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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।

अथवा
इस्लामिक शिक्षा दर्शन के अनुसार उद्देश्य, शिक्षण विधियाँ, विद्यालय, पाठ्यक्रम तथा अनुशासन के सम्प्रत्ययों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
इस्लामी शिक्षा दर्शन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. इस्लाम दर्शन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
2. इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा का अर्थ बताइए।
3. इस्लाम दर्शन के शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
4. इस्लाम शिक्षा की पाठ्यचर्या का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
5. इस्लाम दर्शन में निहित शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिए।

उत्तर -

इस्लाम दर्शन
(Islam Dharshan)

प्रो. अलज इल फारूक के अनुसार - 'इस्लाम' शब्द का शाब्दिक अर्थ है(i) शान्ति, (ii) शान्ति प्राप्ति का मार्ग, (iii) विनम्रता। धार्मिक अर्थ में उस शब्द का अर्थ ईश्वर की इच्छा को पूर्णतया मानना होता है। इस्लाम धर्म एवं दर्शन 'कुरान' पुस्तक में वर्णित है। कुछ अन्य ग्रन्थ भी इस्लाम धर्म व दर्शन के सिद्धान्तों को स्पष्ट करते हैं, जैसेतौरत, इंजील, जिब्रील, सहीफे जिनकी चर्चा कुरान में ही हुई। इस्लाम धर्म व दर्शन एकत्ववाद और एकेश्वरवादी कहा जाता है जिसमें खुदा पर ईमान लाने को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भारत के मध्य युग में इस्लाम का आगमन हुआ, जिसने भारतीय समाज, संस्कृति एवं विचारधारा को चिन्तन के नये तत्व देकर शिक्षा दर्शन का सूत्रपात किया। यह पहला विदेशी धर्म था जिसने भारतीय समाज एवं जीवन के प्रत्येक पक्ष के सिद्धान्तों के अनुकूल शिक्षा का संगठन किया गया और इसके अर्थ, उद्देश्य, पाठ्यक्रम, विधि, संस्था, विद्यालय, अध्यापक एवं उनके सम्बन्ध में नयी अवधारणाएँ बनी जिन्हें संगठित रूप में इस्लामी शिक्षा दर्शन कहते हैं।

शिक्षा का तात्पर्य
(Meaning of Education)

इस्लाम दर्शन में ज्ञान की प्राप्ति पर बल दिया गया है। भारतीय लोगों के अतिरिक्त संसार के सभी मनुष्यों ने ज्ञान को जीवन का प्रकाश समझा और अन्तिम लक्ष्य तक पहुँचने का प्रयास किया एवं मार्गदर्शन प्राप्त किया और इसी को शिक्षा का नाम दिया। शिक्षा की यही धारणा इस्लाम शिक्षा दर्शन में भी देखने को मिलती है। कुरान की शुरुआत अल्लाह की इबादत से होती है, जिसमें सही दिशा पर चलने की प्रार्थना की गयी है। इसमें शिक्षा का अर्थ ज्ञान, इल्म तथा हिदायत से लिया गया है जो पैगम्बर से प्राप्त हो। इस्लाम में शिक्षा का अर्थ कुरान में दिया गया इल्म / ज्ञान है जिसे पढ़ने, सीखने और धारण करने तथा सव्यवहार में प्रयोग करने का समन्वित नाम ही शिक्षा है।

शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Education)

इस्लाम दर्शन में जाति, धर्म, लिंग व राष्ट्रीयता के भेदभाव के बिना सभी लोगों के लिए शिक्षा की बात कही गयी है। इस्लाम दर्शन में शिक्षा के निम्न उद्देश्य बताए गए हैं(i) ज्ञान प्राप्ति, (ii) आध्यात्मिक एवं नैतिक विकास, (iii) सामाजिक विकास, (iv) व्यावसायिक, आर्थिक एवं भौतिक विकास, (v) सांस्कृतिक विकास, (vi) राजनैतिक और राज्य विस्तार का उद्देश्य।

इस्लामिक शिक्षा के उद्देश्य इस्लामिक शिक्षा के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य निम्नवत् है -

1. ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य - इस्लाम व कुरान के संकेतों से पता चलता है कि ज्ञान प्राप्त करना प्रत्येक के लिए आवश्यक है और ज्ञान प्राप्त करना इतना अधिक आवश्यक बताया गया है कि यदि इसके लिए चीन भी जाना पड़े तो वहाँ भी जाकर ज्ञान प्राप्त किया जाय। अर्थात् दुर्गम स्थान तक जाकर ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। इससे यह पता चलता है कि इस्लाम ने ज्ञान को कितन अधिक महत्व दिया है।

2. आध्यात्मिक व नैतिक विकास - कुरान के अनुसार सही ज्ञान ही मनुष्य के आध्यात्मिक व नैतिक विकास को मजबूत करता हैं ईश्वर ही अल्लाह की निन्दा को गैर आध्यात्मिक तथा अनैतिक माना जाता था। ऐसा करना नर्क के सबसे नीचे की जगह दिए जाने की बात इस्लामिक धर्मग्रन्थों में लिखा है।

3. सामाजिक विकास सामाजिक भावना का विकास - इस्लामिक शिक्षा को प्रमुख उद्देश्य था इस्लाम धर्म ने एक अलग समाज बना दिया और इस्लामी शिक्षा भी विशिष्ट ब्याज के लिए संगठित हुई। इसका आरम्भ परिवार से हुआ। इस्लामिक समाज में एक कहावत प्रचलित थी कि "बालक को शिक्षा देना दान में सोना देने से अधिक अच्छा है।

4. व्यावसायिक व आर्थिक विकास - इस्लाम धर्म में व्यावसायिक तथा आर्थिक विकास का महत्व प्रारम्भ से ही रहा है। मुसलमान शुरू से ही देश देशान्तर की यात्रा व्यावसायिक दृष्टि से करते रहे हैं। भारत पर मुस्लिम लुटेरों व शासकों के आक्रमण के पीछे का कारण भी व्यावसायिक व आर्थिक लाभ ही रहा है।

5. सांस्कृतिक विकास - प्रत्येक समाज के सदस्यों के लिए कुछ नियम संस्कार होते है। जिनके अनुपालन से उसकी संस्कृति या निर्माण होता हैं। कुरान की आयतों ने हराम, हलाल, भक्ष्य, अभक्ष्य, जीवन के नियम, संयम, आचरण सलूक के तौर-तरीके शादी-ब्याह के तरीके त्यौहार पहनावा खान-दान इत्यादि का वर्णन धर्मग्रन्थों में दिया गया है। इससे पता चलता है कि इस्लामिक शिक्षा सांस्कृतिक विकास के प्रति सजग थी

6. राजनैतिक व राज्य विस्तार - धर्म प्रचार एवं विस्तार के साथ-साथ राज्य विस्तार का उद्देश्य भी दिखाई देता है। इस्लाम धर्म के मानने वालों को कुरान ने भी हिदायत दी है"ऐ ईमान वालों ! जिन्होंने तुम्हारे दीन की हँसी और खेल ठहरा रखा है यानी (यद वनसाय) जिनको तुमसे पहले किताब भी दी जा चुकी है। (उनको) और काफिरो को दोस्त मत बनाओ।" आगे भी लिखा है कि ऐ पैगम्बर! काफिरों। और मुनाफिकों के विरुद्ध जिहाद करो और उनसे सख्ती से पेश आओ।" अरब के कबीले भी आपस में भिड़ते थे। धर्म शिक्षा के कारण ही मुहम्मद साहब को मक्का छोडकर मदीना जाना पड़ा था।

 

पाठ्यक्रम (Curriculum)

इस्लाम शिक्षा के पाठ्यक्रम में विभिन्न विषयों का समावेश किया गया है। इसके साथ ही कुछ 'पाक चीजे' और 'अच्छा सलूक', 'नेककार', 'समाज', 'राजा', 'खैरात', 'हज' आदि क्रियाओं को भी स्थान दिया गया है। पाठ्यक्रम में दैनिक जीवन की क्रियाओं को भी स्थान दिया गया है। इस्लाम शिक्षा के विषय निम्नलिखित हैं -

(i) ईश्वर व 'आसमानी' ज्ञान का विषय। इसे अध्यात्मशास्त्र भी कहा जा सकता है। (ii) दर्शनशास्त्र जिसमें इस्लाम दर्शन एवं हिन्दू दर्शन दोनों सम्मिलित हैं। (iii) ज्योतिष व तावीर। (iv) नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, शरीयत, राजनीति विज्ञान, कृषिशास्त्र, वाणिज्य, उद्योग व कौशल। (v) भाषा और साहित्य अरबी, फारसी, भाषाशास्त्र, व्याकरण व छन्दशास्त्र। (vi) चित्रकला, संगीत, नृत्य, चिकित्सा विज्ञान, सैनय कौशल आदि।

इस्लामिक शिक्षा दर्शन के अनुसार विद्यालय - मुस्लिम काल की या मध्ययुगीन शिक्षण संस्थाओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1. मुस्लिम शिक्षा के केन्द्र - मुस्लिम शिक्षा प्रणाली में बड़े-बड़े विशाल भवनों के रूप में विश्वविद्यालयों का प्रचलन नहीं था। धार्मिक कट्टरता होने की वजह से इसके शिक्षा केन्द्र प्राय: मस्जिदों के परिसर में ही स्थित थे। जो संस्थाएं मस्जिद में नहीं होती थी। वो उनके आस-पास ही हुआ करती थीं। इस शिक्षा पद्धति के सभी केन्द्र या तो मकतब होते थे या मदरसे के रूप में होते थे।

(i) मकतब - मकतब शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द कुतुब से हुई है। इसका शाब्दिक अर्थ है वह स्थान जहाँ पढ़ना लिखना सिखाया जाता है। मध्यकाल में मकतब प्राथमिक शिक्षा के केन्द्र थे। मकतब मस्जिदों से सम्बद्ध होते थे। इनमें हिन्दू एवं मुस्लिम बालकों को शिक्षा दी जाती थी। डॉ. युसुफ हुसैन के शब्दों में मकतब एक अध्यापक वाली संस्थाएं थे इनमें अध्यापक कार्य प्रात: काल से दोपहर तक और फिर दोपहर पश्चात् किया जाता था। अध्यापकों के भरण-पोषण की व्यवस्था धनाढ्य व्यक्तियों के द्वारा की जाती थी। राज्य का मकतबों से कोई विशेष उद्देश्य नहीं था। जिन स्थानों पर मदरसे नहीं थे वहाँ के कुछ मकतबों में उच्च शिक्षा का भी प्रबन्ध होता था।

(ii) मदरसा - मदरसे उच्च शिक्षा के केन्द्र थे। मदरसा शब्द की व्यूत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द दरस से हुई है जिसका अर्थ है भाषण देना। अतः मदरसा का अर्थ है वह स्थान जहाँ भाषण विधि से अध्यापन कार्य किया जाता हो। मदरसे किसी मस्जिद से संलग्न होते थे या फिर मस्जिदों के आस-पास होते थे। इसकी स्थापना एवं व्यवस्था धनाढ्य व्यक्तियों के द्वारा की जाती थी। बड़े मदरसों में पुस्तकालय एवं छात्रावास भी होते थे। जहाँ शिक्षकों एवं छात्रों को भोजन की भी व्यवस्था होती थी।

(iii) कुरान एवं फारसी विद्यालय - इन विद्यालयों में छात्रों को अच्छी एवं फारसी भाषा का ज्ञान एवं शिक्षा दी जाती थी। ये विद्यालय भी मस्जिदों से संलग्न होते थे।

(iv) फारसी विद्यालय - इन विद्यालयों में केवल फारसी भाषा की शिक्षा दी जाती थी। इस भाषा को सीखने के बाद छात्रों को राजपद की प्राप्ति होती थी।

(v) अरबी के विद्यालय - अरबी के विद्यालय में अरबी भाषा का स्तर अत्यन्त उच्च होता था। इनमें अरबी भाषा की शिक्षा विशिष्ट विषय के रूप में दी जाती थी।

(vi) दरगाह एवं खानकाह - खानकाहों में भी प्राथमिक शिक्षा दी जाती थी। दरगाह के समान खानकाह में भी केवल मुस्लिम बालक ही शिक्षा प्राप्त कर सकते थे।

(2) मध्य युगीन शिक्षा के केन्द्र - मध्य युगीन शिक्षा के केन्द्रों में प्रमुख रूप से निम्नलिखित थे -

(i) फिरोजाबाद में फिरोजशाही मदरसा एक उन्नत एवं समृद्ध विश्वविद्यालय के रूप में विख्यात था। (ii) जौनपुर में अफगस शासक इब्राहिम शासकों ने कई मदरसों की स्थापना की थी। (iii) दिल्ली में स्थित मुस्लिम शिक्षा केन्द्र इस्लाम और कानून की शिक्षा के लिए विख्यात थे। (iv) बीदर में इस्लाम, संस्कृति, दर्शन, चिकित्सा ज्योतिष इतिहास व कृषि की शिक्षा के प्रमुख केन्द्र (v) सिकन्दर लोदी ने आगरा में 100 बड़े मदरसों का निमार्ण कराया था।
(vi) संगीत शिक्षा के लिए प्रसिद्ध शिक्षा का केन्द्र मालवा में था।
(vii) 1441 में सैयद देश के शासक ने बदायूँ मे मुस्लिम शिक्षा केन्द्रों की स्थापना की थी।

 

इस्लामिक शिक्षा में अनुशासन - इस्लामिक शिक्षा में अनुशासन का विशेष महत्व था। मकतब मदरसों तथा अन्य शिक्षा केन्द्रों पर शिक्षा ग्रहण करने की अवधि के छात्रों को मुस्लिम शिक्षा पद्धति के नियमों, रीतिरिवाजों, आदेशों, परम्पराओं और मुस्लिम कानूनों का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य था। इन सभी नियमों और पद्धतियों को शिक्षक के आदेशों व निर्देशों के माध्यम से छात्रों तक सम्प्रेषित किया जाता था।

यद्यपि मुस्लिम काल में शिक्षकगण छात्रों के मूल्य तथा श्रद्धा के पात्र थे, किन्तु वे किस प्रकार का अपराध करते थे या पढ़ाई के प्रति लापरवाही करते थे या अन्य किसी प्रकार की अनुशासनहीनता करते पाए जाते थे तो उन्हें कठोर से कठोर दण्ड दिया जाता था। राज्य की ओर से दण्ड के सम्बन्ध में कोई नियम न होने से शिक्षक गण छात्रों को कोई भी दण्ड देने के लिए स्वतन्त्र थे। साधारण अपराध पर छात्रों को दिन भर खड़े रहने, बेत, कोड़े, घुसे, लात, थप्पड़ आदि किसी भी शारीरिक दण्ड को भुगतना पड़ता था। किन्तु बड़े अपराध करने पर छात्रों को मुर्गा, बनाकर उनकी पीठ पर भारी ईट रख दी जाती थी। कुछ अपराधों के लिए तो छात्र को गठरी बांधकर खुंटे से लटका दिया जाता था या फिर बालकों को किसी जानवर पर बिल्ली, खरगोश, चूहा इत्यादिक के साथ बोरे में भरकर बांध दिया जाता था। इस प्रकार मुस्लिम काल में दमनात्मक व कठोर अनुशासन का प्रचलन था।

इस्लामिक शिक्षण विधियाँ

इस्लामिक दर्शन के मानने वालों ने शिक्षा की विधियों पर भी प्रकाश डाला है। उनके विचारों के अनुसार हमें कुछ विशिष्ट शिक्षा विधियों के प्रयोग का संकेत मिलते है। निम्न शिक्षा विधियाँ इस्लामी शिक्षा दर्शन से सम्बन्धित की जा सकती हैं

1. उपदेश विधि - सारा कुरान एक प्रकार का उपदेश है और उसे देने के लिये पैगम्बर एवं ज्ञानी पुरुष बनाए गए है। जो कुछ भी कुरान के उपदेश है वे ही तो शिक्षा की सामग्री है। अतः उपदेश देने. व लेने की 4 विधि इस्लामी शिक्षा की एक प्रमुख विधि मानी जा सकती है।

2. सचेतन अनुकरण विधि - इस्लामी शिक्षा की दूसरी प्रमुख विधि संचेतन अनुकरण विधि है। यह अनुकरण शुरू की शिक्षा से ही होता है। शुरू में कुरान की आयते रटाई जाती हैं, इस चेतना के साथ कि यह अल्लाह से प्रार्थना स्वरूप है। नमाज में भी इसी अनुकरण विधि का अल्लाह से प्रार्थना स्वरूप है। नमाज में भी इसी अनुकरण विधि का प्रयोग पाया जाता है जो इस्लामी दर्शन के मानने वालों के जीवन का एक अभिन्न अंग है।

3. पुस्तक अध्ययन विधि - इस्लामी शिक्षा का आरम्भ पुस्तक अध्ययन से ही होता है। जबकि 'चन्द कलाम का पाठ रबबानी उल्मा के द्वारा कराया जाता है। बाद में धर्म जिज्ञासा की पूर्ति हेतु व्यक्ति स्वयं ही कुरान एवं अन्य ग्रन्थों का अध्ययन करता हैं। यह वस्तुतः स्वाध्याय एवं खोज प्रणाली के द्वारा अध्ययन की एक विधि है। यह उच्च शिक्षा के स्तर पर प्रयुक्त होती है। पुस्तक अध्ययन विधि के दो रूप होते हैं, एक तो घर पर या स्कूल में और दूसरे पुस्तकालय में। पुस्तकालय का निर्माण करने एवं काम में लाने का चलन मुसलमान शासकों ने भारत में बहुत किया और स्वयं बादशाह एवं सम्राट पुस्तकालय में जाते और ज्ञान का प्रकाश प्राप्त करते थे।

4. व्याख्यान विधि - इस्लामी विधियों में शिक्षा मकतब मदरसे में दी जाती रही। बकतब वह स्थान है जहाँ किताब पढ़ी-लिखी जाती है और मदरसा वह स्थान है जहाँ 'दरस' या व्याख्यान दिया जाता है। ऐसे व्याख्यान इल्हामी ज्ञान से ही नहीं सांसारिक ज्ञान से सम्बन्धित होते थे।

5. व्याख्या, तर्क, समीक्षा विधि - इस्लामी धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय (मौजतला, करामी, अशअरी, शारीरिक ब्रह्मवादी, पवित्र संघ (अखवानुस्सफ), सूफी, रहस्यवादी वस्तुवादी, धर्मवादी आदि) और इन सम्प्रदायों के समर्थकों ने इस्लामी दर्शन को विभिन्न दृष्टियों से स्पष्ट करने में व्याख्या, तर्क एवं समीक्षा विधि का प्रयोग किया। इससे दर्शन का प्रसार हुआ और यूरोप के विभिन्न देशों से प्रेरणा मिली तथा वहाँ प्रचार का अवसर मिला।

6. समारोह एवं यात्रा विधि - इस्लाम धर्म की शिक्षा समारोह एवं यात्रा विधि के द्वारा दी जाती है। मस्जिद, ईदगाह, तीर्थस्थान पर एकत्र होकर शिक्षा ली और दी जाती है। मालमूद शरीफ या कथा वार्ता के समारोह में भी इस्लामी शिक्षा दी जाती रही है। हज तथा विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को विभिन्न स्थानों में यात्रा से भी इस्लामी शिक्षा दी जाती है। 7. व्यावहारिक विधि अन्य शिक्षा प्रणालियों की भाँति इस्लामी शिक्षा प्रणाली में भी व्यावहारिक विधि का प्रयोग मिलता है। व्यावहारिक विधि विभिन्न प्रकार की व्यावसायिक, कौशल सम्बन्धी शिक्षा देने में काम में आती है। कला, संगीत, नृत्य एवं सांस्कृतिक मनोरंजन की शिक्षा में व्यावहारिक विधि ही प्रयुक्त होती है।

8. सहकारी विधि - इस्लामी शिक्षा में विद्यार्थी एवं शिक्षक मिल-जुलकर काम करते हैं। इस्लामी समाज जनतांत्रिक था और आज भी है। इस प्रकार सभी लोग मिल-जुलकर शिक्षा भी लेते रहे और शिक्षार्थी एवं शिक्षक के बीच जनतांत्रिक सम्बन्ध पाया जाता रहा है। इससे स्पष्ट है कि इस्लामी शिक्षा में सहकारी विधि से काम लिया जाता रहा। इससे शिक्षा का काम सतर्क एवं सजग रहते हैं। सहकारी विधि में शिक्षानायक (मॉनीदेरिय विधि भी शामिल की जा सकती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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