बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधारसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार
प्रश्न- शिक्षा के द्वारा संस्कृति का विकास तथा संरक्षण कैसे किया जाता है?
अथवा
शिक्षा पर संस्कृति के प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
अथवा
शिक्षा के संस्कृति निर्धारक तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर -
शिक्षा के द्वारा संस्कृति का विकास व संरक्षण निम्न प्रकार से किया जाता है -
(1) स्वाभाविक शक्तियों का विकास - बालक के अन्दर जन्म से ही कुछ स्वाभाविक शक्तियाँ होती हैं तथा समय के साथ-साथ शरीर व मस्तिष्क का भी विकास होता है। शिक्षा का प्रथम कर्त्तव्य बालक की स्वाभाविक शक्तियों; जैसे कल्पना शक्ति, चिन्तन शक्ति आदि का विकास करना है। इस कारण शिशु शिक्षा में सबसे पहले शिशु के सामने कुछ उपकरण रखकर उसे अपनी ज्ञानेन्द्रियों का प्रयोग करने दिया जाता है, यही ज्ञानेन्द्रिय शिक्षा कहलाती है। इसी प्रकार कुछ विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने का अवसर प्रदान करके उसे सीखने की विभिन्न विधियाँ सिखाई जाती हैं। इस प्रकार बालक की प्रारम्भिक शिक्षा होती है।
(2) चरित्र निर्माण - बचपन में बालक के मन में जो आचार व्यवहार के विषय में जो संस्कार पड़ जाते हैं वे ही भविष्य में उसके चरित्र के रूप में सामने आते हैं। चरित्र में विभिन्न स्थायी भावों का संगठन होता है जिसका केन्द्र आत्म-सम्मान का स्थायी भाव है। नैतिक चरित्र के विकास के लिए शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है तथा समाजीकरण नैतिक चरित्र के विकास में एक मुख्य कारक है। हरबर्ट के शब्दों में " अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।"
(3) व्यक्तित्त्व का विकास - बालक के व्यक्तित्त्व में विकास से ही वैयक्तिकता का विकास होता है। विद्यालय में बालक को विभिन्न प्रकार के कार्य करने का अवसर देकर उसके व्यक्तित्त्व का विकास किया जाता है। इनमें खेल सबसे महत्त्वपूर्ण है। विद्यालय के सामुदायिक जीवन में व्यक्तित्त्व के सामाजिक पहलू का विकास होता है। व्यक्तित्त्व के विकास में सामाजिक रीति-रिवाजों, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण के साधनों तथा संस्कृति की मुख्य भूमिका होती है इसलिए विभिन्न संस्कृतियों से आये हुए व्यक्तियों के व्यक्तित्त्व में भिन्नतायें देखने को मिलती हैं। बालक के व्यक्तित्त्व पर सबसे अधिक प्रभाव उसके परिवार का होता है तथा उसके बाद विद्यालय का। विद्यालय के शिक्षकों का ये दायित्व है कि वह बालकों के व्यक्तित्त्व में कोई कमी न आने दें। संतुलित विकास से ही संतुलित व्यक्तित्त्व का निर्माण होता है।
(4) मूल प्रवृत्तियों का नियन्त्रण तथा मार्गान्तीकरण - जन्म के समय से ही बालक में कुछ मूल प्रवृत्ति होती है। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि न केवल प्रत्येक प्राणी में मूल प्रवृत्ति होती है अपितु इनमें व्यक्तिगत अन्तर भी होता है। समूह में रहने के कारण मनुष्य की अपनी अनेक मूल प्रवृत्तियों में नियन्त्रण करना पड़ता है तथा इनका परिवर्तन करना होता है। मूल प्रवृत्तियों के नियन्त्रण, मार्गान्तीकरण व शोधन का कार्य शिक्षा के द्वारा किया जाता है। सामाजिक शिक्षा से बालक मूल प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण तथा उनका मार्गान्तीकरण सीखते हैं।
(5) योग्य नागरिकों का निर्माण - शिक्षा के द्वारा व्यक्ति को योग्य नागरिक बनाने का प्रयास किया जाता है। राज्य के प्रति अपने कर्त्तव्यों का पालन कराने के लिए व्यक्तियों को नागरिकता की शिक्षा मिलनी चाहिये। वर्तमान समय में राज्य के द्वारा ही शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया जाता है। लोकतन्त्रीय राज्यों में शिक्षा व्यवस्था का संचालन जनता के हाथ में होता है तथा साम्यवादी देशों में राज्य द्वारा ही जनता के लिए शिक्षा व्यवस्था का निर्माण किया जाता है। इस प्रकार योग्य व कुशल नागरिकों का निर्माण भी शिक्षा के माध्यम से होता है।
(6) सामुदायिक भावना का विकास - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथा समाज में ही वह रहता है अत: सामाजिक गुण उसे परिवार, विद्यालय तथा समाज द्वारा बचपन से ही सिखाये जाते हैं। इस प्रकार शिक्षा मनुष्य में सामुदायिक भावना का निर्माण तथा विकास भी करती है। इस भावना का विकास परिवार, विद्यालय, खेल के समूह आदि में सामुदायिक जीवन बिताने से होता है। शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थियों को सामूहिक रूप से बिद्यालय का संचालन करने, अनेक पाठ्यक्रमों का संयोजन करने व अन्य सामुदायिक कार्य करने का अवसर दिया जाता है।
(7) संस्कृति व सभ्यता का संरक्षण व विकास - कोई भी व्यक्ति जब बालक के रूप में जन्म लेता है तो वह किसी भी क्षेत्र में नये रूप से नहीं सोचता है उसके सोचने, विचारने का ढंग तथा कार्य को करने का ढंग, पुराने रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा पूर्वजों के अनुभवों से निर्देशित होता है। इसलिए यह आवश्यक माना जाता है कि व्यक्ति अपनी सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण करे तथा उसमें विकास करके उसमें वृद्धि करे। यह कार्य व्यक्ति, शिक्षा के माध्यम से ही करता है। प्रत्येक देश में विभिन्न विज्ञानों, कलाओं तथा साहित्य ही प्रगति सुशिक्षित व्यक्तियों द्वारा ही की जाती है।
(8) समाज सुधार - शिक्षा के माध्यम से ही समाज में सुधार भी होता है। शिक्षित व्यक्तियों के द्वारा ही हमारे देश में ब्रह्म समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज, थियोसोफिकल सोसाइटी, आदि संस्थानों के माध्यम से समाज सुधार के कार्य हुए हैं। इन सभी आन्दोलनों के पीछे सभी उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति थे। शिक्षा द्वारा ही समाज के विभिन्न अंगों, सामाजिक संस्थानों तथा सामाजिक नियन्त्रण की विधियों की लगातार समीक्षा होती रहती है तथा उनमें बराबर सुधार की माँग की जाती है।
(9) राष्ट्रीय भावना का विकास - शिक्षा के अभाव में राष्ट्रीय भावना का विकास नहीं हो सकता है। शिक्षा के समुचित प्रसार के बिना मानव समाज का विकास होना असम्भव है।
(10) अवकाश का सदुपयोग - शिक्षा का एक प्रमुख कार्य व्यक्ति के अवकाश के समय का सही उपयोग करना भी है। अवकाश के समय में व्यक्ति को शिक्षाप्रद व स्वयं तथा समाज के विकास के लिए लाभदायक कार्य करने चाहिये। शिक्षित व्यक्ति पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों विभिन्न प्रकार की ललित कलाओं आदि के द्वारा अपने कार्य को अवकाश मंच कर सकते हैं। शिक्षा के द्वारा उनमें विभिन्न प्रकार की रुचियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनको वे अवकाश के समय में पूरा कर लेते हैं।
(11) राष्ट्रीय भाषा का विकास - शिक्षा का एक प्रमुख कार्य एक राष्ट्रीय भाषा का विकास करना है। किसी भी राष्ट्र में अनेक भाषाओं के अस्तित्त्व से उनकी प्रगति तथा एकता में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती है परन्तु एक राष्ट्रीय भाषा का होना राष्ट्रीय विकास के लिए आवश्यक है।
(12) सर्व धर्म समभाव - भारत संविधान की दृष्टि से एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। हमारे राष्ट्र में सभी धर्मों का समान रूप से आदर किया जाता है। शिक्षा प्राप्त व्यक्ति राष्ट्र की इस नीति को समझता है। अशिक्षा तथा ज्ञान के अभाव के कारण आज भी साम्प्रदायिकता की भावना हमारे समाज में फैली हुई है। इसको दूर करने का मुख्य उपाय ये ही है कि शिक्षा के माध्यम से बालक-बालिकाओं में बचपन से ही धर्म-निरपेक्षता, सभी धर्मों को समान आदर तथा सम्मान की भावना का विकास किया जाये। इस प्रकार शिक्षा सभी धर्मों को समान मंच पर लाने के लिए आवश्यक साधन है।
(13) कुशल श्रम की आपूर्ति - राष्ट्रीय विकास के लिए प्रत्येक क्षेत्र में कुशल श्रम की आवश्यकता होती है। कुशल श्रम की पूर्ति शिक्षा के द्वारा ही की जा सकती है। शिक्षा के माध्यम से ही यह पता चल जाता है कि कौन-सा व्यक्ति किस क्षेत्र में प्रवीणता प्राप्त कर सकता है फिर उसी के अनुरूप, उसे प्रशिक्षण दिया जाता है।
(14) कर्त्तव्य भावना - किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसके निवासियों की कर्त्तव्य भावना पर निर्भर होती है। कर्त्तव्य भावना का विकास केवल शिक्षा के द्वारा ही होता है। विद्यालय में बालकों को राष्ट्र का नागरिक होने के रूप में उनके अधिकारों तथा कर्त्तव्यों से उन्हें परिचित किया जाता है इससे उनके अन्दर किशोरावस्था से ही कर्त्तव्यों के प्रति चेतना जाग्रत होती है तथा अन्ततः यह भावना राष्ट्र के विकास में उपयोगी सिद्ध होती है।
|
- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रदाय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना संक्षेप में कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों के गुणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रति समाज के दायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा क्या है? तथा शिक्षा की प्रकृति का सविस्तार वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति के बारे में बताइये।
- प्रश्न- विभिन्न समाजों में शिक्षा की स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- स्कूल तथा समाज में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए
- प्रश्न- समाज का अर्थ व परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- समाज में शिक्षा की आवश्यक दिशा बताइये।
- प्रश्न- "अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।' समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा को मनुष्य एवं समाज का निर्माण करना चाहिए। कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख उद्देश्य तथा शिक्षा पर इसके प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र के प्रमुख उद्देश्य व शिक्षा पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? एक विषय के रूप में इसके विकास की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज की संचालक शक्तियाँ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षक के लिये शैक्षिक समाजशास्त्र की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र का क्या महत्त्व है? इसकी सीमाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की पुनर्रचना के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिकतावादी प्रवृत्तियों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा शिक्षा एवं समाज एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- समाज तथा शिक्षा के परस्पर प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के ऊपर शिक्षा के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाज की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज एवं सामाजिक प्रणाली की संकल्पना की व्याख्या कीजिए। 'विद्यालय एक सामाजिक तंत्र है।' सोदाहरण वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के प्रति शिक्षा के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'विद्यालय समाज का निर्माता है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं समाज के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- समाज में खुशी के लिए शिक्षा के उद्देश्य और आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- सफल जीवन और खुशियों के निर्माण में शिक्षा कैसे सर्वोच्च है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक स्तरीकरण के मूल आधार क्या हैं? आपकी राय में कौन-सा आधार अधिक प्रभावी है और क्यों?
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण के आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का कार्यात्मक परिप्रेक्ष्य बताइये।
- प्रश्न- समानता की परिभाषा दीजिए तथा इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति / जनजाति हेतु शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए संविधान के प्रावधानों को बताइए तथा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाई, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय एवं धार्मिक विविधताओं के सम्बन्ध में संवैधानिक दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? भारत में इसकी आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शिक्षा के अवसरों की विषमताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समानता के अवसरों को बढ़ाने हेतु उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण संस्थाओं में समानता से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से क्या आशय है? असुविधाग्रस्त लोगों की जीविका समुन्नति हेतु आप किन उपायों की संस्तुति करेंगे? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक न्याय का क्या अर्थ है? सामाजिक न्याय की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विविधता में एकता स्थापित करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक एकता की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- 'भारतीय समाज में विविधता में एकता है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?
- प्रश्न- संस्कृति का महत्त्व बताइए। शिक्षा तथा संस्कृति में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न परिवेशों में शिक्षा तथा संस्कृति का सम्बन्ध एवं सम्बर्द्धन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के द्वारा संस्कृति का विकास तथा संरक्षण कैसे किया जाता है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बन के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक परिवर्तन को समझाइए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न जनसमूहों में शिक्षा के द्वारा अन्तर्सास्कृतिक अवबोध के विकास के सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर-सांस्कृतिक भावना से आप क्या समझते हैं? शिक्षा द्वारा अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के माध्यम से तथा शिक्षक के माध्यम से अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार हो सकता है?
- प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनौपचारिक शिक्षा में संस्कृति का क्या महत्त्व है? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और संस्कृति के सम्बन्ध की समीक्षा कीजिये। इन दोनों में से कौन दूसरे पर अधिक आश्रित है।
- प्रश्न- शिक्षा और सांस्कृतिक विलम्बना के सम्बन्ध पर अन्तर लिखिए, विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक बहुतत्ववाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन में सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृति की आवश्यकता तथा महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- संघर्ष से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक संघर्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत के हस्तान्तरण से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- 'सभी सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन होते हैं किन्तु सभी सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान समय में भारतीय समाज में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में दो विचार हैं एक तो यह कि शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन होते हैं और दूसरा यह कि सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को प्रभावित करते हैं आपको इनमें से कौन-सा विचार अधिक सत्य लगता है, क्यों?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज व सामाजिक परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक अभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों में निर्णायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में शिक्षा तथा शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षक की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "सामाजिक प्रगति का एकमात्र साधन शिक्षा है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का क्या अर्थ है? संस्कृतिकरण की अवधारणा बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण से उत्पन्न होने वाली समस्यायें बताइये तथा इसके निवारण हेतु उपाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के निवारण हेतु उपाय बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज के सन्दर्भ में पाश्चात्यीकरण की शैक्षिक उपादेयता बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के कारण तथा परिणाम बताइये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण का अर्थ बताइये एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीकरण की विशेषतायें बताइये |
- प्रश्न- नगरीकरण के अच्छे एवं बुरे प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकरण की परिभाषाएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का भारतीयकरण की प्रक्रिया के साथ समायोजन कैसे स्थापित किया जा सकता है? आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण और पाश्चात्यीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा पर आधुनिकीकरण के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शहरीकरण और शिक्षा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारत में नगरीकरण का प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण एवं शिक्षा में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना के विकास में आने वाली बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना की वृद्धि करने के लिए राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा क्या सुझाव दिये गए हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के प्रमुख कार्य बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता व अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं? भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय एकता व शिक्षा के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की शिक्षा के प्रमुख लाभ क्या-क्या हैं?.
- प्रश्न- एक अध्यापक के रूप में आप अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास कैसे करेंगे? इस सन्दर्भ में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में टेलीविजन की भूमिका।
- प्रश्न- भारत में 'भावात्मक एकता' की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीयता तथा शिक्षा के सम्बन्ध का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय एकीकरण में धर्म-वैविध्य एक कठिनाई के रूप में।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को विकसित करने के सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है? समझाइये।
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना क्या है? आज के अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शिक्षा शान्ति की स्थापना के लिए क्या कार्य कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में शिक्षक तथा स्कूल की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के सम्बन्ध में सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- गतिशीलता का शिक्षा पर प्रभाव बताइये।