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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

जे. कृष्णामूर्ति
(J. Krishnamurti)

प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।

अथवा
जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की वर्तमान समय में प्रासंगिकता पर एक निबन्ध लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार संक्षेप में बताइए।
2. जे. कृष्णामूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ तथा उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
3. जे. कृष्णामूर्ति द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधि का उल्लेख कीजिए।
4. जे. कृष्णामूर्ति के अनुसार शिक्षा तथा शिक्षार्थी कैसे होने चाहिए?

उत्तर -

जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचार
(Educational Thoughts of J. Krishnamurti)

जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों में उनके दार्शनिक चिन्तन की ही विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। उनका कहना था कि यदि इन विचारों का भागी बालकों को बनाया जाये तथा इसी के अनुरूप शिक्षा दी जाये तो वास्तव में एक नवीन संस्कृति तथा नवीन विश्व का निर्माण सम्भव है। उनका कहना है कि आज विश्व में जिस प्रकार शिक्षाशालाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है उसी प्रकार उनमें छात्रों की संख्या में भी तीव्र वृद्धि हो रही है। लाखों की संख्या में किताबों का प्रकाशन हो रहा है तथा शिक्षा के क्षेत्र में नित नयी खोजें भी हो रही हैं परन्तु उस शिक्षा का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मतभेद तेजी से बढ़ रहे हैं। जाति, धर्म, सम्प्रदाय व भाषा के नाम पर युद्ध हो रहे हैं। आतंकवाद, जनसंख्या, पर्यावरण, भ्रष्टाचार आदि कई समस्याएँ मानव जीवन को अत्यधिक जटिल बना रही हैं। इनके पीछे केवल एक ही कारण है और वह है दूषित शिक्षा प्रणाली। कृष्णामूर्ति जी का मत है कि विश्व की सभी समस्याएँ इतनी गहरी हैं कि उनकी चपेट में पूरी शिक्षा व्यवस्था भी आ गयी है।

कृष्णामूर्ति के अनुसार शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Education According to Krishnamurti)

कृष्णामूर्ति जी ने शिक्षा के अर्थ को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया है -

1. शिक्षा सीखने की कला से सम्बन्धित है। 2. शिक्षा का वास्तविक अर्थ धर्म के वास्तविक रूप को समझना है। 3. शिक्षा ऐसी हो जो आत्मबोध कराए। 4. शिक्षा का तात्पर्य मन को परम्पराओं के बोझ से मुक्त करना है। 5. शिक्षा का तात्पर्य है सत्य की खोज करना। 6. शिक्षा का तात्पर्य है कार्य करने की क्षमता का विस्तार। 7. शिक्षा का तात्पर्य है कार्य को मन लगाकर करना।

शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Education)

कृष्णामूर्ति ने शिक्षा का मूल उद्देश्य एक संतुलित मानव का विकास करना बताया है। उनका कहना है कि यह संतुलित मानव ऐसा हो जो चेतनायुक्त हो, सद्भावना से परिपूर्ण हो, जिसे जीवन के अर्थ व उद्देश्य का ज्ञान हो, जाति, धर्म, संस्कृति, क्षेत्र इत्यादि किसी भी आधार पर पूर्वाग्रहों एवं पूर्व-धारणाओं से मुक्त हो, द्वेष, घृणा तथा हिंसात्मक प्रवृत्तियों से दूर हो, वैज्ञानिक बुद्धि तथा आध्यात्मिकता में समन्वय स्थापित करने में सक्षम हो, मानव मात्र के जीवन को सुखमय बना सके, स्वयं के लिए नवीन मूल्यों को तैयार कर सकता हो तथा एक नवीन संस्कृति व नवीन विश्व का निर्माण कर सकता हो। शिक्षा के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित उद्देश्यों को प्राप्त करना भी अति आवश्यक है -

1. सृजनात्मकता का विकास, 2. व्यावसायिक प्रशिक्षण, 3. संवेदनशीलता का विकास, 4. वैज्ञानिक बुद्धि का विकास, 5. वास्तविक चरित्र का विकास 6. शारीरिक विकास, 7. मानसिक विकास, 8. सांस्कृतिक विकास, 9. आध्यात्मिक मूल्यों का विकास, 10. सामाजिक विकास।

पाठ्यक्रम
(Curriculum)

कृष्णामूर्ति के अनुसार बालकों में प्रभावशाली विधि से व्यक्तिगत, सामाजिक और राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए एक अच्छे पाठ्यक्रम का निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। उपर्युक्त बिन्दुओं को ध् यान में रखते हुए कृष्णामूर्ति ने पाठ्यक्रम निर्माण में निम्नलिखित बिन्दुओं के समावेश पर बल दिया है

1. नैतिक गुणों की शिक्षा - कृष्णामूर्ति के अनुसार आधुनिक युग में तकनीकी ज्ञान के साथ-साथ नैतिक गुणों का विकास भी बहुत महत्वपूर्ण है। शिक्षा मस्तिष्क से सम्बन्धित हो इसके लिए नैतिक गुणों का समावेश बहुत ही आवश्यक है।

2. क्रियाशीलता - कृष्णामूर्ति ऐसे पाठ्यक्रम के पक्षधर हैं जो बालकों में ज्ञान के विकास के साथ-साथ उन्हें क्रियाशील भी बनाए।

3. अधिगम एवं उपयोगिता - पाठ्यक्रम ऐसा हो जो अधिगम में सहायता तथा भावी जीवन के लिए उपयोगी हो। अर्थात् पाठ्यक्रम बालकों की आवश्यकताओं को पूरा करने वाला हो। उन्होंने पाठ्यक्रम में लिखने पर बहुत जोर दिया है।

 

4. उद्देश्यपूर्ण पाठ्यक्रम - शिक्षा का पाठ्यक्रम बालकों के लिए उद्देश्यपूर्ण होना अत्यधिक आवश्यक है। यदि पाठ्यक्रम उद्देश्यरहित होगा तो ऐसे पाठ्यक्रम के अध्ययन का बालक को कोई लाभ नहीं होगा। अतः बालकों के लिए ऐसी पाठ्य सामग्री की आवश्यकता है जो उसके उद्देश्य को पूर्ण कर सके।

 

5. संतुलित पाठ्यक्रम - कृष्णामूर्ति के अनुसार पाठ्यक्रम ऐसा होना चाहिए जो सभी व्यक्तियों के लिए लाभदायक हो, इसलिए उन्होंने संतुलित पाठ्यक्रम पर बल दिया है।

शिक्षण विधियाँ
(Methods of Teaching)

कृष्णामूर्ति व्यावहारिक और सत्यवादी प्रकृति वाले व्यक्ति थे। वे अपने समय की शिक्षा की प्रचलित विधियों को सही नहीं मानते थे। उनके अनुसार करके सीखना तथा स्वयं के अनुभव से सीखना सबसे सर्वोत्तम माना है। वे प्राकृतिक पर्यावरण को शिक्षा का केन्द्र बनाने तथा समस्त ज्ञान व क्रियाओं को उनके माध्यम से विकसित करने के पक्षधर थे। वे ऐसी शिक्षण विधि चाहते थे जिसमें छात्र व अध्यापक के बीच दूरी कम हो और छात्र निष्क्रिय श्रोता न रहकर अनुसंधानकर्ता, निरीक्षणकर्ता तथा प्रयोगकर्ता के रूप में हो। उन्होंने शिक्षण प्रणाली में निम्नलिखित तथ्यों को शामिल करने पर बल दिया है -

1. छात्र की प्रकृति के साथ सम्बन्ध बनाया जाए। 2. छात्र की मानसिक क्षमता जिस प्रकार की हो उसी के अनुरूप शिक्षण पद्धति का चयन करना चाहिए। 3. शिक्षण विधि में ध्यान क्रिया को भी शामिल किया जाए। 4. अनुभव के आधार पर बालक को सीखने के लिए प्रेरित किया जाए।

कृष्णामूर्ति के अनुसार बालक के सम्पूर्ण विकास के लिए निम्न शिक्षण विधियाँ आवश्यक हैं -

(i) वार्तालाप, (ii) अध्ययन, (iii) स्वाध्याय, (iv) अवलोकन, (v) निदिध्यासन, (vi) प्रयोग, (vii) मनन, (viii) व्याख्यान, (ix) श्रवण, (x) दृष्टान्त।

शिक्षक
(Teacher)

जे. कृष्णामूर्ति ने शिक्षक को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनके अनुसार शिक्षक अच्छे व्यक्तित्व वाला एकीकृत मानव होना चाहिए। उसे धैर्य का प्रतीक होना चाहिए। उसका व्यवहार छात्रों से मैत्रीपूर्ण होना चाहिए। छात्रों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। कृष्णामूर्ति का विचार है कि एक आदर्श शिक्षक वही है जो सत्ता व राजनीति के भ्रष्ट प्रभाव से दूर रहकर अपना शिक्षण कार्य पूर्ण ईमानदारी व निष्ठा से करे। पढ़ाने, बताने तथा सिखान का कार्य करे तथा स्वार्थपरता एवं अहंकार को समझने तथा उनसे मुक्ति पाने में अपने शिष्यों की सहायता करे। उनका कहना था कि वर्तमान शिक्षा की प्रकृति पूरी तरह प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा, महत्वाकांक्षा और बाह्य सम्पन्नता का संवर्धन करने में सहायता कर रही है। कृष्णामूर्ति शिक्षकों से अपेक्षा करते हैं कि वे इस प्रकार की शिक्षा के हानिकारक परिणामों एवं इसके प्रभावों को गम्भीरता से समझें तथा इससे मानवता को होने वाले दुष्परिणामों से बचाने में योगदान करें। कृष्णामूर्ति ऐसे शिक्षक के पक्षधर थे जिसमें निम्नलिखित योग्यताओं का समावेश हो -

1. वह सृजनशील होना चाहिए।
2. शिक्षक को तकनीकी का समुचित ज्ञान होना चाहिए।
3. शिक्षक ऐसा हो जो छात्रों का पथ प्रर्दशन करे तथा उसका व्यवहार मित्रतापूर्ण हो।
4. शिक्षक को विद्याथियों में छुपी हुई प्रतिभा को उजागर करने वाला होना चाहिए।
5. शिक्षक में बालकों की रचनात्मक शक्तियों का विकास करने की योग्यता होनी चाहिए।
6. शिक्षक में ऐसा वातावरण उत्पन्न करने की योग्यता होनी चाहिए जिससे छात्र स्व-अनुभव द्वारा सफलतापूर्वक सीख सकें।
7. शिक्षक इतना परिपक्व हो कि वह छात्रों को भली-भाँति समझ सके।

शिक्षार्थी
(Student)

कृष्णामूर्ति शिक्षा प्रक्रिया में शिक्षार्थी को भी महत्वपूर्ण मानते हैं। उनका मत है कि विद्यार्थी ऐसा होना चाहिए जो शिक्षक को सम्मान दे। उसमें आत्मदृढ़ता का समावेश होना चाहिए। वह शारीरिक व समाजिक रूप से पूर्णतया स्वस्थ होना चाहिए। उसे निडर होना चाहिए। छात्र को अपने शिक्षकों के ज्ञान व अनुभव से शिक्षा लेनी चाहिए तथा सत्य की खोज के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।

कृष्णामूर्ति का कहना है कि शिक्षार्थी को बाल्यावस्था से ही उसके व्यक्तित्व के विकास हेतु पूर्णतया स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए। उस पर किसी प्रकार का बन्धन नहीं होना चाहिए। यदि शिक्षार्थी बन्धन मुक्त होगा तो वह परिपक्व होगा तथा वह हर क्षेत्र में अनुसंधान करेगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

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