बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधारसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - शिक्षा के समाजशास्त्रीय आधार
अध्याय - 12
राष्ट्रीयता एवं राष्ट्रीय एकीकरण
(Nationalism and National Integration)
प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना के विकास में आने वाली बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
अथवा
राष्ट्रीय एकता के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर -
राष्ट्रीयता की भावना के विकास में निम्न बाधायें प्रमुख हैं -
(1) जातिवाद - हमारे देश की एक प्रमुख समस्या उसमें बढ़ता जातिवाद है। ये हमारी प्राचीन भावना है कि हम जाति तथा धर्म में विश्वास रखते हैं। जब ये भावना अति का रूप धारण कर लेती है तो यह राष्ट्र व समाज के लिए एक समस्या बन जाती है। प्रत्येक जाति अपने को दूसरे से श्रेष्ठ समझने की भावना रखती है तथा ये भावना कभी-कभी इतना विकराल रूप धारण कर लेती है कि व्यक्ति इस भावना के वशीभूत होकर राष्ट्रहित को भी तिलाजंलि दे देता है। जातिवाद की भावना का विकास करने में हमारे राजनीतिज्ञों की बहुत बड़ी भूमिका है। चुनाव के समय अपनी जाति का वोट लेने के लिए ये लोग जातिगत भावनाओं को भड़काते हैं तथा सत्ता में आने पर उसी जाति को अनेक लाभ पहुँचाने का प्रयास करते हैं जिससे अन्य जातियों में असन्तोष तथा विरोध की भावना का विकास होता है। जातिवाद के कारण अयोग्य व्यक्ति भी रोजगार पाने में सफल हो जाता है तथा योग्य व्यक्ति केवल इसी कारण से अयोग्य बन जाता है कि वह उस जाति का नहीं है। इस प्रकार किसी भी जाति को राजनीतिक लाभ लेने के लिए प्रयोग करने की राजनीतिक भावना इस समस्या के लिए उत्तरदायी है तथा जातिवाद राष्ट्रीयता के विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आता है।
(2) साम्प्रदायिकता - हमारे देश में अनेक सम्प्रदाय हैं तथा इन सम्प्रदायों से विगत कुछ वर्षों में इतनी आपसी बैर भाव व परस्पर वैमनस्यता आ चुकी है कि एक-दूसरे के खून के प्यासे प्रतीत होते हैं। इस समस्या को बढ़ावा देने के लिए भी हमारी राजनीति ही काफी सीमा तक उत्तरदायी है। सम्प्रदाय के आधार पर व्यक्तियों का ध्रुवीकरण करके वोटों की राजनीति की जाती है तथा समाज में छोटी-छोटी बातों पर साम्प्रदायिक दंगे होना, एक-दूसरे के धार्मिक स्थलों को क्षति पहुँचाना व अपवित्र करने का प्रयास करना तथा धर्म के आधार पर अलग राज्य व देश की माँग करना इन सभी कार्यों से राष्ट्रीयता की भावना को क्षति पहुँचती है तथा एक सम्प्रदाय के व्यक्ति राष्ट्रहित को ध्यान में न रखकर केवल अपने सम्प्रदाय की उन्नति का प्रयास करते हैं।
(3) प्रान्तीयता - हमारी राष्ट्रीयता में प्रान्तीयता की भावना भी एक प्रमुख समस्या है। एक प्रान्त के व्यक्ति यह नहीं चाहते हैं कि दूसरे प्रान्तों से व्यक्ति वहाँ आकर रोजगार प्राप्त करे तथा वहाँ की सुविधाओं का लाभ उठाये। हाल ही में महाराष्ट्र में व उत्तर प्रदेश व बिहार के छात्रों के प्रति हिंसा का जो कार्य हुआ उसके पीछे भी प्रान्तीयता की उग्र भावना ही थी जिसे राजनेता अपने क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों के लिए हवा देते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्त करने के बाद "राज्य पुनर्गठन आयोग" ने प्रशासनिक सुविधा के दृष्टिकोण से देश को चौदह राज्यों में बाँटा था। बँटवारे का परिणाम यदा-कंदा हमारे सामने प्रान्तीयता के प्रति उग्र भावना के रूप में हमारे सामने आ जाता है। आज कहीं भाषा के नाम पर अलग प्रान्त बनाने की माँग की जाती है, कहीं जाति के आधार पर अलग राज्य बनाने की माँग की जाती है। इसी संकुचित मानसिकता के कारण राज्यों में इसके निवासियों में आपसी भेद-भाव की भावना बढ़ रही है जो राष्ट्रीयता की दृष्टि से उचित नहीं है।
(4) राजनीतिक दलों की नीतियाँ - राष्ट्रीय एकता के लिए जो भी प्रयास किये जाते हैं उनमें बाधा हमारे राजनीतिक दलों की नीतियाँ ही उत्पन्न करती हैं। ये विडम्बना ही है कि जिन दलों से यह आशा की जाती है कि वह राष्ट्र को एकता के सूत्र में बाँधने का प्रयास करेंगे वही दल अपनी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए इस प्रकार की समस्याओं को जन्म देते हैं जो राष्ट्रीय एकता व राष्ट्रीयता की भावना के लिए घातक हैं। कुछ राजनीतिक दल तो केवल, जाति, धर्म, सम्प्रदाय तथा क्षेत्र के आधार पर ही जनता से वोट माँगते हैं तथा राष्ट्रीयता की भावना से इन्हें कोई सरोकार नहीं है। जब तक राजनीतिक दल अपनी नीतियों में बड़े परिवर्तन नहीं करेंगे तब तक राष्ट्रीयता की भावना का विकास होना असम्भव है।
(5) भाषा की विभिन्नता - हमारे देश में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। इतनी मात्रा में भाषाओं का होना भी राष्ट्रीयता की भावना के लिए उपयुक्त नहीं है। हालाँकि हमारे संविधान में हिन्दी को देश की राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया है परन्तु अनेक प्रान्त अपनी भाषा को ही प्रमुखता देते हैं। हिन्दी भाषी व्यक्तियों के साथ दक्षिण भारत के प्रान्तों में जो हिंसात्मक व्यवहार किया जाता है वह राष्ट्रीय शर्म का विषय है। देश में एक राष्ट्र-भाषा को सख्ती से लागू किये जाने का प्रावधान होना चाहिए जिससे राष्ट्रीयता की भावना का विकास हो सके। इस सम्बन्ध में उत्तर प्रदेश का उदाहरण प्रशंसनीय है जहाँ सरकारी काम-काज की भाषा हिन्दी को स्वीकारा गया है।
(6) सामाजिक विभिन्नता - हमारे देश में हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी आदि अनेक समाज हैं तथा प्रत्येक समाज की अपनी संस्कृति, भाषा, मान्यतायें व परम्पराएँ हैं इन सभी समाज के वर्गों में आपस में इतनी भिन्नता है कि तमाम प्रयासों के बाद भी इनमें आपस में कटुता व वैमनस्यता बढ़ती जाती है प्रत्येक समाज अपने को दूसरे के श्रेष्ठ समझता है तथा दूसरे की संस्कृति व परम्पराओं को निचली दृष्टि से देखता है। इस प्रकार की भावना राष्ट्र की एकता की संस्कृति के लिए उचित नहीं है तथा राष्ट्रीयता को क्षति पहुँचाने वाली है।
(7) आर्थिक विभिन्नता - आर्थिक विभिन्नता आज राष्ट्रीयता की भावना को क्षति पहुँचाने में तथा उसे मार्ग में सबसे बड़ी बाधा के रूप में हमारे सामने है। समाज में आर्थिक रूप से इतना भेद व वर्ग अन्तर है कि देश का 80% धन 20% व्यक्तियों के हाथों में है। आज चुनिदाँ लोगों के पास अकूत धन सम्पत्ति है तथा अधिकांश लोग दो वक्त की रोटी को भी तरस जाते हैं। धनी और धनवान होता जा रहा है तथा निर्धन व्यक्ति के लिए अपनी आजीविका की चिन्ता उसकी राष्ट्रीयता की भावना के ऊपर हावी हो चुकी है तथा धनी व्यक्ति और गरीब होता जा रहा है। निर्धन व्यक्ति धन कमाने की लालसा में इतना अन्धा हो चुका है कि वह धनहित को राष्ट्रहित से ऊपर रखने में संकोच नहीं करता है बल्कि यह कहना उचित है कि उसके लिए धन आज राष्ट्र से बढ़कर हो गया है। इस सामाजिक स्थिति में राष्ट्रीयता के विषय में सोचने के लिए किसी के पास समय नहीं है।
(8) कुशल नेतृत्त्व का अभाव - किसी भी राष्ट्र के लिए उचित नेतृत्व का होना परम आवश्यक है। वह नेतृत्व जो व्यक्ति व समाज में राष्ट्र के प्रति प्रेम व त्याग की भावना को जाग्रत कर सके। आज राजनेता ही जनता में जातीयता, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद व भ्रष्टाचार को बढ़ाने में सबसे आगे है इन परिस्थितियों में जनता को कुशल नेतृत्व किस प्रकार मिल सकता है। अतः बिना करिश्माई कुशल नेतृत्व के राष्ट्र में राष्ट्रीयता की भावना का प्रसार नहीं हो सकता है।
(9) अनुचित शिक्षा - राष्ट्रीयता की भावना के प्रसार में हमारी शिक्षा की कमियाँ भी आड़े आती हैं। हमारे राष्ट्र में शिक्षा को राज्य का विषय माना जाता है तथा प्रत्येक राज्य इसी कारण से अपनी नीतियों, आवश्यकताओं तथा अपनी क्षमता के अनुसार शिक्षा प्रदान करता है इसी कारण से शिक्षा में कुछ कमियाँ आ गई हैं। इन कमियों में प्रमुख है शिक्षा का केवल राज्य तक सीमित हो जाना तथा राष्ट्र की अवहेलना तथा दूसरी प्रमुख कमी शिक्षकों के वेतन में असंगतता तथा शिक्षकों की कमी। इस लचर व्यवस्था से जब स्वयं शिक्षक सन्तुष्ट नहीं होगा तो वह छात्रों में राष्ट्रभक्ति की भावना को किस प्रकार जाग्रत कर पायेगा।
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- प्रश्न- शिक्षा से आप क्या समझते हैं? शिक्षा के विभिन्न सम्प्रत्ययों का उल्लेख करते हुए उसके वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के दार्शनिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्रीय सम्प्रदाय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के राजनीतिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के आर्थिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के मनोवैज्ञानिक सम्प्रत्यय की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के वास्तविक सम्प्रत्यय को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- क्या मापन एवं मूल्यांकन शिक्षा का अंग है?
- प्रश्न- शिक्षा का संकीर्ण तथा विस्तृत अर्थ बताइए तथा स्पष्ट कीजिए कि शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- शिक्षा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आपके अनुसार शिक्षा की सर्वाधिक स्वीकार्य परिभाषा कौन-सी है और क्यों?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की विवेचना संक्षेप में कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्यों की क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के आदर्श उद्देश्यों के गुणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के प्रति समाज के दायित्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा क्या है? तथा शिक्षा की प्रकृति का सविस्तार वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रकृति के बारे में बताइये।
- प्रश्न- विभिन्न समाजों में शिक्षा की स्थिति की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- स्कूल तथा समाज में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विषय-विस्तार को संक्षेप में लिखिए
- प्रश्न- समाज का अर्थ व परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- समाज में शिक्षा की आवश्यक दिशा बताइये।
- प्रश्न- "अच्छे नैतिक चरित्र का विकास ही शिक्षा है।' समझाइए।
- प्रश्न- शिक्षा को मनुष्य एवं समाज का निर्माण करना चाहिए। कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख उद्देश्य तथा शिक्षा पर इसके प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र के प्रमुख उद्देश्य व शिक्षा पर इसके प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के सामाजिक आधार को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के समाजशास्त्र से आप क्या समझते हैं? एक विषय के रूप में इसके विकास की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज की संचालक शक्तियाँ क्या हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षक के लिये शैक्षिक समाजशास्त्र की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- शैक्षिक समाजशास्त्र का क्या महत्त्व है? इसकी सीमाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की पुनर्रचना के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- शिक्षा की समाजशास्त्रीय प्रवृत्ति का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिकतावादी प्रवृत्तियों की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्श भारतीय समाज के निर्माण में शिक्षक की भूमिका।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के मध्य सम्बन्ध स्थापित कीजिए तथा शिक्षा एवं समाज एक-दूसरे को किस प्रकार प्रभावित करते हैं?
- प्रश्न- समाज तथा शिक्षा के परस्पर प्रभाव का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के ऊपर शिक्षा के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा का समाज की आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ता है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाज एवं सामाजिक प्रणाली की संकल्पना की व्याख्या कीजिए। 'विद्यालय एक सामाजिक तंत्र है।' सोदाहरण वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा तथा समाज के एक-दूसरे के प्रति कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज के प्रति शिक्षा के प्रमुख कर्त्तव्य क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- समाज शिक्षा के प्रमुख उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'विद्यालय समाज का निर्माता है।' स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं समाज के सम्बन्ध को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- समाज में खुशी के लिए शिक्षा के उद्देश्य और आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- सफल जीवन और खुशियों के निर्माण में शिक्षा कैसे सर्वोच्च है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के शैक्षिक निहितार्थ का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक स्तरीकरण के मूल आधार क्या हैं? आपकी राय में कौन-सा आधार अधिक प्रभावी है और क्यों?
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक स्तरीकरण के आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का कार्यात्मक परिप्रेक्ष्य बताइये।
- प्रश्न- समानता की परिभाषा दीजिए तथा इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अनुसूचित जाति / जनजाति हेतु शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए संविधान के प्रावधानों को बताइए तथा शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए किए जाने वाले प्रयासों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भाषाई, सांस्कृतिक, क्षेत्रीय एवं धार्मिक विविधताओं के सम्बन्ध में संवैधानिक दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में अधिगम संदर्भ में व्याप्त विविधताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भाषायी विविधता के संदर्भ में अध्यापक से क्या अपेक्षाएँ होती हैं?
- प्रश्न- 'जातीय व सामाजिक विविधता तथा अध्यापक' पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से आप क्या समझते हैं? भारत में इसकी आवश्यकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में शिक्षा के अवसरों की विषमताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक समानता के अवसरों को बढ़ाने हेतु उपायों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षण संस्थाओं में समानता से आप क्या समझते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों की समानता से क्या आशय है? असुविधाग्रस्त लोगों की जीविका समुन्नति हेतु आप किन उपायों की संस्तुति करेंगे? चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक न्याय का क्या अर्थ है? सामाजिक न्याय की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विविधता में एकता स्थापित करने के उपाय बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक एकता की अवधारणा स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- 'भारतीय समाज में विविधता में एकता है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं और क्यों?
- प्रश्न- संस्कृति का महत्त्व बताइए। शिक्षा तथा संस्कृति में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विभिन्न परिवेशों में शिक्षा तथा संस्कृति का सम्बन्ध एवं सम्बर्द्धन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के द्वारा संस्कृति का विकास तथा संरक्षण कैसे किया जाता है?
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बन के परिप्रेक्ष्य में सांस्कृतिक परिवर्तन को समझाइए।
- प्रश्न- भारत में विभिन्न जनसमूहों में शिक्षा के द्वारा अन्तर्सास्कृतिक अवबोध के विकास के सम्बन्ध में सुझाव दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर-सांस्कृतिक भावना से आप क्या समझते हैं? शिक्षा द्वारा अन्तर-सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार किया जा सकता है?
- प्रश्न- शिक्षा के माध्यम से तथा शिक्षक के माध्यम से अन्तर सांस्कृतिक भावना का विकास किस प्रकार हो सकता है?
- प्रश्न- औपचारिक तथा अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय संस्कृति की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अनौपचारिक शिक्षा में संस्कृति का क्या महत्त्व है? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा और संस्कृति के सम्बन्ध की समीक्षा कीजिये। इन दोनों में से कौन दूसरे पर अधिक आश्रित है।
- प्रश्न- शिक्षा और सांस्कृतिक विलम्बना के सम्बन्ध पर अन्तर लिखिए, विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक बहुतत्ववाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक व सांस्कृतिक परिवर्तन में सम्बन्ध पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- संस्कृति की आवश्यकता तथा महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृति से आप क्या समझते हैं? इसकी प्रकृति का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- संघर्ष से क्या तात्पर्य है? सांस्कृतिक संघर्ष को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विरासत के हस्तान्तरण से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- 'सभी सांस्कृतिक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन होते हैं किन्तु सभी सामाजिक परिवर्तन सांस्कृतिक परिवर्तन नहीं होते।' इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान समय में भारतीय समाज में किस प्रकार के परिवर्तन हो रहे हैं?
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज के परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में दो विचार हैं एक तो यह कि शिक्षा द्वारा सामाजिक परिवर्तन होते हैं और दूसरा यह कि सामाजिक परिवर्तन शिक्षा को प्रभावित करते हैं आपको इनमें से कौन-सा विचार अधिक सत्य लगता है, क्यों?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के कर्त्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज व सामाजिक परिवर्तन पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक अभाव पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों में निर्णायक कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से स्कूल के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सन्दर्भ में शिक्षा तथा शिक्षक की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षक की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए।
- प्रश्न- "सामाजिक प्रगति का एकमात्र साधन शिक्षा है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण का क्या अर्थ है? संस्कृतिकरण की अवधारणा बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण से उत्पन्न होने वाली समस्यायें बताइये तथा इसके निवारण हेतु उपाय कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के निवारण हेतु उपाय बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज के सन्दर्भ में पाश्चात्यीकरण की शैक्षिक उपादेयता बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डॉ. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के कारण तथा परिणाम बताइये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के परिणाम बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण का अर्थ बताइये एवं इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नगरीकरण की विशेषतायें बताइये |
- प्रश्न- नगरीकरण के अच्छे एवं बुरे प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकरण की परिभाषाएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विभिन्न विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का भारतीयकरण की प्रक्रिया के साथ समायोजन कैसे स्थापित किया जा सकता है? आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का भारतीय प्रतिमान विकसित करने में शिक्षा की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण और पाश्चात्यीकरण में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा पर आधुनिकीकरण के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शहरीकरण और शिक्षा पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भारत में नगरीकरण का प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- नगरीकरण एवं शिक्षा में सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना के विकास में आने वाली बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की भावना की वृद्धि करने के लिए राष्ट्रीय एकता समिति द्वारा क्या सुझाव दिये गए हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के लिए शिक्षा का कार्यक्रम पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय शिक्षा के प्रमुख दोषों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय जीवन में शिक्षा के प्रमुख कार्य बताइए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता व अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता के मार्ग में प्रमुख बाधाएँ कौन-सी हैं? भारतवर्ष के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रीय एकता व शिक्षा के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता की शिक्षा के प्रमुख लाभ क्या-क्या हैं?.
- प्रश्न- एक अध्यापक के रूप में आप अपने विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास कैसे करेंगे? इस सन्दर्भ में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में टेलीविजन की भूमिका।
- प्रश्न- भारत में 'भावात्मक एकता' की आवश्यकता बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीयता से आप क्या समझते हैं? राष्ट्रीयता तथा शिक्षा के सम्बन्ध का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भारत में राष्ट्रीय एकीकरण में धर्म-वैविध्य एक कठिनाई के रूप में।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना विकसित करने के पक्ष में तर्क दीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना को विकसित करने के सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना के प्रसार में यूनेस्को की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- यूनेस्को के उद्देश्य व कार्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध से आप क्या समझते हैं? आज के युग में अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के विकास हेतु शिक्षा का कार्य और शिक्षा की योजना बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय अवबोध के लिए शिक्षा का सिद्धान्त आवश्यक है? समझाइये।
- प्रश्न- पाठ्यक्रम और शिक्षा विधि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अध्यापक का योगदान व स्कूल का वातावरण के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय भावना क्या है? आज के अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में शिक्षा शान्ति की स्थापना के लिए क्या कार्य कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के विकास में शिक्षक तथा स्कूल की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिए शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से क्या तात्पर्य है? इसकी आवश्यकता क्यों अनुभव की गई?
- प्रश्न- शिक्षा किस प्रकार से अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास कर सकती है?
- प्रश्न- अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के मार्ग में क्या-क्या बाधाएँ हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के सम्बन्ध में सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- शिक्षा में सामाजिक गतिशीलता का क्या स्थान है?
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- गतिशीलता का शिक्षा पर प्रभाव बताइये।