बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
उत्तर -
(Recent Trends of Religion)
यद्यपि धर्म रूढ़िवादी प्रकृति की तथा वस्तुस्थिति बनाये रखने का समर्थक है, परन्तु आधुनिक समाज की द्रुतगति से बदलती हुई परिस्थितियों के परिवेश में यह अपने आपको बचा नहीं पाया। विज्ञान के कारण धर्म का लोप और इसमें अनेक नवीन प्रवृत्तियों का उदय हुआ है। आधुनिक सभ्यता में धर्म के नवीन रूप को इस प्रकार प्रकट कर सकते हैं-
(1) धार्मिक संकीर्णता में कमी - प्राचीन समय में धर्म की प्रकृति अत्यन्त संकीर्ण थी। सभी अपने धर्मों को श्रेष्ठ समझते तथा अन्य धर्मों को हेय दृष्टि से देखते थे। इस दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप कभी भी दो धर्मों का आपस में मेल नहीं हुआ, परन्तु वर्तमान समय में परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं तथा सभी धर्म अब एक-दूसरे को समान दृष्टि से देखने लगे हैं। यही आज के समाज की सबसे महान् उपलब्धि है।
(2) धार्मिक कर्मकाण्डों का सरलीकरण (Simplification of Religious Rites ) — औद्योगीकरण व नगरीकरण के फलस्वरूप मानव जीवन का मशीनीकरण हो गया है। ऐसे व्यस्त जीवन में मानव द्वारा जटिल व आडम्बरपूर्ण कर्मकाण्डों का करते रहना सम्भव नहीं है। अतः अब धर्म सरलीकरण की प्रक्रिया के दौर से गुजर रहा है। जहाँ विवाह से सम्बन्धित धार्मिक कर्मकाण्डों में पहले अत्यधिक समय लगता था, वहाँ अब तीन- चार घण्टों में ही सब कुछ सम्पन्न हो जाता है।
(3) धार्मिक कट्टरता का कम होना (Lessening of Religious Rigidity) - परिवर्तित परिवेश में धार्मिक कट्टरता में कमी आयी है, क्योंकि नवीन परिस्थितियों में धार्मिक नियमों का पहले जितनी कंठोरता से पालन करना सम्भव नहीं है। इसलिये समाज में चली आ रही कुरीतियों में कमी आयी है। अब समाज में छुआछूत क भेदभाव जैसी धारणाओं में कमी आयी है। हरिजनों की जहाँ परछाई भी बुरी थी, वहाँ अब वे सभी सार्वजनिक स्थलों में बेरोकटोक आ-जा सकते हैं। इसी प्रकार से बाल विवाह व सती-प्रथा की भी समाप्ति हुई है तथा विधवा पुनर्विवाह एवं अन्तर्जातीय विवाह का प्रचल हुआ।
(4) धर्म का व्यवसायीकरण (Commercialization of Religion ) - आज धर्म आजीविका का एक साधन बन गया है। आज धर्म के ठेकेदार पण्डे पुजारी अब उतनी निष्ठापूर्वक धार्मिक क्रियाओं को सम्पन्न नहीं करवाते जितना पहले कराते थे। आज इनका एकमात्र ध्येय येन-केन प्रकारेण अपने जजमानों से खूब पैसा प्राप्त करना होता है। अब छोटे से छोटे कार्य हेतु अधिकाधिक दक्षिणा देना आवश्यक है। पैसा देकर कोई भी व्यक्ति उल्टी-सीधी जन्मपत्री इनसे मिलवाकर योग्य वर एवं वधू प्राप्त कर सकता है। हम समाचार-पत्रों में नित्य ही ऐसे समाचार पढ़ सकते हैं जिसमें सन्तान प्राप्ति अथवा धन दुगुना कमाने या नक्षत्रों की शान्ति हेतु लोभ देकर कई लोगों को, विशेषकर औरतों को लूटा जाता है। अधिक दान-दक्षिणा देने वालों को अधिक सुविधायें दी जाती हैं। इस प्रकार धर्म का यह व्यवसायीकरण हमें सभी धर्मों में देखने को मिलेगा।
(5) मानवतावादी धर्म का विकास (Development of Humanitarian Religion) - मानवतावादी धर्म की कल्पना समाज शास्त्र के जन्मदाता ऑगस्त कॉम्टे ने अपने 'मानवता के धर्म' के अन्तर्गत की थी। कॉम्टे के अनुसार दूसरों की सेवा के लिये अधिक से अधिक समर्थ होना और उसके लिये शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक उन्नति करना मानवता के धर्म का उद्देश्य है। यह धर्म हिंसात्मक कार्यों का बहिष्कार करता है। प्रेम इसका सिद्धान्त है, सुव्यवस्था इसका आधार और प्रगति इसका ध्येय है। इस प्रकार विभिन्न धर्मों के होते हुए समस्त मानव समाज के लिये एक सामान्य धर्म की प्रतिस्थापना धार्मिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम है। गाँधी जी ने भी इसी धर्म की कल्पना की थी।
(6) धर्म तथा धार्मिक नेताओं का प्रभुत्व क्षीण होना (Lessening f Importance of Religion and Religious Leaders ) - विज्ञान की प्रगति वस्तुत: धर्म तथा धार्मिक नेताओं की अवनति का कारण बनती जा रही है। पहले जहाँ हमारे सामाजिक जीवन व प्रतिष्ठा का आधार केवल धर्म व धार्मिक नेता थे, अब उनका स्थान दूसरों ने ले लिया है। अब धर्म के आधार पर ही केवल उच्च स्थिति नहीं प्राप्त की जा सकती वरन् इसके लिये वैयक्तिक गुण, धन, शिक्षा, उच्च व्यवसाय आदि भी आवश्यक हैं। इसीलिये धर्म-परिवर्तनों की मनोवृत्ति समाज में अधिक परिलक्षित हो रही है। इतिहास साक्षी है कि राज-पुरोहितों का सम्मान राजा से अधिक था। सम्राट भी राज पुरोहित के सम्मान में अपना सिंहासन छोड़ देता था, परन्तु अब ये समाज के अन्य सदस्यों की भाँति समाज की एक साधारण इकाई हैं।
(7) धर्म में लौकिकीकरण (Secularizaton in Religion ) - डॉ० श्रीनिवास ने लौकिकीकरण की अवधारणा दी। उनके अनुसार लौकिकीकरण वह प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत पहले हम जिस चीज को धार्मिक मानते थे, उसे अब हम धार्मिक नहीं मानते तथा साथ ही प्रत्येक स्थिति को हम तर्क के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं। इस प्रकार जिन अनुष्ठानों, व्रतों, यात्राओं, दान-दक्षिणा आदि को पहले धार्मिक निष्ठा व स्वर्ग प्राप्ति के कारण सम्पन्न किया जाता था, वे अब केवल धार्मिक निष्ठा के आधार पर ही सम्पन्न नहीं किये जाते वरन् उनके पीछे कोई तर्क अवश्य होता है, जैसे- सप्ताह में एक व्रत रखना पाचन शक्ति के लिये अच्छा होता है, इसीलिये कई लोग सप्ताह में एक व्रत अवश्य रखते हैं। लौकिकीकरण की धारणा के कारण ही वर्तमान में कई धार्मिक अनुष्ठानों व कर्मकाण्डों का प्रभाव क्षीण होता जा रहा है।
(8) धर्म मनोरंजन के साधन के रूप में (Religion as a Means of Recreation) - आज अलौकिक शक्ति में निष्ठा की प्रवृत्ति का ह्रास होता जा रहा है। आज तीर्थस्थलों की यात्रा उस दिव्य शक्ति से प्रेरित होकर नहीं वरन् मनोरंजन व चिकित्सक के परामर्श पर हवा बदलने के लिये की जाती है। धार्मिक उत्सवों पर भजन-कीर्तन, भोज का आयोजन केवल मनोरंजन, एक-दूसरे से मिलने-जुलने, खुशियाँ मनाने आदि के लिये किया जाता है। अतः स्पष्ट है कि धर्म का एक अलौकिक व अद्भुत शक्ति के रूप में महत्व क्षीण होता जा रहा है।
(9) धार्मिक कार्यों का अन्य संस्थाओं को हस्तान्तरण (Transfer of many Religious Functions to other Agencies ) - डेविस के अनुसार, संस्कृति के जटिल होने के साथ-साथ धार्मिक कार्यों का विभाजन अन्य संस्थाओं में हो जाता है। आज राज्य भी अनेक धार्मिक कार्यों में रुचि लेता है व कानून बनाकर उन पर नियन्त्रण रखता है। राज्य के अतिरिक्त अन्य कई संस्थाओं ने कई धार्मिक कार्यों को करना प्रारम्भ कर दिया है। इस प्रकार धार्मिक कार्य अब केवल धार्मिक संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रह गये हैं। राजनीति भी अब धर्म में लिप्त है। हिन्दू महासभा, जमायते - इस्लामी, अकाली दल इसके अच्छे व प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।
प्रो० डेविस ने आधुनिक सभ्यता में धर्म की पाँच प्रवृत्तियों का उल्लेख किया है, जिन्हें धर्मनिरपेक्षता का अंग मानते हैं-
(i) धर्म का क्षेत्र अनेक वर्ग, जातियों एवं स्थानों में विस्तृत हो रहा है, अतः देवता स्थानीय भावनाओं से धीरे-धीरे दूर होते जा रहे हैं। अब वे किसी एक स्थान के वृक्षों, पहाड़ियों, नदियों अथवा एक कस्बे या किसी एक ही जाति की प्रथाओं व आदतों तक ही सीमित नहीं हैं। वर्तमान में देवगण स्थानीय दृश्यों से क्रमशः दूर होते जा रहे हैं।
(ii) धर्म दैनिक व्यवहारों से क्रमशः दूर होता जा रहा है। अशिक्षितों एवं ग्रामीणों का प्रत्येक कार्य, चाहे वह औद्योगिक हो या आर्थिक या राजनैतिक, धर्म से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित था। नगरों में यह व्यवहार समाप्त हो रहा है, वहाँ धर्म एवं कर्मकाण्डों में निष्ठा कम हुई है।
(iii) धर्म में सगुणवाद के स्थान पर निर्गुणवाद पनप रहा है। देवताओं व भूत-प्रेतों के 'बारे में यह धारणा कि वे किसी विशिष्ट स्थान पर रहते हैं, खाते-पीते हैं, सोते हैं या किसी विशिष्ट पवित्र वस्तु के सम्पर्क में रहते हैं, लुप्त हो रही है तथा उसके स्थान पर उनके बारे में अमूर्त और सामान्य संकल्पना का विकास हो रहा है।
(iv) धर्म में विभिन्न शाखाओं का उदय हुआ है। धर्म और राज्य में संघर्ष बढ़ा है।
(v) विभिन्न समूहों एवं संस्कृतियों के साथ-साथ रहने से धर्म में सहनशीलता पनपी है। धार्मिक अन्धविश्वास निर्बल हुए हैं तथा संशयवाद, नास्तिकतावाद एवं उदासीनता विकसित हुई है।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
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- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
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- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
- प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
- प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
- प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
- प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
- प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
- प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
- प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
- प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
- प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
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- प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
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