बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधारसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार
अध्याय - 3
शिक्षा एवं समाज में सम्बन्ध
(Relationship between Society and Education)
प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा शिक्षा एवं समाज एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
उत्तर -
समाजशास्त्र में समाज शब्द का प्रयोग जनसाधारण द्वारा लगाए गए अर्थों में नहीं होता, वरन् यह एक विशिष्ट अर्थ को प्रतिपादित करता है। समाजशास्त्र एक विज्ञान है तथा विज्ञान होने के नाते इसकी एक शब्दावली है। वैज्ञानिक शब्दावली में प्रत्येक शब्द को विशिष्ट अर्थ में प्रयोग किया जाता है। 'समाज' भी इसी प्रकार का एक शब्द (संकल्पना या अवधारणा) है, जिसका सम्बन्ध समाजशास्त्र की शब्दावली से है। इस नाते न केवल इसका स्पष्ट अर्थ है, अपितु इसके विभिन्न पक्षों के बारे में भी किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।
समाजशास्त्र में समाज शब्द का प्रयोग सामाजिक सम्बन्धों के ताने-बाने के लिए किया जाता है। इस दृष्टिकोण से समाज एक मूर्त संगठन नहीं है, अपितु सामाजिक सम्बन्धों की एक अमूर्त व्यवस्था मात्र है। सामाजिक सम्बन्ध कम से कम दो व्यक्तियों के बीच स्थापित होते हैं तथा इसके साथ ही यह भी अनिवार्य है कि वे व्यक्ति एक-दूसरे के अस्तित्व के प्रति जागरूक हों तथा परस्पर अन्तःक्रिया भी कर रहे हों। यदि किसी स्थान पर दो या दो से अधिक व्यक्ति विद्यमान हों, परन्तु उनमें किसी प्रकार के सम्बन्ध न हों और न ही वे एक-दूसरे को किसी भी रूप में प्रभावित कर रहे हों तो उस स्थिति में उन दोनों व्यक्तियों के समूह को समाज नहीं कहा जा सकता है।
मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, - "समाज रीतियों एवं कार्य-प्रणालियों, प्रभुत्व एवं पारस्परिक सहयोग, अनेक समूहों और उनके विभाजनों की, मानव व्यवहार के नियन्त्रणों एवं स्वाधीनताओं की एक व्यवस्था है।
गिडिंग्स के अनुसार, - " समाज स्वयं एक संघ है, यह एक संगठन तथा औपचारिक सम्बन्धों का योग है, जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं।"
समाज की विशेषताएँ-
(1) समाज व्यक्तियों का एक समूह नहीं है वरन् व्यक्तियों में जो पारस्परिक सम्बन्ध पाए जाते हैं, उन्हीं की एक व्यवस्था अथवा जाल है।
(2) समाज का प्रमुख लक्षण समानता है, क्योंकि इसी के आधार पर व्यक्तियों में सहयोग और पारस्परिक सम्बन्ध विकसित होते हैं।
(3) समाज का रूप मूर्त न होकर अमूर्त होता है, यह सामाजिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था है। सामाजिक सम्बन्ध अमूर्त होते हैं, क्योंकि उनको न देखा जा सकता है और न ही स्पर्श किया जा सकता है, वरन् उनकी अनुभूति मात्र ही की जा सकती है।
(4) समाज मनुष्यों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि पशु और पक्षियों का भी समाज होता है। इसीलिए समाज और जीवन में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है।
(5) समाज में निरन्तर परिवर्तनशीलता रहती हैं, क्योंकि समाज एवं उसके सदस्यों में व्याप्त सम्बन्धों की व्यवस्था स्थिर न होकर परिवर्तनशील होती है।
(6) समाज व्यक्तियों में पारस्परिक निर्भरता उत्पन्न करता है तथा इस पारस्परिक निर्भरता से ही समाज का निर्माण होता है।
शिक्षा एवं समाज का सम्बन्ध
शिक्षा और समाज में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह सम्बन्ध इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा समय-समय पर उसी प्रकार बदलती है, जिस प्रकार समाज बदलता है। शिक्षा का इतिहास इस बात की पुष्टि करता है और यह बतलाता है कि विभिन्न कालों तथा विभिन्न प्रकारों के समाजों में विभिन्न प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती थी और की जा रही है। इस सम्बन्ध के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं -
(1) प्राचीन एवं मध्यकालीन समाज - प्राचीन एवं मध्यकालीन समाज में धर्म की प्रधानता थी। अतः शिक्षा का स्वरूप धार्मिक था। धार्मिक तथा चारित्रिक विकास पर बल दिया जाता था और धार्मिक सिद्धान्तों का अनुसरण किया जाता था।
(2) आधुनिक समाज - आधुनिक समाज पर विज्ञान का प्रभाव है। अतः शिक्षा द्वारा व्यक्ति में चिन्तन, तर्क एवं निर्णय शक्ति के विकास पर बल दिया जाता है। व्यक्तियों को यह निर्णय करने का अधिकार है कि वे किस प्रकार की शिक्षा ग्रहण करें।। वर्तमान काल में हमारे सम्मुख समाज के कई रूप हैं- जैसे भौतिकवादी समाज आदर्शवादी समाज प्रयोगवादी समाज, साम्यवादी समाज इत्यादि। शिक्षा का स्वरूप इन्हीं समाज के सिद्धान्तों के अनुरूप निर्मित किया जाता है।
(3) फासिस्ट समाज - ऐसे समाज पर एक ही व्यक्ति का पूर्ण अधिकार होता है। वह शक्ति के बल पर शासन करता है। विरोध करने वालों को कठोर दण्ड दिया जाता है। ऐसे समाज में शिक्षा बल और आदेश द्वारा प्रदान की जाती है। छोटी-छोटी भूलों पर शारीरिक दण्ड दिया जाता है। शासक अपनी मर्जी से शिक्षा का स्वरूप निश्चित करता है। शिक्षा बालकों में शक्ति और राज्य के प्रति भक्ति की भावना और उनके हित के लिए स्वयं को बलिदान करने की भावना भरती है। गत वर्षों में जर्मन, जापान और इटली में इसी प्रकार का समाज था और इसके सिद्धान्तों के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की गयी थी।
(4) लोकतन्त्रीय समाज - लोकतन्त्रीय समाज में व्यक्ति के व्यक्तित्व का सम्मान किया जाता है। उसके ऊपर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है। उसे अपने विकास चिन्तन, लेखन, भाषण तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता होती है। फलत: इस प्रकार के समाज के सिद्धान्तों के अनुसार शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। दूसरे शब्दों में शिक्षा जनतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होती है और बालकों को अपनी रुचि के अनुसार शिक्षा ग्रहण करने की स्वतन्त्रता होती है।
शिक्षा और समाज के सम्बन्ध पर बल देते हुए ओटावे ने कहा है कि शिक्षा सम्पूर्ण समाज की क्रिया है। इसी प्रकार जेफ्रज महोदय का कथन है कि शिक्षा वास्तव में समुदाय के सम्पूर्ण जीवन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। स्पष्ट है कि हमारी शिक्षा प्रणाली समकालीन सामाजिक आदर्शों के अनुरूप होती है।
समाज का शिक्षा पर प्रभाव
(1) समाज की प्रकृति एवं आदर्श का प्रभाव - शिक्षा का स्वरूप सामाजिक ढाँचा, समाज की प्रकृति, आदर्श एवं आवश्यकताओं के अनुरूप निर्मित होता है। यदि समाज में तानाशाही व्यवस्था है तो शिक्षा में अनुशासन, आज्ञा पालन तथा आदर्शो पर बल दिया जाता है। चूँकि भारत, अमेरिका और इंग्लैण्ड में लोकतन्त्रीय समाज है। इसलिए यहाँ पर समाज के सदस्यों को शिक्षा के समान अवसर मिलते हैं, बालकों की शिक्षा निःशुल्क और अनिवार्य होती है। समाज के आदर्शों को शिक्षा में प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया जाता है। शिक्षा के विभिन्न अंग समाज के आदर्शों एवं आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित किये जाते हैं।
(2) सामाजिक परिवर्तनों का प्रभाव - समाज के आदर्श एवं प्रविधियों के विकास के कारण सामाजिक परिवर्तन होते हैं और इन्हीं परिवर्तनों के अनुसार शिक्षा प्रणाली में परिवर्तन होते रहते हैं। दूसरे शब्दों में जैसे-जैसे समाज में परिवर्तन होता है वैसे-वैसे शिक्षा का स्वरूप भी बदलता है। भारतीय समाज में पहले उच्च वर्ग के व्यक्ति ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे, परन्तु अब समाज के मूल्यों एवं मान्यताओं में परिवर्तन होने पर अथवा समाज की दशा में परिवर्तन होने पर सभी व्यक्तियों को शिक्षा प्राप्त करने का समान अवसर प्राप्त है। इस प्रकार समाज के बदलने पर शिक्षा भी बदल जाती है। इस दृष्टि से ओटावे महोदय का कथन है कि "शिक्षा सामाजिक परिवर्तनों का अनुगमन करती है।"
(3) राजनैतिक परिस्थितियों का प्रभाव - समाज की राजनैतिक दशायें भी शिक्षा को प्रभावित करती हैं। प्रत्येक समाज अपनी राजनैतिक विचारधारा के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था करता है। देश में एक जैसी राजनैतिक विचारधारा न रही है। उसी से प्रभावित होकर शिक्षा ने आवश्यक मोड़ लिए हैं। आज भारत, रूस, चीन, अमेरिका आदि देशों में शिक्षा की प्रणाली राजनैतिक विचारधाराओं के अनुरूप संगठित की गयी है।
(4) आर्थिक परिस्थितियों का प्रभाव - समाज की आर्थिक दशाओं का भी शिक्षा पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि समाज की आर्थिक दशा अच्छी होती है तो शिक्षा के लिए अधिकाधिक विद्यालय खोले जाते हैं। उनके भवन अच्छे होते हैं। उनमें सभी प्रकार की शिक्षा सामग्री उपलब्ध की जाती है। पाठ्यक्रम में उन सभी विषयों को सम्मिलित किया जाता है जो देश की आर्थिक प्रगति के सहायक हों। इसके विपरीत यदि देश की आर्थिक दशा अच्छी नहीं होती तो शिक्षा प्रणाली एवं पाठ्यक्रम में आवश्यक परिवर्तन करके देश की आर्थिक स्थिति को अच्छा करने का प्रयास किया जाता है। हमारे देश की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। अतः यहाँ देश की आर्थिक उन्नति की दृष्टि से व्यावसायिक, वैज्ञानिक, प्राविधिक तथा कृषि शिक्षा की व्यवस्था की जा रही है।
(5) धार्मिक परिस्थितियों का प्रभाव - समाज की धार्मिक मान्यतायें एवं विचार भी शिक्षा को प्रभावित करते हैं। जैसे विचार होते हैं, उन्हीं के अनुरूप शिक्षा का विधान बनता है। धार्मिक कट्टरता वाले समाज केवल अपने धर्म की शिक्षा देते हैं और अन्य धर्मो के प्रति बालकों के हृदय में घृणा उत्पन्न करते हैं। इसके विपरीत विभिन्न धर्मो के प्रति सम-दृष्टि रखने वाले समाज धर्म के सामान्य सिद्धान्तों की शिक्षा देते हैं।
(6) सामाजिक दृष्टिकोण का प्रभाव - शिक्षा पर सामाजिक दृष्टिकोण का भी प्रभाव पड़ता है। यदि समाज के सदस्यों का दृष्टिकोण रूढ़िवादी है, तो शिक्षा में नई प्रवृत्तियों को लागू करना कठिन होता है और परम्परागत शिक्षा पर बल दिया जाता है। इसके विपरीत यदि समाज का दृष्टिकोण प्रगतिशील होता है तो शिक्षा में नये-नये विचारों, प्रवृत्तियों, सिद्धान्तों, शिक्षण विधियों को स्थान दिया जाता है। शिक्षा द्वारा बालकों के विचारों को प्रगतिशील बनाया जाता है। विद्यालयों में ऐसी क्रियाओं का संगठन किया जाता है जो बालकों को प्रगतिशील बनाने में सहायक हों।
शिक्षा का समाज पर प्रभाव -
(1) सामाजिक धरोहर का संरक्षण - शिक्षा समाज की संस्कृति एवं सभ्यता का संरक्षण करती है। प्रत्येक समाज के अपने रीति-रिवाज, परम्परायें, कला धर्म, विश्वास आदि होते हैं, जिनको समाज ने अर्जित किया है। समाज इन पर गर्व करता है और इनको कष्ट नहीं होने देना चाहता है। शिक्षा इस कार्य में सहायक होती है। शिक्षा इस सामाजिक विरासत को अगली पीढ़ी तक पहुँचकर सामाजिक विरासत का संरक्षण करती है और समाज के अस्तित्व को बनाये रखती है। यदि शिक्षा यह कार्य न करे तो समाज का स्थायी रहना कठिन हो जायेगा।
(2) सामाजिक भावना की जागृति - व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। यह समाज में रहकर ही अपनी उन्नति करता है और दूसरों की भलाई करता है। समाज से अलग रहकर उसका कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए उनमें सामाजिक भावना उत्पन्न की जाती हैं। शिक्षा व्यक्ति को सामाजिक वातावरण में रखकर तथा उसे सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करके उसमें सामाजिक भावना की जागृति एवं सामाजिक गुणों का विकास करती है। सामाजिक गुणों से सुसज्जित होकर ही व्यक्ति समाज हित के कार्य करता है और समाज की भलाई करता है।
(3) समाज का आर्थिक विकास - शिक्षा व्यावसायिक उद्देश्य को लेकर आगे बढ़ती है और बालकों को विभिन्न कार्यों, व्यवसायों एवं उद्योगों में क्षमता प्रदान करती है, जिससे बालक अपनी योग्यता के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादन करते हैं और समाज के आर्थिक विकास में अपना योग देते हैं। शिक्षा के बिना समाज का आर्थिक विकास कठिन है। स्पष्ट है कि शिक्षा समाज की आधारशिला है।
(4) समाज का राजनीतिक विकास - शिक्षा द्वारा व्यक्ति विभिन्न राजनीतिक प्रणालियों एवं विचारधाराओं की विशेषताओं का ज्ञान प्राप्त करता है। अपने देश की राजनीतिक प्रणाली की उससे तुलना करता है तथा उसकी सार्थकता मालूम करता है। इस प्रकार शिक्षा द्वारा राजनीतिक जागरूकता का प्रसार होता है और व्यक्ति अपने अधिकारों एवं कर्त्तव्यों की जानकारी प्राप्त करता है। शिक्षित व्यक्ति ही देश की राजनीतिक प्रणाली की रक्षा करते हैं। इस प्रकार शिक्षा समाज में राजनीतिक विचारधाराओं के विकास में योग देती है।
(5) सामाजिक सुधार - शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति सामाजिक कुरीतियों का ज्ञान प्राप्त करता है और उनकी आलोचना करता है। शिक्षा ही उसे ऐसी क्षमता प्रदान करती है. जिससे वह सामाजिक नियमों एवं रूढ़ियों में आवश्यक सुधार करके समाज को उचित दिशा में आगे बढ़ाता है और उसका सुधार करता है। इस प्रकार शिक्षा समाज का सुधार करती है और उसे वांछित दिशा में आगे बढ़ाती है। यदि शिक्षा यह कार्य न करे तो समाज गतिहीन हो जायेगा। अतः शैक्षिक संस्थायें समाज का नेतृत्व करके उसे प्रगति की ओर ले जाती हैं।
(6) सामाजिक परिवर्तन - समाज में आज विज्ञान एवं प्रविधियों के क्षेत्र में नित नये-नये परिवर्तन हो रहे हैं। शिक्षा इन अनुसंधानों से सम्बन्धित ज्ञान का प्रसार करती है। इनके प्रयोग से होने वाले लाभों को स्पष्ट करती है और व्यक्तियों को इनके प्रयोग की प्रेरणा देती है। इनके उपयोग को लोगों के विचारों, मूल्यों, लक्ष्यों एवं जीवन स्तर में परिवर्तन आता है। इस प्रकार भौतिक एवं अभौतिक परिवर्तन होते हैं। शिक्षा इन परिवर्तनों का प्रचार कर सामाजिक परिवर्तन लाती है। साथ-ही-साथ शिक्षा परिवर्तनों के विरोधी कारकों को दूर करती है।
(7) सामाजिक नियन्त्रण - शिक्षा समाज में फैली हुई कुरीतियों, अन्धविश्वासों, कुप्रथाओं के दोषों एवं अवगुणों को स्पष्ट करती है। उनके विरुद्ध जनमत तैयार करती है और उनको समाप्त करती है। इस प्रकार शिक्षा सामाजिक नियन्त्रण के लिए एक अंकुश के रूप में कार्य करती है। यदि शिक्षा द्वारा सामाजिक नियन्त्रण न किया जाये तो शिक्षा में सुधार एवं व्यवस्था लाना कठिन हो जाता है।
उपर्युक्त विवरण से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा और समाज में अटूट सम्बन्ध है और एक के बिना दूसरे का काम नहीं चल सकता है। ये एक दूसरे के पूरक हैं। जैसा समाज होता है वैसी ही शिक्षा होती है। जैसी शिक्षा होती है वैसा ही समाज होता है।"समाज शिक्षा को जन्म देता है और शिक्षा एक नवीन समाज का निर्माण करती है।
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- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रदाय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना संक्षेप में कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों के गुणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रति समाज के दायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा क्या है? तथा शिक्षा की प्रकृति का सविस्तार वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति के बारे में बताइये।
- प्रश्न- विभिन्न समाजों में शिक्षा की स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- स्कूल तथा समाज में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए
- प्रश्न- समाज का अर्थ व परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- समाज में शिक्षा की आवश्यक दिशा बताइये।
- प्रश्न- "अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।' समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा को मनुष्य एवं समाज का निर्माण करना चाहिए। कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख उद्देश्य तथा शिक्षा पर इसके प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र के प्रमुख उद्देश्य व शिक्षा पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? एक विषय के रूप में इसके विकास की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज की संचालक शक्तियाँ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षक के लिये शैक्षिक समाजशास्त्र की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र का क्या महत्त्व है? इसकी सीमाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की पुनर्रचना के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिकतावादी प्रवृत्तियों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा शिक्षा एवं समाज एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- समाज तथा शिक्षा के परस्पर प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के ऊपर शिक्षा के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाज की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज एवं सामाजिक प्रणाली की संकल्पना की व्याख्या कीजिए। 'विद्यालय एक सामाजिक तंत्र है।' सोदाहरण वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के प्रति शिक्षा के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'विद्यालय समाज का निर्माता है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं समाज के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- समाज में खुशी के लिए शिक्षा के उद्देश्य और आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- सफल जीवन और खुशियों के निर्माण में शिक्षा कैसे सर्वोच्च है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक स्तरीकरण के मूल आधार क्या हैं? आपकी राय में कौन-सा आधार अधिक प्रभावी है और क्यों?
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण के आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का कार्यात्मक परिप्रेक्ष्य बताइये।
- प्रश्न- समानता की परिभाषा दीजिए तथा इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति / जनजाति हेतु शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए संविधान के प्रावधानों को बताइए तथा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाई, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय एवं धार्मिक विविधताओं के सम्बन्ध में संवैधानिक दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? भारत में इसकी आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शिक्षा के अवसरों की विषमताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समानता के अवसरों को बढ़ाने हेतु उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण संस्थाओं में समानता से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से क्या आशय है? असुविधाग्रस्त लोगों की जीविका समुन्नति हेतु आप किन उपायों की संस्तुति करेंगे? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक न्याय का क्या अर्थ है? सामाजिक न्याय की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विविधता में एकता स्थापित करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक एकता की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- 'भारतीय समाज में विविधता में एकता है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?
- प्रश्न- संस्कृति का महत्त्व बताइए। शिक्षा तथा संस्कृति में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न परिवेशों में शिक्षा तथा संस्कृति का सम्बन्ध एवं सम्बर्द्धन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के द्वारा संस्कृति का विकास तथा संरक्षण कैसे किया जाता है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बन के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक परिवर्तन को समझाइए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न जनसमूहों में शिक्षा के द्वारा अन्तर्सास्कृतिक अवबोध के विकास के सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर-सांस्कृतिक भावना से आप क्या समझते हैं? शिक्षा द्वारा अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के माध्यम से तथा शिक्षक के माध्यम से अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार हो सकता है?
- प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनौपचारिक शिक्षा में संस्कृति का क्या महत्त्व है? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और संस्कृति के सम्बन्ध की समीक्षा कीजिये। इन दोनों में से कौन दूसरे पर अधिक आश्रित है।
- प्रश्न- शिक्षा और सांस्कृतिक विलम्बना के सम्बन्ध पर अन्तर लिखिए, विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक बहुतत्ववाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन में सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृति की आवश्यकता तथा महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- संघर्ष से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक संघर्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत के हस्तान्तरण से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- 'सभी सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन होते हैं किन्तु सभी सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान समय में भारतीय समाज में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में दो विचार हैं एक तो यह कि शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन होते हैं और दूसरा यह कि सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को प्रभावित करते हैं आपको इनमें से कौन-सा विचार अधिक सत्य लगता है, क्यों?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज व सामाजिक परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक अभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों में निर्णायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में शिक्षा तथा शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षक की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "सामाजिक प्रगति का एकमात्र साधन शिक्षा है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का क्या अर्थ है? संस्कृतिकरण की अवधारणा बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण से उत्पन्न होने वाली समस्यायें बताइये तथा इसके निवारण हेतु उपाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के निवारण हेतु उपाय बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज के सन्दर्भ में पाश्चात्यीकरण की शैक्षिक उपादेयता बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के कारण तथा परिणाम बताइये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण का अर्थ बताइये एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीकरण की विशेषतायें बताइये |
- प्रश्न- नगरीकरण के अच्छे एवं बुरे प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकरण की परिभाषाएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का भारतीयकरण की प्रक्रिया के साथ समायोजन कैसे स्थापित किया जा सकता है? आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण और पाश्चात्यीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा पर आधुनिकीकरण के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शहरीकरण और शिक्षा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारत में नगरीकरण का प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण एवं शिक्षा में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना के विकास में आने वाली बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना की वृद्धि करने के लिए राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा क्या सुझाव दिये गए हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के प्रमुख कार्य बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता व अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं? भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय एकता व शिक्षा के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की शिक्षा के प्रमुख लाभ क्या-क्या हैं?.
- प्रश्न- एक अध्यापक के रूप में आप अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास कैसे करेंगे? इस सन्दर्भ में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में टेलीविजन की भूमिका।
- प्रश्न- भारत में 'भावात्मक एकता' की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीयता तथा शिक्षा के सम्बन्ध का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय एकीकरण में धर्म-वैविध्य एक कठिनाई के रूप में।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को विकसित करने के सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है? समझाइये।
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना क्या है? आज के अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शिक्षा शान्ति की स्थापना के लिए क्या कार्य कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में शिक्षक तथा स्कूल की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के सम्बन्ध में सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- गतिशीलता का शिक्षा पर प्रभाव बताइये।