनी चाहिए। अधिक माँड़ वाले वस्त्र उपयुक्त नहीं रहते हैं।
तकिये के कर्वस बाजार में बने बनाये (Readymade) मिलते है अथवा हाथ से भी बनाये जा सकते हैं। कवर्स का आकार ऐसा हो जो तकिये पर आसानी से चढ़ाया जा सके। वह तकिये पर न तो बहुत अधिक कसा हो और न बहुत अधिक ढीला।
तकिये के गिलाफ
गिलाफ के लिए सफेद कपड़ा अच्छा रहता है। पर कभी-कभी कमरे के अथवा बिछावन के रंग योजना के अनुसार यह रंगीन भी रखे जाते हैं। तकिये के खोल पर कढ़ाई का प्रयोग न करें और मध्य भाग में तो बिल्कुल ही न करें क्योंकि तकिये के मध्य भाग का सीधा सम्पर्क व्यक्ति के चेहरे पर रहता है। कढ़ाई से चेहरे पर रगड़ लगने से आराम में विघ्न पड़ता है। तकिये का खोल जितना अधिक मुलायम होगा उतना ही सुखद व आरामदायक रहेगा।
4. बेड कवर्स
(Bed Covers)
बेड कवर्स समस्त बिछावन को ढकने के लिए प्रयुक्त किये जाते हैं। यह बिछावन को गन्दा होने से तो बचाते ही हैं, साथ ही बिछावन के सौन्दर्य में वृद्धि भी करते हैं।
बेड कवर इतना बड़ा होना चाहिए कि जिससे लिहाफ, कम्बल, तकिये आदि को ऊपर से ढक लेने के बाद भी चारों ओर काफी लटका रहे। इन्हें प्रायः भारी रखा जाता है ताकि बैठने व लेटने पर सकुड़े या मुड़े नहीं। बेड कवर प्रायः रंगीन ही रखे जाते हैं जिससे यह जल्दी गन्दे न हों। कमरे की रंग सादृश्यता भी के अनुसार इनके रंग का चयन किया जा सकता है। हरे रंग व नमूनेदार बड़े कवर्स कमरे के सौन्दर्य को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होते हैं।
बेड कवर्स
बेड कवर के वस्त्र का चयन करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इस गृहोपयोगी वस्त्र को एक बार कुछ अधिक पैसा लगाकर अच्छी किस्म का ही खरीदा जाए जिससे इसकी कार्यक्षमता अधिक समय तक बनी रहे। प्राय; हेण्डलूम के बेड कवर्स उत्तम रहते हैं।
5. टेबिल नेपकिन
(Table Napkin)
टेबिल नेपकिन के लिए जिस वस्त्र का चयन किया जाये उसमें वे सभी विशेषताएँ
होनी चाहिए जो चादरें, मेजपोश व तकिये के खोल के लिए आवश्यक होती हैं अर्थात् वस्त्र की रचना सघन, दृढ़ व पास-पास सटे हुए तन्तुओं से की गयी हो। वस्त्र आसानी से धुल सकने वाला हो, उस पर इस्तरी करने की आवश्यकता न हो। टेबिल नेपकिन के लिए प्रयुक्त वस्त्र में हल्का कड़कपन होना आवश्यक है। वस्त्र पर माँड (कलफ) देकर भी कड़कपन का आभास पैदा किया जा सकता है। नित्य-प्रतिदिन की धुलाई से माँड झड़ जायेगा और वस्त्र लुजलुजरा (झीना) हो जायेगा।
टेबिल नेपकिन
टेबिल नेपकिन विभिन्न नापों के बनाये जाते हैं। प्राय: 13'' x 24'' आकार के चौकोर टेबिल नेपकिन अधिक उपयुक्त माने जाते हैं। बड़े-बड़े होटलों में यह नेपकिन विभिन्न प्रकार के मिलते हैं पर घर में प्रयुक्त होने वाले नेपकिन छोटे व चौकोर ही अच्छे माने जाते हैं। प्रायः टेबिल नेपकिन बाजार में बने-बनाये (Readymade) मिलते हैं लेकिन अपनी इच्छानुसार वस्त्र के टेबिल नेपकिन उत्तम रहते हैं।
यह टेबिल नेपकिन सफेद व रंगीन दोनों प्रकार के मिलते हैं लेकिन सफेद नेपकिन अधिक टिकाऊ व सन्तोषप्रद रहते हैं। रंगीन नेपकिन मँहगे रहते हैं तथा नित्य-प्रतिदिन की धुलाई से इनका रंग हल्का व भदरंगा हो जाने की आशंका रहती है। दैनिक प्रयोग में आजकल सुन्दर नमूने व रंग वाले कागज के टेबिल नेपकिन भी प्रचलन में लाये जाने लगे हैं। इनकी देखभाल, सफाई व धुलाई नहीं करनी पड़ती। ये टेबिल के आकर्षण को तो बढ़ाते हैं परन्तु केवल एक बार ही प्रयुक्त किये जा सकने के कारण मँहगे पड़ते हैं। कपड़े के टेबिल नेपकिन की भाँति इन्हें पुनः प्रयोग नहीं किया जा सकता।
(Carpet)
दरी या कालीन कमरे के सौन्दर्य का एक रंगीन आधार होते हैं। ये कमरे के रंग सादृश्यता को आकर्षक बनाने में सहयोग देते हैं। इनका चयन करते समय इनके रंग, आकार, मजबूती, टिकाऊपन व सौन्दर्य को स्थान देना चाहिए।
दरी व कालीन ऊन, कपास, रेशम, नायलॉन व पोलिस्टर आदि रासायनिक धागों से निर्मित होती हैं। ऊनी दरियाँ सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। क्योंकि इनमें कोमलता, घर्षण प्रतिरोध क्षमता व आरामदायिता आदि गुणों का बाहुल्य रहता है। पर ऊनी दरियों में कीट शीघ्रता से लगकर उसे क्षतिग्रस्त कर देते है। निम्न श्रेणी की सस्ती दरियाँ जूट, हेम्प, घास व नारियल आदि के रेशों से निर्मित की जाती हैं। आजकल विनायल (Vinyl) के सुन्दर व आकर्षक दरी व कालीन बाज़ार में खूब लोकप्रिय हो रहे हैं।
दरी
रासायनिक व मानवकृत (Artificial) रेशों से बनी दरियाँ व कालीन टिकाऊपन व तनाव सामर्थ्य की उपयोगिता की दृष्टि से उत्तम रहते हैं।
दरियाँ व कालीन बुने हुए और निटिड (Knitted) दोनों प्रकार के मिलते हैं। बुनाई युक्त दरी व कालीन अत्यधिक मूल्यवान होते हैं जबकि निटिड किये सस्ते रहते हैं।
दरी व कालीन की मजबूती व टिकाऊपन, उनमें लगे पाइल (Pyle) तथा उन्हें बाँधने वाले धागों पर निर्भर करती है। फर्श बिछावन में पाइलों की रचना की सघनता की जाँच अवश्य कर लेनी चाहिए। संघन रचना होने पर मजबूती व टिकाऊपन में अभिवृद्धि होती है।
दरी अथवा कालीन पर कीट अवरोधक परिसज्जाएँ कर दी जाएँ तो अति उत्तम रहेगा क्योंकि कीड़ों से इनके नष्ट होने की सम्भावना सदैव बनी रहती है। समय-समय पर कुछ कीटनाशक दवाओं का छिड़काव करते रहना भी ठीक रहता है।
दरी व कालीन को दीर्घायु व टिकाऊपन प्रदान करने के लिए इनका उचित संरक्षण व देखभाल जरूरी है। सप्ताह में एक बार अवश्य वेक्यूम क्लीनर (Vaccum Cleaner) से दरी व कालीन की सफाई की जानी चाहिए। इन पर लगने वाले दाग धब्बों को तुरन्त ही विधिपूर्वक छुड़ा लिया जाये। फर्नीचर, पलंग आदि की स्थिति के कारण फर्श बिछावन पर लगातार दबाव पड़ने से रोएँ दबने लगते हैं व इस प्रकार रचना विकृत हो जाती है। इस स्थिति से बचाव हेतु फर्नीचर आदि के रुख को कुछ समय पश्चात् बदलते रहना चाहिए।
बहुत बड़े आकार की एक दरी या कालीन की अपेक्षा, यदि इन्हें छोटे-छोटे खण्डों में प्रयुक्त किया जाये तो उत्तम रहता है। इन छोटे-छोटे खण्डों (टुकड़ों) को उठाकर रखना, धुलवाना, साफ करना आसान भी रहता है, साथ ही साथ इन्हें सटाकर बिछाने से सुन्दर नमूना बन जाता है।
(Blanket)
कम्बल का प्रयोग शीत ऋतु में, गर्मी प्राप्त करने के लिए किया जाता है। आम धारणा यह रहती है कि शत-प्रतिशत ऊन (pure wool) से निर्मित कम्बल ही गर्म रहते हैं। परन्तु किसी सीमा तक कम्बल की संरचना व मोटाई भी कम्बल की गर्मी को प्रभावित करती है। संरचना में लम्बे रेशे वाले व अधिक मोटाई वाले कम्बल अधिक गर्मी प्रदान करते हैं। लम्बे रेशे अपने बीच के रिक्त स्थान में वायु को संचित कर लेते हैं तथा यह वायु ऊष्मा की कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकलने देते, इस प्रकार वे गर्मी प्रदान करते हैं। कम्बल में ऊन का प्रतिशत कम या अधिक अवश्य रहता है। ऊन की मात्रा कम्बल को गर्मी प्रदान करने के साथ-साथ दृढ़ता भी प्रदान करती है।
कम्बल
कम्बल का टिकाऊपन उसके रेशों के प्रकार, उनकी रचना तथा उन पर की गयी परिसज्जाओं पर निर्भर करता है। लम्बे रेशे वाले कम्बल अधिक समय तक कार्यक्षम होते हैं। कार्यक्षमता को बनाये रखने के लिए यह आवश्यक है कि इन्हें केवल शुष्क धुलाई (dry cleaning) की प्रक्रिया द्वारा ही धोया जाये। कम्बल की उचित देखभाल व संरक्षण न हो सकने के कारण उसमें रोएँ झड़ने, गुठले पड़ने, पिचक जाने तथा रंग धुँधला पड़ जाने आदि के दोष उत्पन्न हो जाते हैं।
कम्बल का आकार अपनी आवश्यकता व प्रयोजन के अनुरूप चयन करना चाहिए। साधारण रूप से 84'' x 90' के कम्बल बाजार में उपलब्ध रहते हैं। छोटे बच्चों के लिए बेबी ब्लैंकेट (baby blanket) भी मिलते हैं।
कम्बल क्रय करते समय सौन्दर्य, रंग आदि पर उतना ध्यान नहीं दिया जाता जितना कि इसके गुणों पर। कम्बल पर्याप्त गर्मी देने वाला, टिकाऊ हो। उसकी किनारी न फटने वाली हो। किनारों पर साटिन की गोट लगी रहने के कम्बल की किनारी शीघ्र नहीं फटती तथा देखने में भी सुन्दर लगती है। किनारी पर लगी गोट कम्बल को लम्बा जीवन प्रदान करती है।
आधुनिक युग में रासायनिक रेशों से निर्मित कम्बल भी काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। इन रेशों में स्वयं की कोई गर्मी नहीं रहती पर इनसे ताप संवाहकता (insulating capacity) बढ़ाकर गर्म कम्बल बनाये जाते हैं। यह कम्बल ऊनी कम्बल के समतुल्य ही गर्मी दे सकते हैं। साथ ही साथ ये मजबूत होते हैं, कीड़ा नहीं लगता, साफ करना व धोना आसान होता है तथा भार में कम व कोमल प्रकृति के होते हैं।
8. परदे व ड्रेपरी
(Curtains & Draperies)
परदे कमरों की सुन्दरता को बढ़ाने के साथ-साथ एकान्तता (privacy) की रक्षा के लिए भी प्रयोग किये जाते हैं। इस प्रकार परदे व ड्रेपरी का प्रयोग दो उद्देश्यों के लिए किया जाता है— सजावट व एकान्तता की रक्षा हेतु।
परदे व ड्रेपरी के उपयोग बिल्कुल पृथक्-पृथक् हैं। परदे खिड़की के कुछ ही भाग को ढ़कते हैं। इनको ऊपर और नीचे दोनों ओर डोरी से पिरोकर बाँधा जाता है जबकि ड्रेपरी को पूरी खिड़की को ढकते हुए टाँगा जाता है। कभी-कभी ड्रेपरी को फर्श तक की निचाई का भी रखा जाता है।
परदे व ड्रेपरी
पर्दे या ड्रेपरी को खरीदते समय उनको किस प्रयोजन के लिए प्रयोग करना है सजावट या एकान्तता की रक्षा के लिए यह बात अवश्य विचार लेनी चाहिए। यदि पर्दे की सजावट के लिए ही प्रयोग करना है तो पर्दे सफेद या रंगीन स्थान की रंग सादृश्य योजना के अनुसार नमूनेदार तथा विभिन्न डिजाइन का बनाया जा सकता है जबकि उपयोगिता की दृष्टि से यदि पर्दों का चयन करना है तो ऐसे पर्दे अपारदर्शी, मोटे, भारी व गहरे रंगों के प्रयोग किये जाने चाहिए।
पर्दों का पारदर्शी या अपारदर्शी होना इस पर निर्भर करता है कि खिड़की के दूसरी तरफ का रुख (aspect ) कैसा है। यदि खिड़की किसी बाग-बगीचे की तरफ खुलती है तो उस पर पारदर्शी कपड़ा प्रयुक्त किया जाना उत्तम रहता है। जिन खिड़की-दरवाजों का रुख धूप की तरफ हो या गली- सड़क की तरफ हो जिससे लगातार आने-जाने वाले लोग निकलते हों तो उनकी कार्य-विधियों से कमरे के अन्दर बैठे व्यक्ति को व्यवधान न पैदा हों इसलिए पर्दे पर्याप्त मात्रा में मोटे, रंगीन व अपारदर्शी कपड़े के बनाये जाने चाहिए।
पर्दों का रंग पर्याप्त पक्का हो, वह धुलने के पश्चात् फीका या मन्द न पड़ जाये, लगातार धूप के सम्पर्क में कपड़ा खराब न हो जाये बल्कि इनका कपड़ा इस प्रकार का हो जो सीधी धूप (direct rays) के प्रवेश होने से तो रोके परन्तु आवश्यक प्रकाश की मात्रा कमरे में आने में बाधक न बने।
पर्दों को महीने, दो महीने बाद यदा-कदा ही धोने की आवश्यकता होती है। फिर भी कपड़ा ऐसा चुनना चाहिए जो धुलने के बाद सिकुड़े नहीं। सावधानी की दृष्टि से परदों के कपड़े का नाप कुछ अधिक रखा जाता है। जिसे मोड़ों पर दबाव के रूप में मोड़ दिया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर उसे खोलकर परदे को पुनः अपने पूर्वाकार में ले आया जा सकता
प्रायः परदे व ड्रेपरी सूती रखे जाते हैं। ये सस्ते व उपयोगी होते हैं तथा इन्हें आसानी से धोया भी जा सकता है। आजकल हैण्डलूम का कपड़ा भी काफी प्रयोग में आने लगा है। टेरीलिन का भी प्रयोग परदे बनाने में किया जाता है। लेकिन टेरीलिन काफी मँहगा पड़ता है। परदे बने बनाये ( Readymade) भी मिलते हैं तथा अपनी इच्छानुसार व प्रयोजन के अनुकूल आकार के घर पर भी बनाये जा सकते हैं।
परदे का चयन करते समय उस पर हवा, धूप व पानी आदि का क्या प्रभाव पड़ेगा, इस बात को अवश्य विचार कर लेना चाहिए। प्रयोजन के अनुसार अज्वलनशील वस्त्र से बने परदे भी प्रयोग किये जाते है। आजकल ग्लास फाइबर ( Glass Fibre) से बने वस्त्र के परदों की भी लोकप्रियता इसी गुण के कारण बढ़ती जा रही है। ये परदे काफी मजबूत रहते हैं इन्हें धोना व सुखाना आसान है। धुलने के बाद न वह सिकुड़ते हैं और न फैलते है। यह अप्रत्यास्थ (Non-Elastic) होते हैं। चिकने होने के कारण इन पर आये धूल कण इन पर जम नहीं पाते। इनमें प्रतिस्कदता व नमनीयता के गुणों की प्रचुरता रहती है। फाइबर गिलास से बने वस्त्र के परदों में पर्याप्त लटकनशीलता रहती है। इसके परदे सर्वश्रेष्ठ रहते हैं।
9. तौलिये
(Towels)
तौलिये का प्रमुख कार्य है नमी अवशोषित करना। इनका मजबूत होना आवश्यक है ताकि ये अपने ऊपर पड़ने वाले घर्षण व दबाव को सहन कर सकें व क्षतिग्रस्त न हो सकें।
तौलिये की जमीन की बुनाई (under weave) दृढ़ व सघन होनी चाहिए। ट्वील बुनाई (Twill Weave) तौलिये के लिए उत्तम रहती है। तौलिए की बुनाई की परीक्षा करने के लिए गौलिए को प्रकाश की ओर उठाकर देखना चाहिए। यदि सूक्ष्म छिद्रों से प्रकाश आता हो तो नाई उत्तम किस्म की मानी जाती है और यदि बड़े-बड़े छिद्रों से प्रकाश आता हो तो समझना चाहिए कि बुनाई निम्न श्रेणी की है।
पायल के फन्दों (Loops of Pile)पर ही तौलिए गौलिये की अवशोषकता का गुण निर्भर करता है। फन्दे जितने अधिक होंगे, तौलिए की अवशोषण क्षमता (Absorbing Capacity) भी उतनी ही अधिक होती है। फन्दे (Loops) कसी बँटाई की अपेक्षा ढीली बँटाई के अधिक नमी -अवशोषित कर सकने की क्षमता रखते हैं परन्तु कसी बँटाई वाले धागों से बनी तौलिया कड़ी व खुरदरी होती है जबकि ढीली बँटाई वाले धागों से निर्मित तौलिया नर्म (Soft) रहती है। साइज में विभिन्नता के अनुसार तौलिये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं—
(a) स्नान तौलिया (Bath Towel)
ये तौलिया अपने प्रयोजन के अनुसार मुलायम रोएँदार सतह वाली, आरामदायक व सुखद होती हैं। ये पानी को अधिक मात्रा में अवशोषित कर सकने की क्षमता रखती हैं। ये विभिन्न रंग व आकार की बाजार में उपलब्ध रहती हैं। इनकी किस्म (quality) के अनुसार ही इनके मूल्य में भी भिन्नता पायी जाती है। प्राय: टैरी तौलिया उत्तम श्रेणी की मानी जाती है।
स्नान तौलिये को क्रय करते समय टिकाऊपन (durability) व नमी अवशोषकता (absorbency) पर विशेष ध्यान देना चाहिए। कसी बँटाई के धागों जिनकी बुनाई सघन, दृढ़ व पास-पास होती है, ये निर्मित तौलिये तथा नमी अवशोषित कर सकने का असाधारण गुण रखते हैं।
स्नान तौलियों में पाइलों की रचना दो प्रकार की होती है सिंगल लूप वाली तथा डबल लूप वाली। डबल लूप में दुहरे पाइल के धागों को फंदा बनाने में प्रयोग किया जाता है जबकि सिंगल लूप में इकहरे धागों से फंदा बनाया जाता है। डबल लूप वाली रचना की सतह धागों की मात्रा दुगुनी होने के कारण दुगुनी मोटी हो जाती है। इस प्रकार अवशोषकता में वृद्धि तो होती है लेकिन मजबूती उतनी ही कम हो जाती है।
अतः डबल लूप वाली तौलिया में अवशोषकता अधिक व मजबूती कम रहती है जबकि सिंगल लूप वाली तौलिया में मजबूती अधिक व अवशोषकता कम रहती है।
लूप की संख्या के अतिरिक्त उसकी लम्बाई भी वस्त्र अवशोषकता को प्रभावित करती है। जितने बड़े लूप होंगे, अवशोषकता उतनी ही अधिक रहेगी। (Longer the Loops, greater the absorbency)।
तौलिये के चारों ओर लगा बॉर्डर, अवशोषकता के क्षेत्र को घटाता है अतः उत्तम श्रेणी की तौलिया में महीन बॉर्डर लगाया जाता है। हक्काबेक तौलिया अधिक अच्छी रहती है। हक्काबेक तौलिया में बुनाई की विधि की समानता की दृष्टि से हनीकोम्ब तौलिया भी कहा जा सकता है।
(b) हाथ मुँह पौंछने वाली तौलिया (Hand and Face Towel)
ये तौलिया लिनन व कपास से मिश्रित अथवा केवल कपास की ही बनायी जाती है। लिनन तौलिया देखने में बहुत आकर्षक लगती है पर इसकी मजबूती कम रहती है। ट्वील बुनाई से बनी तौलिया सर्वाधिक मजबूत रहती है।
यह कई आकार में मिलती हैं। इनका आकार 14'' x 20 से लेकर 27'' x 42' तक होता है। प्रयोग के अनुसार इनका आकार का चुनाव किया जाना चाहिए।
इन तौलियों का चयन अवशोषकता, टिकाऊपन व मजबूती आदि को दृष्टिगत रखते हुए ही करना चाहिए।
(c) रसोई के काम में आने वाली तौलिया (Kitchen Towel)
यह तौलिया लिनन, कपास या ग्लास फाइबर ( Glass Fibre) आदि से निर्मित की जाती है। प्रायः इनका आकार छोटा रखा जाता है। रुचि व आवश्यकता के अनुसार ही आकार बड़ा या छोटा लिया जा सकता है।
रसोई के काम में आने वाली तौलिया का चयन करते समय अवशोषकता, टिकाऊपन व मजबूती को ध्यान में रखने के साथ-साथ तौलिया जल्दी धुल सकने वाली (Easy to Wash) तथा जल्दी ही सूख सकने (Easy to dry) वाली हो यह भी ध्यान रखा जाना आवश्यक है क्योंकि रसोईघर में प्रयुक्त होने के कारण यह जल्दी-जल्दी भीग जाती है या गन्दी हो जाती है।
इन तौलियों के अतिरिक्त कुछ अन्य तौलिया भी होती हैं जिन्हें उनके प्रयोजन व आवश्यकता के अनुकूल बनाया जाता है; जैसे— डिश पौंछने वाली तौलिया (Dish Towel), मेहमानों के लिए तौलिया (Guest's Towel) तथा बीच तौलिया (Beach Towel) आदि।
10. अपहोल्सट्री (Upholstery)
फर्नीचर (विशेष रूप से कुशनदार फर्नीचर) आदि के आवरण के रूप में अपहोल्स्ट्री का प्रयोग किया जाता है। इन वस्त्रों का चयन करते समय दो बातें मुख्य रूप से ध्यान देने की हैं - प्रथम तो यह अपनी उपयोगितानुसार फर्नीचर की रक्षा कर सकें तथा द्वितीय यह गृह सज्जा में सौन्दर्यात्मक वृद्धि भी कर सकें। अपहोल्सट्री के वस्त्रों में मजबूती होने के साथ-साथ लगातार पड़ने वाले तनाव, खिंचाव को ये सहन कर सकने की क्षमता वाले भी होने चाहिए।
अपहोल्सट्री
वस्त्र के रेशे पर्याप्त पास-पास, सटे हुए हों। सघन रचना वाले वस्त्र मजबूत रहते हैं। झीनी रचना वाले वस्त्र अधिक दिनों तक नहीं टिक पाते, वे शीघ्र ही फट जाते हैं और अपहोल्सट्री को लगाने में जो श्रम व समय व्यय हुआ है वह अकारण ही व्यर्थ चला जाता है। वस्त्र का रंग पक्का हो, आसानी से धुल सकने वाला ( Easy to Wash), न सिकुड़ने वाला (Non Shrinkable) हो। साथ ही साथ इनका रंग भी कमरे की रंग योजना सादृश्य के अनुसार रखा जाए।
अपहोल्सट्री के वस्त्रों को फर्नीचर आदि पर चढ़ाते समय उन्हें कुछ ढीला ही रखना चाहिए ताकि इन्हें उतारना, चढ़ाना व पुनः लगाना आसान हो। यदि धुलाई के पश्चात् वस्त्र कुछ सिकुड़े भी तो इतनी गुजाइश रहे कि ये पुनः चढ़ सके व छोटे न पड़े।
आधुनिक समय में अपहोल्सट्री के लिए छपी हुई टेपेस्टरी (Printed Tapestry) के अतिरिक्त बुनी हुई टेपेस्टरी (Woven Tapestry) भी सुन्दर मनमोहक नमूनों, डिजायनों व रंगों में बाजार में उपलब्ध है जिनमें पर्याप्त मजबूत व टिकाऊपन का गुण विद्यमान रहता है।
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- प्रश्न- ट्रेंड और स्टाइल को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन शब्दावली को विस्तृत रूप में वर्णित कीजिए।
- प्रश्न- फैशन का अर्थ, विशेषताएँ तथा रीति-रिवाजों के विपरीत आधुनिक समाज में भूमिका बताइए।
- प्रश्न- फैशन अपनाने के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- फैशन को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं ?
- प्रश्न- वस्त्रों के चयन को प्रभावित करने वाला कारक फैशन भी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रोत / सतही प्रभाव का फैशन डिजाइनिंग में क्या महत्व है ?
- प्रश्न- फैशन साइकिल क्या है ?
- प्रश्न- फैड और क्लासिक को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में सुन्दर वस्त्रों का निर्माण प्राचीनकाल से होता रहा है। " विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत के परम्परागत वस्त्रों का उनकी कला तथा स्थानों के संदर्भ में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मलमल किस प्रकार का वस्त्र है? इसके इतिहास तथा बुनाई प्रक्रिया को समझाइए।
- प्रश्न- चन्देरी साड़ी का इतिहास व इसको बनाने की तकनीक बताइए।
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल की क्या विशेषताएँ हैं? इसको बनाने की तकनीक का वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- कश्मीरी शॉल के विभिन्न प्रकार बताइए। इनका क्या उपयोग है?
- प्रश्न- हैदराबाद, बनारस और गुजरात के ब्रोकेड वस्त्रों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- ब्रोकेड के अन्तर्गत 'बनारसी साड़ी' पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बाँधनी (टाई एण्ड डाई) का इतिहास, महत्व बताइए।
- प्रश्न- बाँधनी के प्रमुख प्रकारों को बताइए।
- प्रश्न- टाई एण्ड डाई को विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- गुजरात के प्रसिद्ध 'पटोला' वस्त्र पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- राजस्थान के परम्परागत वस्त्रों और कढ़ाइयों को विस्तार से समझाइये।
- प्रश्न- पोचमपल्ली पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- पटोला वस्त्र से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- औरंगाबाद के ब्रोकेड वस्त्रों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- बांधनी से आप क्या समझते हैं ?
- प्रश्न- ढाका की साड़ियों के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- चंदेरी की साड़ियाँ क्यों प्रसिद्ध हैं?
- प्रश्न- उड़ीसा के बंधास वस्त्र के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- ढाका की मलमल पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उड़ीसा के इकत वस्त्र पर टिप्पणी लिखें।
- प्रश्न- भारत में वस्त्रों की भारतीय पारंपरिक या मुद्रित वस्त्र छपाई का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत के पारम्परिक चित्रित वस्त्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गर्म एवं ठण्डे रंग समझाइए।
- प्रश्न- प्रांग रंग चक्र को समझाइए।
- प्रश्न- परिधानों में बल उत्पन्न करने की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- भारत की परम्परागत कढ़ाई कला के इतिहास पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कढ़ाई कला के लिए प्रसिद्ध नगरों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सिंध, कच्छ, काठियावाड़ और उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कर्नाटक की 'कसूती' कढ़ाई पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पंजाब की फुलकारी कशीदाकारी एवं बाग पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- टिप्पणी लिखिए: (i) बंगाल की कांथा कढ़ाई (ii) कश्मीर की कशीदाकारी।
- प्रश्न- कश्मीर की कशीदाकारी के अन्तर्गत शॉल, ढाका की मलमल व साड़ी और चंदेरी की साड़ी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- कच्छ, काठियावाड़ की कढ़ाई की क्या-क्या विशेषताएँ हैं? समझाइए।
- प्रश्न- "मणिपुर का कशीदा" पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- हिमाचल प्रदेश की चम्बा कढ़ाई का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतवर्ष की प्रसिद्ध परम्परागत कढ़ाइयाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- सुजानी कढ़ाई के इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की खटवा कढ़ाई पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- फुलकारी किसे कहते हैं?
- प्रश्न- शीशेदार फुलकारी क्या हैं?
- प्रश्न- कांथा कढ़ाई के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- कढ़ाई में प्रयुक्त होने वाले टाँकों का महत्व लिखिए।
- प्रश्न- कढ़ाई हेतु ध्यान रखने योग्य पाँच तथ्य लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर प्रदेश की चिकन कढ़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जरदोजी पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- बिहार की सुजानी कढ़ाई पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सुजानी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खटवा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।