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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2682
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र द्वितीय प्रश्नपत्र - भारतीय समाज के परिप्रेक्ष्य

अध्याय - 1

वैचारिक दृष्टिकोण: जी.एस. घुरिये तथा लुई ड्यूमाँ

(Indology : G.S. Ghurye and Lauis Dumont)

 

प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।

उत्तर -

घुरिये भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य - घुरिये का भारत विद्या शास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के प्रति काफी मोह था। उन्होंने अपने कई अध्ययनों में ("सेक्स की आदतों का अध्ययन, 1938" तथा "महादेव कोली लोग, 1963") क्षेत्र कार्य विधि का प्रयोग कर भारतीय समाजशास्त्र और सामाजिक मानवशास्त्र में अनुभवादी परम्परा की जड़ों का मजबूत किया है उनका 'भारतीय साधुओं', 'धार्मिक चेतना' तथा 'दो ब्राह्मणवादी संस्थाओं के रूप में गौत्र एवं चरण' नामकं अध्ययनों मंद भारत के पौराणिक एवं कई धार्मिक ग्रन्थों का प्रयोग किया गया है। घुरिये ने इस परिप्रेक्ष्य द्वारा भारतीय साधुओं के उत्थान, इतिहास, कार्य और वर्तमान में हिन्दू साधुओं के संगठनों का उल्लेख किया है उन्होंने अपनी पुस्तक Social Tensions in India में तनाव का ऐतिहासिक तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया हैं। उन्होंने अपनी कृति Cities and Civilization में नगरों का इतिहास, अमेरिका एवं उनकी वृद्धि, नगर, राजधानियों के रूप में तथा विशाल नगरों के रूप का उल्लेख किया हैं घुरिये ने अपनी पुस्तक "Caste, Class and Occupation" में जाति प्रथा के लक्षणों, स्वरूपों, विभिन्न युगों में जाति, प्रजाति एवं जाति भारत के बाहर जातियों के तत्वों, जाति को उत्पत्ति, अनुसूचित जातियों व्यवसाय एवं जाति, वर्ग के कार्यों एव जाति के भविष्य आदि विषयों पर चर्चा की है। अपनी पुस्तक The Scheduled Tribes में घुरिये ने भारत की जनजातियों की समस्याओं और उनके समाधान के बारे में विस्तार से चर्चा की है। घुरिये के मतानुसार, प्राचीन भारत, मिश्र और बैबिलोनिया में धार्मिक चेतना धर्मस्थलों से जुड़ी हुई थी। घुरिये ने भारतीय धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं के उद्भव और अनकी भूमिका का सारगर्भित विवेचन किया है। घुरिये ने भारतीय कला, नृत्य और वेशभूषा पर पुस्तकें व लेख लिख कर इनमें भी अपनी रुचि प्रदर्शित की है। उनके अनुसार हिन्दू, जैन और बौद्ध धर्म के कलात्मक स्मारकों में कई समान तत्वों के दर्शन किए जा सकते है।

लुई ड्यूमा भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य

लुई ड्यूमाँ को सबसे अधिक ख्याति 1970 ई. में अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित 'होमो हाइराकिक्स' पुस्तक से प्राप्त हुई है यह पुस्तक कुल 11 अध्यायों में विभाजित है। ड्यूमों ने जाति व्यवस्था का विश्लेषण पवित्रता के आधार पर किया है। ड्यूमों ने इस पुस्तक में जाति के इतिहास तथा उद्गम सम्बन्धी सिद्धान्तों से लेकर सामाजिक संस्तरण, वर्ण व्यवस्था, खान-पान सम्बन्धी निषेध जैसे विषयों का भी विस्तार से विश्लेषण किया। ड्यूमों ने हिन्दू विवाह, सामाजिक संस्तरण, भौतिक सम्पर्क, श्रमविभाजन, जजमानी व्यवस्था, शक्ति एवं सत्ता के विवरण इत्यादि तत्वों को संचालित नियमित एवं नियन्त्रित करने वाली विचारधारा को अपने विश्लेषण का आधार बनाया है। उनका 'जाति की दृष्टि से गाँव और 'सभ्यतापरक दृष्टि से जाति' सम्बन्धी दृष्टिकोण घुरिये महोदय के जाति अध्ययनों के परिप्रेक्ष्य से भिन्न है। ड्यूमों ने भारतीय जाति व्यवस्था ओर भारतीय गाँव की सामाजिक संरचना के अध्ययनों के परिप्रेक्ष्य से भिन्न है। ड्यूमों ने भारतीय जाति व्यवस्था और भारतीय गाँव की सामाजिक संरचना के अध्ययन के लिए भारतविद्याशात्रीय दृष्टि और संरचनात्मक उपागम दोनों के प्रयोग की बात कही है। ड्यूमों ने जाति व्यवस्था के अतिरिक्त दक्षिण भारत में प्रचलित नातेदारी व्यवस्था पर भी कार्य किया है। उन्होंने दक्षिण भारत में परमली कल्लर नामक समुदाय पर गहन कार्य किया है। ड्यूमों ने भारतीय समाजशास्त्र की प्रकृति, सिद्धान्त और अवधारणाओं और पद्धति विज्ञान के बारे मे अपने विचारों को प्रकट किया। इन्होंने 'विचारात्मक समाजशास्त्रता' का विचार भी दिया है। ड्युमों के अनुसार पवित्रता एवं अपविलता की अवधारणाएँ विचारों पर आधरित है। "भारत के लिये समाजशास्त्र" में ड्यूमों ने भारतीय समाजशास्त्र की प्रकृति, सिद्धान्त और अवधारणाओं और पद्धति विज्ञान के बारे मे अपने विचारों को प्रकट किया। ड्यूमों ने जाति व्यवस्था के अतिरिक्त दक्षिण भारत में प्रचलित नातेदारी व्यवस्था पर भी कार्य किया है।

लुई ड्यूमाँ और जी.एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत
विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर

यह निम्न प्रकार हैं -

क्र. सं. लुई ड्यूमाँ
जी.एस. घुरिये
1. ड्यूमाँ महोदय की सर्वाधिक ख्याति प्राप्त पुस्तक 'होमोहाइरारकिक्स' 1970 में प्रकाशित हुई, जिसमें उन्होंने जाति-व्यवस्था का विश्लेषण पवित्रता के आधार पर किया है, जो अनूठा है। इस पुस्तक में जाति के इतिहास तथा उद्गम सम्बन्धी सिद्धान्तों से लेकर सामाजिक संस्तरण, वर्णव्यवस्था, खान-पान सम्बन्धी निषेध जैसे विषयों का विस्तार से विश्लेषण मिलता है। घुरिये महोदय ने अपनी पुस्तक 'कास्ट क्लास एण्ड आक्यूपेशन' में जाति प्रथा के लक्षणों,स्वरूपों, विभिन्न युगों में जाति, प्रजाति एवं नृजाति, भारत के बाहर जाति के तत्वों, जाति की उत्पत्ति, अनुसूचित जातियों, व्यवसाय एवं जाति, वर्ग के कार्यों एवं जाति के भविष्य आदि विषयों पर चर्चा की है।
2. ड्यू8.माँ महोदय ने हिन्दू विवाह, सामाजिक संस्तरण, भौतिक सम्पर्क, श्रम विभाजन, जज9.मानी व्यवस्था, शक्ति तथा सत्ता के वितरण इत्यादि तत्वों के संचालित, नियमित एवं नि10.यन्त्रित करने वाली विचारधारा को अपनी विचारधारा का आधार बनाया है। घुरिये महोदय ने अपनी पुस्तक "दि शैड्यूल ट्राइब" में भारत की जनजतियों की समस्याओं व उनके समाधान के बारे में विस्तार से चर्चा की है। साथ ही उन्होंने कुछ जनजातियों के सामाजिक संगठन, परिवार, विवाह, नातेदारी एवं धर्म आदि के बारे में पूर्ण ब्यौरा प्रस्तुत किया है।'
3. ड्यूमाँ महोदय के कथनानुसार जाति-व्यवस्था की जड़े ब्राह्मणवादी रूढ़िवादिता में गढ़ी हुई हैं। 'धर्म के समाजशास्त्र' के अपने अध्ययन में घुरिये महोदय ने धार्मिक विश्वास, कर्म-काण्ड संस्कार तथा भारतीय परम्परा में 'साधु की भूमिका' पर प्रकाश डाला है।
4. ड्यूमाँ महोदय न्याय एवं सत्ता जिसमें उन्होंने जाति पर आधारित शक्ति एवं सत्ता तथा न्याय प्रणाली के अर्न्तसम्बन्धों की विवेचना, इनके व्यावहारिक पहलुओं के आधार पर की है। घुरिये महोदय ने जातियों एवं जनजातियों में अन्तर भारतीय सांस्कृतिक एवं भाषीय आधार पर किया है।
5. समकालीन प्रवृत्ति जिसमें उन्होंने जाति में होनेवाले अभिनव परिवर्तनों के परिप्रेक्ष्य में संस्तरण पर आधारित समाजों एवं समतामूलक समाजों की सम-सामयिक प्रवृत्तियों की तुलनात्मक व्याख्या की है। घुरिये ने ऐतिहासिक तुलनात्मक पद्धति के अन्तर्गत भारत विद्याशास्त्र का प्रयोग कर सामाजिक संस्थाओं के उद्भव, विकास तथा रूपान्तरण जैसी समस्याओं पर अपना मत प्रकट किया है।
6. ड्यूमाँ महोदय ने परित्याग, स्थायित्व, परिवर्तन एवं सामाजिक गतिशीलता के व्यावहारिक पक्षों की विवेचना की है। घुरिये महोदय ने भारतीय धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं- शिव, विष्णु, दुर्गा आदि के उद्भव और उनकी भूमिका का सारगर्भित विवेचन किया है।
7. इन्होंने वर्ण के सिद्धान्त की विवेचना करते हुये क्षेत्रीय स्तर पर संस्तरण अथवा प्रस्थिति क्रम के. निर्धारण, शक्ति एवं श्रेणी क्रम के वितरण के आधारों पर प्रकाश डाला है। इन्होंने पूजा की वृहद् स्तरीय पद्धति के साथ जुड़े हुए स्थानीय और उपक्षेत्रीय विश्वासों को उजागार किया है। इनका यह भी विचार था कि भारत में अनेक पंथों के विकास और विस्तार का आधार राजनीति के साथ-साथ लोक-समर्थन रहा है।
8. 8. ड्यूमाँ महोदय ने विवाह को नियन्त्रित करने वाले आधारों, अन्तर्विवाह व बहिर्विवाह के नियमों के परिप्रेक्ष्य में पृथकता एवं संस्तरण के विचारों की विवेचना की है। भारतीय संस्कृति और समाज के विभिन्न पक्षों के अन्वेषण में उन्होंने भारत विद्याशास्त्र के प्रमुख स्रोतों का प्रयोग किया है।
9. इन्होंने सामाजिक सहवास एवं खान-पान के प्रतिबन्धों एवं नियमों के परिप्रेक्ष्य में अन्तर्जातीय सम्बन्धों को समझाने का प्रयास किया है व सम्प्रभु जाति तथा जाति के आर्थिक आधार पर क्षेत्रीय शक्ति संरचना की विवेचना की है। घुरिये महोदय ने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक वेशभूषा पर लिखते हुये हिन्दू, बौद्ध और जैन कलाकृतियों द्वारा विभिन्न कालों की वेशभूषा में विभिन्नताओं का चित्रण किया है।
10. ड्यूमाँ महोदय ने आधुनिक मानव की समतामूलक विचारधारा को श्रेणीक्रम की पृष्णभूमि में अभिव्यक्त किया है। इन्होंने अपनी कृति "Cities and civilization" में नगरों के प्राकृतिक इतिहास, अमेरिका व इग्लैण्ड के नगरों का इतिहास, भारत के नगरों की स्थिति उनकी वृद्धि, नगर राजधानियों के रूप में तथा विशाल नगरों के रूप में उल्लेख किया है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- लूई ड्यूमाँ और जी. एस. घुरिये द्वारा प्रतिपादित भारत विद्या आधारित परिप्रेक्ष्य के बीच अन्तर कीजिये।
  2. प्रश्न- भारत में धार्मिक एकीकरण को समझाइये। भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले चार लक्षण बताइये?
  3. प्रश्न- भारत में संयुक्त सांस्कृतिक वैधता परिलक्षित करने वाले लक्षण बताइये।
  4. प्रश्न- भारतीय संस्कृति के उन पहलुओं की विवेचना कीजिये जो इसमें अभिसरण. एवं एकीकरण लाने में सहायक हैं? प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये? समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये?
  5. प्रश्न- प्राचीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  6. प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  7. प्रश्न- आधुनिक भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  8. प्रश्न- समकालीन भारतीय संस्कृति की चार विशेषतायें बताइये।
  9. प्रश्न- भारतीय समाज के बाँधने वाले सम्पर्क सूत्र एवं तन्त्र की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- परम्परागत भारतीय समाज के विशिष्ट लक्षण एवं संरूपण क्या हैं?
  11. प्रश्न- विवाह के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- पवित्रता और अपवित्रता के बारे में लुई ड्यूमा के विचारों की चर्चा कीजिये।
  13. प्रश्न- शास्त्रीय दृष्टिकोण का महत्व स्पष्ट कीजिये? क्षेत्राधारित दृष्टिकोण का क्या महत्व है? शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  14. प्रश्न- शास्त्रीय एवं क्षेत्राधारित दृष्टिकोणों में अन्तर्सम्बन्धों की विवेचना कीजिये?
  15. प्रश्न- इण्डोलॉजी से आप क्या समझते हैं? विस्तार से वर्णन कीजिए।.
  16. प्रश्न- भारतीय विद्या अभिगम की सीमाएँ क्या हैं?
  17. प्रश्न- प्रतीकात्मक स्वरूपों के समाजशास्त्र की व्याख्या कीजिए।
  18. प्रश्न- ग्रामीण-नगरीय सातव्य की अवधारणा की संक्षेप में विवेचना कीजिये।
  19. प्रश्न- विद्या अभिगमन से क्या अभिप्राय है?
  20. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य से आप क्या समझते हैं? सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख 'विशेषतायें बतलाइये? प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये?
  21. प्रश्न- सामाजिक प्रकार्य की प्रमुख विशेषतायें बताइये?
  22. प्रश्न- प्रकार्यवाद की उपयोगिता का वर्णन कीजिये।
  23. प्रश्न- प्रकार्यवाद से आप क्या समझते हैं? प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये?
  24. प्रश्न- प्रकार्यवाद की प्रमुख सीमाओं का उल्लेख कीजिये।
  25. प्रश्न- दुर्खीम की प्रकार्यवाद की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये? दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये? मर्टन की प्रकार्यवाद की अवधारणा को समझाइये? प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  26. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार, प्रकार्य की क्या विशेषतायें हैं, बताइये?
  27. प्रश्न- प्रकार्य एवं अकार्य में भेदों की विवेचना कीजिये?
  28. प्रश्न- "संरचनात्मक-प्रकार्यात्मक परिप्रेक्ष्य" को एम. एन. श्रीनिवास के योगदान को स्पष्ट कीजिये।
  29. प्रश्न- डॉ. एस.सी. दुबे के अनुसार ग्रामीण अध्ययनों में महत्व को दर्शाइए?
  30. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में एस सी दुबे के विचारों को व्यक्त कीजिए?
  31. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के ग्रामीण अध्ययन की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  32. प्रश्न- एस.सी. दुबे का जीवन चित्रण प्रस्तुत कीजिये व उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  33. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे के अनुसार वृहत परम्पराओं का अर्थ स्पष्ट कीजिए?
  34. प्रश्न- डॉ. एस. सी. दुबे द्वारा रचित परम्पराओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण व्यक्त कीजिए?
  35. प्रश्न- एस. सी. दुबे के शामीर पेट गाँव का परिचय दीजिए?
  36. प्रश्न- संरचनात्मक प्रकार्यात्मक विश्लेषण का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- बृजराज चौहान (बी. आर. चौहान) के विषय में आप क्या जानते हैं? संक्षेप में बताइए।
  38. प्रश्न- एम. एन श्रीनिवास के जीवन चित्रण को प्रस्तुत कीजिये।
  39. प्रश्न- बी.आर.चौहान की पुस्तक का उल्लेख कीजिए।
  40. प्रश्न- "राणावतों की सादणी" ग्राम का परिचय दीजिये।
  41. प्रश्न- बृज राज चौहान का जीवन परिचय, योगदान ओर कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  42. प्रश्न- मार्क्स के 'वर्ग संघर्ष' के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिये? संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  43. प्रश्न- संघर्ष के समाजशास्त्र को मार्क्स ने क्या योगदान दिया?
  44. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं? मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  45. प्रश्न- मार्क्स के 'द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद' की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिये?
  46. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- ए. आर. देसाई का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य में क्या योगदान है?
  48. प्रश्न- ए. आर. देसाई द्वारा वर्णित राष्ट्रीय आन्दोलन का मार्क्सवादी स्वरूप स्पष्ट करें।
  49. प्रश्न- डी. पी. मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  50. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक परिप्रेक्ष्य क्या है?
  51. प्रश्न- मुकर्जी ने परम्पराओं का विरोध क्यों किया?
  52. प्रश्न- परम्पराओं में कौन-कौन से निहित तत्त्व है?
  53. प्रश्न- परम्पराओं में परस्पर संघर्ष क्यों होता हैं?
  54. प्रश्न- भारतीय संस्कृति में ऐतिहासिक सांस्कृतिक समन्वय कैसे हुआ?
  55. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या है?
  56. प्रश्न- मार्क्स और हीगल के द्वन्द्ववाद की तुलना कीजिए।
  57. प्रश्न- राधाकमल मुकर्जी का मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य क्या है?
  58. प्रश्न- मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य की प्रमुख मान्यताएँ क्या हैं?
  59. प्रश्न- रामकृष्ण मुखर्जी के विषय में संक्षेप में बताइए।
  60. प्रश्न- सभ्यता से आप क्या समझते हैं? एन.के. बोस तथा सुरजीत सिन्हा का भारतीय समाज परिप्रेक्ष्य में सभ्यता का वर्णन करें।
  61. प्रश्न- सुरजीत सिन्हा का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृतियाँ बताइये।
  62. प्रश्न- एन. के. बोस का जीवन चित्रण एवं प्रमुख कृत्तियाँ बताइये।
  63. प्रश्न- सभ्यतावादी परिप्रेक्ष्य में एन०के० बोस के विचारों का विवेचन कीजिए।
  64. प्रश्न- सभ्यता की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  65. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- भारतीय समाज को समझने में बी आर अम्बेडकर के "सबआल्टर्न" परिप्रेक्ष्य की विवेचना कीजिये।
  67. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किये गये धार्मिक कार्यों का विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  68. प्रश्न- दलितोत्थान हेतु डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा किए गए शैक्षिक कार्यों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
  69. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : (1) दलितों की आर्थिक स्थिति (2) दलितों की राजनैतिक स्थिति (3) दलितों की संवैधानिक स्थिति।
  70. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर का जीवन परिचय दीजिये।
  71. प्रश्न- डॉ. अम्बेडर की दलितोद्धार के प्रति यथार्थवाद दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन का आधीनस्थ या दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के वैचारिक स्वरूप एवं पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  73. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के माध्यम से अध्ययन किए गए देवी आन्दोलन का स्वरूप स्पष्ट करें।
  74. प्रश्न- हार्डीमैन द्वारा दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य से अपने अध्ययन का विषय बनाये गए देवी 'आन्दोलन के परिणामों पर प्रकाश डालें।
  75. प्रश्न- डेविड हार्डीमैन के दलितोद्धार परिप्रेक्ष्य के योगदान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
  76. प्रश्न- अम्बेडकर के सामाजिक चिन्तन के मुख्य विषय को समझाइये।
  77. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक कार्यों पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के विचारों एवं कार्यों का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

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