बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायेंसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें
प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
अथवा
कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवादी दृष्टिकोण की विवेचना कीजिए।
अथवा
ऐतिहासिक भौतिकवाद के दर्शन की पृष्ठभूमि को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
लेनिन के अनुसार, "मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद वैज्ञानिक चिन्तन की महानतम उपलब्धि है।" आप इस तर्क से कहां तक सहमत हैं? कारण सहित व्याख्या कीजिए।
अथवा
मार्क्स द्वारा प्रस्तुत इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का समालोचनात्मक वर्णन कीजिये।
अथवा
कार्ल मार्क्स के "ऐतिहासिक भौतिकवाद" से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिये।
उत्तर -
(Historical Materalism or Materialistic Interpretation of History)
मार्क्स द्वारा दिए उनके समाज तथा इतिहास के सिद्धान्त को 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' के नाम से जाना जाता है। यह उस नियम की व्याख्या पर आधारित है जो कि मानव इतिहास की गतिविधि निर्धारित करती है। मार्क्स ने इसके द्वारा हीगल द्वारा प्रस्तुत इतिहास की आदर्शात्मक व्याख्या के स्थान पर अपनी भौतिकवादी व्याख्या प्रस्तुत की है।
मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद इस प्रश्न का उत्तर देता है कि वह कौन सा भौतिक प्रभाव है जो इतिहास की घटनाओं का संचालन व नियमन करता है। मार्क्स के अनुसार, समाज की संरचना, विचार एवं राजनीतिक संस्थाओं आदि का निर्धारण समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाओं द्वारा होता है। मार्क्स इस विचार से सहमत नहीं है कि भौगोलिक वास्तविकता तो यह है कि समाज के भौतिक जीवन की अवस्थाओं' की धारणा के अन्तर्गत सर्वप्रथम प्रकृति या भौगोलिक पर्यावरण आता है। भौगोलिक पर्यावरण, सामाजिक जीवन और उसके विकास को प्रभावित करता है। इसके बावजूद भी भौतिकवाद इस बात को स्वीकार नहीं करता है कि 'भौगोलिक पर्यावरण का यह प्रभाव सब कुछ है या मुख्य रूप से इसके द्वारा - ही समाज की संरचना, सामाजिक व्यवस्था की प्रकृति एक व्यवस्था से दूसरी व्यवस्था में परिवर्तन आदि निर्धारित होता है। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भौगोलिक पर्यावरण के परिवर्तन व विकास की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी से सामाजिक परिवर्तन व विकास घटित होते हैं अतः भौगोलिक पर्यावरण का सामाजिक जीवन पर निर्णायक प्रभाव नहीं होता है।
उदाहरणार्थ - यूरोप का भौगोलिक पर्यावरण सदियों से परिवर्तित नहीं हुआ, जबकि गत तीन हजार वर्षों में इसी यूरोप में एक के बाद दूसरी सामाजिक आर्थिक व्यवस्थाओं के उद्भव, विकास और पतन हो चुका है। जैसे आदिम साम्यवादी व्यवस्था, दास व्यवस्था, सामन्तवादी व्यवस्था, पूँजीवादी व्यवस्था एवं रूस में समाजवादी व्यवस्था आदि। इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि भौगोलिक पर्यावरण सामाजिक विकास का प्रमुख निर्णय का नहीं है।
यह भी सत्य है कि जनसंख्या की वृद्धि 'समाज के भौतिक जीवन की आवश्यकताओं की धारणा के अन्तर्गत आ जाती है, क्योंकि समाज के भौतिक जीवन की अवस्था का एक आवश्यक तत्व मनुष्य या जनसंख्या है। समाज का भौतिक जीवन एक न्यूनतम जनसंख्या के बिना नहीं बन सकता है। तो क्या जनसंख्या की वृद्धि ही मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था के निर्धारण की प्रमुख शक्ति है? ऐतिहासिक भौतिकवाद का उत्तर है- 'नहीं जनसंख्या की वृद्धि का निर्णायक प्रभाव सामाजिक विकास नहीं हो सकता, क्योंकि कारक यह नहीं बता सकता कि अमुक सामाजिक व्यवस्था ने एक सामाजिक व्यवस्था का स्थान क्यों ले लिया, क्यों दास व्यवस्था का उदय आदिम साम्यवादी व्यवस्था के स्थान पर हुआ क्यों सामन्तवादी व्यवस्था ने दास व्यवस्था, और पूँजीवादी व्यवस्था ने सामन्तवादी व्यवस्था ने ही लिया, अन्य किसी व्यवस्था ने क्यों नहीं लिया। यदि सामाजिक विकास का निर्णायक कारण जनसंख्या की वृद्धि होता है तो वहाँ की सामाजिक व्यवस्था उच्च कोटि की होनी चाहिए, जिस समाज की जनसंख्या अधिक है। लेकिन ऐसा शायद ही देखने को मिलता है। उदाहरणार्थ, अमेरिका का सामाजिक विकास अधिक है जबकि अमेरिका तथा चीन का क्षेत्रफल लगभग समान है और चीन की जनसंख्या का घनत्व अमेरिका से चार गुना अधिक है। इसी प्रकार अमेरिका से दस गुना भारत की जनसंख्या का घनत्व है। लेकिन यहाँ की सामाजिक व्यवस्था पूरी तरह न तो समाजवादी है और न पूँजीवादी है।
सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं के निर्णायक कारण यदि भौगोलिक परिस्थितियाँ या जनसंख्या में वृद्धि नहीं है तो वह शक्ति कौन है जो इतिहास की घटनाओं-सांस्कृतिक व्यवस्था, धार्मिक, मनुष्य के नैतिक, सामाजिक तथा राजनीतिक विचार एवं संस्थाओं का नियमन तथा निर्धारण करती है? ऐतिहासिक भौतिकवाद के अनुसार, इस शक्ति में मानव अस्तित्व के लिए जीवन के आवश्यक साधनों को प्राप्त करने की उत्पादन प्रणाली निहित है।
संक्षेप में इतिहास की घटनाओं को मुख्यता निर्धारण करने में उत्पादन प्रणाली का ही प्रभाव है। इसीलिए इसे मार्क्स के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या अथवा उत्पादन प्रणाली द्वारा इतिहास की व्याख्या भी कहा जाता है। आर्थिक निर्णायकवाद मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद का प्रमुख तत्व है। इसका अर्थ यह नहीं है कि मानव जो कुछ भी करता है, आर्थिक या भौतिक स्वार्थों की प्रेरणा से उसका निर्णय हो। मार्क्स का यह विश्वास नहीं है कि जिनसे प्रेरित होकर मनुष्य कार्य करता है, सामाजिक : व्यवस्था की व्याख्या उन हेतुओं के विश्लेषण द्वारा कर सकते हैं। उनके कथानुसार मनुष्य को जीवित रहना आवश्यक है, इससे इतिहास का निर्माण होता है। मनुष्य को भोजन, मकान, कपड़ा आदि वस्तुयें जीवित रहने के लिए आवश्यक हैं। इसके लिए आवश्यक है कि वह उत्पादन करें और उत्पादन के लिए उपकरणों या साधनों की आवश्यकता पड़ती है।
जिनके द्वारा भौतिक मूल्यों का उत्पादन होता है, उत्पादन के ये उपकरण हैं, मनुष्य भौतिक मूल्यों का उत्पादन उपकरणों का प्रयोग करके करते हैं, एक समाज की उत्पादन शक्ति को उत्पादन अनुभव व श्रम कौशल ये तत्व एक साथ मिलकर बनाते हैं। परन्तु उत्पादन प्रणाली का उत्पादक-शक्ति का केवल एक पक्ष है। मनुष्यों का उत्पादन सम्बन्ध उत्पादन प्रणाली का दूसरा पक्ष है। मनुष्य भौतिक मूल्यों के उत्पादन में प्रकृति को काम में लाता है तथा प्रकृति के विरुद्ध संघर्ष करता है।
लेकिन मनुष्य ये सब काम समूह में एक साथ मिलकर करता है। अतः प्रत्येक परिस्थिति में, प्रत्येक समय में उत्पादन, सामाजिक उत्पादन होता है। प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्तियों से किसी न किसी प्रकार का सम्बन्ध सामाजिक उत्पादन के सिलसिले में स्थापित कर ही लेता हो। मार्क्स के शब्द हैों में, 'उत्पादन में मनुष्य केवल प्रकृति के प्रति ही नहीं, बल्कि एक-दूसरे के प्रति भी क्रियाशील होता है। अपने कार्यों के आपस में देन लेने से किसी न किसी तरह से सहयोग करते हुए वे उत्पादन करते हैं। उत्पादन करने के लिए एक-दूसरे से निश्चित सम्बन्ध तथा परस्पर मिलना पड़ता है और उत्पादन कार्य परस्पर मिलने तथा सम्बन्धों के अन्तर्गत सम्पादित होता है। यह अधिक समय तक स्थिति पर स्थिर नहीं रहती, यह उत्पादन प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें विकास तथा परिवर्तन सदैव होता रहता है। सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक मतों और राजनीतिक संस्थाओं व विचारों में परिवर्तन उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन अवश्यम्भावी हो जाता है अर्थात् समग्र सामाजिक तथा राजनीति व्यवस्था का निर्माण उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन होने से अनिवार्य हो जाता है। मनुष्य उत्पादन प्रणाली को अलग-अलग विकास के विभिन्न स्तर को अपनाता है। एक प्रकार की उत्पादन प्रणाली आदिम साम्यवादी युग में थी, दूसरे प्रकार की दासत्व युग में, साम्यवादी युग में तीसरे प्रकार की तथा चौथे प्रकार की पूँजीवादी युग में और मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था, राजनीतिक संस्थाएँ, आध्यात्मिक जीवन, विचार आदि इन परिवर्तनों के साथ-साथ परिवर्तित होते रहे।
इसका अर्थ यह हुआ कि इतिहास वास्तव में समाज के विकास, उत्पादन प्रणाली के विकास का इतिहास यानि विकास का इतिहास उत्पादन शक्ति और मनुष्य के उत्पादन के सम्बन्ध में है जो कि भौतिक मूल्यों का उत्पादन करते हैं। दूसरे शब्दों में उत्पादन की प्रक्रिया में सामाजिक विकास का इतिहास उस मेहनतकश जनता की प्रमुख शक्ति है जो आवश्यक भौतिक मूल्यों का उत्पादन समाज के अस्तित्व के लिए करती है।
इस कारण यदि इतिहास को विज्ञान बनाना है तो जो लोग भौतिक मूल्यों का उत्पादन करते हैं उनका इतिहास होगा, मजदूरों का इतिहास होगा, जनता का इतिहास होगा न कि राजाओं, सेनापतियों, विजेताओं या शासकों के कारनामों का इतिहास होगा।
यही व्याख्या मार्क्सवादी इतिहास की व्याख्या है जो संक्षिप्त में निम्न प्रकार है :
(1) मनुष्य जीवित रहे यह मानव अस्तित्व के लिए सर्वप्रथम आवश्यकता है, तभी इतिहास का निर्माण हो सकता है। इसके लिए सर्वप्रथम आवश्यकता भोजन, कपड़ा, निवास आदि की है।
(2) ऐतिहासिक विकास भौतिक वस्तुओं या मूल्यों उत्पादन और पुनः उत्पादन पर निर्भर है।
(3) इससे स्पष्ट है कि भोजन, वस्त्र और निवास आदि, ऐतिहासिक कार्य इन साधनों का उत्पादन है। जिससे आवश्यकता की पूर्ति हो सके अर्थात् सर्वप्रथम ऐतिहासिक कार्य भौतिक जीवन का उत्पादन है। हजारों वर्ष पहले की भाँति आज भी मानव जीवन को बनाये रखना आवश्यक है वास्तव में यही एक ऐतिहासिक कार्य है।
(4) उत्पादन प्रणाली में परिवर्तन के ही फलस्वरूप इतिहास के सभी प्रमुख परिवर्तन हुए। उत्पादन प्रणाली के साथ-साथ विभिन्न सामाजिक वर्गों की प्रकृति तथा पद, नैतिक आदर्श, कला, साहित्य तथा राजनीतिक संस्थाएं आदि विभिन्न सामाजिक वर्गों में परिवर्तन करती रहती हैं।
(5) एक समय विशेष में हम जीवित रहने के लिए जिन भौतिक साधनों को प्राप्त कर लेते है वही आधार होता है जिस पर कानून, कला, धर्म, सरकार आदि आधारित होते हैं।
(6) अतः आत्मा या आदर्श पर इतिहास का विकास विचार आधारित नहीं है। समाज का आर्थिक जीवन- उत्पादक शक्ति व उत्पादन सम्बन्ध उसका एक वास्तविक आधार है।
(7) इस प्रकार सबसे प्रथम, सबसे अधिक आवश्यक, सबसे आधारभूत भौतिक मूल्यों की क्रिया और सबसे अधिक सामान्य ऐतिहासिक घटना है। इस कारण इतिहास के निर्माण में मेहनतकश जनता का हाथ होता है न कि गिने-चुने दो चार व्यक्तियों का। दूसरे शब्दों में इतिहास का निर्माण असंख्य साधारण व्यक्तियों के द्वारा होता है न कि दो चार असाधारण व्यक्तियों के द्वारा।
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- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
- प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
- प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
- प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
- प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
- प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
- प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
- प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
- प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
- प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
- प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
- प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
- प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
- प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
- प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
- प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
- प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
- प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
- प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
- प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
- प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
- प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
- प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
- प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
- प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
- प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
- प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
- प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
- प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
- प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
- प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
- प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
- प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
- प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
- प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
- प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
- प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
- प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
- प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
- प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
- प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
- प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
- प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
- प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
- प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
- प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
- प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
- प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
- प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
- प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
- प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
- प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
- प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।