बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर -
सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका
स्तरीकरण की पद्धति को न्यायोचित ठहराने में धर्म भी एक प्रमुख भूमिका अदा करता है। वस्तुतः विचारधारा धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दोनों हो सकती है। लोगों पर धर्म का जो विचारधारात्मक प्रभाव है, वह सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने का एक महत्वपूर्ण कारक बन जाता है। लोग सामान्यतः धर्म को एक पवित्र वस्तु मानते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि यह किसी देवी शक्ति की रचना है। अतः जब धर्म स्तरीकण पद्धति को परिवर्तित करने के लिए प्रोत्साहित करता है तो धर्मानुयायी बिना किसी प्रश्न के उसे स्वीकार कर लेते हैं। इसी तरह धर्म अपनी स्वीकृति देकर किसी भी सामाजिक स्तरीकरण में होने वाले परिवर्तनों को रोक सकती है। यही वजह है कि शताब्दियों तक जाति एक स्थिर प्रणाली बनी रही।
परन्तु धर्म हमेशा ही मौजूदा स्तरीकरण की प्रकृति को कायम रखने में मदद नहीं पहुँचाता। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जब स्तरीकरण प्रणाली को बदलने के लिए धर्म का प्रयोग एक प्रभुत्वशाली विचारधारा के रूप में किया गया। ईसाई धर्म तब प्रकट हुआ जब समाज में दासों का क्रय-विक्रय होता था। ईसाई धर्म ने यह प्रचार किया कि ईश्वर की नज़र में सभी इंसान बराबर हैं। यह विचार दास प्रथा वाले समाज के उस विचार से बिल्कुल विपरीत था जिसके अनुसार सिर्फ स्वतंत्र लोग ही बराबर एवं समाज हो सकते हैं दासों को मनुष्य नहीं माना जाता था (उन्हें लोग स्वर सहित मशीन कहते थे) और प्राचीन रोम, ग्रीस, मिश्र के देवता दासों को स्वतंत्र मनुष्य से नीचा मानते थे। दासों के क्रय-विक्रय वाले समाज की विचारधारा ने दास प्रथा को न्यायोचित ठहराया जिसके अनुसार दास के साथ जानवर की तरह व्यवहार किया जाता था। अपने समानता वाले सिद्धान्त के साथ ईसाई धर्म ने समाज के इस आधार को चुनौती दी। इससे अन्नतः दासों के क्रय-विक्रय वाले समाज का पतन हो गया और सामन्तवाद का उदय हुआ। यह समाज कृषिदासों के प्रति अपने व्यवहार में पूर्व समाज की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक मानवीय था।
इस्लाम धर्म का उदय समानता के सिद्धांत पर ही आधारित था। इस्लामी विचारधारा तब अरबों के बीच प्रचलित सामंती स्तरीकरण के ढांचे के ठीक विपरीत था। अरबों ने इस्लाम धर्म के फैसले पर उनकी स्तरीकरण पद्धति को भी बदल दिया। समाज अब ज्यादा समानता पर आधारित हो गया।
ईसाई एवं इस्लाम के बहुत पहले बौद्ध धर्म का उदय हुआ था, जो मनुष्य की समानता पर आधारित था। यह वर्ण-व्यवस्था की मौजूदा विचारधारा के ठीक विरोध में था। बौद्ध धर्म ने जातिगत स्तरीकरण को बदलने की माँग की। बौद्ध धर्म ने एक नयी विचारधारा का प्रचार किया जिसके अनुसार सामाजिक असमानता ईश्वरीय नहीं है बल्कि, मनुष्य द्वारा कायम किया गया है। इस तरह, बौद्ध धर्म ने वर्ग-व्यवस्था के आधार को ही चुनौती देने की कोशिश की। स्वभावत: इसका विरोध हिंदू समाज की प्रभुत्वशाली जातियों ने किया। बौद्ध धर्म सफल नहीं हुआ और हिंदू समाज अपने जातिगत आधारों के साथ कायम रहा।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
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- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
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- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
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- प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
- प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
- प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
- प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
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- प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
- प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
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- प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
- प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
- प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
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