बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र
अध्याय - 4
मानव विकास
(Human Development)
प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
अथवा
मानव विकास से आप क्या समझते हैं? इसके विषय क्षेत्र एवं उपयोगिता को समझाइए।
अथवा
मानव विकास का अर्थ एवं परिभाषा देते हुये उसके महत्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
(Human Development)
मानव जीवन विभिन्न परिस्थितियों से निकलकर उनके साथ प्रतिक्रिया कर, धीरे-धीरे एक सुव्यवस्थित व्यक्तित्व अर्जित करता है। नन्हा शिशु विकास व वृद्धि को प्राप्त हो एक सन्तुलित सुव्यवस्थित वयस्क के रूप में समाज के समक्ष आता है। वृद्धि एवं विकास के इस निरन्तर क्रम की परिणति वृद्धावस्था, तत्पश्चात् मृत्यु में होती है। मानव का विकास कभी भी स्थिर नहीं रहता। गतिशीलता ही उसका आधार है। एक क्षेत्र की क्रिया, प्रतिक्रिया स्वरूप दूसरे क्षेत्र को भी प्रभावित करती है। यही प्रतिक्रियाऐं मानव विकास में निरन्तरता लाती हैं।
प्रत्येक शिशु अपने व्यवहार में दूसरे शिशु से भिन्न होता है। विकास क्रम में वयस्क मानव भी दूसरे मानव से भिन्न होता है। यह भिन्नताऐं आनुवंशिकता के कारण भी हो सकती हैं, तथा कुछ अन्य जैवकीय कारण भी हो सकते हैं। बालक के जीवन की परिस्थिति व परिवेश के भी अन्य कारण हो सकते हैं। वैयक्तिक अनुभव तथा पारस्परिक सम्बन्धों का महत्व नकारा नहीं जाप सकता।
(Meaning of Development)
विकासात्मक मनोवैज्ञानिक व्यवहार (सामान्य अथवा असामान्य) के उद्गम, परिवर्तन तथा रूपान्तरण को समझने का प्रयास करता है। किस कारण से यह व्यवहार होता है, उन कारकों को समझने का यत्न करता है।
व्यवहार के सभी परिवर्तन विकास नहीं कहलाते। कुछ व्यवहार जैसे भूख लगने के कारण रोना तथा मचलना, भूख शान्त होने के उपरान्त सन्तुष्ट होकर बदल जाते हैं, यह व्यवहार अस्थायी व क्षणिक होते हैं।
विकास शब्द व्यवहार तथा विशेषकों के उस परिवर्तन को व्यक्त करता है जिनका उद्भव सुनिश्चित प्रणाली से होता है तथा जो कुछ उचित समय तक रहते हैं। विकास के यह परिवर्तन प्रतिक्रियाओं के नये सुधरे हुये रूप में व्यक्त होते हैं जिनके कारण व्यवहार अधिक समायोजित, अनुकूल, स्वस्थ, जटिल, स्थायी, कुशल तथा अधिक परिपक्व होता है। उदाहरण के लिये घुटने चलने से पैदल चलना, गर्गलाने से स्पष्ट बोलना, परोक्ष विचारधारा अथवा सोचने से अपरोक्ष विचार तथा सोचना। आत्मकेन्द्रित, अपरिपक्व विचारधारा का दूसरों के प्रति अनुचिंतन में विकसित होना, यह परिवर्तित व्यवहार ही विकास है।
मानव विकास का अध्ययन करने के लिये हमें मानव की प्रथम इकाई पर आना पड़ेगा, वह हैं शिशु। शैशवस्था से लेकर व्यस्क अवस्था तक का अध्ययन मानव विकास के अन्तर्गत आयेगा। यह विकास सामाजिक तथा संवेगात्मक विकास से प्रभावित होगा। बाल्यावस्था के प्रथम छः वर्ष बाल विकास के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। इन वर्षों में बालक के स्वभाव, व्यक्तित्व, कुशलता, समाजीकरण व बौद्धिक विकास के बीज पड़ जाते हैं, जो समयानुसार अंकुरित होकर वयस्क जीवन में आने तक परिपक्व हो जाते हैं। बाल मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि सम्पूर्ण जीवन में यह प्रथम छः वर्ष, जो जन्म से आरम्भ होते हैं, व्यक्तित्व विकास के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। बालक के इन्हीं पाँच छः वर्षों के अध्ययन के आधार पर ही मानव विकास व बाल विकास के उद्देश्य प्राप्त किये जा सकते हैं। बालक राष्ट्र की धरोहर है, जिसका विकास, परिवार, समाज, राष्ट्र व विश्व के लिये अत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्रत्येक परिवार का विश्वोन्नति में यही समग्र योगदान है।
मानव विकास की परिभाषा
(Definition of Human Development)-
बाल विकास व मानव विकास एक दूसरे पर निर्भर करते हैं इसी धारणा के आधार पर निम्नलिखित परिभाषायें दी गई हैं। '
हरलॉक (Hurlock) (1974) के अनुसार - "मानव विकास का आधार बाल विकास में मुख्यत: बालक के रूप, व्यवहार, रुचियों और लक्ष्यों में होने वाले उन विशिष्ट परिवर्तनों की खोज पर बल दिया जाता है, जो उसके एक विकासात्मक अवस्था से दूसरी विकासात्मक अवस्था में पदार्पण करते समय होते हैं। बाल विकास में साथ ही साथ यह खोज करने का भी प्रयास किया जाता है कि यह परिवर्तन कब होते हैं इसके क्या कारण है और यह वैयक्तिक है या सर्वाभौमिक। "
हरलॉक ने विकास की परिभाषा देते हुये कहा है कि विकास से तात्पर्य है "वे व्यवस्थित तथा सम्बन्धित परिवर्तन जो परिपक्वता की प्राप्ति में सहायक हो। "
मसन, कौनगर व कगान (Mussen, Conger & Kagan) के अनुसार - आयु प्रवृत्ति के आधार पर चिन्तन, समस्या निदान, रचनात्मकता, नैतिक तर्क, व्यवहार, विचार धारा, आदि पर किये गये अध्ययन महत्वपूर्ण हैं। इन सब परिवर्तनों के मूल में जो प्रक्रिया व प्रणालीतन्त्र है वहीं अध्ययन का विषय है।
मानव विकास का विषय-क्षेत्र
(Scope of Human Development) -
मानव विकास के अध्ययन के विभिन्न निम्नलिखित विषय क्षेत्र हैं-
1. मानव की वैयक्तिकता को समझने की क्षमता, बालक के विशेषकों की अनुपमेयता तथा जीवन के प्रति दृष्टिकोण, इन सबका विश्लेषण करना।
2. बाल विकास में विभिन्न सिद्धान्तों तथा नियमों को समझना, जिससे कि विकास को आनुवांशिकता, व्यक्ति तथा वातावरण के प्रभाव के सन्दर्भ में भलि भाँति समझ सकें।
3. इस अध्ययन से व्यक्तिगत व्यवहार की रूप रेखा को समुचित रूप से प्रेक्षण करना तथा अर्थ निरूपण करना।
4. बाल अध्ययन के विभिन्न विचारधाराओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन तथा विभेदन करने की क्षमता अर्जित करना।
5. अधिगम तथा समायोजन प्रक्रिया में बालकों को निर्देशित करने के लिये समुचित विचार धाराओं तथा मूल सिद्धान्तों का नियमन करना।
6. बाल विकास के विस्तृत साहित्य में से विभिन्न स्रोत वस्तुओं का चयन करना तथा उनका उपयोग करना।
7. मानव विकास के भविष्य में सम्भावित विकास के बारे में पूर्वकथन करना। .
8. मानव विकास का अध्ययन बालक व वयस्क के आपसी सम्बन्धों को सही ढंग से बनाने में सहायक होता है।
9. मानव की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु उसके समायवर्ति मानसिक अवस्था के आधार पर प्रतिक्रिया समझना। आवश्यकता पूर्ति अवश्य होनी चाहिये व मूलभूत आवश्यकताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) बिना किसी शर्त के बालक को स्वीकृति व स्नेह प्राप्त करने की आवश्यकता की पूर्ति।
(ii) सुरक्षा की आवश्यकता।
(iii) किसी समूह का अंग होना, किसी का अपना होना, तदात्मीकरण (Identification) तथा स्वीकृति की अपेक्षा।
(iv) दूसरों द्वारा पहचाने जाने की आवश्यकता, अनुमोदन प्राप्त करना, महत्वपूर्ण अनुभव करना, तथा जैसा वह है, कार्य करता है, उसी रूप में स्वीकृत होना।
(v) स्वतन्त्र होने की भावना, उत्तरदायित्व निभाना तथा सौंपा जाना तथा निर्णय व चुनाव करने की आवश्यकता आदि।
जब यह तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति में बाधा आती है, अथवा वंचना होती है, तब बालक के विकास में बाधा आती है।
मानव विकास का महत्व
(Importance of Human Development)
बालक अथवा मानव विकास तथा व्यक्तित्व को सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में समझना आवश्यक है। कोई भी एक कारक तत्व अथवा पहलू एकीकृत रूप में नहीं समझा जा सकता। सम्पूर्ण से एकल का सम्बन्ध स्थापित करना आवश्यक है व इसी सन्दर्भ में यह अध्ययन किया जाना चाहिये।
सभी विकास तथा वृद्धि आपस में सहसम्बन्धित हैं। चाहे वह जीव किसी वातावरण से क्रियान्वित हो, संज्ञानात्मक कारकों का संवेगात्मक विकास पर प्रभाव हो, कारण दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, तथा चाहे वह बालक की सामाजिक कारकों का बालक को उत्प्रेरित करने का कारक हो, सभी का प्रभाव एक दूसरे पर निर्भर है। इन सह सम्बन्धों का अत्यन्त गहन महत्व है तथा इनका अध्ययन मानव विकास को समझने में सहायक है।
मानव विकास अध्ययन के उद्देश्य
(Aims and Objectives of Study of Human Development)
मानव विकास शिशु अथवा बाल विकास से आरम्भ होता है। यथार्थ में तो गर्भाधान से ही विकास प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है, पर परोक्ष रूप में जन्म के उपरान्त का विकास ही दृष्टिगत है। इस कारण बालक की वृद्धि एवं विकास के प्रति सभी माता-पिता सचेत रहते हैं। एक सामान्य स्वस्थ बालक राष्ट्र के लिये सम्पत्ति है। मानव विकास इसी दृष्टिकोण से अध्य- यन करता है व एक सर्वरूपेण समृद्ध विकसित बालक का निर्माण करने में सहायक है तथा समुचित समायोजन व सन्तुलित व्यक्तित्व जिसकी विशेषताएँ हैं।
मानव विकास मनोविज्ञान की शाखा है तथा इस प्रकार एक विज्ञान है। यह बालक की क्रियाओं का अध्ययन करती है। इस ज्ञान के आधार पर विभिन्न नियामक निर्धारित करती है, जिसके आधार पर निम्नलिखित उद्देश्य पूर्ण होते हैं-
1. पूर्वकथन या भविष्यवाणी (Prediction)
2. मार्ग निर्देशन (Guidance)
3. नियन्त्रण (Control)
पूर्वकथन या भविष्यवाणी (Prediction) - मानव विकास में बालक की जन्मजात क्षमता का अध्ययन किया जाता है। जिसके आधार पर अर्जित क्षमताओं के बारे में पूर्वकथन दिया जा सकता है। बालक का व्यक्तित्व, शारीरिक कारक, मानसिक तत्व, संवेगात्मक सन्तुलन, सामाजीकरण, मूल्य आदि के विशेष आधार स्थापित किये जा सकते हैं तथा इन सब कारकों का मानव विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा, बालक किस प्रकार के संभावित व्यक्तित्व का हो सकता है, ऐसा पूर्व कथन दिया जा सकता है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव, विशिष्ट परिस्थितियों में बालक की प्रतिक्रिया पर पड़ेगा। वैज्ञानिक अध्ययन होने के कारण यह पूर्वकथन लगभग यथार्थ होगा, तब भी वैयक्तिक्ता के पहलू को नकारा नहीं जा सकता, वह हर समय हर स्थिति में महत्वपूर्ण रहेगा।
मार्ग निर्देशन (Guidance) - नियामकों के आधार पर तुलना करने से, या आंकड़ों व अर्थ निरूपण से अध्यापक वर्ग बालक के व्यवहार के बारे में समझ सकते हैं, तथा बालक की क्षमता, प्रवृति व स्वभाव के आधार पर बालक के लालन-पालन तथा व्यक्तित्व विकास के लिये अभिभावक को सही निर्देशन दे सकते हैं। इसके लिये बालक निर्देशन निदानशालायें (Child Guidance Clinics) तथा रुचि व अभिक्षमता अध्ययन संस्थान सुलभ कराये जा सकते हैं।
नियन्त्रण (Control) - निर्देशन व पूर्वकथन के लिये समुचित वातावरण बनाये रखना आवश्यक है। जिसके लिये प्रत्येक कारक के लिये व प्रत्येक स्तर पर नियन्त्रण रखना आवश्यक है। समाज, विद्यालय, पड़ौस, मित्रगण, पत्र-पत्रिकाएं, मनोरंजन के साधन आदि पर विकास के लिये उपयुक्त वातावरण बनाने के लिये समुचित नियन्त्रण रखा जाना चाहिये, जिससे मानव विकास में यह बाधक ना हो सकें।
(Utility of Studying Human Development)
1. बालक के स्वभाव को समझने में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। विकास का विभिन्न स्तर, विकास को प्रभावित करने वाले कारक, फलस्वरूप व्यक्तित्व का निर्माण व उस पर प्रभाव, असामान्यताएं आदि के बारे में पूर्ण ज्ञान प्राप्त हो जाता है। बालक के व्यवहार से सम्बद्ध गलत धारणाएं जो सामान्य व्यक्ति बना लेता है, उनको दूर करने में सहायता देता है।
2. कुछ सामाजिक संस्थाओं का निर्माण किया जा सकता है जो कि बालक के सम्पूर्ण विकास में सहायक होती है-
(i) बाल कल्याण गृह का निर्माण (Child welfare associations)
(ii) उपचार गृह (Psychological Clinics)
3. निर्देशन व परामर्श के क्षेत्र में सहायता देना। उसके लिये आवश्यक है कि बालक की रुचि, अभिवृति, अभिक्षमता, आवश्यकता, मानसिक योग्यता, शारीरिक तथा बौद्धिक योग्यता आदि के बारे में समग्र व सम्पूर्ण रूप से अध्ययन कर नियामक निर्धारित किये जा सकते हैं। जिनके आधार पर निर्देशन व परामर्श दिया जा सकता है।
4. विभिन्न शिक्षा प्रणालियों व पद्धतियों के निर्धारण में यह सहायक है। बालक की आवश्यकतानुसार मानव विकास को ध्यान में रखते हुये शिक्षा का स्तर, रूप रेखा, पाठ्यक्रम आदि बनाया जा सकता है।
5. मानव की अभिरूचि के आधार पर व्यवसाय का निर्णय किया जा सकता है।
6. मानसिक स्वास्थ्य तथा डॉक्टरी के क्षेत्र में सहायक हो सकता है। शारीरिक व क्षमता के नियामक के आधार पर बालक को निर्देश दिया जा सकता है व कमी दूर की जा सकती है।
7. बाल अपराध के क्षेत्र में इसका प्रयोग कर अपराध प्रवृति से बालक तथा मानव दोनों को बचाया जा सकता है। अपराध क्यों व किन परिस्थितियों में होता है, इसका अध्ययन मानव विकास का क्षेत्र हैं जो नियन्त्रित किया जा सकता है।
8. न्याय के क्षेत्र में उपयोगी है। सुधार गृह, कारावास में सुधार आदि के लिये इस अध्ययन का उपयोग किया जा सकता है।
9. मनोरंजन व खेल मानव व बालक की स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसका अध्ययन, व विभिन्न नियामक तथा विकास की धारणाओं के आधार पर सही स्तर के मनोरंजन व खेल प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
10. परिवार के सदस्यों के मध्य समुचित समायोजन के लिये यह अध्ययन उपयोगी है। परिवार व समाज द्वारा अपेक्षित व्यवहार, अभिवृति व अपेक्षाओं का उचित संशोधन करने में मानव विकास का अध्ययन सहायक है। परिवार समाज, राष्ट्र तथा विश्व के लिये सुव्यवस्थित सदस्य बनने के लिये यह अध्ययन उपयोगी है।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
- प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
- प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
- प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?