बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें
प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर -
दर्शन शब्द अंग्रेजी भाषा के फिलॉसफी शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है। फिलॉसफी शब्द की उत्पत्ति यूनानी के दो शब्दों (फिलॉस) एवं सोफिया से हुयी है जिसमें फिलॉस का अर्थ प्रेम एवं सोफिया का अर्थ ज्ञान अर्थात् (ज्ञान के प्रति प्रेम) से है अतः (दर्शन) का अभिप्राय ज्ञान से प्रेम या ज्ञान के प्रति प्रेम से होता है।
दर्शन का शाब्दिक अर्थ से स्पष्ट होता है कि पश्चिम में जिन विद्वानों ने जीवन और जगत् के रहस्यों का तर्कपूर्ण और व्यवस्थित विवेचन किया वह दर्शन कहलाया।
ब्राइटमैन - "दर्शन अनिवार्यतः अनुभव को जानने की एक विधि है। यह अनुभवों के विषय में परिणामों का व्यवस्थित ज्ञान समूह नहीं है।"
डॉ. जे.एम. सिन्हा - "दर्शन जीवन की आलोचना है। यह मानवीय जीवन के स्वरूप तात्पर्य, प्रयोजन, प्रारम्भ तथा अन्त के प्रश्नों में प्रविष्ट होता है। यह जीवन और उसके मूल तथा तात्पर्य की व्याख्या करता है।"
दर्शन का अध्ययन क्षेत्र - दर्शन के अध्ययन क्षेत्र को निम्नलिखित बिन्दुओं द्वारा जाना जा सकता है -
1. ईश्वर सम्बन्धी तत्वधान - इस विभाग के अन्तर्गत ईश्वर विषयक प्रश्नों के उत्तर खोजे जाते हैं। जैसे ईश्वर का अस्तित्व, उसका स्वरूप, उसकी एकरूपता अथवा अनेकरूपताइत्यादि से सम्बन्धित विषयों पर दृष्टि डाली जाती है।
2. आत्मा सम्बन्धी तत्वज्ञान - इसके अन्तर्गत जीव के अस्तित्व, आत्मा के अस्तित्व, अस्तित्व की स्वतन्त्रता, उसका स्वरूप एवं परतन्त्रता आत्मा का शरीर से पारस्परिक सम्बन्ध, आत्मा एवं जीव क्या है? आदि से सम्बन्धित प्रश्नों पर विचार किया जाता हैं।
3. सृष्टि विज्ञान - इस विभाग में ब्रह्माण्ड के विकास से सम्बन्धित विभिन्न समस्याओं, यथा ब्रह्माण्ड एक है अथवा अनेक, इसकी रचना भौतिक तत्वों के संयोग से हुयी है या आध्यात्मिक संयोग से आदि तत्वों पर प्रकाश डाला जाता हैं।
4. ब्रह्माण्ड विज्ञान - इसमें ब्रह्माण्ड के स्वरूप, उसके अक्षर और नश्वर तत्वों उसके समस्त तत्वों, इन तत्वों के आपसी सम्बन्धों से सम्बद्ध समस्याओं पर विचार किया जाता है।
5. सत्ता शास्त्र - इसमें अमूर्त सत्ता एवं वस्तुओं के तत्व स्वरूप का अध्ययन किया जाता है। जैसे ब्रह्माण्ड के नश्वर तत्व क्या हैं? ब्रह्माण्ड के अक्षर तत्व कौन से हैं आदि पर विचार किया जाता है।
दर्शन का विषय-वस्तु क्षेत्र-दर्शन के यदि प्राचीन एवं वर्तमान स्वरूप पर दृष्टि डालें तो स्पष्ट होता है कि दर्शन के विषय क्षेत्र में समय एवं आवश्यकता के आधार पर सदैव परिवर्तन होता रहा है। यदि सामान्य रूप से एक शास्त्र के रूप में देखें तो इसके अन्तर्गत निम्न विषयों का अध्ययन किया जाता है -
1. सृष्टि शास्त्र - इसमें सृष्टि की रचना एवं विकास से सम्बन्धित समस्याओं पर विचार किया जाता है। जैसे सृष्टि की रचना, उत्पत्ति से सम्बन्धित तत्वों पर विचार किया जाता है। इस विभाग में उस सृष्टि से सम्बन्धित उन समस्याओं पर विचार किया जाता है जिन पर मनुष्य आदिकाल से विचार करता आया है।
2. ज्ञान शास्त्र - यह दर्शन शास्त्र की वह शाखा है। इसे प्राचीन स्वरूप में मूल दर्शनशास्त्र कहा जाता है एवं वर्तमान दर्शनशास्त्र ने ज्ञानशास्त्र को प्रमुख विषय-वस्तु के रूप में स्वीकार किया। दर्शन के अध्ययन ने यह विभाग विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
3. मूल्यशास्त्र - इस विभाग के अन्तर्गत दर्शन के वे उपविभाग आते हैं जिनका सम्बन्ध मानव जीवन के विभिन्न मूल्यों, उद्देश्यों और आदर्शों से होता है। इसके अन्तर्गत निम्न उप विभाग आते हैं(i) तर्कशास्त्र इसमें तार्किक चिन्तन के सम्बन्ध में विचार किया जाता है जिसमें तर्कपूर्ण चिन्तन, कल्पना अथवा अनुमान, उसके लक्षण, तर्क की पद्धति, आदि से सम्बद्ध अध्ययन किया जाता है।
(ii) नीतिशास्त्र - इसमें व्यक्ति के शुद्ध एवं अशुद्ध आचरण रखने वाले तथ्यों, जैसे कर्म अकर्म, भद्रता-अभद्रता, शुभ-अशुभ आचरण, उनके लक्षण आदि पर विचार करके विश्लेषण किया जाता है कि मनुष्य को जीवन में कैसा आचरण करना चाहिए।
(iii) सौन्दर्यशास्त्र - इसमें सौन्दर्य विषयक प्रश्नों के उत्तर खोजे जाते हैं जिसमें विश्लेषण द्वारा यह निश्चित किया जाता है कि सौन्दर्य अथवा असौन्दर्य क्या है? इसके लक्षण, मापदण्ड क्या हैं आदि। दर्शनशास्त्र के अन्तर्गत निम्न विभागों का भी अध्ययन किया जाता है।
(a) मनोविज्ञान का अध्ययन किया जाता है। इसे एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में मान्यता दी गयी है। (b) सामाजिक दर्शन में समाजशास्त्र से सम्बन्धित दर्शन का अध्ययन किया जाता है।(c) राजनीतिशास्त्र के अन्तर्गत राजनीति से सम्बन्धित दर्शन पर लिखे गये तथ्यों का अध्ययन किया जाता है। (d) शिक्षा दर्शन में शिक्षा से सम्बन्धित दर्शन का अध्ययन किया जाता है। (e) ऐतिहासिक दर्शन में ऐतिहासिक तथ्यों का दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन किया जाता है। (f) वाणिज्य दर्शन के अन्तर्गत वाणिज्य, व्यापार से सम्बद्ध दर्शन का अध्ययन किया जाता है।
शिक्षा और दर्शन में सम्बन्ध - शिक्षा दर्शन का विभिन्न पहलुओं से अध्ययन करने के पश्चात् यह विदित होता है कि शिक्षा और दर्शन दोनों का सम्बन्ध जीवन से है। देश व काल की संस्कृति का सीधा सम्बन्ध शिक्षा व दर्शन दोनों से है। दर्शनशास्त्र ने समय-समय पर शिक्षा के विभिन्न अंगों को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप दार्शनिक विचारों में परिवर्तन के साथ शिक्षा के अंगों में भी परिवर्तन होता रहा है। शिक्षा भी दर्शन को सदैव प्रभावित करती आयी है। जिससे विचारधारायें परिवर्तित होती आयी हैं। दोनों का ही अस्तित्व एक-दूसरे पर आश्रित है। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व नहीं है। दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध निम्नवत् है -
1. सभी दार्शनिक शिक्षक हैं - यदि हम प्राचीन काल से अब तक के इतिहास को देखे तो स्पष्ट होता है कि सम्भवतः सभी दार्शनिक शिक्षक भी रहे हैं प्राचीन काल में जहाँ सुकरात, प्लेटो, अरस्तु इस तथ्य की पुष्टि करते हैं तो वहीं आधुनिक काल में लॉक, रूसो, डीवी, गाँधी, टैगोर आदि के नाम इस श्रृंखला में विशेष रूप से उल्लेखनीय है। जो उच्च कोटी के दर्शनिक एवं शिक्षक थे।
2. दार्शनिक विचारधाराओं के आधार पर शैक्षिक विचारधाराओं का निर्धारण - शिक्षा और दर्शन का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है दोनों ही विचारधारायें एक-दूसरे को प्रभावित करती हैं। इन परिस्थितियों में यदि हम शिक्षा को जीवनोपयोगी बनाना चाहते है तो हमें दार्शनिक विचारों की सहायता से शिक्षा के उद्देश्यों अथवा विचारों में पूर्ण स्पष्ट करना होगा क्योंकि दार्शनिक विचारधाराओं को समझे बिना शैक्षिक विचार दिशाविहीन होते हैं।
स्पेंसर - "वास्तविक शिक्षा का संचालन वास्तविक दार्शनिक ही कर सकता है।"
3. दर्शन और शिक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं - दार्शनिक विचारधारायें ही शिक्षा के उद्देश्यों तथा उसके अन्य अंगों का स्वरूप निर्धारित करती हैं ठीक इसी प्रकार शिक्षा ही वह साधन रहा है जिससे विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का विकास हुआ है। शिक्षा और दर्शन के घनिष्ठ सम्बन्ध की पुष्टि करते हुए जॉन एडम्स ने कहा है कि -"शिक्षा दर्शनशास्त्र का गत्यात्मक पक्ष है।"
4. दर्शन एवं शिक्षा का सिद्धान्त - शिक्षा के सामान्य सिद्धान्तों का निर्धारण दर्शन के द्वारा ही होता है। अर्थात् शिक्षा के सामान्य सिद्धान्तों की प्राप्ति दर्शन के द्वारा होती है। डीवी का विचार है. कि "अपनी साधारण अवस्था में शिक्षा सिद्धान्त ही दर्शन है।"
5. दर्शन और शिक्षा का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है - दर्शन और शिक्षा दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर है एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं होता। इसीलिए शिक्षा और दर्शन की पारस्परिकता को अनेक विद्वानों ने स्वीकार किया। जेण्टाइल ने कहा कि "दर्शन की सहायता के बिना शिक्षा की प्रक्रिया सही मार्ग पर नहीं चल सकती।"
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- प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
- प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
- प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
- प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
- प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
- प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
- प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
- प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
- प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?