बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें
प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
ईश्वर अर्थात् ब्रह्म
उपनिषदों में माना गया है कि ईश्वर का अस्तित्व है तथा इसके अतिरिक्त अन्य कोई सत्ता नहीं है। ब्रह्म अर्थात् ईश्वर को ही परम सत्य, ज्ञान माना गया है। उपनिषद् में ब्रह्म को ही सर्वोच्च माना गया है। कथोपनिषद् में यह कहा गया है कि सच्चा ज्ञानी वही है जो ब्रह्म को ही समस्त सृष्टि में देखता है। ईश्वर ही सत्ता का रचियता है तथा वह ही परम ज्योति है। कोई भी ग्रह सूर्य, चन्द्र आदि अपने आप नहीं लेकिन ब्रह्म के द्वारा ही प्रकाशमान है। उपनिषद् में ब्रह्म को दो रूपों में माना गया है - परा तथा अपरा अर्थात् निर्गुण तथा सगुण।
निर्गुण ब्रह्म - निर्गुण ब्रह्म को किन्हीं गुणों के आधार पर विश्लेषित या वर्णित नहीं किया जा सकता है यह धारणा सभी गुणों से अलग है। बृहदारण्यक उपनिषद् में कहा गया है कि ब्रह्म स्थूल नहीं है न ही सूक्ष्म है न ह्स्व है न दीर्घ है न रक्त है न द्रव है न छाया, न अन्धकार, न रस, न गंध, न वायु, न आकाश, न वाणी, न मन और न ही आकार है। न वह कुछ खाता है और न ही शरीर उसे खाता है। निर्गुण ब्रह्म को वर्णित नहीं कर सकते हैं क्योंकि उसका कोई रूप, आकार या शरीर नहीं है।
सगुण ब्रह्म - सगुण ब्रह्म को गुणों के आधार पर वर्णित किया जा सकता है क्योंकि यह गुणों युक्त होता है। सगुण ब्रह्म सत्य है, ज्ञान है तथा अनन्त है। उसे जो जिस रूप में ध्यान करता है वह वैसा ही प्रतीत होता है। छंदोपनिषद् में ब्रह्मा को इस संसार का कारण माना गया है तथा यह स्वीकार किया गया है कि ईश्वर प्रत्येक प्राणी में विराजमान है वह इस संसार का पालनकर्त्ता तथा सूत्रधार है, वही आदि है तथा अन्त भी वही है वह अन्तरयामी है। ईश्वर प्रकृति की आत्मा है तथा ये समस्त संसार तथा इसमें रहने वाले जीव ईश्वर का ही प्रतिबिम्ब है उसी की छवि है।
सगुण तथा निर्गुण ब्रह्म में अन्तर - निर्गुण ब्रह्म को एक तथा अनन्त माना जाता है। इसकी अवधारणा से सृष्टि की व्याख्या नहीं होती है। धार्मिक दृष्टिकोण से निर्गुण ब्रह्म को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है तथा ईश्वर व भक्त को स्पष्ट नहीं किया जा सकता है इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से सगुण ब्रह्म को महत्त्व दिया जाता है तथा उसे ही सृष्टि का आदि व अन्त माना जाता है।
आत्मा की अवधारणा
वेदान्त में आत्मा को अमर, अजर तथा अभय माना गया है। यह इस संसार से तथा इस संसार के जीवों से अलग है। यह मन, बुद्धि, अहं से भिन्न है। आत्मा को सभी बन्धनों से मुक्त माना गया है तथा इसे पूर्ण, सर्वव्यापी तथा शाश्वत कहा गया है। आत्मा को आँखें देख नहीं सकती हैं तथा कान सुन नहीं सकते हैं इन्द्रियाँ स्पर्श नहीं कर सकती हैं तथा मन इसकी कल्पना नहीं कर सकता है। आत्मा अपने मूल स्वरूप में इतनी शक्तिशाली भी है कि वह वाणी को, आँखों को, कानों को व अन्य इन्द्रियों को अपना कार्य करने की शक्ति प्रदान करती है। मैत्रेय उपनिषद् में यह कहा गया है कि शरीर एक रथ है तथा आत्मा उस रथ का सारथी है। आत्मा पूर्ण रूप से शांत, स्वतंत्र तथा चेतन है। किशीतकी उपनिषद में आत्मा को शरीर का स्वामी तथा इन्द्रियों का नियंत्रक बताया गया है तथा ये कहा गया है कि आत्मा अंगुली के नाखून से सिर के शिखर तक सर्वव्यापक है तथा यह प्रत्येक इन्द्री की स्वामी है
परलोक विद्या
परलोक विद्या का तात्पर्य है कि मृत्यु के बाद दूसरे लोक अर्थात् परलोक की विद्या। मृत्यु के पश्चात् व्यक्ति का क्या होता है वह कहाँ जाता है इस सम्बन्ध में परलोक विद्या हमें बताती है कि मृत्यु होने के बाद व्यक्ति का अर्थात् जीव का सम्बन्ध इस लोक से समाप्त हो जाता है तथा वह परलोक का नागरिक बन जाता है। मृत्यु के बाद उपनिषद् में जीवन की तीन प्रकार की स्थितियाँ मानी गयी हैं जो हमें यह बताती हैं कि मृत्यु के बाद मनुष्य कहाँ जाता है?, वह कहाँ निवास करता है? तथा इस संसार में पुनः किस प्रकार आता है?
(1) दैवयान - इस स्थिति में यह बताया गया है कि जो आध्यात्म विद्या का पालन करते हैं वे मृत्यु के बाद चिता की अग्नि जलने के बाद अन्त में ब्रह्मलोक पहुँच जाते हैं तथा तब तक वहाँ रहते हैं जब तक वह निर्गुण ब्रह्म से साक्षात्कार न कर लें। तब तक व्यक्ति मृत्यु लोक में नहीं आता है लेकिन जब ब्रह्म अवतरित होता है तो वह व्यक्ति भी पुनः पृथ्वी पर जन्म लेता है यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक जीव को मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाये। मोक्ष प्राप्त करने के बाद जीव जीवन व मरण के बन्धन से मुक्त हो जाता है।
(2) पितृयान - यह स्थिति उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में है जो पूजा, पाठ, यज्ञ, दान आदि करते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति मृत्यु के बाद अग्नि में प्रवेश करते हैं तथा विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद वे पितृ लोक पहुँच जाते हैं तथा वहाँ से चन्द्र लोक पहुँचकर अन्न के दाने बन जाते हैं। ईश्वर इन अन्न के दानों को खाता है। चन्द्र लोक में वे तब तक रहते हैं जब तक उनके पुण्य रहते हैं उनके पुण्य समाप्त हो जाने के बाद वे अपने कर्मों के आधार पर पृथ्वी पर पुनः जन्म लेते हैं।
(3) तृतीय स्थिति - यह स्थिति पशु पक्षियों व कीड़े-मकोड़ों के लिए होती है। ये प्राणी जन्म लेते हैं तथा मरते हैं तथा ये प्रक्रिया चलती रहती है। ये सभी स्थिति मृत्यु के बाद जीवन की है तथा मोक्ष प्राप्त करने तक जीवन व मृत्यु के चक्र चलते रहते हैं। जो व्यक्ति अपने कार्य को फल की इच्छा के बिना निर्विकार भाव से करते हैं मोक्ष प्राप्त कर जो यक्ति कार्यों को किसी आसकि वे करने तथा इन के त करते हैं वे अपने से कम के साथ स्वर्ग की जीवन मरण का बन्धन संपेन चलता रहता है।
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- प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
- प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
- प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
- प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
- प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
- प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
- प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
- प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
- प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
- प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
- प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
- प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
- प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
- प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
- प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
- प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
- प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
- प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
- प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
- प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
- प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
- प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
- प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?