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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न - सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारकों पर प्रकाश डालिये।
अथवा
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया मे आर्थिक कारकों के योगदान की व्याख्या कीजिए।

उत्तर -

सामाजिक परिवर्तन के लिए आर्थिक कारक भी उसी प्रकार महत्वपूर्ण हैं जिस प्रकार अन्य कारक महत्वपूर्ण होते हैं। आर्थिक कारकों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध हमारे जीवन यापन के आवश्यक साधनों से होता है। कार्ल मार्क्स के अनुसार, "व्यक्ति जिन्दा रहेगा फिर कहीं वह इतिहास या समाज का निर्माण कर सकेगा और जिन्दा रहने के लिए उसे भोजन, कपड़ा व मकान की आवश्यकता होगी। ये सभी वस्तुऐं केवल आर्थिक प्रयास से ही प्राप्त हो सकती है। यही कारण है कि समाज के आर्थिक ढाँचे में परिवर्तन के साथ-साथ सामाजिक, राजनीतिक तथा सांस्कृतिक जीवन में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन होता है।" इसे हम एक उदाहरण के द्वारा समझ सकते हैं। प्रारम्भ में मनुष्य खानाबदोश था वह केवल शिकार पर निर्भर था। वह शिकार पकड़कर मार कर खा जाता था। उसका जीवन स्थिर नहीं था। उसके बाद व्यक्ति उपयोगी पशुओं को पालने लगा जिससे उसके जीवन में कुछ ठहराव आया। पशुओं के खाने के लिए खेती की जाने लगी। मनुष्य स्वयं अपने खाने के लिए निश्चित स्थान पर रहने व खेती करने लगा। वस्तु के बदले धन का प्रचलन हुआ व व्यक्ति के जीवन में स्थायित्व आ गया। व्यक्ति निश्चित भूमि में रहकर जीवन यापन करने लगा तथा उसका सामाजिक जीवन स्थायी हो गया। व्यक्तियों ने सम्बन्धों का निर्माण किया। इसके बाद औद्योगिक स्तर पर पहुँचते ही आर्थिक तथा राजनीतिक जीवन में अनेक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए। अतः स्पष्ट है कि आर्थिक परिवर्तन व्यक्ति के सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। संक्षेप में इसका विवरण निम्न है -

(1) आर्थिक कारक परिवार और विवाह में परिवर्तन (Economic Factors and Change in Family and Marriage) - आर्थिक कारकों का सर्वाधिक प्रभाव व्यक्ति के परिवार पर पड़ा। उद्योग-धन्धों के विकास, यातायात और साधनों में उन्नति, नगरीकरण और मकानों की समस्या नौकरी का क्षेत्र इन सभी आर्थिक कारकों के कारण परिवार का स्वरूप बदलता जा रहा है। पहले व्यक्ति खेती करता था संयुक्त आमदनी होती है परन्तु नौकरी करने के कारण एकाकी आमदनी होती है तभी व्यक्ति उच्च शिक्षा अपने बच्चों को दिलाना चाहता है यही कारण है कि आज संयुक्त परिवार एकाकी परिवारों में बदल रहे हैं। वर्तमान समय में एकाकी परिवार का ही प्रचलन है। पहले व्यक्ति संयुक्त परिवार में रहकर अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है परन्तु वर्तमान समय में स्त्रियाँ व पुरुष साथ-साथ नौकरी करते हैं व आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर हैं इसी कारण भारतवर्ष में विलम्ब विवाह, प्रेम विवाह व अन्तर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ गया है।

(2) आर्थिक कारक और स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन (Economic Factor and Changes in the Status of Women) - परम्परागत रूप में भारत में स्त्रियों की स्थिति शोचनीय थी मध्यकाल में तो स्त्रियों की दशा बहुत निम्न थी परन्तु आधुनिक समय में आर्थिक कारकों के कारण स्त्रियों की स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये। स्त्रियाँ प्रत्येक व्यवसाय जैसे सरकारी प्रतिष्ठान, गैर सरकारी प्रतिष्ठान, कम्प्यूटर, टेलीफोन एक्सचेंज, दूरदर्शन, आकाशवाणी सभी में पुरुषों के समान कार्य करती हैं इस कारण स्त्रियों की दशा में सुधार भी हुआ। परिवार में उनका सम्मान किया जाने लगा। स्त्रियाँ नौकरी करके अपने परिवार का भरण-पोषण करती हैं। परम्परागत दृष्टिकोण के आधार पर यह क्रान्तिकारी परिवर्तन है। आर्थिक कारकों के परिणामस्वरूप स्त्रियों की स्थिति तथा स्वास्थ्य में सुधार आया है। स्त्रियाँ आत्म-निर्भर होने के कारण अपने फैसले स्वयं लेती हैं।

(3) आर्थिक कारक और जाति वर्ग व्यवस्था में परिवर्तन (Economic Factors and Change in Class) - भारतीय समाज में आर्थिक कारकों के कारण जाति व वर्ग व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन आये हैं। औद्योगीकरण व नगरीकरण के कारण जाति व वर्ग व्यवस्था में कमी आयी है। नगरों में सभी जाति के व्यक्ति साथ मिलकर कार्य करते हैं, साथ खाना खाते हैं, साथ सफर करते हैं इससे जाति-पाँति के विचार स्वयं समाप्त हो रहे हैं। आर्थिक प्रगति के कारण स्त्री-पुरुष सभी कार्य करते हैं। इसी कारण अन्तर्जातीय विवाह को भी प्रोत्साहन मिल रहा है व दहेज प्रथा की समाप्ति हो रही है।

आर्थिक कारकों के कारण वर्ग व्यवस्था में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन आये है। परम्परागत व्यक्ति केवल कृषि पर निर्भर थे व समाज कई वर्गों में बँटा हुआ था परन्तु वर्तमान समाज में व्यक्ति केवल कृषि पर आश्रित नहीं है। उद्योग-धन्धों के विकास ने पूँजीवादी व्यवस्था को जन्म दिया है जिस कारण सम्पूर्ण समाज केवल दो वर्गों में बँट गया है -

(1) पूँजीपति वर्ग
(2) श्रमिक वर्ग।

पूँजीवादी वर्ग शोषक वर्ग के रूप में कार्य करता है जिस कारण श्रमिक वर्ग उससे संघर्ष करता है। वर्तमान समय में श्रमिक वर्ग अपने अधिकारों के प्रति बहुत अधिक जागरुक है। अतः वर्ग संघर्ष अब भारतीय सामाजिक व्यवस्था का प्रमुख अंग बन गया है। संक्षेप में कहा जा सकता है कि वर्ग संघर्ष का प्रमुख आधार दोनों पक्षों के बीच हितों का टकराव है इसी कारण अनेक परिवर्तन घटित होते हैं। इन सब परिवर्तनों का कारण आर्थिक ही है।

(4) आर्थिक कारक और धार्मिक जीवन में परिवर्तन (Economic Factors and Changes in Religious Life) - आर्थिक कारकों के परिणामस्वरूप व्यक्ति के धार्मिक जीवन में भी कई परिवर्तन हुए हैं। आर्थिक विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का विकास अनिवार्य है। ये कारक धर्म के मार्ग में बाधक हैं साथ ही धर्म की अपेक्षा धन के महत्व को बढ़ाते हैं। मिलों, दफ्तरों, कारखानों में सभी धर्मों के व्यक्ति साथ कार्य करते हैं, साथ खाना खाते हैं, साथ घूमते हैं जिससे उन्हें एक-दूसरे को समझने का मौका मिलता है। अपने-अपने त्यौहारों पर एक-दूसरे को निमंत्रित करते हैं जिससे धार्मिक सहिष्णुता का विकास होता है अतः कहा जा सकता है कि आर्थिक कारकों के कारण व्यक्तियों के धार्मिक जीवन में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन घटित हुए हैं।

(5) आर्थिक कारक और जीवन स्तर में परिवर्तन (Economic Factors and Changes in Standard of Life) - आर्थिक कारकों के कारण व्यक्तियों के जीवन स्तर में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। परम्परागत गाँव में यदि रोजगार है तो उसका माध्यम केवल कृषि होता है व उसके लिए कोई उन्नत साधन भी नहीं थे परन्तु वर्तमान समय में गाँवों में कृषि कार्य आधुनिक प्रविधियों से किया जाता है जिससे व्यक्ति का जीवन स्तर तो सुधरा ही है साथ ही उसे श्रम भी कम करना पड़ता है। भारत भौगोलिक व प्राकृतिक साधनों के आधार पर धनी देश है परन्तु वहाँ के निवासी निर्धन कहे जाते हैं इसका प्रमुख कारण आर्थिक ही है। श्रमिक तथा कृषक अपने अज्ञान के कारण सरकार की योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते। इसके अतिरिक्त श्रम का अभाव, पूँजी की कमी, बैंकिंग तथा धन की कमी, परिवहन के साधनों का अभाव आदि आर्थिक कारक हैं जो वहाँ के निवासियों के जीवन स्तर को प्रभावित करते हैं। देश में रहने वाले व्यक्तियों की निर्धनता के कारण अनेक हैं जैसे - उद्योग-धन्धों का विकास न होना, अज्ञानता, पिछड़ापन तथा ग्रामीण क्षेत्रों में उद्योगों का विकास न होना जिससे बेकारी व बेरोजगारी को बढ़ावा मिला है। इसका दूसरा पक्ष यह भी है कि व्यक्ति खुद रोजगार शुरू न करके नौकरी करना चाहता है जिससे बेरोजगारी बढ़ती है। व्यक्ति स्वयं रोजगार शुरू करके अन्य व्यक्तियों को रोजगार दे सकता है परन्तु वह ऐसा नहीं करता इसी कारण प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में व्यक्ति बेरोजगार हो जाते हैं। इन सभी कारकों का रूप आर्थिक ही है।

 

(6) आर्थिक कारक और राजनीतिक जीवन में परिवर्तन (Economic Factors and Changes in Political Life) - चार्ल्स बीयर्ड के अनुसार संविधान एक आर्थिक मसविदा है जिसमें यह देखा जाता है कि जिस देश में बड़े-बड़े पूँजीपति होते हैं वहाँ उनका राज्य पर अत्यधिक प्रभाव होता है। अतः कहा जा सकता है कि आर्थिक कारकों पर राजनीति का प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए अमेरिका में डालर डेमोक्रेसी (प्रजातन्त्र) है परन्तु उस पर बड़े-बड़े पूँजीपतियों का प्रभाव होता है। यही स्थिति भारत में भी है यहाँ पर भी टाटा, बिरला, जे० के० आदि औद्योगिक घरानों का स्पष्ट प्रभाव सरकार पर होता है। ये लोग चुनाव के समय करोड़ों रुपयों से राजनीतिक पार्टियों की सहायता करते हैं जिससे सत्ता में आने के बाद पार्टियों पर इनका प्रत्यक्ष प्रभाव रहता है। विभिन्न देशों के बीच पारस्परिक आर्थिक सहयोग की प्रक्रिया के कारण देश की उन्नति की जाती है व राजनीतिक सम्बन्ध भी मजबूत बनाये जाते हैं। अर्थात् आर्थिक कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समाज के राजनीतिक के कई पक्षों को प्रभावित करते हैं।

(7) आर्थिक कारक और विघटनात्मक परिवर्तन (Economic Factors and Adverse Changes) - आर्थिक कारक संगठन के साथ-साथ विघटन को भी बढ़ावा देते है। औद्योगीकरण व नगरीकरण के कारण अनेक गन्दी बस्तियों का (विकास) निर्माण होता है जिनसे अनेक विघटन सम्बन्धी कारकों का उदय होता है जैसे गन्दी बस्तियों के विकास के कारण मानसिक व शारीरिक रोग बढ़ जाते हैं. मनोरंजन का व्यापारीकरण होता है. अपराध, चोरी, नशाखोरी, डकैती, जालसाजी, शराबखोरी, वेश्यावृत्ति बढ़ जाते हैं। आर्थिक कारकों के कारण स्त्रियाँ घर से बाहर नौकरी के लिए जाती हैं जिससे उनका पारिवारिक जीवन तो प्रभावित होता ही है साथ ही बच्चों की उचित देख-रेख न होने के कारण उनमें अपराधी प्रवृत्ति बढ़ जाती है। कई बार स्त्रियों का मानसिक व शारीरिक दोनों प्रकार से शोषण होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
  2. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
  3. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  5. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
  15. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
  23. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
  25. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
  27. प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
  28. प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
  29. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
  36. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  37. प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  38. प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
  40. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
  41. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
  42. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
  43. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
  47. प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
  49. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
  51. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
  52. प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
  53. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  56. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  57. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  58. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  62. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  63. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  64. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  66. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  68. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  70. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  71. प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
  72. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
  73. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  74. प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  75. प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
  76. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
  77. प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  78. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
  79. प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
  80. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
  81. प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
  82. प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
  83. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
  84. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
  85. प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  86. प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
  94. प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  95. प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
  96. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
  97. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
  98. प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
  99. प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
  100. प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
  105. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
  107. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  109. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  110. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  113. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  115. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
  116. प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
  117. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  118. प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
  119. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
  121. प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  122. प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
  123. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
  125. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  126. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
  127. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  128. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  129. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  130. प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
  131. प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  133. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  134. प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  135. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  136. प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
  137. प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
  138. प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
  139. प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
  140. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  141. प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
  142. प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
  143. प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  144. प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
  145. प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
  146. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  147. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
  148. प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  149. प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  151. प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  152. प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  153. प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  154. प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
  155. प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  156. प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
  157. प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  159. प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?

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