बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र चतुर्थ प्रश्नपत्र - परिवर्तन एवं विकास का समाजशास्त्र
प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
उत्तर -
विश्व / वैश्विक प्रणाली सिद्धान्त - विश्व प्रणाली सिद्धान्त विश्व World System Theory - इतिहास एवं सामाजिक परिवर्तन को समझने का एक तन्त्र सिद्धान्त है। इसका मानना है कि सामाजिक अध्ययन के लिए पूरे विश्व को मूल इकाई माना जाना चाहिए, न कि देशों या राज्यों को विश्व राष्ट्र- राज्यों में बटाँ हुआ है, पर उसे एक वैश्विक प्रणाली के रूप में देखने का आग्रह करने वाले विद्वान इस विभाजन को एकता के सन्दर्भ में समझने का प्रयास करते हैं। उनकी मान्यता है कि सामाजिक सीमाओं और सामाजिक निर्णय प्रक्रिया का अध्ययन करने के लिए राष्ट्र राज्यों को एक इकाई के रूप में ग्रहण करने के बजाए वैश्विक प्रणाली को विश्लेषण का आधार बनाया जाना चाहिये। इस वैश्विक परियोजना के आधार पर किये गये सूत्रीकरण को 'वैश्विक प्रणाली सिद्धान्त के रूप में जाना जाता है। इसका विकास पचास के दशक में प्रतिपादित निर्भरता - सिद्धान्त की रैडिकल प्रस्थापनाओं और इतिहास लेखने के फ्रांसीसी अनाल स्कूल से प्रभावित हैं। वर्ल्ड सिस्टम थियरी के मुख्य जनक इमैनुएल वालस्टीन हैं। वालस्टीन और वैश्विक प्रणाली के अन्य सिद्धान्तकार मानते हैं कि विश्व की पूँजीवादी अर्थव्यवस्था चार बुनियादी अन्तर्विरोधों से ग्रस्त है जिसके कारण उसका अंत अवश्यम्भावी है, भले ही शीत युद्ध के खात्मे और सोवियत संघ के पराभाव के कारण फिलहाल सारी दुनिया में उसका प्रसार हो गया है। इनमें पहला अंतर्विरोध है आपूर्ति और माँग के बीच का लगातार जारी असन्तुलन। यह असन्तुलन तब तक जारी रहेगा जब तक उत्पादन सम्बन्धी निर्णय फर्म के स्तर पर लिए जाते रहेंगें। दूसरा है उपभोग से पैदा हुए अधिशेष मूल्य के एक हिस्से को अपने मुनाफे के तौर पर देखने की पूँजीपतियों की प्रवृत्ति। अधिशेष को और बड़े पैमाने पर पैदा करने के लिए आगे चलकर मौजूदा अधिशेष का पुनर्वितरण करना होगा। तीसरा अन्तर्विरोध राज्य की क्षमताओं से ताल्लुक रखता है कि आखिर कब तक राज्य की संस्था पूँजीवाद की वैधता कायम रखने के लिए मजदूरों का समर्थन हासिल करने में कामयाब होती रहेगी। चौथा अन्तरर्विरोध एक वैश्विक प्रणाली और अनगिनत राज्यों के बीच है। इन दोनों के सह-अस्तित्वं से प्रणाली का विस्तार तो हुआ है, पर साथ ही प्रणालीगत संकटों से निबटने के लिए जरूरी बेहतर आपसी सहयोग की सम्भावनाएँ भी कम हुई हैं।
विश्व पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रति आलोचनात्मक रवैया रखने वाले ये विद्वान इस प्रणाली को एक ऐतिहासिक व्यवस्था के तौर पर देखते हैं। जिसकी संरचनाएँ उसके भीतर मौजूद किसी भी राजनीतिक इकाई के मुकाबले भिन्न स्तर पर काम करती हैं। वालस्ट्रीन ने समकालीन वैश्विक प्रणाली का उद्गम 1450 से 1670 के बीच माना है। इस अवधि को वे 'दि लौंग सिक्सटीथ सेंचुरी की संज्ञा देते हैं। इससे पहले पश्चिमी यूरोप सामंती दौर में था और आर्थिक उत्पादन तकरीबन पूरी तरह खेतिहर पैदावार पर निर्भर था। वालस्टीन के मुताबिक 1300 के बाद एक तरफ तो खेहिहर उत्पादन में तेज गिरावट हुई और दूसरी ओर यूरोपीय जलवायु के कारण किसान आबादी के बीच पहले से कहीं ज्यादा महामारियाँ फैलने लगीं। 16वीं सदी में ही यूरोप पूँजीवादी विश्व अर्थव्यवस्था की स्थापना की तरफ बढ़ा। सामंतवाद के तहत उत्पादन उत्पादकों के अपने उपभोग के लिए होता था, पर नयी प्रणाली में उत्पादन का मकसद बाजार में विनिमय हो गया। बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के कारण उत्पादकों की आमदनी अपने उत्पादन से कम हो गयी और भौतिक वस्तुओं का अनंत संचय ही पूँजीवाद की चालक शक्ति बन गया।
नये युग में आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया बाजार के दायरे को भौगोलिक विस्तार की तरफ ले गयी, श्रम पर नियन्त्रण के विभिन्न रूप विकसित हुए और यूरोप में ताकतवर राज्यों का उदय हुआ। जो नयी अर्थव्यवस्था बनी, वह दो मायनों में पहले से चली आ रही व्यवस्था से भिन्न थी। वह साम्राज्यों की सीमा से परे जाते हुए एक से अधिक राजनीतिक प्रभुत्व केन्द्रों के साथ बनी रह सकती थी और उसका प्रमुख लक्षण था केन्द्र और परिधि के बीच श्रम का एकमात्र अन्तर्राष्ट्रीय विभाजन।
वैश्विक प्रणाली के सिद्धान्तकार मानते हैं कि इस परिवर्तन से सर्वाधिक फायदा जिन देशों को हुआ, उन्हीं ने इसके केन्द्र की रचना की। शुरू में उत्तर-पश्चिमी यूरोप के फ्रांस, इंग्लैण्ड और हालैण्ड जैसे देशों ने यह भूमिका निभायी। इस क्षेत्र की विशेषता थी मजबूत केन्द्र वाली सरकारें और उनके नियन्त्रण में तैनात रहने वाली भाडे पर काम करने वाली बड़ी-बड़ी फौजें केन्द्रीय सत्ता से सम्पन्न इन सरकारों की मदद से पूँजीपति वर्ग को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सूत्र अपने हाथ में लेने का मौका मिला और वह इससे अधिक अधिशेष खींचने लगा। शहरों में होने वाले कारखाना आधारित निर्माण में जैसे-जैसे बढ़ोत्तरी हुई, वैसे-वैसे बहुत बड़ी संख्या में भूमिहीन किसान शहरों की ओर जाने लगे। दूसरी तरफ कृषि सम्बन्धी प्रौद्योगिकी में हुए विकास के कारण खेती की पैदावार बढ़ती गयी। वैश्विक प्रणाली के केन्द्र में जो क्षेत्र था, उसमें पूँजी का संकेन्द्रण होता चला गया। बैकों, विभिन्न व्यवसायों, व्यापार और कारखाना आधारित कुशल उत्पादन के विस्तार ने मजदूरी आधारित, श्रम पर आधारित अर्थव्यवस्था के जारी रहने की परिस्थितियाँ पैदा की।
दूसरी तरफ परिधि के क्षेत्र थे जिनके बारे में वैश्विक प्रणाली के सिद्धान्तकारों की मान्यता थी कि उनमें स्थित राज्यों में मजबूत केन्द्र वाली सरकारें नहीं थी और वे मजदूरी आधारित श्रम पर निर्भर होने के बजाए बाह्यकारी श्रम के आधार पर अपना उत्पादन संयोजित करते थे। परिधि में स्थित ये क्षेत्र केन्द्र स्थित राज्यों को कच्चा माल सप्लाई करके अपनी अर्थव्यवस्थाएँ चलाते थे। 16वीं सदी में परिधि के मुख्य क्षेत्र लातीनी अमेरिका और पूर्वी यूरोप में माने गये। लातीनी अमेरिका में स्पेनी और पुर्तगीज शासन के कारण स्थानीय नेतृत्व नष्ट हो गया था और उनकी जगह कमजोर नौकरशाहियाँ यूरोपीय नियन्त्रण के तहत काम कर रही थीं। देशी आबादी पूरी तरह गुलामी के बन्धन में थी। अफ्रीका से गुलामों का आयात करके खेती और खनन का काम करवाया जाता था। स्थानीय कुलीनतन्त्र विदेशी मालिकानों के साथ साठ गाँठ किये हुए था। यूरोपीय ताकतों का मकसद ऐसे माल का उत्पादन करना था जिसका उपभोग उनके गृह- राज्यों में हो सके।
वैश्विक प्रणाली के सिद्धान्तकारों ने अर्थ- परिधि के तीसरे क्षेत्र की शिनाख्त भी की, जो केन्द्र और परिधि के बीच बफर की भूमिका निभा रहा था। अर्ध-परिधि के क्षेत्र केन्द्र वाले इलाकों में भी हो सकते थे और उनका ताल्लुक अतीत की समृद्ध अर्थव्यवस्थाओं से भी हो सकता था। लेकिन 16वीं सदी के दौरान वे अपेक्षाकृत गिरावट के दौर से गुजर रहे थे। केन्द्रस्थ राज्य उनका शोषण करते थे और उनके द्वारा बदले में परिधि वाले क्षेत्रों का दोहन हो रहा था। वालस्टीन और उनके अनुयायी 16वीं से 21वीं सदी तक वैश्विक प्रणाली के विकास को दो चरणों में व्याख्यायित करते हैं
1. पहला चरण 18वीं सदी तक चला। इस दौरान यूरोपियन राज्य और ताकतवर हुए। एशिया और अमेरिका से हुए व्यापार के कारण मजदूरी पर काम करने वाले श्रमिकों की कीमत पर अमीर और प्रभावशाली व्यापारियों का एक छोटा सा हिस्सा मालामाल हो गया। राजशाहियों की ताकत बढ़ी और सर्वसत्तावादी राज्य ने अपना झंडा गाड़ दिया। अल्पसंख्यकों के निष्कासन खासकर यहूदियों को जलावतन कर दिये जाने के बाद यूरोप की आबादी समरूपीकरण की तरफ बढ़ी।
2. दूसरे चरण के तहत 18वीं सदी में औद्योगीकरण ने खेतिहर उत्पादन की जगह लेनी शुरू की। यूरोपीय राज्य नये-नये बाजारों की खोज में लग गये। अगले दो सौ साल तक आधुनिक विश्व प्रणाली में एशिया और अफ्रीका जैसे नये-नये क्षेत्रों को शामिल करने की प्रक्रिया जारी रही। परिणामस्वरूप आर्थिक अधिशेष बढ़ता गया। 20वीं सदी के शुरूआती दशकों में इस वैश्विक प्रणाली का चरित्र वास्तव में भूमण्डलीय बना।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताते हुए सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का विवरण दीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नियोजित सामाजिक परिवर्तन की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में नियोजन के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते है? सामाजिक परिर्वतन के स्वरूपों की व्याख्या स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइये? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।.
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए - (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रूपांतरण किसे कहते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक नियोजन की अवधारणा को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रवर्जन व सामाजिक परिवर्तन पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति में सहायक दशाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के लिए जैव-तकनीकी कारण किस प्रकार उत्तरदायी है?
- प्रश्न- सामाजिक प्रगति को परिभाषित कीजिए। सामाजिक प्रगति और सामाजिक परिवर्तन में अन्तर कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- समाज में प्रगति के मापदण्डों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- उद्विकास व प्रगति में अन्तर स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- "भारत में जनसंख्या वृद्धि ने सामाजिक आर्थिक विकास में बाधाएँ उपस्थित की हैं।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन मे आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारत के सन्दर्भ में समझाइए।
- प्रश्न- भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था के बारे समझाइये।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था का नये स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपादेयता व सीमाओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- मिश्रित अर्थव्यवस्था की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
- प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
- प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- सतत् विकास की संकल्पना को बताते हुये इसकी विशेषतायें लिखिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास का महत्व अथवा आवश्यकता स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास के उद्देश्यों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- विकास से सम्बन्धित पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की विधियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरणीय सतत् पोषणता के कौन-कौन से पहलू हैं? समझाइये।
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यकता / महत्व को स्पष्ट कीजिये। भारत जैसे विकासशील देश में इसके लिये कौन-कौन से उपाय किये जाने चाहिये?
- प्रश्न- "भारत में सतत् पोषणीय पर्यावरण की परम्परा" शीर्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता क्या है? भारत में जीवन की गुणवत्ता को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
- प्रश्न- जीवन की गुणवत्ता के आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- स्थायी विकास या सतत विकास के प्रमुख सिद्धान्त कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सतत् विकास सूचकांक, 2017 क्या है?
- प्रश्न- सतत् पोषणीय विकास की आवश्यक शर्ते कौन-कौन सी हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख सिद्धान्तों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- समरेखीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- भौगोलिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उद्विकासीय समरैखिक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक प्रसारवाद सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- वेबर एवं टामस का सामाजिक परिवर्तन का सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी निर्णायकवादी सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा वेब्लेन के सिद्धान्त से अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स व वेब्लेन के सामाजिक परिवर्तन सम्बन्धी विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
- प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए!
- प्रश्न- जनसांख्यिकी विज्ञान की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सॉरोकिन के सांस्कृतिक सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक) एवं भावात्मक (विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाज पर प्रौद्योगिकी का प्रभाव बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिक कारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते हैं? सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में क्या भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- जनांकिकीय कारक से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के विकास पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी के कारकों को बताइये एवं सामाजिक जीवन में उनके प्रभाव पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सन्देशवहन के साधनों के विकास का सामाजिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स तथा वेब्लन के सिद्धान्तों की तुलना कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मीडिया से आप क्या समझते है?
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र को परिभाषित कीजिए तथा उसका विषय क्षेत्र एवं महत्व बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र बताइये?
- प्रश्न- विकास के समाजशास्त्र के महत्व की विवेचना विकासशील समाजों के सन्दर्भ में कीजिए?
- प्रश्न- विश्व प्रणाली सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- केन्द्र परिधि के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विकास के उपागम बताइए?
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- विकास के प्रमुख संकेतकों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास में योजना की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक तथा आर्थिक नियोजन में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- भारत में योजना आयोग की स्थापना एवं कार्यों की व्याख्या कीजिए?
- प्रश्न- भारत में पंचवर्षीय योजनाओं की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये तथा भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए?
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पर्यावरणीय समस्याएँ एवं नियोजन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय प्रदूषण दूर करने के लिए नियोजित नीति क्या है?
- प्रश्न- विकास में गैर-सरकारी संगठनों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- गैर सरकारी संगठनों से आप क्या समझते है? विकास में इनकी उभरती भूमिका की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- भारत में योजना प्रक्रिया की संक्षिप्त विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास के मार्ग में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पंचवर्षीय योजनाओं से आप क्या समझते हैं। पंचवर्षीय योजनाओं का समाजशास्त्रीय मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवाद पर मार्क्स के विचारों का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- लोकतंत्र को परिभाषित करते हुए लोकतंत्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- लोकतंत्र के विभिन्न सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में लोकतंत्र को बताते हुये इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अधिनायकवाद को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषताओं का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- क्षेत्रीय नियोजन को परिभाषित करते हुए, भारत में क्षेत्रीय नियोजन के अनुभव की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- नीति एवं परियोजना नियोजन पर एक टिप्पणी लिखिये।.
- प्रश्न- विकास के क्षेत्र में सरकारी संगठनों की अन्य भूमिका है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- गैर-सरकारी संगठन (N.G.O.) क्या है?
- प्रश्न- लोकतंत्र के गुण एवं दोषों की संक्षिप्त में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सोवियत संघ के इतिहासकारों द्वारा अधिनायकवाद पर विचार पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- शीतयुद्ध से आप क्या समझते हैं?