बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलतासरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता
प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
उत्तर -
डेविस व मूर का सामाजिक स्तरीकरण का प्रकार्यवादी सिद्धान्त
डेविस तथा मूर ने अपने सिद्धान्त की व्याख्या प्रकार्यात्मक आधार पर की है, इसलिए इसे 'सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त' भी कहते हैं।
स्तरीकरण की प्रकार्यात्मक आवश्यकता (The Functional Necessity of Stratification ) - एक प्रकार्यात्मक यन्त्र के रूप में एक समाज को किसी न किसी प्रकार अपने सदस्यों को सामाजिक स्थितियों में वितरित करना और उन्हें इन स्थितियों के कर्त्तव्यों को करने के लिए प्रेरित करना है। इस दृष्टि से निम्नलिखित दो स्थलों पर प्रेरणा आवश्यक है-
(1) कुछ निश्चित स्थितियों को भरने के लिए उचित व्यक्तियों में इच्छा भरना,
(2) इन स्थितियों पर पहुँचने पर उनमें यह प्रेरणा देना कि वे इन स्थितियों के कर्त्तव्यों को पूरा करें।
यदि सब स्थितियाँ सामाजिक अस्तित्व के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण हों और सबके लिए समान योग्यता की आवश्यकता हो, तो समाज के लिए कोई कठिनाई न होती। पर व्यवहार में कुछ स्थितियाँ समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है, जिनके कर्त्तव्यों को पूरा करने के लिए विशेष योग्यता की आवश्यकता पड़ती है। अनिवार्य रूप से, प्रत्येक समाज में कुछ पुरस्कार (rewards ) होने चाहिए, जिनके द्वारा लोगों को प्रेरणा दी जा सके और साथ ही कुछ ऐसे तरीके होने चाहिए जिनसे कि स्थितियों के अनुसार विभेद करके ये पुरस्कार वितरित किए जा सकें। "पुरस्कार और उनका वितरण सामाजिक व्यवस्था का एक भाग बन जाता है, और इसलिए स्तरीकरण के उदय को जन्म देता है। "
डेविस तथा मूर ने तीन प्रकार के पुरस्कार बताए हैं -
(1) जीवन को बनाए रखने (sustenance) और आराम ( comfort) में योगदान करने
(2) ऐसी वस्तुएँ जो परिहास (humour) और मनोरंजन (diversion) में सहायक हों,
(3) स्व- आदर (self-respect ) और अहं विस्तार (ego-expansion )।
किसी भी सामाजिक व्यवस्था में तीन प्रकार के पुरस्कार स्थितियों के भेदों के आधार दिए जाने होते हैं। इन पुरस्कारों के कारण लोगों को इन स्थितियों को प्राप्त करने की लालसा होती है और वे अनिवार्य कर्तव्यों को पूरा करते हैं। प्रत्येक जटिल या सरल समाज में विभेदीकरण प्रतिष्ठा और आदर के आधार पर होता है और इसलिए एक निश्चित प्रकार की संस्थात्मक असमानता पाई जाती है।
रिक्त पदों के दो नियामक (The Two Determinate of Positional Rank) - विभिन्न स्थतियों के सापेक्षिक पदों के नियामक दो कारक होते हैं -
(1) समाज के लिए अत्यधिक महत्व रखते हैं,
(2) अधिकतम प्रशिक्षण या योग्यता की आवश्यकता होती है।
पहला कारक 'प्रकार्य' (function) से सम्बन्धित है और सापेक्षिक महत्व का विषय है; दूसरा 'साधन' (means) से सम्बन्धित है और अभाव का विषय है।
विभेदीकृत प्रकार्यात्मक महत्व (Differential Functional Importance ) - कम आवश्यक स्थितियाँ अधिक आवश्यक स्थितियों के साथ सफलतापूर्वक प्रतिद्वन्द्विता नहीं करती हैं। चाहे कोई स्थिति महत्वपूर्ण ही क्यों न हो, यदि वह सरलता से भर जाती है, तो उसके लिए अधिक पुरस्कार नहीं देना पड़ता। इसके विपरीत यदि कोई स्थिति महत्वपूर्ण है और उसे भर पाना कठिन है, तो उसे किसी भी प्रकार से भरने के लिए अधिक पुरस्कार देने पड़ते हैं। प्रकार्यात्मक महत्त्व आवश्यक है, परन्तु एक स्थिति को ऊँचा पद प्रदान करने का समुचित कारण नहीं है।
व्यक्तियों का विभेदीकृत अभाव (Differential Scarcity of Personnel ) - व्यावहारिक रूप से सभी स्थितियाँ चाहे जैसे भी वे अर्जित की जाती हों, कुछ कुशलता (skill) अथवा करने की क्षमता (capacity for performance) की आवश्यकता पड़ती है।
व्यक्ति की योग्यता के दो तत्व हैं-
(अ) आन्तरिक क्षमता के द्वारा, और
(ब) प्रशिक्षण के द्वारा।
इनका विवरण निम्न प्रकार है -
(1) कुछ स्थितियों के लिए ऐसी मूलभूत उच्च क्षमता (innate talents) की आवश्यता पड़ती है कि उनको भरने के लिए ऐसी क्षमता वाले व्यक्ति कम ही होते हैं।
(2) कुछ स्थितियों के लिए जनसंख्या में क्षमता रखने वाले बहुत व्यक्ति होते हैं, परन्तु प्रशिक्षण की प्रक्रिया बहुत लम्बी, कीमती और विस्तृत होती है कि सापेक्षिक रूप से कुछ ही लोग योग्यता प्राप्त कर पाते हैं।
यदि किसी स्थिति को भर पाने वालों का अभाव है और वह स्थिति प्रकार्यात्मक महत्व रखती है तो उसे भरने के लिए अनिवार्य है कि बहुत ही आकर्षक पुरस्कार होने चाहिए। दूसरे शब्दों में, स्थिति का सामाजिक स्तर में ऊँचा होना आवश्यक है, उसके लिए अधिक प्रतिष्ठा, अधिक वेतन, पर्याप्त विश्राम आदि पुरस्कार होने आवश्यक हैं।
डेविस तथा मूरे के सिद्धान्त की आलोचना
ट्यूमिन (Melvin W. Tumin) ने डेविस तथा मूरे के स्तरीकरण के तर्कों को क्रमबद्ध मान्यताओं से निम्नलिखित रूप से लिखा है-
(1) किसी समाज में कुछ स्थितियाँ अन्य दूसरी स्थितियों से प्रकार्यात्मक दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होती हैं और उनको करने के लिए विशेष कार्यकुशलता अनिवार्य होती है।
(2) इन स्थितियों के लिए उपयुक्त कार्यकुशलता के प्रशिक्षण के लिए किसी भी समाज में व्यक्तियों की सीमित संख्या होती है।
( 3 ) क्षमता कार्यकुशलता में परिवर्तन हो, इसके लिए एक प्रशिक्षण काल की आवश्यकता होती है, जिस काल में प्रशिक्षणार्थियों (trainees) को एक या दूसरे प्रकार के त्याग करने पड़ते हैं।
(4) इन त्यागों को रोकने के लिए और प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए क्षमतायुक्त व्यक्तियों को प्रेरणा देनी पड़ती है।
(5) ये अभावी और इच्छित वस्तुएँ अधिकारों और पूर्व आवश्यकताओं से निर्मित होती हैं, जो स्थितियों में निहित हो जाती हैं। इन्हें वस्तुओं के उन वर्गों में सम्मिलित किया जा सकता है, जो
(अ) अस्तित्व और आराम,
(ब) परिहास और मनोरंजन,
(स) स्व- आदर और अहं विस्तार में योगदान देते हैं।
(6) समाज के मौलिक पुरस्कारों का यह विभेदीकृत वितरण, प्रतिष्ठा और आदर (जो कि विभिन्न स्तर प्राप्त करते हैं), के विभेदीकरण को उत्पन्न करता है। दूसरे शब्दों में, विभिन्न स्तरों के आदर और प्रतिष्ठा भिन्न-भिन्न होती हैं।
(7) इसलिए अभावपूर्ण एवं इच्छित वस्तुओं और प्रतिष्ठा एवं आदर की मात्रा में विभिन्न स्तरों के बीच सामाजिक असमानता सकारात्मक रूप में प्रकार्यात्मक और अनिवार्य हैं।
उपर्युक्त मान्यताओं की आलोचना निम्न प्रकार है-
(1) स्थितियों का सापेक्षिक प्रकार्यात्मक महत्व और विशेष कार्यकुशलता की आवश्यकता - किसी भी समाज में किन स्थितियों को प्रकार्यात्मक महत्व दिया जाता है, यह प्रश्न स्वयं में ही विवादास्पद है। यह समय-समय की बात है। ट्यूमिन के अनुसार पुरस्कारों एवं प्रेरणाओं की वर्तमान व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण के सामान्य सिद्धान्त की दृष्टि से प्रेरणाओं की सम्भावित व्यवस्थाओं में से एक है। इसलिए डेविस तथा मूरे को सापेक्षिक प्रकार्यात्मकता का पूरा विचार संशोधन करना पड़ेगा।
(2) प्रशिक्षण के लिए क्षमता योग्य व्यक्तियों का अभाव - समाज में क्षमता योग्य व्यक्तियों का पता लगाना कठिन होता है। कठोर स्तरित व्यवस्था में तो यह कार्य और भी अधिक कठिन हो जाता है क्योंकि कुछ वर्ग अधिक सम्पन्न होते हैं और अधिकांश वस्तुओं पर अधिकार जमाए रहते हैं। शिक्षा और प्रशिक्षण धन से सम्भव होते हैं और धन विशेष स्तर के वर्ग के पास होता है।
(3) प्रशिक्षण काल में त्याग - ट्यूमिन का कहना है कि प्रशिक्षण काल में त्याग की बात तथ्यों से प्रमाणित नहीं होती है। प्रशिक्षणार्थी काल में समय लगाते हैं और धन व्यय करते हैं। पर व्यय तो माता-पिता करते हैं, जिन्हें पहले से ही समाज पुरस्कार दे रहा है। फिर त्याग किस बात का ?
(4) त्याग के बदले भविष्य की स्थितियों के लिए असमान पुरस्कार - ट्यूमिन का कहना है कि क्या अधिक त्याग करने के लिए असमान पुरस्कार ही एकमात्र प्रेरणा का साधन है। ऐसा नहीं है, अन्य तथ्यों पर भी विचार करना चाहिए। उदाहरण के लिए, डी मेन (De Man) ने 'कार्य में आनन्द', वेबलन (Veblen) ने 'निर्माण करने की मूलप्रवृत्ति' (instinct for workmanship) का उल्लेख किया है।
(5) पुरस्कारों के प्रकार - इस सम्बन्ध में ट्यूमिन ने कोई टिप्पणी नहीं की है।
(6) असमान पुरस्कार वितरण और स्तरीकरण की उत्पत्ति – डेविस तथा मूरे ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि उपर्युक्त तीन प्रकारों के पुरस्कारों में कौन-सा अधिक प्रेरणा देता है।
(7) सामाजिक असमानता सकारात्मक रूप से प्रकार्यात्मक और अनिवार्य - ट्यूमिन का कहना है कि यह आवश्यक नहीं है कि स्तरण सदैव प्रकार्यात्मक अनिवार्य ही हो। उसने निम्नलिखित स्तरीकरण के अकार्य (Dysfunctions of Stratification) बताए हैं-
(i) सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्थाएँ एक समाज में उपलब्ध क्षमता योग्य व्यक्तियों के पूर्ण विस्तार की खोज की सम्भावना को सीमित करती है।
(ii) ऐसा करने के कारण सामाजिक स्तरीकरण समाज के विकसित होते हुए उत्पादन साधनों की सम्भावनाओं पर सीमाएँ निर्धारित करता है।
(iii) सामाजिक स्तरीकरण उच्च वर्ग को ऐसी राजनैतिक शक्ति प्रदान करता है, जिससे वे वर्तमान स्थिति को बनाये रखने में समर्थ रहते हैं।
(iv) सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्थाएँ एवं जनसंख्या में अनुकूल आत्मचित्र असमान वितरित करते हैं। इसके कारण बहुत-से व्यक्तियों की इस निर्माण शक्ति के विकास पर सीमा निर्धारित करते हैं।
(v) वंचित वर्गों में द्वेष, संदेह, ईर्ष्या और अविश्वास को पनपाता है।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
- प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
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- प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
- प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
- प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
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- प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
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- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
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- प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
- प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
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- प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
- प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
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