बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धति एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - शैक्षिक अनुसंधान की पद्धति
प्रश्न- शिक्षाशास्त्र में अनुसन्धान की क्या आवश्यकता है? उदाहरणों द्वारा यह बताइये कि शैक्षिक अनुसन्धान और प्रायोगिक अनुसन्धान ने शिक्षाशास्त्र विषय को कैसे प्रभावित किया है?
उत्तर -
आधुनिक समाज में शिक्षा को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। यह व्यक्ति का व्यक्तिगत विकास करने के साथ-साथ समाज का उपयोगी उत्पादक बनाती है। शिक्षा मनुष्य के मूल प्रवृत्तिजन्य पाशविक व्यवहारों का परिमार्जन कर उसकी मानवता प्रदान करती है। इसके साथ ही शिक्षा राष्ट्र की भौतिक उन्नति में सहायक होती है। शिक्षा व्यक्तियों में कार्य कुशलता बढ़ाकर उत्पादन क्षमता को विकसित करती है। समाज के अधिक से अधिक उपयोगी बनाने के लिये आवश्यक है कि इसमें अनुसन्धान कार्य निरन्तर चलता रहना चाहिये। निम्न दृष्टियों से शैक्षिक अनुसन्धान की आवश्यकता अनुभव होती हैं -
(1) शिक्षा कला और विज्ञान दोनों है। जहाँ तक शिक्षा कला है उस स्थिति में इसका सम्बन्ध शिक्षण से है। जिसमें प्रभावशाली ढंग से ज्ञान प्रदान करने का प्रयास किया जाता है। विज्ञान के रूप में शिक्षा व्यक्तियों के स्वभाव, उनकी वृद्धि और विकास अधिगम के नियम, शिक्षा नीतियाँ तथा प्रशासन आदि सम्बन्धित ज्ञान को रखती है। अनुसन्धान के द्वारा अध्यापक की कुशलता में वृद्धि, शैक्षिक ज्ञान का विस्तार और शिक्षण कुशलता में सुधार किया जाता है।
(2) शैक्षिक अनुसन्धान ज्ञान के विकास में सहायक होता है। यह ज्ञान के किसी एक सूक्ष्म अंग का विस्तृत सम्पूर्ण एवं नवीन चित्र प्रस्तुत करता है। इसके द्वारा ज्ञानकोश में वृद्धि एवं विकास होता है।
(3) विद्यालय में अध्ययन के लिये विभिन्न वातावरणीय भूमी से सम्बन्धित छात्र-छात्राएँ विद्यालयों में शिक्षा प्राप्ति हेतु एकत्रित होते हैं। अनुसन्धान द्वारा विभिन्न आयु, वृद्धि, लिंग तथा सामाजिक-आर्थिक समूहों से सम्बन्धित छात्रों पर विविध वातावरणीय पृष्ठभूमी के प्रभाव का शोध करना आवश्यक है। यह अनेक अध्ययनों से सिद्ध हो चुका है कि परिवेश छात्र के सीखने की गति को प्रभावित करता है।
(4) शैक्षिक अनुसन्धान उद्देश्य प्राप्ति हेतु सर्वोत्तम साधन प्रदान करता है। उद्देश्यपूर्ण व्यवस्थित कार्यक्रम द्वारा कुछ निश्चित क्षणों की प्राप्ति करने का एक महत्वपूर्ण साधन शिक्षा है। सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक दिशाएँ परिवर्तनशीन होती है अतएव तद्नुसार शिक्षा सिद्धान्तों एवं अभ्यासों में संशोधन की आवश्यकता होती है। यह संशोधन क्रियाशील अनुसन्धान द्वारा ही सम्भव है।
(5) शैक्षिक अनुसन्धान रूढ़िगत विचारों एवं व्यवहारों में सुधार का मार्ग प्रस्तुत करता है। इसका रूप वैज्ञानिक होने के कारण इसमें भ्रान्तियों एवं अपुष्ट धारणाओं को स्थान नहीं है।
(6) शिक्षा सम्बन्धी नीतियों तथा अभ्यासों की देश में लागू करने से पूर्व आवश्यक है कि शोध द्वारा उसके समस्त पक्षों पर विचार कर लिया जाये। हमारे देश में अभी तक नई नीतियों को प्रारम्भ करने से पूर्व अनुभवजन्य जाँच नहीं की जाती है इसका परिणाम हम देख रहे हैं कि शिक्षा सम्बन्धी नवीन नीतियाँ सफलतापूर्वक लागू नहीं हो पाती है।
(7) विद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले विषयों की संख्या में निरन्तर वृद्धि हो रही है तथा प्रत्येक विषय में तीव्रगति से नवीन सामग्री का भण्डार बढ़ रहा है। अतः इस नवीन ज्ञान के शिक्षण के लिये अनुसन्धान द्वारा नवीन शिक्षण विधियों की खोज करना आवश्यक है।
(8) शिक्षा विद्यालय में एक सामूहिक प्रयास से होनी चाहिए इसमें अध्यापक प्रशासक एवं छात्रों को समान रूप से भागीदार बनाने के लिये आवश्यक है कि अनुसन्धान द्वारा उन समस्याओं का समाधान किया जाये, तो इनके सामूहिक प्रयास में विघ्न डालती है। प्रशासन को प्रभावकारी बनाने के लिये अनुसन्धान आवश्यक है।
शिक्षा के क्षेत्र में अनुसन्धान का महत्वपूर्ण स्थान है। निम्नलिखित उदाहरणों द्वारा हम यह जान सकते हैं, कि शैक्षिक अनुसन्धान और प्रायोगिक अनुसन्धान ने शिक्षा को प्रभावित किया है।
शैक्षिक अनुसन्धान से सम्बन्धित उदाहरण -
(1) अनुसन्धान ज्ञान के विकास में सहायक है। इसके द्वारा ज्ञान कोश में वृद्धि होती है। गुड तथा स्केट का कहना है कि विज्ञान का कार्य बुद्धि का विकास करना है तथा अनुसन्धान का कार्य विज्ञान का विकास करना है। हम अभी तक विदेशों से आयोजित ज्ञान का उपयोग कर रहे हैं। विदेशी ज्ञान को देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाने के लिये अनुसन्धान अति आवश्यक है।
(2) शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का सर्वतोन्मुखी विकास करना है। व्यक्तित्व के विकास में अनेक प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष शक्तियाँ क्रिया-प्रतिक्रियां करती है। इन क्रिया-प्रतिक्रिया के प्रभाव को समझने के लिये अनुसन्धान की आवश्यकता होती है।
(3) हर देश एवं काल में आदर्श मानव की धारणा बदलती रहती है। आदर्श मानव के निर्माण के लिये देश एवं काल के अनुसार अनुसन्धान द्वारा उक्त प्रकार के दर्शन की रचना आवश्यक है। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये पाठ्यक्रम पुस्तक, पाठ्य सामग्री, क्रियाओं तथा शिक्षण विधि आदि के सम्बन्ध में अनुसन्धान आवश्यक है।
(4) अनुसन्धान रूढ़िगत विचारों एवं व्यवहारों में सुधार लाता है। इसका कारण यह है कि अनुसन्धान वैज्ञानिक होता है, जिसमें भ्रान्तियों के लिये कोई स्थान नहीं होता है।
(5) देश में औद्योगिकरण से लाभ उठाने के लिये लोगों की मनोवृत्तियों का बदलना आवश्यक हैं। यह कार्य अनुसन्धान द्वारा उचित शिक्षा व्यवस्था लाने में सम्भव होगा।
(6) अनुसन्धान शिक्षकों के लिये अधिक महत्वपूर्ण है। अनुसन्धान अध्यापकों को जिज्ञासु बनाता है, उनका दृष्टिकोण व्यवहारिक बनता है। तथा चिन्तन वस्तुनिष्ठ होता है।
(7) शैक्षिक अनुसन्धान अनेक प्रशासनिक समस्याओं को सुलझाकर प्रशासनिक व्यवस्था के रूप में सुधार लाता है।
(8) आज देश में पुनः निर्माणकाल चल रहा है। यह कार्य योग्य कार्यकर्त्ताओं द्वारा ही सम्भव हो सकता है।
(9) समाज में हो रहे परिवर्तनों तथा वैज्ञानिक प्रगति के कारण पाठ्यक्रम नित्य समृद्ध होता जा रहा है।
प्रायोगिक अनुसन्धान से सम्बन्धित उदाहरण -
यह निम्न प्रकार है -
(1) यह शैक्षिक अनुसन्धान में अधिक प्रयोग में लायी जा सकने वाली प्रक्रिया है। इसका उपयोग उन दशाओं में सफलतापूर्वक किया गया है जहाँ पर कुछ सीमा तक महत्वपूर्ण घटकों अथवा दशाओं को नियन्त्रित किया जा सकता है।
(2) चूंकि शिक्षा के क्षेत्र में मुख्य विषय-वस्तु परिवर्तनशील जटिल मानव है, अतः समस्त चरों को सफलतापूर्वक नियन्त्रित कर सकना असम्भव है। इसलिये प्रयोगात्मकता पूर्णत: सुनिश्चित पद्धति नहीं हैं। शिक्षा में प्रयोगात्मक निष्कर्ष अनिश्चित से ही होते है।
(3) आयु, निष्पत्ति, बुद्धि, वचन, योग्यता, सामाजिक स्तर तथा जाति आदि में से एक या अधिक चरो को समान करने का प्रयत्न कक्षा के प्रयोगों में किया जाता है। विद्यमान समूहों का उपयोग करते हुये प्रयोगों का संचालन यह विश्वास करते हुए किया जाता है। कि अनियन्त्रित चर अध्ययन के लिये अनावश्यक अथवा महत्वहीन होते हैं।
(4) शैक्षिक प्रयोगात्मक की संकल्पना का विकास 19वीं शताब्दी की अन्तिम दशाब्दी से हुआ है तथा शिक्षा में अनुसंधान की प्रयोगात्मक विधि में रुचिगत लगभग 50 वर्षों में ही शीघ्रता से विकसित हुई है।
(5) शिक्षा में प्रयोगात्मकता का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है। उनमें से प्रमुख निम्नानुसार है -
(a) परिणामों के मापन द्वारा शैक्षिक उद्देश्यों एवं लक्ष्यों की उपयुक्तता एवं प्रभावोत्पादकता को निर्धारित करना व उसका मूल्यांकान करना।
(b) शैक्षिक नीतियों तथा कार्यक्रमों के निरुपिण क्रियान्वयन तथा संशोधन के आधार के रूप में कार्य करना।
(c) सामान्य शैक्षिक कार्यक्रम अथवा परम्पराओं में किसी परिवर्तन के प्रभाव की निश्चित कड़ना।
(6) कम से कम सिद्धान्त रूप में एक कठिनाई इस तथ्य से उपस्थित होती है। शैक्षिक प्रयोग मानव के साथ सम्पन्न किये जाते हैं तथा उसकी मानसिक क्रियाओं और अभिवृत्तियों को प्रभावित करते हैं।
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- प्रश्न- शैक्षिक शोध को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइये तथा इसकी विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- शिक्षा अनुसंधान की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान की परिभाषा तथा उसका स्वरूप बताइये?
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान की प्रकृति तथा उसके क्षेत्र के विषय में समझाइये।
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र की विस्तृत चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षाशास्त्र में अनुसन्धान की क्या आवश्यकता है? उदाहरणों द्वारा यह बताइये कि शैक्षिक अनुसन्धान और प्रायोगिक अनुसन्धान ने शिक्षाशास्त्र विषय को कैसे प्रभावित किया है?
- प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध की परिभाषा दीजिए। शोध प्रक्रिया में निहित चरणों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा अनुसंधान के कार्य बताते हुए इसके महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के महत्व पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधानों के निष्कर्षों की उपयोगिता क्या है? तथा अनुसंधान के कितने सोपान हैं?
- प्रश्न- अनुसंधान के कितने सोपान होते हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के क्या लाभ होते हैं? बताइये। .
- प्रश्न- शोध सामान्यीकरण की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में परिणामों व निष्कर्षों की उपयोगिता संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अनुसंधान के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- मौलिक अनुसंधान का क्या अर्थ है? तथा इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- व्यवहृत अनुसंधान का अर्थ एवं इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- व्यवहारिक अनुसंधान की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ क्या है? तथा इसकी विशेषताएँ एवं महत्व का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की उत्पत्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषताएँ क्या है? बिन्दुवार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का क्या महत्व है?
- प्रश्न- मौलिक शोध एवं क्रियात्मक शोध में क्या अन्तर है? क्रियात्मक शोध के विभिन्न चरणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक तथा क्रियात्मक शोध में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान की क्या आवश्यकता है तथा क्या उद्देश्य है? के बारे में समझाइये।
- प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान की शिक्षा के क्षेत्र में क्या आवश्यकता है?
- प्रश्न- समस्या के कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्रियात्मक परिकल्पना का मूल्यांकन कीजिए!
- प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं? तथा यह कितने प्रकार का होता है।
- प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान कितने प्रकार का होता है।
- प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मात्रात्मक अनुसंधान की सीमाएँ कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान से आप क्या समझते हैं? इसके उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान के उद्देश्यों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- गुणात्मक अनुसंधान के लक्षण तथा सीमाएँ बताइये।
- प्रश्न- मात्रात्मक एवं गुणात्मक शोध में क्या-क्या अन्तर होते हैं? समझाइये।
- प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा की आवश्यकता एवं प्रक्रिया बताइये।
- प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की समीक्षा की प्रक्रिया बताइये।
- प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समस्या का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- समस्याओं के प्रकार बताइए?
- प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
- प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
- प्रश्न- अच्छी समस्या की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
- प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
- प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
- प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
- प्रश्न- चरों के प्रकार तथा चरों के रूपों का आपस में सम्बन्ध बताते हुए चरों के नियंत्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरों के रूपों का आपसी सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- बाह्य चरों पर किस प्रकार नियंत्रण किया जाता है?
- प्रश्न- चर किसे कहते हैं? चर को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- स्वतन्त्र चर और आश्रित चर का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- कारक अभिकल्प की प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
- प्रश्न- परिकल्पना की परिभाषा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परिकल्पना के प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दिशायुक्त एवं दिशाविहीन परिकल्पना को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य परिकल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
- प्रश्न- वैज्ञानिक अनुसन्धान में उपकल्पना की उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- उपकल्पना निर्माण में आने वाली कठिनाइयाँ बताइए?
- प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए। परिकल्पना के कार्य लिखिए।
- प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
- प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
- प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
- प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
- प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- अच्छे न्यादर्श की क्या विशेषताएँ हैं? न्यादर्श चयन की कौन-सी विधियाँ हैं? शैक्षिक अनुसंधान में कौन-सी विधि सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाती है और क्यों?
- प्रश्न- दैव निर्देशन के बारे में बताइए तथा उसकी समस्याओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- निदर्शन की प्रमुख समस्याएँ बताइए।
- प्रश्न- स्तरित निदर्शन व उद्देश्यपूर्ण निदर्शन और विस्तृत पद्धति से आप क्या समझते हैं? न्यादर्श के अन्य प्रकार बताइये।।
- प्रश्न- उद्देश्यपूर्ण निदर्शन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- विस्तृत निदर्शन पद्धति से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- न्यादर्श के अन्य प्रकार समझाइए।
- प्रश्न- न्यादर्श की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- शोध में न्यादर्श की क्या आवश्यकता है? अच्छे न्यादर्श की प्रमुख दो विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मापन की त्रुटि और न्यादर्श की त्रुटि को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- जनसंख्या व न्यादर्श में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- निदर्शन विधि किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- निदर्शन पद्धति के क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आदर्श निदर्शन की विशेषताएँ तथा गुण बताइए।
- प्रश्न- न्यादर्श प्रणाली के दोष।
- प्रश्न- न्यादर्श 'अ' में N = 150, M = 120 और = 20 तथा न्यादर्श 'ब' में N = 75, M = 126 और 5 = 22 जब इन दोनों को 225 प्राप्ताकों के समूह में संयुक्त कर दिया जाए तो 'अ' और 'ब' के मध्यमान तथा प्रमाणिक विचलन क्या होगें?
- प्रश्न- सामान्य सम्भावना वक्र क्या है? तथा इसमें कौन-सी विशेषताएँ पायी जाती हैं?
- प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र में कौन-कौन सी विशेषताएँ पायी जाती है?
- प्रश्न- सामान्य प्रायिकता वक्र के क्या उपयोग है?
- प्रश्न- असम्भाव्यता न्यादर्शन कब और क्यों उपयोगी होते हैं?
- प्रश्न- अवलोकन किसे कहते हैं? अवलोकन का अर्थ स्पष्ट कीजिए तथा अवलोकन पद्धति की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- अवलोकन के प्रकारों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सहभागी अवलोकन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- असहभागी अवलोकन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- अवलोकन का महत्व, दोष तथा अवलोकनकर्त्ता के गुण बताइए।
- प्रश्न- अवलोकन पद्धति के दोष तथा अनुसन्धानकर्त्ता के गुण बताइए।
- प्रश्न- निरीक्षण विधि क्या हैं?
- प्रश्न- साक्षात्कार के प्रमुख चरण, गुण तथा दोष बताइए।
- प्रश्न- साक्षात्कारकर्त्ता के आवश्यक गुणों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साक्षात्कार के गुण तथा दोष बताइए।
- प्रश्न- साक्षात्कार के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- साक्षात्कार किसे कहते हैं? साक्षात्कार की परिभाषाएँ दीजिए।
- प्रश्न- साक्षात्कार के उद्देश्य तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- समाजमिति की विशेषताएँ तथा समाजमिति विश्लेषण की विधियाँ बताइए।
- प्रश्न- समाजमिति विश्लेषण की विधियाँ लिखिए।
- प्रश्न- समाजमिति विधि किसे कहते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- प्रश्नावली का अर्थ बताइये तथा उसे परिभाषित करते हुए उसके प्रकार तथा विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रश्नावली के प्रकार तथा विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- प्रश्नावली निर्माण प्रविधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रश्नावली के गुण या लाभ बताइये।
- प्रश्न- प्रश्नावली विधि की सीमाएँ या दोष बताइए।
- प्रश्न- प्रश्नावली तथा अनुसूची में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- पश्चोन्मुखी या कार्योत्तर अनुसंधान किसे कहते हैं? इनकी विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- कार्योत्तर अनुसंधान की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- पश्चोन्मुखी अनुसंधान का महत्व बताइये तथा इसकी मुख्य कठिनाइयाँ क्या हैं? उदाहरण सहित विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पश्चोन्मुखी अनुसन्धान में कौन-सी मुख्य कठिनाइयाँ हैं? उदाहरण सहित विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- अनुसंधान परिषद की संगठनात्मक संरचना क्या है? इसके लक्ष्य एवं उद्देश्यों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- दार्शनिक अनुसंधान परिषद् के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का वर्णन करिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि क्या है? इसके प्रमुख पदों को लिखिए। तथा इसके गुण-दोष का वर्णन कीजिए और शिक्षा में इसकी उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान की प्रयोगात्मक विधि के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगात्मक विधि की शिक्षा में उपयोगिता बताइए।
- प्रश्न- दार्शनिक अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं?
- प्रश्न- व्यक्ति इतिहास पद्धति की संक्षित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अध्ययन की विभिन्न विधियों के नाम बताइये।
- प्रश्न- सम्बन्धित साहित्य की आवश्यकता और कार्य स्पष्ट कीजिए। शोध प्रतिवेदन में सम्बन्धित साहित्य की क्या उपयोगिता है?
- प्रश्न- शोध प्रबन्ध के प्रारूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उद्धरण में प्रतिवेदन के क्या नियम हैं? समझाइए।
- प्रश्न- फुटनोट के नियम बताइए।
- प्रश्न- सन्दर्भग्रन्थ-सूची क्या है?
- प्रश्न- शोध-प्रबन्ध का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- शोध रिपोर्ट तैयार करने के क्या उद्देश्य हैं? रिपोर्ट लेखन की प्रक्रिया बताइये।
- प्रश्न- शोध रिपोर्ट लेखन क्या है? रिपोर्ट लेखन की प्रक्रिया बताइये।
- प्रश्न- शैक्षिक शोध से सम्बन्धित साहित्य की विवेचना कीजिए।