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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2693
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान प्रथम प्रश्नपत्र - उच्चतर पोषण एवं संस्थागत प्रबन्धन

प्रश्न- विटामिन "बी" कॉम्पलैक्स का परिचय, प्राप्ति के स्रोत तथा इसकी कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।

उत्तर - 

जल में घुलनशील विटामिन

(1) विटामिन 'बी' कॉम्पलैक्स

यह एक विटामिन न होकर कई विटामिनों का समूह है। इन सबको सम्मिलित रूप से 'बी' कॉम्पलैक्स कहते हैं। इस समूह के विटामिन निम्न प्रकार हैं-

विटामिन 'बी1' या थायमिन (Thiamine) - थायमिन विटामिन की खोज बेरी-बेरी रोग के उपचार ढूढते समय हुई। सन् 1885 में इस बीमारी को सर्वप्रथम टकाकी नामक डॉक्टर द्वारा पहचाना गया।

सन् 1926 में डोनथ व जैनसन ने चावल की ऊपरी पर्त में से विटामिन को पृथक् किया जिससे बेरी-बेरी रोग का सफलतापूर्वक उपचार किया गया। सन् 1931 में विण्डास (Windaus) ने विटामिन B1 को खमीर से पृथक् करके उसकी रचना तथा रासायनिक गुणों पर प्रकाश डाला। गन्धक की उपस्थिति के ही कारण इसका नाम थायमिन रखा। सन् 1936 में विलियम्स ने प्रयोगशाला में विटामिन B को संश्लेषित किया।

गुण (Properties)

(1) यह रंगहीन रवेदार पदार्थ है। (2) यह विटामिन जल में घुलनशील है। (3) अम्लीय माध्यम से यह स्थिर रहता है और ताप का भी इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है किन्तु क्षारीय माध्यम में यह कमरे के ताप पर नष्ट हो जाता है। भोजन पकाते समय खाने का सोड़ा डालने से थायमिन   तत्व पूर्णतः नष्ट हो जाता है। (4) इसका स्वाद नमकीन तथा गन्ध यीस्ट के समान होता है।

कार्य (Functions)

(1) यह विटामिन कार्बोहाइड्रेड के चयापचय में सहायक होता है। कार्बोहाइड्रेड से ऊर्जा का निर्माण होते समय मध्यवर्ती पदार्थ पाइरूबिक एसिड बनता है। यह पाइरूबिक एसिड को एसीटेट में परिवर्तित कर देता है     तथा आगे की क्रिया में कार्बन डाइ ऑक्साइड का निर्माण करता है। (2) पाचन संस्थान की माँसपेशियों की गति को सामान्य रखता है जिससे भूख सामान्य रहती है। (3) तन्त्रिका तन्त्र के भली-भाँति कार्य करने में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है।

प्राप्ति के स्रोत (Sources) - अंकुरित अनाज व दाल, खमीर व सूखे मेवे थायमिन प्राप्ति के अच्छे स्रोत हैं। माँस, मछली, अण्डा, दूध व दूध से बने पदार्थों में भी यह विटामिन उचित मात्रा में मिल जाता है।

विटामिन 'बी1 ' की कमी से होने वाले रोग

थायमिन या विटामिन 'बी' की कमी से मनुष्य में बेरी-बेरी नामक रोग हो जाता है।

बेरी-बेरी (Beri - Beri) - यह बीमारी अधिकतर चावल खाने वालें देशों जैसे- चीन, जापान, भारत व मलाया जैसे देशों में अधिक होती है। चावल की पॉलिश करने में उसका ऊपरी छिल्का चावल से अलग हो जाता है जो प्रायः फेंक दिया जाता है इसी छिल्के में थायमिन उपस्थित रहती है। इस रोग के निम्न सामान्य लक्षण हैं-

(1) भूख कम हो जाती है कमजोरी अधिक महसूस होती है। (2) शरीर में सूजन आ जाती है। (3) वृद्धि व विकास रुक जाता है। (4) हृदय का आकार बढ़ जाता है तथा धड़कन तेज हो जाती है। (5) नाड़ी संस्थान के प्रभावित होने से मस्तिष्क पर भी कुप्रभाव पड़ता है।

बेरी-बेरी निम्न प्रकार की होती है-

आर्द्र बेरी-बेरी (Wet Beri Beri) - आर्द्र बेरी-बेरी में शरीर सूज जाता है। पैर, मुँह तथा गर्दन पर सूजन आ जाती है। नाड़ी की गति तीव्र हो जाती है। साँस लेने में कष्ट होता है। रक्तचाप बढ़ जाता है।
शुष्क बेरी-बेरी (Dry Beri - Beri) - तन्त्रिका - तन्त्र सम्बन्धी विकार प्रमुख होते हैं तथा माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। अतः चलने में कष्ट होता है।
बाल बेरी-बेरी (Bal Beri-Beri) - जब यह रोग बच्चों में हो जाता है तो बाल बेरी-बेरी कहते हैं।

उपचार (Treatment) - आहार में विटामिन 'बी' कॉम्प्लैक्स की मात्रा बढ़ाने से रोग की स्थिति में सुधार आता है। उच्च प्रोटीन तथा ऊर्जायुक्त आहार रोग की स्थिति में देना उचित रहता है।

दैनिक प्रस्तावित मात्रा - थायमिन कार्बोहाइड्रेड के ऊर्जा चयापचय में सहायक होने के कारण इसकी आवश्यकता, इसकी कैलोरियों के अनुपात में निश्चित की जाती है। FAO / WHO वैज्ञानिकों के अनुसार 1000 कैलोरी हेतु 4 मिग्रा. थायमिन की आवश्यकता होती है। ICMR द्वारा प्रस्तावित विभिन्न आयु वर्ग के लिए थायमिन की मात्रा इस प्रकार है-

वर्ग
अवस्था थायमिन (मिलीग्राम / दिन)
पुरुष कम क्रियाशील 1.2
  मध्यम क्रियाशील 1.4
  अत्यधिक क्रियाशील 1.6
स्त्री कम क्रियाशील 0.9
  मध्यम क्रियाशील 1.1
  अत्यधिक क्रियाशील 1.2
  गर्भावस्था +0.2
  दुग्धपान अवस्था +0.4
शिशु   0.6-0.9
बाल्यावस्था   0.9-1.0
किशोरावस्था   1.0-1.3

(2) विटामिन 'बी 2' या राइबोफ्लेविन (Riboflavin)

विटामिन 'बी' की खोज के समय माना गया था कि बेरी-बेरी रोग को दूर करने वाला एक ही विटामिन होगा, परन्तु बाद में ज्ञात हुआ कि बेरी-बेरी को दूर करने वाले एक नहीं वरन् दो विटामिन होते हैं - एक ताप के प्रति अस्थिर (विटामिन 'बी') जो बेरी-बेरी को वास्तव में दूर करता है तथा दूसरा ताप के प्रति स्थिर विटामिन 'बी 2' जो चूहों की वृद्धि में सहायक होता है। अन्य प्रयोगों से ज्ञात हुआ कि ताप के प्रति स्थिर विटामिन कई विटामिनों का मिश्रण है। सन् 1932 में वारबर्ग और क्रिश्चियन (Warburg & Christian) ने यीस्ट में से नारंगी पीले रंग के चमकने वाले पदार्थ को अलग किया तथा इसे राइबोफ्लेविन नाम दिया।

गुण (Properties)

(1) यह पानी में तीव्रता से घुल जाता है। (2) यह विटामिन स्वाद में कसैला, नारंगी पीले रंग का गन्धहीन, सुई के आकार का क्रिस्टल वाला यौगिक है। (3) यह सूर्य किरणों व प्रकाश के प्रभाव में शीघ्र ही नष्ट हो जाता है। (4) अम्ल व ताप के प्रति स्थिर परन्तु क्षारीय प्रभाव में शीघ्र ही नष्ट हो जाता है।

कार्य (Functions) - जिस प्रकार थायमिन कार्बोहाइड्रेड के चयापचय में भाग लेता है उसी प्रकार राइबोफ्लेविन प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व वसा के चयापचय में सहायक होता है। राइबोफ्लेविन नायसिन निर्माण में भी सहायक कार्य करता है। आँख की रेटिना पर्त में स्वतन्त्र रूप से राइबोफ्लेविन पाया जाता है जो प्रकाश से क्रिया करके आँख की नाड़ी को उत्तेजना प्रदान करती है। राइबोफ्लेविन की कमी से शरीर की वृद्धि रुक जाना, अशान्त स्वभाव व आयु में कमी आदि रूप परिलक्षित होते हैं।

प्राप्ति के स्रोत (Sources) - राइबोफ्लेविन विभिन्न वानस्पतिक व जान्तव भोज्यों में उपस्थित रहती है परन्तु यीस्ट, माँस, मछली, दूध व अनाजों में इसकी अधिक मात्रा पायी जाती है। यह जन्तुओं के यकृत में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाता है। अनाज में इस तत्व की मात्रा कम ही होती है।

अभाव से होने वाले रोग - शरीर में राइबोफ्लेविन की हीनता अराइबोफ्लेविनोसिस (Ariboflavinosis) कहलाती है। राइबोफ्लेविन के अभाव में शरीर में निम्न लक्षण स्पष्ट होते हैं-

(1) राइबोफ्लेविन की आहार में कमी से होठों के किनारे की त्वचा कटने लगती हैं। इस रोग को (Cheilosis) कहते हैं। मुँह में छाले व घाव हो जाते हैं। (2) जीभ व ओष्ठ बैंगनी लाल रंग के (magenta colour) के हो जाते हैं। (3) नाक के कोनों, कानों में दाने व दरारें पड़ जाती हैं। (4) प्रौढ़ पुरुष के वृषण की थैली (Scrotum) की त्वचा में दरारें पड़ जाती हैं।  (5) राइबोफ्लेविन की कमी से आँखें प्रकाश के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती हैं। आँखों में जलन, खुजली, पानी आना तथा कड़कड़ाहट आदि लक्षण स्पष्ट होते हैं। आँखों के कोर्निया में कोशिकाओं का जाल-सा बन जाता है फलस्वरूप आँखें लाल बनी रहती हैं।

दैनिक आवश्यकता - राइबोफ्लेविन कार्बोहाइड्रेड, वसा व प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है। इसकी आवश्यकता भी ऊर्जा की मात्रा से निर्धारित होती है। 1000 कैलोरी हेतु 55 मि०ग्रा० राइबोफ्लेविन सामान्यतः आवश्यक होता है। ICMR ने विभिन्न अवस्थाओं व आयु वर्ग के लोगों में निम्न मात्रा में प्रस्तावित की है-

वर्ग
अवस्था थायमिन (मिलीग्राम / दिन)
पुरुष कम क्रियाशील 1.4

मध्यम क्रियाशील 1.6

अत्यधिक क्रियाशील 1.9
स्त्री कम क्रियाशील 1.1

मध्यम क्रियाशील 1.3

अत्यधिक क्रियाशील 1.6

गर्भावस्था +0.2

दुग्धपान अवस्था +0.4
शिशु   0.4-0.5
बाल्यावस्था    0.7-1.0
किशोरावस्था    1.2-1.7

 

(3) नायसिन या निकोटिनिक अम्ल (Niacin or Nicotinic Acid)

इसे निकोटिनक एसिड (Nicotinic acid), निकोटिनामाइड (Nicotinamide), नियासिनामाइड (Niacinamide) आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है। इस विटामिन की खोज पैलाग्रा रोग के कारण खोजते समय हुई।

प्राप्ति के साधन (Sources)-

वनस्पति में - अनाज, दाल व सूखे मेवों में यह पाया जाता है। मूँगफली में यह बहुतायत में मिलता है।
जन्तुओं में - सूखा खमीर इसकी प्राप्ति का अनुपम स्रोत है। माँस व मछली में भी यह पाया जाता है।

(4) विटामिन 'बी6' पायरीडॉक्सिन (B6 or Pyridoxin)

इसे रैट एन्टीडर्मेटिटिस फैक्टर (Rat Antidermatitis Factor) भी कहते हैं क्योंकि 1934 में ग्योर्गी (Gyorgi) नामक वैज्ञानिक ने चूहों के डमेंटिटी रोग को इस विटामिन को देकर ठीक किया। स्टीलर (Stiller) ने 1939 में इसे संश्लेषित किया। इस संश्लेषित रूप को पायरीडॉक्सिन (pyridoxine) कहते हैं। प्रकृति में भी इसके दो रूप होते हैं-पायरीडॉक्सल (pyridoxal) तथा पायरीडॉक्सामीन (pyridoxamine)। इन तीनों रूपों को विटामिन B6 कहते हैं। .

इसकी कमी शरीर में प्रायः कम ही रहती है। यह सफेद, स्वाद में कसैला व क्रिस्टलीय विटामिन है। पानी में घुलनशील होता है। ताप व सूर्य की किरणों में नष्ट हो जाता है।

कार्य (Functions) - शरीर में को- एन्जाइम की भाँति कार्य करने वाला विटामिन है। यह नाड़ी संस्थान व लाल रक्त कणिकाओं को स्वस्थ बनाये रखने में महत्वपूर्ण कार्य करता है। यह ट्रिप्टोफेन एमीनो एसिड को नायसिन में परिवर्तित करने में सहायक है।

प्राप्ति स्रोत (Sources) - सूखी खमीर, गेहूँ के बीजांकुर, माँस, यकृत, दालें, सोयाबीन, मूँगफली, अण्डा, दूध, दही, सलाद के पत्ते, पालक आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं। कमी से होने वाले रोग - इस विटामिन की न्यूनता से अनिद्रा, भूख में कमी, वमन होना, डरमेटाइट्स आदि लक्षण प्रतीत होते हैं। बच्चों की वृद्धि रुक जाती है। शिशु अवस्था में पेशीय झटके व आक्षेप (Convulsions) आते हैं।

दैनिक प्रस्तावित मात्रा - प्रतिदिन भोजन द्वारा 1.5-2.0 मिग्रा. पायरीडॉक्सिन की मात्रा लेनी आवश्यक है।

(5) पेन्टोथेनिक एसिड (Pentothenic Acid)

इसे एन्टी डर्मेटिटिस फेक्टर (antidermatitis factor) भी कहते हैं। 1933 में विलियम्स तथा साथियों द्वारा इस विटामिन को क्रिस्टलीय रूप में प्राप्त किया तथा 1940 में स्टिलर (Stiller) द्वारा संश्लेषित किया गया। प्राणी पोषण में इस विटामिन की उपयोगिता ज्यूक्स तथा वूली (Jukes & Woolley) द्वारा स्थापित की गई।

पेन्टोथेनिक एसिड ग्रीक भाषा के शब्द 'पेन्टोथिन' (Pantothin) से बना है जिसका अर्थ होता है 'सर्वव्यापी'। यह विटामिन प्रकृति में अधिकतर वनस्पति एवं प्राणि जगत में उपस्थित रहता है।

कार्य (Functions) - बच्चों की शारीरिक वृद्धि में सहायक है। यह विटामिन भी को - एन्जाइम CoA की भाँति कार्य करता है। शरीर में कार्बोज, प्रोटीन तथा वसा के चयापचय की क्रियाओं में सहायता करता हैं।
प्राप्ति के स्रोत (Sources) -
सूखे खमीर, यकृत, चावल की ऊपरी पर्त, गेहूँ का छिलका (germ) तथा अण्डे के पीले भाग, दूध, शकरकन्द में मुख्य रूप से पाया जाता है।
न्यूनता से होने वाला रोग
- इसके अभाव में बच्चों की भूख घट जाती है। जी मिचलाना, अपच, पेट में दर्द, बाँह व टाँगों में दर्द की शिकायत रहती है। मानसिक तनाव आदि लक्षण भी कभी-कभी होते हैं।
दैनिक प्रस्तावित मात्रा -
भोजन आदि द्वारा 10 मिग्रा. प्रतिदिन लेनी चाहिए।

N.R.C. (U.S.A.) के द्वारा पेन्टोथेनिक एसिड की प्रस्तावित मात्रा निम्नलिखित है-

शिशु 1.5-2.5 मि.ग्रा. प्रतिदिन
बालक 5-8 मिग्रा. प्रतिदिन
किशोर 8-10 मिग्रा. प्रतिदिन
वयस्क 10 मि.ग्रा. प्रतिदिन
गर्भवती व धात्री स्त्री 10-15 मि.ग्रा. प्रतिदिन

(6) बायोटिन (Biotin)

इसे विटामिन 'एच' (H) भी कहते हैं। 1916 में बेटमेन (Bateman) ने बताया कि कच्चे अण्डे में एक क्षारीय प्रोटीन एवीडीन (Avidin) होता है जो बायोटीन को नष्ट कर देता है लेकिन पके अण्डे में ऐसा नहीं होता है। अतः पके अण्डे खिलाने पर अण्डे की सफेदी का रोग (Egg white injury) नहीं होती है।

कार्य (Functions) -

(1) यह CO2 (कार्बन डाइ ऑक्साइड) स्थिरीकरण (Fixation) में कार्बोक्सीलेज एन्जाइम के साथ को एन्जाइम का कार्य करता है जैसे - यूरिया निर्माण में, पिरीमिडीन के संश्लेषण में वसीय मात्रा के संश्लेषण आदि    में।
(2) यह मुख्यतः त्वचा को स्वस्थ बनाये रखने का महत्वपूर्ण कार्य करता है।
(3) यह कोशिकाओं के स्वास्थ्य व निर्माण कार्य में भी सहायता करता है।

प्राप्ति के स्रोत (Sources) -
सामान्यतः दालें, नट्स, खमीर आदि में पाया जाता है। यकृत, अण्डा, माँस, मूँगफली, सोयाबीन आदि इसके प्रमुख स्रोत हैं।
न्यूनता से रोग - इस विटामिन की कमी बाँहों व टाँगों में डरमेटाइट्स के समान लक्षण उत्पन्न करती है। साँस लेने में परेशानी, मानसिक तनाव व एनीमिया आदि लक्षण भी दिखायी देते हैं।
दैनिक प्रस्तावित मात्रा - सामान्य दैनिक आवश्यकता 150-300 माइक्रोग्राम है।

(7) फोलिक एसिड (Folic Acid)

फोलिक शब्द की उत्पत्ति लेटिन शब्द 'फोलियम' (Folium) से हुई जिसका अर्थ पत्ता (Leaf) है। यह विटामिन सबसे पहले पालक के पत्तों से निकाला गया था।

डे (Day) ने इस पोषक फेक्टर के अस्तित्व का सुझाव दिया। माइकेल, स्नेल तथा विलियम्स (Mitchell, Snell & Williams) ने इसे फॉलिक अम्ल नाम दिया।

इसकी रासायनिक संरचना 1945 में दी गई। इसे अन्य नामों जैसे विटामिन M, विटामिन Bc, स्टेप्टोकोकस लेक्टीस (Streptococos lactis) R फेक्टर के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है।

कार्य (Functions) - कोशिकाओं के केन्द्रक में पाये जाने वाले न्यूक्लियोप्रोटीन के निर्माण में महत्वपूर्ण कार्य करता है। लाल और श्वेत रक्त कणिकाओं के निर्माण में भी इसका योगदान रहता है।
प्राप्ति के स्रोत (Sources) - खमीर, गेहूं व चावल की ऊपरी पर्त (germ) दाल, हरी पत्ते वाली सब्जियों में पाया जाता है।
न्यूनता से रोग - फोलिक एसिड की कमी से बाल्यावस्था या गर्भावस्था में एनीमिया हो जाता है।
दैनिक प्रस्तावित मात्रा - इसकी दैनिक आवश्यकता 1 से 2 मिग्रा. तक आवश्यक होती है।

(8) कोलीन (Choline)

इसे सबसे पहले सन् 1934 में बेस्ट व हन्ट्समैन ने प्रतिपादित किया। यह एक महत्वपूर्ण मेटाबोलाइट (metabolite) है। यह शरीर द्वारा संश्लेषित किया जाता है। यह फास्फो लिपिड्स का एक प्रमुख अवयव है। यह तन्त्रिका - तन्त्र (Nervous system) के लिए आवश्यक होता है।

कार्य (Functions) - इसका प्रमुख कार्य यकृत में अधिक वसा के संग्रहण को रोकना है। नाड़ी ऊतकों की संवेदन क्षमता बनाये रखने के अतिरिक्त भी अनेक शरीर नियामक कार्य सम्पन्न करता है।
प्राप्ति के स्रोत (Sources) - यकृत, गुर्दे, साबुत अनाज, दालें, माँस, दूध व अण्डे के पीले भाग में प्रमुख रूप से पाया जाता है।
न्यूनता से होने वाले रोग - इसकी कमी से फैटी लीवर (Fatty liver) हो जाता है। इसकी कमी से किडनी का नेक्रोसिस (Necrosis of kidney) हो जाता है। इसकी कमी से एनीमिया के भी लक्षण दिखते हैं।

(9) इनोसीटॉल (Inositol)

जान्तव व वानस्पतिक ऊतकों में यह विटामिन पाया जाता है। मनुष्य में इसकी कमी से अभी तक किसी रोग के होने की जानकारी नहीं मिली है। इसकी कमी से चूहों में गंजापन (Alopecia) आ जाता है। इसकी आहार में पर्याप्त मात्रा लेते रहने पर यकृत में अधिक वसा एकत्रित नहीं हो पाती। इसे माउस एन्टी एलोपेसिया फेक्टर भी कहते हैं। इस विटामिन की खोज वूली (Wooley) ने की।

कार्य (Functions) - यह स्तनधारी जानवरों के हृदय में मिलता है तथा हृदय के संकुचन (Contraction) में सहायक है। इसके अतिरिक्त यह आँतों की गतिशीलता (Peristalsis) में भी सहायक है। इसकी आवश्यकता फाइब्रोब्लास्ट (Fibroblast) की वृद्धि के लिए भी होती है।

प्राप्ति के स्रोत (Sources) – यह सभी जान्तव व वानस्पतिक खाद्य पदार्थों से प्राप्त हो 'सकता है। विभिन्न फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, यीस्ट, दूध, यकृत इसके अच्छे साधन हैं।

(10) पैराएमीनो बैंजोइक एसिड (Para Amino Benzoic Acid or PABA)

PABA चूहों की सामान्य वृद्धि तथा दुग्ध स्रावण (Lactation) के लिए आवश्यक है। इसके अभाव में काले चूहे के बाल सफेद हो जाते हैं।

यह एक रवेदार (Crystallized) पदार्थ होता है। यह एल्कोहल में पूर्ण घुलनशील है तथा जल में आंशिक रूप से घुलनशील होता है।

कार्य (Functions) - यह मुख्य रूप से हॉर्मोन की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है। यह इन्सुलिन (Insulin) हॉर्मोन की क्रियाशीलता को बढ़ाता है तथा थॉयराइड (Thyroid) हॉर्मोन के निर्माण को कम करता है।
प्राप्ति के स्रोत- यह जान्तव व वानस्पतिक जगत में मुक्त रूप तथा संयुक्त रूप से मिलता है। इसकी प्राप्ति यकृत, दूध, यीस्ट, गेहूँ का भ्रूण, केला आदि से होती है।

(11) विटामिन 'बी 12 ' (Vitamin B12 or Cyanocobalamine)

विटामिन बी 12 की खोज परनीशियस एनीमिया (Pernicious Anaemia) रोग का निदान ढूँढ़ते समय हुई। प्रयोगों द्वारा देखा गया कि रोगी व्यक्ति को यकृत खिलाने से स्थिति में सुधार होता है। बाद में ज्ञात हुआ कि यकृत में उपस्थित बी 12 इस रोग के उपचार में सहायक है।

इसे कोबामाइड (Cobamide), एन्टीपरनीशियस एनीमिया फेक्टर (antipernicious anaemia factor), एक्सट्रीन्सीक फेक्टर ऑफ केस्टल (Extrinsic factor of castle) के भी नामों से सम्बोधित किया जाता है।

मिनोट तथा मर्फी (Minot & Murphy) को 1934 में इस विटामिन की खोज के लिए नोबेल पुरुस्कार दिया गया। 1948 में स्मिथ तथा साथियों के द्वारा इसे क्रिस्टल रूप में प्राप्त किया गया।

विटामिन B12 प्राणियों की प्रायः सभी कोशिकाओं में मिलता है। मनुष्य को इसकी पूर्ति के लिए भोजन पर निर्भर रहना पड़ता है किन्तु कुछ प्राणी आँतों में इसका निर्माण कर सकते हैं। ये पौधों में नहीं मिलता है।

प्राप्ति के साधन (Sources) - प्रमुख रूप से जन्तु ऊतकों द्वारा ही प्राप्त होता है। इसके मुख्य स्रोत यकृत, अण्डा, माँस, मछली, दूध आदि हैं। शुद्ध शाकाहारी आहार लेने वालों में इसकी प्राप्ति सम्भव नहीं है लेकिन यह आँतों में जीवाणुओं द्वारा संश्लेषित हो जाता है। अतः इसकी कमी के लक्षण नहीं मिलते।

कार्य (Functions) - विटामिन बी, का महत्व निम्न दृष्टियों से है-

1. यह प्रोटीन के चयापचय में सहायक होता है। 2. अस्थि मज्जा में रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक है। 3. नाड़ी ऊतकों की चयापचयी क्रिया में सहायक है।

न्यूनता से होने वाले रोग
- इसकी कमी से मैक्रोसायटिक या परनीशियम एनीमिया रोग हो जाता है। बच्चों में इस विटामिन की कमी से वृद्धि व विकास रुक जाता है।
दैनिक आवश्यकता - इस विटामिन की दैनिक आवश्यकता 3-5 माइक्रोग्राम है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दैनिक आहारीय मात्राओं से आप क्या समझते हैं? आर.डी.ए. का महत्व एवं कार्य बताइए।
  2. प्रश्न- आहार मात्राएँ क्या हैं? विभिन्न आयु वर्ग के लिये प्रस्तावित आहार मात्राओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- संदर्भित महिला व पुरुष को परिभाषित कीजिए एवं पोषण सम्बन्धी दैनिक आवश्यकताओं का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं से आप क्या समझते हैं? दैनिक प्रस्तावित मात्राओं को बनाते समय ध्यान रखने योग्य आहारीय निर्देशों का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- गर्भावस्था में कौन-कौन से पौष्टिक तत्व आवश्यक होते हैं? समझाइए।
  6. प्रश्न- स्तनपान कराने वाली महिला के आहार में कौन से पौष्टिक तत्वों को विशेष रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
  7. प्रश्न- एक गर्भवती स्त्री के लिये एक दिन का आहार आयोजन करते समय आप किन-किन बातों का ध्यान रखेंगी?
  8. प्रश्न- एक धात्री स्त्री का आहार आयोजन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  9. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित आवश्यकता की विशेषताएँ बताइये।
  10. प्रश्न- प्रस्तावित दैनिक आवश्यकता के निर्धारण का आधार क्या है?
  11. प्रश्न- शरीर के लिए आवश्यक पोषक तत्व कौन-कौन से हैं? इन तत्वों को स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में वर्गीकृत कीजिए।
  12. प्रश्न- भोजन क्या है?
  13. प्रश्न- उत्तम पोषण एवं कुपोषण के लक्षणों में क्या अन्तर है?
  14. प्रश्न- हमारे लिए भोजन क्यों आवश्यक है?
  15. प्रश्न- शरीर में जल की क्या उपयोगिता है
  16. प्रश्न- क्या जल एक स्थूल पोषक तत्व है?
  17. प्रश्न- स्थूल पोषक तत्व तथा सूक्ष्म पोषक तत्वों में अंतर बताइये।
  18. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट किसे कहते हैं? इसकी प्राप्ति के स्रोत तथा उपयोगिता बताइये।
  19. प्रश्न- मानव शरीर में कार्बोहाइड्रेट की कमी व अधिकता से क्या हानियाँ होती हैं?
  20. प्रश्न- आण्विक संरचना के आधार पर कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण किस प्रकार किया जा सकता है? विस्तारपूर्वक लिखिए।
  21. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का मानव शरीर में किस प्रकार पाचन व अवशोषण होता है?
  22. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट की उपयोगिता बताइये।
  23. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट क्या है? इसके प्राप्ति के स्रोत बताओ।
  24. प्रश्न- प्रोटीन से क्या तात्पर्य है? मानव शरीर में प्रोटीन की उपयोगिता बताइए।
  25. प्रश्न- प्रोटीन को वर्गीकृत कीजिए तथा प्रोटीन के स्रोत तथा कार्य बताइए। प्रोटीन की कमी से होने वाले रोगों के बारे में भी बताइए।
  26. प्रश्न- प्रोटीन के पाचन, अवशोषण व चयापचय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  27. प्रश्न- प्रोटीन का जैविक मूल्य क्या है? प्रोटीन का जैविक मूल्य ज्ञात करने की विधियाँ बताइये।
  28. प्रश्न- प्रोटीन की दैनिक जीवन में कितनी मात्रा की आवश्यकता होती है?
  29. प्रश्न- प्रोटीन की अधिकता से क्या हानियाँ हैं?
  30. प्रश्न- प्रोटीन की शरीर में क्या उपयोगिता है?
  31. प्रश्न- प्रोटीन की कमी से होने वाले प्रभाव लिखिए।
  32. प्रश्न- वसा से आप क्या समझते हैं? वसा प्राप्ति के प्रमुख स्रोत एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये - वसा का पाचन एवं अवशोषण।
  34. प्रश्न- वसा या तेल का रासायनिक संगठन बताते हुए वर्गीकरण कीजिए।
  35. प्रश्न- वसा की उपयोगिता बताओ।
  36. प्रश्न- वसा के प्रकार एवं स्रोत बताओ।
  37. प्रश्न- वसा की विशेषताएँ लिखिए।
  38. प्रश्न- पोषक तत्व की परिभाषा दीजिए। सामान्य मानव संवृद्धि में इनकी भूमिका का वर्णन कीजिए।
  39. प्रश्न- विटामिनों से क्या आशय है? इनके प्रकार, प्राप्ति के साधन एवं उनकी कमी से होने वाले रोगों के विषय में विस्तारपूर्वक लिखिए।
  40. प्रश्न- विटामिन
  41. प्रश्न- विटामिन 'ए' क्या है? विटामिन ए की प्राप्ति के साधन तथा आहार में इसकी कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  42. प्रश्न- विटामिन डी की प्राप्ति के साधन बताइये।
  43. प्रश्न- विटामिन सी की कमी से क्या हानियाँ हैं?
  44. प्रश्न- विटामिन डी की दैनिक प्रस्तावित मात्रा बताइये।
  45. प्रश्न- वसा में घुलनशील व जल में घुलनशील विटामिनों में क्या अन्तर है?
  46. प्रश्न- खनिज तत्वों से आप क्या समझते है? खनिज तत्वों का कार्य बताइए।
  47. प्रश्न- फॉस्फोरस एवं लोहे की प्राप्ति, स्रोत, कार्य व इसकी कमी से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- कैल्शियम की प्राप्ति के साधन कार्य तथा इसकी कमी से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
  49. प्रश्न- जिंक की कमी से शरीर को क्या हानि होती है? इनकी प्राप्ति के साधन उदाहरण सहित समझाइए।
  50. प्रश्न- आयोडीन का महत्व बताइये।
  51. प्रश्न- सोडियम का भोजन में क्या महत्व है?
  52. प्रश्न- ताँबे का क्या कार्य है?
  53. प्रश्न- शरीर में फ्लोरीन की भूमिका लिखिए।
  54. प्रश्न- शरीर में मैंगनीज का महत्व बताइये।
  55. प्रश्न- शरीर में कैल्शियम का अवशोषण तथा चयापचय की संक्षिप्त में व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- आहारीय रेशे का क्या अर्थ है? आहारीय रेशों का संगठन, वर्गीकरण एवं लाभ लिखिए।
  57. प्रश्न- भोजन में रेशेदार पदार्थों का क्या महत्व है? रेशेदार पदार्थों के स्रोत एवं प्रतिदिन की आवश्यकता का वर्णन कीजिए।
  58. प्रश्न- फाइबर की कमी शरीर पर क्या प्रभाव डालती है?
  59. प्रश्न- फाइबर की अधिकता से शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  60. प्रश्न- विभिन्न खाद्य पदार्थों में फाइबर की मात्रा को तालिका द्वारा बताइए।
  61. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  62. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  63. प्रश्न-
  64. प्रश्न-
  65. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- भोजन में मसालों की उपयोगिता बताइये।
  68. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  69. प्रश्न- 'भोज्य मिलावट' क्या होती है, समझाइये।
  70. प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया से बनाये जाने वाले पदार्थों का वर्णन कीजिए तथा खमीरीकरण प्रक्रिया के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  71. प्रश्न- अनुपूरक व विस्थापक पदार्थों से आपका क्या अभिप्राय है? उनका विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- विभिन्न खाद्य पदार्थों का फोर्टीफिके शनकि स प्रकार से किया जाता है? वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- भोजन की पौष्टिकता को बढ़ाने वाले विभिन्न तरीके क्या होते हैं? विवरण दीजिए।
  74. प्रश्न- अंकुरीकरण तथा खमीरीकरण किस प्रकार से भोजन के पौष्टिक मूल्य को बढ़ाते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- खमीरीकरण की प्रक्रिया किन बातों पर निर्भर करती हैं।
  76. प्रश्न- खमीरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  77. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझती हैं? आहार आयोजन का महत्व बताइए।
  78. प्रश्न- 'आहार आयोजन' करते समय ध्यान रखने योग्य बातें बताइये।
  79. प्रश्न- आहार आयोजन को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- विभिन्न आयु वर्गों एवं अवस्थाओं के लिए निर्धारित आहार की मात्रा की सूचियाँ बनाइए।
  81. प्रश्न- एक खिलाड़ी के लिए एक दिन के पौष्टिक तत्वों की माँग बताइए व आहार आयोजन कीजिए।
  82. प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
  83. प्रश्न- 'आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- एक किशोर लड़की के लिए पोषक तत्वों की माँग बताइए।
  85. प्रश्न- एक किशोरी का एक दिन का आहार आयोजन कीजिए तथा आहार तालिका बनाइये। किशोरी का आहार आयोजन करते समय आप किन पौष्टिक तत्वों का ध्यान रखेंगे?
  86. प्रश्न- आहार आयोजन से आप क्या समझते हैं?
  87. प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  88. प्रश्न- दैनिक प्रस्तावित मात्राओं के अनुसार एक किशोरी को कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  89. प्रश्न- कैटरिंग की संकल्पना से आप क्या समझते हैं? समझाइये।
  90. प्रश्न- भोजन करते समय शिष्टाचार सम्बन्धी किन बातों को ध्यान में रखा जाता है?
  91. प्रश्न- भोजन प्रबन्ध सेवा (Catering Service) के विभिन्न प्रकारों को विस्तार से समझाइए।
  92. प्रश्न- एक गृहिणी अपने घर में किस प्रकार सुन्दर मेज सजाकर रखती है? समझाइए।
  93. प्रश्न- 'भोजन परोसना भी एक कला है।' इस कथन को समझाइए।
  94. प्रश्न- केटरिंग सेवाओं की अवधारणा और सिद्धान्त समझाइये।
  95. प्रश्न- 'स्वयं सेवा' के लाभ तथा हानियाँ बताइए।
  96. प्रश्न- छोटे और बड़े समूह में परोसने की विधियों की तुलना कीजिये।
  97. प्रश्न- Menu से आप क्या समझते हैं? विभिन्न प्रकार के Menu को समझाइये।
  98. प्रश्न- बड़े समूह की भोजन व्यवस्था पर एक टिप्पणी लिखिए।
  99. प्रश्न- कैन्टीन का लेखा-जोखा कैसे रखा जाता है? समझाइए।
  100. प्रश्न- बड़े समूह को खाना परोसते समय आप कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखेंगे तथा अपने संस्थान में एक लड़कियों के लिये कैंटीन की योजना कैसे बनाएंगे? विस्तारपूर्वक समझाइए।
  101. प्रश्न- खाद्य प्रतिष्ठान हेतु क्या योग्यताओं की आवश्यकता तथा प्रशिक्षण आवश्यक है? समझाइए।
  102. प्रश्न- बुफे शैली में भोजन किस प्रकार परोसा जाता है?
  103. प्रश्न- चक्रक मेन्यू क्या है?
  104. प्रश्न- 'पानी के जहाज (Ship) पर भोजन की व्यवस्था' इस विषय पर टिप्पणी करिये।
  105. प्रश्न- मेन्यू के सिद्धांत क्या हैं? विभिन्न प्रकार के मेन्यू के बारे में लिखिये।

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