बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र
प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
उत्तर -
पर्यावरणीय सतत् पोषणता (Environmental Sustainablity) - पर्यावरणीय सतत् पोषणता के निम्नलिखित पांच पहलू हैं -
1. मानवे प्रकृति सम्बन्ध (Man-nature Relationship) - पर्यावरणीय सतत् पोषणता मुख्य उद्देश्य पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का न्यायसंगत उपयोग, रक्षा, संरक्षण तथा उचित प्रबन्ध करना है। इसका यह अभिप्राय नहीं है कि लोगों को संसाधनों के उपयोग से वंचित ही कर दिया जाए, बल्कि उनके उपयोग की ऐसी पद्धति अपनाना है कि ना तो वो नष्ट हो न ही समाप्त हों और न ही उनका प्रदूषण होने पाए। इसके लिए हमें प्राकृतिक तथा आर्थिक विकास के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलना होगा। मॉरिस एफ. स्ट्रॉग ने 1989 में कहा था, "हम पृथ्वी की सम्पत्ति से दूर रहें और इस सम्पत्ति का अत्यधिक ह्रास हो रहा है। हम अपनी धरती की व्यवस्था अधिक देर तक इसी प्रकार नहीं कर सकते और इसकी सम्पत्ति से दूर रहकर कारोबार नहीं चला सकते। यदि हम अपने वर्तमान मार्ग पर ही चलते रहते और यदि पृथ्वी निगमित इकाई होती तो इसका दिवाला निकल जाता"।
2. पारिस्थितिकी एकीकृत (Ecosystem Integrated) - पारिस्थितिकी चरम सीमा तक पहुँचने के लिये काफी लम्बा समय लेती है। चरम सीमा चार लक्षणों द्वारा निर्धारित होती है। ये लक्षण हैं जटिलता, स्थायित्व, विविधता तथा लचीलापन। सभी पारिस्थितिकी तन्त्रों में ये लक्षण होते हैं। यदि इनमें से कोई लक्षण कमजोर होता है तो पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो जाता है। पारिस्थितिकी तन्त्र में बड़ी लोच होती है। यह छोटी-मोटी गड़बड़ियों को तुरन्त ठीक कर लेता है। दुर्भाग्य से हम दूरगामी दुष्प्रभावों को देखने में असमर्थ होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के एकीकृत स्वरूप को तभी बचाया जा सकता है, जबकि हमें उसकी पोषण क्षमता, समावेशन शक्ति तथा उसके पुनः नवीकरण की क्षमता का ज्ञान हो। किसी पारिस्थितिकी तंत्र की पोषण क्षमता उसकी मानवीय तथा पशुओं के जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने की क्षमता को कहते हैं। यदि किसी संसाधन का पोषण क्षमता से अधिक उपयोग किया जाए तो. उसके स्थायित्व को खतरा हो सकता है। प्रौद्योगिकी के विकास में कुछ सहायता मिल सकती है। परन्तु यदि एक बाद पुनः उत्पादन की शक्ति नष्ट हो गई तो प्रौद्योगिकी भी हमारी सहायता नहीं कर सकती। उदाहरण- वर्तमान प्रौद्योगिकी उपजाऊ भूमि के बंजर हो जाने तथा प्रजातियों के नष्ट हो जाने के बाद कम ही सहायक होती है। यदि इस अवस्था में प्रौद्योगिकी सहायक होती भी है तो वह बड़ी महंगी होती है और विशाल धनराशि व्यय करने का कोई औचित्य नहीं होता है।
भूमि के सन्दर्भ में पोषण क्षमता को शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता के रूप में व्यक्त किया जाता है। इसकी गणना भूमि के हर टुकड़े के लिये की जा सकती है। समस्त पृथ्वी की NPP की गणना से विदित होता है कि वह बड़ी तेजी से कम हो रही है। इसका कारण वनों का विनाश तथा अति चराई है। इसी प्रकार शुद्ध जल उत्पादकता की गणना करने के भी प्रयास किये जा रहें हैं। यह अनुमान लगाया गया है किं यदि भारत में नहरों के जल को व्यर्थ न गंवाया जाए तो इसमें 30% की बचत हो सकती है। यदि सिंचाई के लिये जल को परम्परागत ढंग से प्रयोग किया जाए तो सिंचाई के लिये जल की आवश्यकता को 50% तक कम किया जा सकता है और यदि ड्रिप सिंचाई का प्रयोग किया जाए तो और भी अधिक बचत हो सकती है। हमने नदियों से उनकी पोषण क्षमता से अधिक जल निकाल लिया है। इस समय यमुना दिल्ली का मलकुंड बनी हुई है। हम उत्पादन तथा उत्पादकता को कम किए बिना ही उचित योजना द्वारा नदियों को उनका खोया हुआ जीवन वापस दे सकते हैं।
इसी प्रकार से पेड़ों की अधिक कटाई तथा अति चराई के कारण वनों का विनाश बड़े पैमाने पर हुआ है। वनों को विनाश से बचाने के लिये हमें यह निश्चित करना होगा कि मानव एवं पशुओं की संख्या वनों की पोषण क्षमता से अधिक न होने पाए।
पारिस्थितिकी तंत्र के सभी घटकों का एक-दूसरे से गहरा सम्बन्ध है। इसलिये एक घटक को हानि पहुँचने से समस्त पारिस्थितिकी तन्त्र को हानि पहुँचती हैं। भूमि मृदा, जल, वनस्पति, तापमान, पशु तथा सूक्ष्म जीव पारिस्थितिकी तन्त्र को एकरूपता प्रदान करते हैं।
पारिस्थितिकी तन्त्र में अपने आप को शुद्ध करने की भी क्षमता होती है। परन्तु यह क्षमता निश्चित सीमा तक ही होती है। यदि मृदा, वायु या जल में अपशिष्ट पदार्थों को निश्चित सीमा में फेंका जाए, तो प्राकृतिक रूप से ही शुद्धिकरण होता रहता है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब अपशिष्ट पदाथों की मात्रा पारिस्थितिकी तन्त्र के घटकों की वहन शक्ति से अधिक हो जाए। बड़े नगरों के अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा किसी भी नदी की वहन शक्ति से अधिक होती है। कुछ औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ पारिस्थितिकी तन्त्र को अपूर्णीय हानि पहुँचाते हैं।
पारिस्थितिकी तन्त्र का तीसरा लक्षण इसकी पुनः पूर्ण क्षमता है। इस सन्दर्भ में स्थानांतरी कृषि का उदाहरण दिया जा सकता है। इस दृष्टि में भूमि को कुछ देर के लिये खाली रखा जाता है। ताकि भूमि की उपजाऊ शक्ति की पूर्ति प्राकृतिक प्रक्रिया द्वारा जाए। जब भूमि की उपजाऊ शक्ति वापस आ जाती है तो किसान पुनः उस पर फसलें उगाता है। उसे मालूम है कि भूमि की उपजाऊ शक्ति कितने 'वर्षों बाद वापस आएगी। स्पष्ट है कि, सभी नवीकरण योग्य संसाधनों को नवीकरण के लिए कुछ समय अवधि की आवश्यकता होती है, जैसे वनों को उगने में काफी समय लगता है। यह धारणा बिल्कुल गलत है कि नवीकरण योग्य संसाधनों को बिना हानि पहुँचाए किसी भी मात्रा में प्रयोग किया जा सकता है। अतः नवीकरण योग्य संसाधनों को भी विवेकपूर्ण ढंग से प्रयोग करने की आवश्यकता है।
3. जैव-विविधता (Biodiversity) - पर्यावरण की सतत् पोषणता का तीसरा पहलू "जैव- विविधता' हैं अर्थात् प्राकृतिक पर्यावरण में विभिन्न प्रकार की वनस्पति जीव-जन्तु तथा पारिस्थितिकी तन्त्र पाए जाते हैं। सभी पेड़-पौधो तथा जीव जन्तु एक दूसरे पर निर्भर करते हैं और एक के विनाश से कई अन्य तत्वों का विनाश होता है। आयुर्वेद के अनुसार काई से लेकर पीपल तक सभी प्रकार की वनस्पतियां किसी न किसी औषधि के काम आती हैं। जैव-विविधता को सुरक्षित रखने के लिये पारिस्थितिकी तन्त्र को बचाना चाहिए। इसके अतिरिक्त मानवीय पारिस्थितिकी तन्त्र की भी योजना बनानी चाहिए, ताकि आने वाले लगभग 50 वर्षों में हमारे पास और अधिक ऐसे क्षेत्र हों, जहाँ प्रकृति का अपना स्वराज हो। भारत जैसे देश में कृषि के लिए भूमि को प्राप्त करने के लिए वनों का विनाश नहीं करना चाहिये। यह एक अदूरदर्शी नीति है।
4. मानव भूमि अनुपात (Man-Land Ratio) - पर्यावरणीय सतत् पोषण का चौथा पहलू जनसंख्या है। मानव जीवन की गुणवत्ता को पर्यावरण की गुणवत्ता से अलग नहीं किया जा सकता। पारिस्थितिकी तंत्र की पोषण शक्ति मानव-भूमि अनुपात कर निर्भर करती है। यदि प्राकृतिक संसाधनों में वृद्धि किए बिना ही जनसंख्या में वृद्धि हो जाए तो पारिस्थितिकी तन्त्र की पोषण शक्ति कम हो जाती है। यह समस्या उन देशों व क्षेत्रों में अधिक गम्भीर हो जाती है जहां पर लोग अभी भी कृषि तथा अन्य प्राथमिक व्यवसायों पर निर्भर करते हैं। ऐसे क्षेत्रों में लोग जीवित रहने के लिये वनों को काटते हैं और पशुओं को मारते हैं। लोग जीवन निर्वाह मुश्किल से करते है।
ग्रामीण इलाकों से लोगों के नगरों की ओर प्रवास करने से भी पर्यावरण की सतत् पोषणता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। महानगरो में मलिन बस्तियां इसकी ज्वलंत उदाहरण हैं। इन बस्तियों के निवासी पशुओं जैसा जीवन व्यतीत कर रहे हैं।
5. पर्यावरणीय योजना (Environmental Planning)- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के लिये पर्यावरण की योजना बनाना अति आवश्यक है, इसके चार मुख्य उद्देश्य हैं -
(i) पर्यावरण की सुरक्षा,
(ii) ह्रास हो चुके पारिस्थितिकी तन्त्र को पुर्नस्थापित करना,
(iii) प्राकृतिक तथा मानवीय पारिस्थितिकी तन्त्र की पोषण क्षमता बढ़ाना,
(iv) छोटे व बड़े नए पारिस्थितिकी तन्त्रों का निर्माण, विस्तार तथा विकास करना।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
- प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
- प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
- प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?