बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
उत्तर -
अस्पृश्यता का सम्बन्ध अनुसूचित जाति से था। अनुसूचित जाति, जाति व्यवस्था के परिणामस्वरूप विकसित वह व्यवस्था है जिसमें मनुष्य — मनुष्य के बीच इतना अधिक भेद किया जाता है कि स्पर्श मात्र से ही उच्च जाति के लोग अपवित्र हो जाते हैं। इस अपवित्रता से बचने के लिये अस्पृश्य (अनुसूचित जाति) व्यक्तियों को उच्च जाति से पृथक् रहने की व्यवस्था की गयी थी। इन्हें प्रारम्भ में शूद्र कहा जाता था। साधारणतया इन्हें ही अनुसूचित जाति या अछूत कहते हैं।
जे० एस० हट्टन ने अनुसूचित जातियों की योग्यताओं को ध्यान में रखकर अनुसूचित जातियों को परिभाषित करने का प्रयास किया गया है। एक समाजशास्त्री के अनुसार अनुसूचित जातियाँ वह हैं जो-
(1) हिन्दू मन्दिरों में प्रवेश न कर सकें।
(2) जो ब्राह्मणों की सेवा करने में अयोग्य हों।
(3) घृणित पेशे से अलग होने के अयोग्य हों।
(4) सार्वजनिक सुविधाओं, जैसे- पाठशाला, सड़क आदि उपयोग करने के अयोग्य हों।
(5) स्वर्ण हिन्दुओं की सेवा करने वाले नाइयों, कहारों और दर्जियों की सेवा पाने में अयोग्य हों।
वैधानिक दृष्टि से 1955 के अस्पृश्यता कानून द्वारा अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया।
अनुसूचित जाति के लिए पृथक् निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था की गई है। यह पृथक्करण भी समानता के मार्ग में बाधक सिद्ध होगा। उदीयमान समाज में आरक्षण केवल तात्कालिक उपाय है। वास्तविक समतामूलक समाज की स्थापना तभी होगी जब आरक्षण की व्यवस्था को स्थायी न बनाया जाए।
पृथक् निर्वाचन क्षेत्र की प्रणाली संविधान द्वारा समाप्त करने के पश्चात् अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को सीटों के आरक्षण की सुविधा प्रदान की गई। संविधान की निम्न धाराएँ द्रष्टव्य हैं-
धारा 330— (i) लोकसभा में सीटों का आरक्षण रहेगा-
(a) अनुसूचित जात
(b) अनुसूचित जनजाति
धारा 332—प्रत्येक राज्य की विधान सभाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति हेतु सीटों का आरक्षण रहेगा।
संविधान की धारा 334 द्वारा सीटों का यह आरक्षण 10 वर्ष बाद समाप्त हो जाना था परन्तु कई संशोधनों द्वारा यह आज भी जारी है।
इस दिशा में कदम और आगे बढ़ाये गये। पिछड़े वर्ग के नाम पर 29 जनवरी 1953 में पहला आयोग राष्ट्रपति के आदेशानुसार गठित किया गया। इसके अध्यक्ष काका साहेब कालेलकर थे। अतएव यह आयोग इसी नाम से जाना गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 30 मार्च 1955 को प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट में अस्पृश्यता कानून को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए इसके दाण्डिक उपबन्धों को और कठोर बना दिया गया है। इस संशोधन के साथ मूल अधिनियम का नाम बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 रख दिया गया है। इस अधिनियम में किसी व्यक्ति को अस्पृश्यता के आधार पर उसके अधिकारों के प्रयोग पर रोक लगाने के लिए दण्ड की व्यवस्था की गई है।
शिक्षा-आयोग 1964-66 में गठित किया गया जो कोठारी की अध्यक्षता में होने के कारण कोठारी आयोग के नाम से जाना गया। उन्होंने अनुसूचित जातियों की शिक्षा के लिए कहा है कि आदिम जातियों की शिक्षा पर अधिक बल और ध्यान देना उचित है।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
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