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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2684
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र

प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।

अथवा
पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। भारत के सामाजिक और आर्थिक विकास में पंचवर्षीय योजनाओं का योगदान बताइये।

उत्तर -

पंचवर्षीय योजनाएँ भारत का जो खोखला ढाँचा अंग्रेज हमें सौंप गए थे, उसको फिर से किसी योग्य बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाओं को अपनाने के अतिरिक्त और कोई उपाय न था। अतः स्वतन्त्रता के कुछ समय बाद ही सन् 1951 से देश में पंचवर्षीय योजनाएँ आरम्भ की गई। भारत में सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने में इन योजनाओं का महत्वपूर्ण हाथ रहा है। सामाजिक नीति में तय किए गए अपने उद्देश्यों और क्रमिक अवस्था के अनुरूप विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु पंचवर्षीय योजनाएँ तैयार की गई। सन् 1950 में तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक "राष्ट्रीय योजना आयोग" की स्थापना हुई। इस आयोग ने छः महीने विचार- विमर्श के पश्चात जुलाई सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना का प्रारूप पारित किया, जो दिसम्बर 1952 में संशोधित रूप से स्वीकार कर लिया गया।

पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय विश्लेषण / मूल्यांकन
(Sociological Appraisal of Five Year Plans)

पंचवर्षीय योजनाऐं विकास के लिए किया जाने वाला एक बहुआयामी प्रयास है। इन योजनाओं का उद्देश्य जहाँ आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है वहीं सामाजिक विकास पर भी ध्यान देना है। कुल मिलाकर संतुलित विकास को अप नाना पंचवर्षीय योजनाओं का प्रमुख ध्येय है। साथ ही प्रजातान्त्रिक नियोजन के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये सम्पूर्ण प्रशासनिक व्यवस्था का पुनर्गठन करना भी पंचवर्षीय योजनाओं की एक महत्वपूर्ण विशेषता है। इसके अतिरिक्त पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से लोगों के जीवन स्तर में सुधार किया जाता है। इस हेतु अनेक प्रकार के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के कार्यक्रमों को पंचवर्षीय योजनाओं में अपनाया जाता है। सन् 1951 में योजना आयोग की सर्वप्रथम बैठक में आयोग के अध्यक्ष पं. जवाहर लाल नेहरू में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा था कि पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यमों से निर्धनता को कम किया जायेगा। इस हेतु उन्होंने सार्वजनिक एवं निजी दोनों उपक्रमों से मिलजुलकर कार्य करने पर आधार पर सामाजिक नीति तभी सफल हो सकती है जबकि नियोजन के लक्ष्य उचित होंगे तथा उन्हें क्रियान्वित करने वाले साधन निष्पक्ष होंगे।

दसवी पंचवर्षीय योजना के माध्यम से विकास कार्यों का संचालन किया गया। इस योजना का कार्यकाल 31 मार्च, 2007 तक था। इन दस पंचवर्षीय योजनाओं ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी है सामाजिक एवं आर्थिक विकास को गति मिली है। विश्व में भारत ने अपनी एक अलग पहचान बनायी है। भारतीय समाज पर इन पंचवर्षीय योजनाओं के प्रभावों को समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से मूल्यांकन किया जाना, नितान्त आवश्यक है। पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन हम सफलता और विफलता दोनों दृष्टिकोण से करेंगे।

पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता

पंचवर्षीय योजनाओं का अब तक 61 वर्ष का कार्यकाल सन्तोषजनक रहा है। आर्थिक विकास के क्षेत्र में तो भारत ने तीव्र सफलता प्राप्त की है, सामाजिक विकास को भी गति मिली है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से देखा जाए तो अनेक उपलब्धियाँ हमारे सामने हैं पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन में उत्पादन और वितरण में सामन्जस्य को बनाये रखा गया है। इससे लाभ यह होता है कि न केवल उत्पादन में वृद्धि होती है, अपितु उत्पादित वस्तुओं का सही उपभोग भी होता है। आर्थिक नीति की सफलता के लिये उत्पादन और वितरण के साधनों में सामजस्य आवश्यक भी होता है। निम्नलिखित क्षेत्रों में सफलता हासिल हुई है -

(1) सामाजिक समानता के क्षेत्र में भी पंचवर्षीय योजनाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है - पंचवर्षीय योजनाओं में समाज के उपेक्षित वर्ग पर विशेष ध्यान दिया जाता है। सामाजिक सेवा के नाम से पंचवर्षीय योजनाओं में पर्याप्त धन खर्च किया जाता है। इसके अन्तर्गत समाज के दुर्बल तथा शोषित वर्गों के आवास स्वस्थ्य एवं शिक्षा पर पर्याप्त खर्च किया गया है और किया जा रहा है। यद्यपि इन तीनों क्षेत्रों पर पर्याप्त विजय तो प्राप्त नहीं की जा सकी है। किन्तु स्थिति में आशानुकूल सुधार अवश्य आया है। इससे समाज के उपेक्षित वर्ग को एक सम्मानजनक पहचान मिलने लगी है। आरक्षण की सुविधा ने भी समाज कल्याण एवं समाज के शोषित वर्ग को आगे बढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। यद्यपि आरक्षण के औचित्य को लेकर अनेक भ्रांतियाँ हैं तथा इस पर पर्याप्त बहस चल रही है तथापि जातिगत आधार पर सामाजिक संस्तरण को अपनाते हुए, विभिन्न नौकरियों में अनेक प्रकार की सुविधायें प्रदान की जा रही हैं। जातियों को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा सामान्य जाति में रखा गया है तथा प्रथम तीन श्रेणियों को पंचवर्षीय योजनाओं में पर्याप्त महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इससे सामाजिक व्यवस्था में इन तीनों श्रेणियों के कारण वर्गविहीन समाज की स्थापना तो सम्भव है, किन्तु विभिन्न वर्गों के मध्य आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक स्तर पर व्याप्त असमानता की दूर करने में अवश्य सफलता मिल रही है। इस स्थिति ने सामाजिक विकास को प्रोत्साहन दिया है। किसी भी समाज का विकास तभी सम्भव है, जबकि समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चला जाये। भारत में पंचवर्षीय योजनाओं ने यह कार्य किया है।

(2) पंचवर्षीय योजनाओं ने ग्रामीण विकास पर भी पर्याप्त ध्यान दिया है - भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा भारतवर्ष का एक बड़ा हिस्सा क्षेत्रफल ग्रामीण क्षेत्र के रूप में है। चतुर्थ पंचवर्षीय योजना जिस पर कि 16,021 करोड़ रुपया खर्च किया गया, से ग्रामीण विकास पर अधिक ध्यान दिया गया। इस योजना के माध्यम से ग्रामीण जनता के लिये और अधिक सुविधायें बढ़ाने पर ध्यान दिया गया। सरकार ने 1998-99 के लिये अपने बजट में ग्रामीण विकास के कुछ कार्यों का निर्धारण किया जिनमें से प्रमुख है गाँवों के उन व्यक्तियों के लिये जो रोजगार चाहते हैं, उन्हें वर्ष में 100 दिन का रोजगार उपलब्ध कराना, ग्रामीणों के लिये स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था, गाँवों में नए कुएं खुदवाने हेतु 450 रुपये का निर्धारण, गाँवों में शौचालयों का निर्माण, किसानों को उनकी जोतों के आधार पर " किसानों क्रेडिट कार्ड" दर पर ऋण प्राप्त कर सकें इत्यादि।

(3) समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम - इसके अन्तर्गत ग्रामीण विकास के लिये अनेकों योजनायें चलायी गयी जिन्होंने ग्रामीण समाज के परिदृश्य को परिवर्तित करके रख दिया है। पिछड़े हुए गाँवों को मुख्य भागों एवं सम्पर्क भागों से जोड़ दिया गया है। सूचना तकनीकी के इस युग में अधिकांश गाँवों को सूचना नेटवर्क से जोड़ दिया गया है। इससे ग्रामीण समाज के आधुनिकीकरण एवं विकास में पर्याप्त सहायता मिली है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारन्टी अधिनियम 2006 ग्रामीण विकास के क्षेत्र में एक अभूर्तपूर्व कदम है। कुल मिलाकर पंचवर्षीय योजनाओं ने भारतवर्ष योजनाओं ने भारतवर्ष में नगरीय एवं ग्रामीण जीवन के मध्य व्याप्त सुविधाओं के बड़े अन्तर को कम किया है जिससे यहाँ सामाजिक विकास ने एक नई दृष्टि प्राप्त की है।

पंचवर्षीय योजनाओं की सफलता शीर्षक के अन्तर्गत हमने देखा कि भारतवर्ष में पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से सामाजिक समानता पर अधिक ध्यान दिया गया। न केवल समाज के उपेक्षित वर्गों को सुविधायें प्रदान की गई हैं, बल्कि ग्रामीण समाज को ("Urbon Look) भी दिया जा रहा है। इससे भारतीय सामाजिक व्यवस्था में बाप्त असमानता धीरे-धीरे दूर हो रही है तथा आशा की जा सकती है कि वर्ष 2020 तक भारत में सामाजिक असमानता एक बड़ी सीमा तक दूर कर ली जायेगी।

पंचवर्षीय योजनाओं की कमियाँ

भारत में कुशल एवं शिक्षित नेतृत्व के अभाव में नीतियों का क्रियान्वयन पूरी तरह से नौकरशाही के हाथों में है जिसका दुरुप्रयोग किया जा रहा है। सरकार पैसा तो पर्याप्त खर्च कर रही है किन्तु जनता तक कितना पहुँच रहा है, यह ध्यान देने योग्य बात है, तीव्र जनसंख्या वृद्धि भी नियोजित विकास की एक बड़ी बाधा बनकर उभरी है। कुछ बिन्दु हैं जिन्होंने पंचवर्षीय योजनाओं के सुखद अनुभव को कटु किया है, उन पर दृष्टिपात आवश्यक है।

(1) पंचवर्षीय योजनाओं की एक अन्य भारी कमी कृषि एवं उद्योग के मध्य असमायोजन है - भारत प्रारम्भ से ही कृषि प्रधान देश है। आर्थिक विकास के लिये कृषि का विकास कोई बुरा विचार नहीं है किन्तु यहाँ कृषि को उपेक्षित रखा गया, औद्योगीकरण तथा नगरीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है। दैनिक उपयोग की विभिन्न वस्तुओं का प्रतिवर्ष आयात किया जाना कृषि के क्षेत्र में हमारी विफलता का प्रमाण है।

(2) भारतवर्ष की प्रशासकीय मशीनरी भी पंचवर्षीय योजनाओं के सफल क्रियान्वयन में एक बड़ी बाधा है - भारत में राजनीतिज्ञों का स्तर इतना गिरा हुआ है कि बुद्धि विवेक का कार्य सम्बन्धित नौकरशाह करते हैं। वे अपने से सम्बन्धित राजनीतिज्ञ की सत्ता बचाये रखते हैं और बदले में योजनाओं के धन का एक बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचार को भेंट चढ़ जाता है। योजनाओं पर खर्च किये धन एवं किये गये विकास कार्यों के मध्य एक बड़ी दूरी इसका प्रभाव है। इस ओर दिये जाने की आवश्यकता है। '

(3) जनसंख्या की विस्फोटक स्थिति - दसवीं पंचवर्षीय योजना खत्म हो चुकी है। विकास के लिये प्रत्येक क्षेत्र पर ध्यान दिया गया है किन्तु एक महत्वपूर्ण क्षेत्र अभी भी नियन्त्रण से बाहर है वह है जनसंख्या वृद्धि। जनसंख्या वृद्धि को किसी भी रूप में नहीं रखा गया। स्थिति हमारे सामने है। आज भारत की जनसंख्या चिन्ता के शिखर पर पहुँच चुकी है। इसके लिये अन्धविश्वास, कुपोषण, निर्धनता एवं निरक्षरता पूर्ण रूप से उत्तरदायी हैं। दूसरे नीति निर्माता पूर्णतः राजनीतिज्ञ हो चुके हैं। समाज के विभिन्न वर्ग उनके वोट बैंक हैं। जनसंख्या नियन्त्रण का कोई भी प्रयास इस वोट बैंक को धक्का दे सकता है। सच कहें तो सत्ता लोलुपता ने नीति-निर्माताओं की मानसिकता को कुदं कर दिया है।

संक्षेप में कह सकते हैं कि पंचवर्षीय योजनाओं के क्रियान्वयन का प्रभाव मिला-जुला रहा है। यद्यपि अनेक क्षेत्रों पंचवर्षीय योजनाओं तथापि कुछ कमियों पर ध्यान दिया जान आवश्यक है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
  2. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
  3. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  5. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  13. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
  15. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  16. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
  23. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
  25. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
  27. प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
  28. प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
  29. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
  30. प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
  36. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  37. प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
  38. प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
  40. प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
  41. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
  42. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
  43. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
  46. प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
  47. प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
  49. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
  51. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
  52. प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
  53. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  54. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  56. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  57. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  58. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
  59. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  61. प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  62. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  63. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  64. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  66. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  67. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  68. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  70. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  71. प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
  72. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
  73. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
  74. प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  75. प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
  76. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
  77. प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  78. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
  79. प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
  80. प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
  81. प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
  82. प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
  83. प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
  84. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
  85. प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  86. प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  87. प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  89. प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
  93. प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
  94. प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  95. प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
  96. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
  97. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
  98. प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
  99. प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
  100. प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  101. प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  104. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
  105. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
  107. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  108. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  109. प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
  110. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  111. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  113. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  114. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  115. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
  116. प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
  117. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  118. प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
  119. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
  120. प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
  121. प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
  122. प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
  123. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  124. प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
  125. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  126. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
  127. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
  128. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
  129. प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
  130. प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
  131. प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
  133. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
  134. प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  135. प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
  136. प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
  137. प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
  138. प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
  139. प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
  140. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
  141. प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
  142. प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
  143. प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  144. प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
  145. प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
  146. प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  147. प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
  148. प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  149. प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
  150. प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
  151. प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  152. प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  153. प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  154. प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
  155. प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
  156. प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
  157. प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
  158. प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  159. प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?

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