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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

बौद्ध दर्शन लौकिक एवं परमार्थिक दोनों सत्यों में विश्वास करता है। शिक्षा एक ऐसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो मनुष्य को लौकिक एवं परमार्थिक दोनों जीवन के योग्य बनाती है। परमार्थिक जीवन से उसका तात्पर्य निर्वाण से है। उनकी दृष्टि से वास्तविक शिक्षा वह है जो मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति कनये।

बौद्ध दर्शन भारतीय दर्शन की वह विचारधारा है जो इस ब्रह्माण्ड को न तो केवल वस्तु जन्य मानती है और न केवल आध्यात्मिक तत्व द्वारा निर्मित, यह इसे परिणामशील मानती है। यह आत्मा परमात्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करती और यह प्रतिपादन करती है कि मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य निर्वाण की प्राप्ति है, जिसे चार आर्य सत्यों के ज्ञान एवं आदर्श अष्टांग मार्ग तथा त्रिरत्न के पालन द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।

शिक्षा के उद्देश्य - बौद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य जीवन के दो पहलू हैं- एक लौकिक और दूसरा परमार्थिक। लौकिक दृष्टि से बौद्ध दार्शनिकों ने मनुष्य के शारीरिक, बौद्धिक, चारित्रिक एवं नैतिक तथा आर्थिक विकास पर बल दिया है और परमार्थिक दृष्टि से निर्वाण प्राप्ति के लिये आर्य सत्य, आर्य अष्टांग मार्ग और त्रिरत्न की उपलब्धि आवश्यक मानी है। महात्मा बुद्ध के विचारों से शिक्षा के निम्न उददेश्य हैं -

1. शारीरिक विकास - भगवान बुद्ध ने शरीर को स्वस्थ रखने पर बल दिया है। उनकी दृष्टि से शरीर स्वस्थ होने पर मनुष्य शरीर के रुग्ण हो जाने से होने वाले दुःखों से मुक्त हो जाता है। फिर स्वस्थ शरीर के अभाव में कुछ भी सम्भव नहीं, न धर्म और न कर्म।

2. अज्ञान का अन्त एवं ज्ञान की प्राप्त - बौद्ध दर्शन के अनुसार मनुष्य के समस्त दुःखों का कारण अज्ञान है। बौद्धों के अनुसार संसार को सुखमय मानना और इन्द्रिय भाग एवं तृष्णा की तृप्ति में सुख की कल्पना करना अज्ञान है। उनके अनुसार चार आर्य सत्यों का ज्ञान ही सच्चा ज्ञान है।

3. मानव संस्कृति का संरक्षण - बौद्ध धर्म को संस्कृति का अंग मानते हैं। उनकी दृष्टि से संस्कृति के संरक्षण से ही धर्म का संरक्षण हो सकता है। संस्कृति से तात्पर्य सम्पूर्ण मानव जाति की संस्कृतियों से है। इनके ज्ञान द्वारा ही मनुष्य वास्तविक ज्ञान की खोज कर सकता है और वास्तविक धर्म का पालन कर सकता है।

4. सामाजिक आचरण की शिक्षा - बौद्ध दर्शन समस्त प्राणियों के कल्याण का पक्षधर है। इसमें करुणा एवं दया पर सबसे अधिक बल दिया गया है। बिना करुणा भाव के एक मनुष्य दूसरे के दुःखों को नहीं समझ सकता और दया के द्वारा ही एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के दुःखों को दूर कर सकता है। बौद्ध दर्शन सामाजिक विकास का पक्षधर है।

5. नैतिक एवं चारित्रिक विकास - बौद्ध धर्म में आत्मसंयम, करुणा और दया पर सबसे अधि क बल दिया गया है। बौद्धों की दृष्टि से शिक्षा द्वारा मनुष्य में इन गुणों का विकास किया जा सकता है। इसी को वे चरित्र मानते हैं। बुद्ध कठोर नियमों के पालन पर बल देते हैं।

6. व्यवसायिक विकास - बौद्ध दर्शन संसारिक दुःखों से मुक्ति दिलाना चाहता है। भूख के दुःख से बचने के लिये, कपड़ों के अभाव के दुःख से बचने, मकान के अभाव के दुःख से बचने आदि के लिये उसे किसी व्यवसाय में निपुण होना चाहिए।

7. निर्वाण की प्राप्ति - बौद्ध मनुष्य जीवन का अन्तिम उद्देश्य सांसारिक दुःखों से छुटकारा मानते हैं। इसे वे निर्वाण कहते हैं। निर्वाण की प्राप्ति के लिये बौद्ध मनुष्यों को चार आर्य सत्यों के ज्ञान एवं आर्य अष्टांग मार्ग तथा त्रिरत्न के पालन का उपदेश देते हैं।

महात्मा बुद्ध एवं उनके शिष्यों ने संसार के लोगों को दुःखों से मुक्ति का संदेश देकर उपदेश की शिक्षा दी है और जो भी शिक्षा दी उस पर मनन चिन्तन किया और विभिन्न सिद्धान्त प्रतिपादित किये। महात्मा बुद्ध ने मानव जीवन के चार आर्य सत्य बताये हैं- दुःख, दुःख समुदाय, दुःख निरोध अथवा निर्वाण, दुःख निरोधगामी प्रतिप्रद या निर्वाण मार्ग। इस संसार में दुःख ही दुःख है। समस्त संसार जब आग में जल रहा है तब उसमें आनन्द का अवसर कहाँ? अज्ञान से व्यक्ति देख नहीं पाता है। अतः अज्ञान और उससे प्राप्त दुःखों को दूर करने का मार्ग जानना ही बोध है अथवा शिक्षा है। जीवन दुःख है और शिक्षा इन दुःखों को दूर करने का मार्ग बताती है। शिक्षा दुःखों का ज्ञान है और दुःखों को दूर करने का अष्टांग प्रदान करती है। जब यह बोध या अनुभूति और प्रयत्न होता है तो वही शिक्षा हो जाती है I

शिक्षा का पाठ्यक्रम - बौद्ध दार्शनिकों ने शिक्षा के दो प्रकार निश्चित किये हैं- लौकिक और आध्यात्मिक। लौकिक पाठ्यक्रम में शारीरिक विकास, चारित्रिक एवं नैतिक विकास और आर्थिक विकास।

इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये पाठ्यक्रम में नैतिक जीवन, व्यायाम, भाषा, ज्ञान, आयुर्वेद, शल्य चिकित्सा, कृषि, पशुपालन एवं वास्तुकला आदि को सम्मिलित किया है। बौद्ध शिक्षा के पाठ्यक्रम में उन्नीस शिल्पों के सम्मिलित होने का उल्लेख है।

आध्यात्मिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये उन्होंने पाठ्यचर्या में त्रिपिटको एवं अन्य धर्म दर्शन के अध्ययन और नैतिक जीवन को सम्मिलित किया है।

बौद्ध शिक्षा दो भागों में विभक्त थी - प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर बच्चे 'सिद्धमचंग' नामक पुस्तक का अध्ययन करते थे। इस पुस्तक की समाप्ति पर संख्या, गणना, शिष्य, व्याकरण, दर्शन आदि विषयों की प्रारम्भिक जानकारी प्रदान की जाती थी। प्रारम्भिक स्तर पर ही बच्चों को उत्कृष्ट ज्ञान प्रदान कर दिया जाता था और बच्चों का मस्तिष्क भी इसको ग्रहण करने के लिये पूर्ण परिपक्व हुआ करता था।

उच्च स्तर पर शिक्षा का पाठ्यक्रम अधिक विस्तृत था। इसका कारण आध्यात्मिक एवं लौकिक उन्नति को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम बनाया जाना था। पाठ्यक्रम में बौद्ध दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों को भी समाविष्ट किया गया था ताकि विद्यार्थियों में तुलनात्मक प्रवृत्ति का विकास हो और वे शास्त्रार्थ में अपने पक्ष का मण्डन व विरोधियों के मत का खण्डन कर सकें। जनसाधारण व भिक्षुओं के लिये अलग-अलग पाठ्यक्रम थे। जनसाधारण को लौकिक विषयों का अध् ययन कराया जाता था जबकि भिक्षुओं के लिये धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन पर विशेष बल दिया जाता था।

इसी प्रकार शिक्षा के पाठ्यक्रम में अनेक पाठ्य विषय सम्मिलित किये गये थे।

अनुशासन - बौद्ध शिक्षा में गुरु और शिष्य दोनों संघ के आश्रित होते थे। संघ की सत्ता सर्वोपरि थी। संघ के लिये शास्त्र सम्मत नियम बनाये जाते थे। प्रत्येक शिक्षक एवं शिक्षार्थी को इन नियमों का पालन करना होता था। इस संयमी जीवन को अनुशासन माना जाता था। नियमों का उल्लंघन करने पर शारीरिक दण्ड नहीं दिया जाता था, भिक्षुक स्वयं पश्चाताप करते थे। गुरु शिष्यों को उनके आचरण के प्रति सचेत करते थे, और शिष्य गुरुओं की उनके आचरण के प्रति सचेत करते थे।

बौद्धों ने सभी के नियमों के पालन करने का उपदेश दिया है और इसी को वे अनुशासन कहते हैं। बौद्धों की अनुशासन सम्बन्धी अवधारणा आज लोकतन्त्रीय जीवन के लिये बड़ी आवश्यक है। लोकतन्त्र की सफलता तो इसी बात पर निर्भर करती है कि सब अपने-अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और निष्ठा के साथ करें।.

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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