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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2681
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - प्राचीन समाजशास्त्रीय परम्परायें

प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।

अथवा
विशिष्ट चालक क्या है? व्याख्या कीजिए।
अथवा
परेटो के विचार में विशिष्ट चालक क्या है?
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न - विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए।

उत्तर -

विशिष्ट चालक की अवधारणा

यदि हम मोटे तौर पर मानव व्यवहार को विश्लेषित करें तो उस व्यवहार के दो पक्ष स्पष्ट हो सकते हैं - एक तो अपेक्षाकृत अधिक स्थिर पक्ष होता है और दूसरा अस्थिर या परिवर्तनशील पक्ष। मानव-व्यवहार के स्थिर (constant) पक्ष को परेटो ने विशिष्ट चालक' और परिवर्तनशील (variable) पक्ष को 'भ्रान्त तर्क' कहा है। परेटो ने यह स्वीकार किया है कि ये नाम केवल सुविधाजनक 'संकेत- शब्द' है और यदि कोई चाहे तो इसके स्थान पर अन्य किसी संकेत का भी प्रयोग कर सकता है।

मानव-व्यवहार के उन स्थिर तत्वों का, जिन्हें कि उन्होंने 'विशिष्ट चालक' कहा है, परेटो ने अधिक स्पष्टीकरण नहीं किया है और यह सुझाव दिया है कि इसके विषय में मनोवैज्ञानिकों को और अधिक अध्ययन करना चाहिए। कुछ भी हो, समाजशास्त्रियों के लिए यह बहुत ही मूल्यवान् तथा महत्वपूर्ण है। परेटो की कृतियों से 'विशिष्ट चालक' के सम्बन्ध में जो कुछ भी ज्ञात होता है वह निम्नलिखित है-

मानव-व्यवहार के निर्धारण में प्रेरणाओं का बहुत बड़ा हाथ होता है। परेटो का 'विशिष्ट चालक' विशेष प्रकार की प्रेरणाएँ हैं। ये 'विशिष्ट चालक' प्रेरणाओं की अपेक्षा अधिक स्थिर होती हैं और इसी कारण मानव-व्यवहार को संचालित और नियन्त्रित करने में इनका पर्याप्त योग होता है। परेटो की व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि यह विशिष्ट चालक न तो मूल प्रवृत्ति है और न भावना ही। इन विशिष्ट चालकों के सम्बन्ध में परेटो ने जो कुछ बताया है, उससे इनका अधिक-से-अधिक स्पष्टीकरण या परिभाषा यह हो सकती है कि विशिष्ट चालक मूल प्रवृत्तियों और भावनाओं की अभिव्यक्ति है। परेटो के शब्दों में, “जिस प्रकार थर्मामीटर में पारे का चढ़ना ताप के बढ़ने की अभिव्यक्ति है, उसी प्रकार विशिष्ट चालक मूल प्रवृत्तियों और भावनाओं की अभिव्यक्ति है।" ये विशिष्ट चालक, जैसाकि पहले ही कहा जा चुका है, अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं। इनकी स्थिरता चाहे मूल प्रवृत्तियों के कारण हो या भावनाओं के कारण या अन्य किसी कारण से, परन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये अधिक ६ अस्थिर तत्व नहीं होते।

उक्त विवेचना के आधार पर विशिष्ट चालकों की तीन प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख किया जा सकता है -

(1) विशिष्ट चालक अपेक्षाकृत अधिक स्थिर होते हैं;
(2) विशिष्ट चालक स्वयं मूल प्रवृत्ति या भावना नहीं होती वरन् इसकी अभिव्यक्ति होती है।
(3) विशिष्ट चालकों में तार्किक तत्व नहीं होते और न ही तार्किक आधार पर इनकी व्याख्या की जा सकती है या इन्हें समझाया जा सकता है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि विशिष्ट चालक आलपोर्ट द्वारा वर्णित 'शक्तिवाली प्रतिक्षेप' (Prepotent Reflexes), या पेटराजिट्स्की द्वारा उल्लिखित संवेगों आदि से सम्बन्धित हैं।

परेटो के पहले के समाजशास्त्रियों के लेखों में भी कुछ ऐसी शक्तियों का उल्लेख मिलता है जो सामाजिक सन्तुलन की व्याख्या करती है। अतः हम कह सकते हैं कि भूत-काल में भी समाजशास्त्रियों द्वारा अनजाने ही में विशिष्ट चालकों को खोजा गया है, परन्तु उन खोजों का कोई वैज्ञानिक स्पष्टीकरण उनके लेखों में नहीं मिलता है। परेटो ने उनकी कमी को दूर करने का सचेत प्रयत्न किया, यद्यपि उनके लेखों में भी हमें इस विषय का कोई विशेष स्पष्टीकरण नहीं मिलता है। परेटो ने लगभग पचास विशिष्ट चालकों की चर्चा की है, किन्तु वे निम्नलिखित छः श्रेणियों में आते हैं -

(1) सम्मिलन के विशिष्ट चालक।
(2) समूह के स्थायित्व के विशिष्ट चालक।
(3) बाह्य क्रियाओं द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालक या आवश्यकताएँ। (4) सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक।
(5) व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक।
(6) काम सम्बन्धी विशिष्ट चालक।

इन विशिष्ट चालकों के विषय में जो कुछ परेटो ने कहा है वह संक्षेप में इस प्रकार है -

1. सम्मिलन के विशिष्ट चालक (Residues of Combination) - सम्मिलन के विशिष्ट चालक परस्पर समान या विरोधी तत्वों को मिलाने वाली प्रेरणाएँ हैं। परन्तु इस प्रकार के सम्मिलन का प्रायः कोई तर्कसंगत कारण नहीं होता, यद्यपि हम उनमें अपने विश्वास को उत्पन्न करने और बनाए रखने के लिए कोई-न-कोई उलटा-सीधा तर्क ढूँढने का प्रयत्न अवश्य ही करते हैं। इस प्रकार के विशिष्ट चालक के प्रभाव के कारण होने वाले परस्पर समान या विरोधी तत्वों या चीजों के सम्मिलन के अच्छे उदाहरण स्वप्न में देखी गई चीजों के आधार पर हमारे विश्वास से दिए जा सकते हैं। परस्पर समान चीजों का मेल हम इस प्रकार करते हैं- तितली देखने में सुन्दर और प्यारी होती है; इसी आधार पर हम विश्वास करते हैं कि सपने में तितली को देखना आने वाले सुख का द्योतक है। इसके विपरीत, परस्पर विरोधी चीजों का मेल हम इस प्रकार करते हैं यदि हम सपने में अपने को सुन्दर देखते हैं, तो उसका अर्थ होता है कि हम शीघ्र ही बीमार पड़ने वाले हैं। सपने में सोना (gold) देखना आर्थिक हानि का द्योतक है। जादू से सम्बन्धित एक नियम के अनुसार यह विश्वास किया जाता है कि समान वस्तु, समान वस्तु पैदा करेगी ही। उदाहरणार्थ, कुछ लोगों का ऐसा विश्वास है कि किसी शत्रु को चोट पहुँचाना या मारना है तो उस शत्रु की मूर्ति का निर्माण कर उस पर चोट पहुँचानी चाहिए; मूर्ति को जहाँ-जहाँ चोट लगाई जाएगी, उन्हीं स्थानों पर शत्रु को भी चोट पहुँचेगी। कुछ जनजातियों के लोग वर्षा लाने के लिए आग जलाते हैं और खूब धुआँ करते हैं क्योंकि उनका विश्वास है कि धुएँ और बादल में समानता है, इसलिए समान वस्तु (धुआँ सदैव समान वस्तु (बादल) उत्पन्न करेगी और वर्षा होगी। इस प्रकार के विश्वासों का कोई तार्किक आधार नहीं होता है; यह तो वास्तव में वास्तविकता पर एक पर्दा है, और वास्तविकता पर इस प्रकार का पर्दा डालना ही सम्मिलन के विशिष्ट चालक का कार्य है।

2. समूह के स्थाचित्व के विशिष्ट चालक (Residues of the Persistence of Aggregates) - ये वे प्ररणाएँ हैं जो मनुष्य के पारस्परिक सम्बन्धों, मनुष्य एवं स्थानों के बीच सम्बन्धों तथा जीवित और मृत व्यक्तियों के बीच सम्बन्धों को स्थायित्व प्रदान करती हैं। ये विशिष्ट- चालकें मनुष्य की भावनाओं की अभिव्यक्ति होती हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती रहती हैं। इनके प्रति लोगों के दिल में आदर भाव होता है। इन्हीं विशिष्ट चालकों से चालित होकर हम अपने परिवार, नगर, देश या प्रजाति के या इनके सदस्यों के साथ अपना सम्बन्ध बनाए रखते हैं और उन्हें सम्मान प्रदान करते हैं; अपने मरे हुए सम्बन्धियों को याद करते हैं; उनके समाधि स्थलों पर जाकर फूल चढ़ाते हैं; इतिहास के महापुरुषों से अपना सम्बन्ध बनाये रखने के लिए उनकी जयन्तियाँ मनाते हैं और उनके जीवन से सम्बन्धित स्थलों को देखने जाते हैं। समूह की स्थिरता या स्थायित्व में इस श्रेणी में आने वाले विशिष्ट चालकों का महत्वपूर्ण हाथ होता है।

3. बाह्य - क्रियाओं द्वारा भावनाओं की अभिव्यक्ति के विशिष्ट चालक या आवश्यकताएँ (Residues or needs of the Manifestation of Sentimants through Exterior Acts)- इस श्रेणी के अन्तर्गत उन विशिष्ट चालकों को सम्मिलित किया जाता है जोकि हमें अपनी भावनाओं को बाह्य क्रियाओं द्वारा प्रदर्शित करने को प्रेरित करते हैं। उदाहरणार्थ, हमारी राष्ट्रीयता की भावना अपने को दासता के बन्धन से मुक्त करने के लिए हमें राजनीतिक आन्दोलन या विद्रोह करने को प्रेरित करती है। उसी प्रकार धर्म से सम्बन्धित भावनाओं की अभिव्यक्ति पूजा-पाठ, प्रार्थना आदि बाह्य क्रियाओं के रूप में होती हैं। इस प्रकार के विशिष्ट चालक पशुओं में भी होते हैं। जैसे, अपने मालिक को देखकर कुत्ता खुशी से अपनी पूँछ हिलाने लगता है।

4. सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्ट चालक (Residues in regard to Sociability) - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे विशिष्ट चालक सम्मिलित किए जाते हैं जोकि मनुष्य को सामाजिक प्राणी बनाते हैं। उनके द्वारा हमें इसे बात की प्रेरणा मिलती है कि हम अपने आचरणों या व्यवहारों को अपने उस छोटे या बड़े समूह के अनुरूप बनाएँ जिसके कि हम सदस्य हैं। संक्षेप में, ये विशिष्ट चालक हमें अपने व्यवहारों को अन्य व्यक्तियों के समान बनाने की प्रेरणा देते हैं, और इसी उद्देश्य से प्रत्येक व्यक्ति, जिस सामाजिक समूह का वह सदस्य है, उसकी रीति को अपनाता है। दया, क्रूरता, आत्म-बलिदान, श्रेष्ठता अथवा हीनता की भावना, नवीनता के भय आदि इस श्रेणी के विशिष्ट चालकों के उदाहरण हैं। इस सम्बन्ध में यह प्रश्न उठ सकता है कि क्रूरता किस प्रकार सामाजिकता उत्पन्न कर सकती है? इसकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है कि जब व्यक्ति अपने तथा अपने समूह के व्यवहार में प्रत्येक प्रकार से एकरूपता उत्पन्न करने का प्रयत्न करता है, और उस प्रयत्न में कोई बाधा उत्पन्न होती है तो स्वभावतः वह क्रूर हो जाता है। क्रूरता व्यक्ति की इस इच्छा की अभिव्यक्ति है कि वह उस बाधा को नष्ट करना चाहता है। सामाजिकता से सम्बन्धित विशिष्टं चालक का एक सबसे अधिक रोचक उपविभाजन तापसीवाद है जोकि इस प्रकार के त्याग द्वारा या शरीर को कष्ट देने की साधना द्वारा अभिव्यक्त होता है। ये सभी विशिष्ट चालक सामाजिक एकरूपता को उत्पन्न करने वाले और सामाजिक संगठन को दृढ़ करने में सहायक होते हैं।

5. व्यक्तित्व के संगठन के विशिष्ट चालक (Residues of the Integrity of Personality). - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे प्रेरणाएँ आती हैं जोकि व्यक्तित्व के विभिन्न तत्वों या लक्षणों को संगठित या संयोजित करती हैं। इन्हीं विशिष्ट चालकों के कारण हम उन प्रयत्नों का विरोध करते हैं जोकि सामाजिक या व्यक्तित्व सम्बन्धी सन्तुलन को नष्ट करने वाले होते हैं। यही विशिष्ट- चालक हमें व्यक्तित्व के विभिन्न और बिखरे हुए तत्वों को फिर से बटोरने और व्यक्तित्व को ऊँचा उठाने की प्रेरणा देते हैं। उचित और अनुचित का ज्ञान हमें इन्हीं चालकों से होता है जिसके कारण एक नैतिक स्तर बनाए रखने में हमें सहायता मिलती है। इसीलिए बहुधा हम अपने ऊपर तथा अपने समाज के ऊपर होने वाले अनैतिक या अनुचित आक्रमण का विरोध करते हैं। हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि हम विश्वास करते हैं कि इस प्रकार के आक्रमणों से हमारा या समाज का नैतिक पतन हो सकता है, या हमारे व्यक्तित्व और समाज में विघटन की अवस्था उत्पन्न हो सकती है।

6. काम-सम्बन्धी विशिष्ट चालक (Sexual Residues) - इस श्रेणी के अन्तर्गत वे प्रेरणाएँ आती हैं जोकि यौन क्षुधा या काम वासनाओं से संम्बन्धित हैं। ये विशिष्ट चालक प्रायः जटिल रूपों में मिलते हैं और कभी-कभी इनको नियन्त्रित करने के लिए समाज को यौन सम्बन्धी निषेधों को लागू करना पड़ता है। इसी की अभिव्यक्ति 'यौन-धर्म' के रूप में होती है।

परेटो के अनुसार, उपरोक्तं विशिष्ट चालक प्रत्येक समाज में पाए जाते हैं और वे सभी सामाजिक प्रणाली की अपेक्षा अधिक स्थिरं तत्व भी हैं। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इन विशिष्ट चालकों की शक्ति और वितरण या अनुपात समस्त व्यक्तियों और समूहों में एक-सा होता है। वास्तव में इनकी शक्ति और अनुपात विभिन्न कालों और विभिन्न व्यक्तियों तथा सामाजिक समूह में भिन्न-भिन्न होता है। ऐसे बहुत-से व्यक्ति हैं जिनमें काम-सम्बन्धी विशिष्ट चालक अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं। दूसरी ओर ऐसे भी व्यक्ति होते हैं जिन पर इनका प्रभाव बहुत कम होता है। उसी प्रकार ऐसे समूह तथा व्यक्ति हैं जिनमें सम्मिलन के विशिष्ट चालकों का प्रभुत्व होता है, और ऐसे भी समूह या व्यक्ति हैं जिनमें इनका अभाव भी दीखता है। वास्तविकता यह है कि कोई भी सामाजिक व्यवस्था किसी अन्तिम या पूर्ण रूप से स्थिर सिद्धान्त के आधार पर नहीं चलती बल्कि यह सदैव सापेक्षिक होती है और इसमें परिवर्तन भी होता रहता है। इन परिवर्तनों के साथ-साथ उक्त विशिष्ट चालकों की शक्तियों और वितरण में भी परिवर्तन होता जाता है। इस प्रकार परेटो के अनुसार, विशिष्ट विचार समय-कारक (time factor) और सामाजिक परिस्थितियों से सम्बन्धित हैं और इनमें परिवर्तन के साथ-साथ ये स्वयं भी परिवर्तित होते रहते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की ऐतिहासिक, सामाजिक, आर्थिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिये।
  2. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव की विवेचना कीजिये।
  3. प्रश्न- समाजशास्त्र के उद्भव में सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  4. प्रश्न- समाजशास्त्र की उत्पत्ति एवं विकास के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिये।
  5. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विभिन्न चरणों का वर्णन कीजिये।
  6. प्रश्न- भारत में समाजशास्त्र के विकास की प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिये।
  7. प्रश्न- सामाजिक विचारधारा की प्रकृति व उसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- ज्ञान का समाजशास्त्र क्या है? दुर्खीम के अनुसार इसकी विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- 'दुर्खीम बौद्धिक पक्ष' की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  11. प्रश्न- समाजशास्त्र के विकास में दुर्खीम का योगदान बताइये।
  12. प्रश्न- विसंगति की अवधारणा का वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- कॉम्ट तथा दुर्खीम की देन की तुलना कीजिये।
  14. प्रश्न- दुर्खीम का समाजशास्त्रीय योगदान बताइये।
  15. प्रश्न- 'दुर्खीम ने समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धति को समृद्ध बनाया' व्याख्या कीजिये।
  16. प्रश्न- दुर्खीम की कृतियाँ कौन-कौन सी हैं? स्पष्ट करें।
  17. प्रश्न- इमाइल दुर्खीम के जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों पर प्रकाश डालिये।
  18. प्रश्न- दुर्खीम के समाजशास्त्रीय प्रत्यक्षवाद के नियम बताइए।
  19. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या-सिद्धान्त की आलोचनात्मक जाँच कीजिये।
  20. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त के क्या प्रकार हैं?
  21. प्रश्न- आत्महत्या का परिचय, अर्थ, परिभाषा तथा कारण बताइये।
  22. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त की विवेचना करते हुए उसके महत्व पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या सिद्धान्त के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- 'आत्महत्या सामाजिक कारकों की उपज है न कि वैयक्तिक कारकों की। दुर्खीम के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- आत्महत्या का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- अहम्वादी आत्महत्या के सम्बन्ध में दुर्खीम के विचारों की विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार आत्महत्या से आप क्या समझते हैं? इसके कारणों की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- दुर्खीम के आत्महत्या के सिद्धान्त को परिभाषित कीजिये।
  29. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार 'विसंगत आत्महत्या' क्या है?
  30. प्रश्न- आत्महत्या का समाज के साथ व्यक्ति के एकीकरण की समस्या।
  31. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- दुर्खीम के पद्धतिशास्त्र की विशेषताएँ लिखिए।
  33. प्रश्न- सामाजिक तथ्य की अवधारणा की विस्तृत व्याख्या कीजिये।
  34. प्रश्न- बाह्यता (Exteriority) एवं बाध्यता (Constraint) क्या है? वर्णन कीजिये।
  35. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य की व्याख्या किस प्रकार की है?
  36. प्रश्न- समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम' पुस्तक में दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य को कैसे परिभाषित किया है?
  37. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्य की विशेषताओं का मूल्यांकन कीजिए।
  38. प्रश्न- दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों के लिये कौन-कौन से नियमों का उल्लेख किया है?
  39. प्रश्न- दुर्खीम ने सामान्य और व्याधिकीय तथ्यों में किस आधार पर अंतर किया है?
  40. प्रश्न- दुर्खीम द्वारा निर्णीत “अपराध एक सामान्य सामाजिक तथ्य है" को रॉबर्ट बीरस्टीड मानने को तैयार नहीं है। स्पष्ट करें।
  41. प्रश्न- अपराध सामूहिक भावनाओं पर आघात है। स्पष्ट कीजिये।
  42. प्रश्न- दुर्खीम के अनुसार दण्ड क्या है?
  43. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म और जादू में क्या अंतर किये हैं?
  44. प्रश्न- टोटमवाद से दुर्खीम का क्या अर्थ है?
  45. प्रश्न- दुर्खीम ने धर्म के किन-किन प्रकार्यों का उल्लेख किया है?
  46. प्रश्न- दुर्खीम का धर्म का क्या सिद्धांत है?
  47. प्रश्न- दुर्खीम के सामाजिक तथ्यों की अवधारणा पर प्रकाश डालिये।
  48. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म के सामाजिक सिद्धान्तों को विश्लेषित कीजिए।
  49. प्रश्न- दुर्खीम ने अपने पूर्ववर्तियों की धर्म की अवधारणों की आलोचना किस प्रकार की है।
  50. प्रश्न- दुर्खीम के धर्म की अवधारणा को विशेषताओं सहित स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- दुर्खीम की धर्म की अवधारणा का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
  52. प्रश्न- धर्म के समाजशास्त्र के क्षेत्र में दुर्खीम और वेबर के योगदान की तुलना कीजिए।
  53. प्रश्न- पवित्र और अपवित्र, सर्वोच्च देवता के रूप में समाज धार्मिक अनुष्ठान और उनके प्रकार बताइये।
  54. प्रश्न- टोटमवाद क्या है? व्याख्या कीजिये।
  55. प्रश्न- 'कार्ल मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  57. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक युगों के विभाजन को स्पष्ट कीजिए।
  58. प्रश्न- मार्क्स के ऐतिहासिक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  59. प्रश्न- मार्क्स की वैचारिक या वैचारिकी के सिद्धान्त का विश्लेषण कीजिए।
  60. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाव को कैसे समाप्त किया जा सकता है?
  61. प्रश्न- मार्क्स का 'आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त' बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता समझाइए।
  62. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  64. प्रश्न- आदिम साम्यवादी युग में वर्ग और श्रम विभाजन का कौन-सा स्वरूप पाया जाता था?
  65. प्रश्न- दासत्व युग में वर्ग व्यवस्था की व्याख्या कीजिये।
  66. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  67. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  68. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  69. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही है?
  70. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  71. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के "द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी सिद्धान्त" का मूल्याकंन कीजिए।
  72. प्रश्न- कार्ल मार्क्स की वर्गविहीन समाज की अवधारणा को संक्षेप में समझाइए।
  73. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के राज्य सम्बन्धी विचारों की विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- पूँजीवादी व्यवस्था तथा राज्य में क्या सम्बन्ध है?
  75. प्रश्न- मार्क्स की राज्य सम्बन्धी नई धारणा राज्य तथा सामाजिक वर्ग के बार में समझाइये।
  76. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के परिप्रेक्ष्य के रूप में विखंडित, ऐतिहासिक, भौतिकवादी अवधारणा बताइये |
  77. प्रश्न- स्तरीकरण के प्रमुख सिद्धांत बताइये।
  78. प्रश्न- कार्ल मार्क्स के 'ऐतिहासिक भौतिकवाद' से आप क्या समझते हैं?
  79. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार वर्ग संघर्ष का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- मार्क्स के विचारों में समाज में वर्गों का जन्म कब और क्यों हुआ?
  81. प्रश्न- मार्क्स ने वर्गों की सार्वभौमिक प्रकृति को कैसे स्पष्ट किया है?
  82. प्रश्न- पूर्व में विद्यमान वर्ग संघर्ष की धारणा में मार्क्स ने क्या जोड़ा?
  83. प्रश्न- मार्क्स ने 'वर्ग संघर्ष' की अवधारणा को किस अर्थ में प्रयुक्त किया?
  84. प्रश्न- मार्क्स के वर्ग संघर्ष के विवेचन में प्रमुख कमियाँ क्या रही हैं?
  85. प्रश्न- वर्ग और वर्ग संघर्ष की विवेचना कीजिए।
  86. प्रश्न- समाजशास्त्र को मार्क्स का क्या योगदान मिला?
  87. प्रश्न- मार्क्स ने समाजवाद को क्या योगदान दिया?
  88. प्रश्न- साम्यवादी समाज के निर्माण के लिये मार्क्स ने क्या कार्य पद्धति सुझाई?
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के बारे में मार्क्स के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
  92. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  93. प्रश्न- मार्क्स द्वारा प्रस्तुत वर्ग संघर्ष के कारणों की विवेचना कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक विकास की विभिन्न अवस्थाएँ क्या हैं?
  95. प्रश्न- सर्वहारा क्रान्ति की विशेषताएँ बताइये।
  96. प्रश्न- मार्क्स के अनुसार अलगाववाद के लिए उत्तरदायी कारकों पर प्रकाश डालिए।
  97. प्रश्न- मार्क्स का आर्थिक निश्चयवाद का सिद्धान्त बताइए। 'सामाजिक परिवर्तन' के लिए इसकी सार्थकता बताइए।
  98. प्रश्न- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद की मुख्य विशेषतायें बताइये।
  99. प्रश्न- मैक्स वेबर के बौद्धिक पक्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिये।
  100. प्रश्न- वेबर का समाजशास्त्र में क्या योगदान है?
  101. प्रश्न- वेबर के अनुसार सामाजिक क्रिया क्या है? सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रचारों का वर्णन भी कीजिए।
  102. प्रश्न- सामाजिक क्रिया के विभिन्न प्रकार क्या हैं?
  103. प्रश्न- नौकरशाही किसे कहते हैं? वेबर के नौकरशाही सिद्धान्त की समीक्षा कीजिए।
  104. प्रश्न- वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त क्या है?
  105. प्रश्न- नौकरशाही की प्रमुख विशेषताएँ बतलाइये।
  106. प्रश्न- सत्ता क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- मैक्स वैबर के अनुसार समाजशास्त्र को परिभाषित किजिये।
  108. प्रश्न- वेबर का पद्धतिशास्त्र तथा मूल्यांकनात्मक निर्णय क्या हैं? स्पष्ट करो।
  109. प्रश्न- आदर्श प्ररूप की धारणा का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- करिश्माई सत्ता के मुख्य लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
  111. प्रश्न- 'प्रोटेस्टेण्ट आचार और पूँजीवाद की आत्मा' सम्बन्धी मैक्स वेबर के सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- कार्य प्रणाली का योगदान या कार्य प्रणाली का अर्थ, परिभाषा बताइये।
  113. प्रश्न- मैक्स वेबर के 'आदर्श प्रारूप' की विवेचना कीजिए।
  114. प्रश्न- मैक्स वैबर का संक्षिप्त जीवन-चित्रण तथा प्रमुख कृतियों का वर्णन कीजिये।
  115. प्रश्न- मैक्स वेबर का बौद्धिक दृष्टिकोण क्या है?
  116. प्रश्न- सामाजिक क्रिया को स्पष्ट कीजिये।
  117. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा दिये गये सामाजिक क्रिया के प्रकारों की विवेचना कीजिए।
  118. प्रश्न- वैबर के अनुसार सामाजिक वर्ग और स्थिति क्या है? बताइये।
  119. प्रश्न- वेबर का सामाजिक संगठन का सिद्धान्त क्या है? बताइये।
  120. प्रश्न- वेबर का धर्म का समाजशास्त्र क्या है? बताइये।
  121. प्रश्न- धर्म के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स तथा मैक्स वेबर के विचारों की तुलना कीजिए।
  122. प्रश्न- वेबर ने शक्ति को किस प्रकार समझाया?
  123. प्रश्न- नौकरशाही के दोष समझाइए?
  124. प्रश्न- वेबर के पद्धतिशास्त्र में आदर्श प्रारूप की अवधारणा का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- मैक्स वेबर द्वारा प्रदत्त आदर्श प्रारूप की विशेषताएँ बताइये। .
  126. प्रश्न- वेबर की आदर्श प्रारूप की अवधारणा से आप क्या समझते हैं?
  127. प्रश्न- डिर्क केसलर की आदर्श प्रारूप हेतु क्या विचारधाराएँ हैं?
  128. प्रश्न- मैक्सवेबर के अनुसार दफ्तरी कार्य व्यवस्थाएँ किस तरह की होती हैं?
  129. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, कर्मचारी-तंत्र के कौन-कौन से कारण हैं? स्पष्ट करें।
  130. प्रश्न- 'मैक्स वेबर ने कर्मचारी तंत्र का मात्र औपचारिक रूप से ही अध्ययन किया है।' स्पष्ट करें।
  131. प्रश्न- रोबर्ट मार्टन ने कर्मचारी तंत्र के दुष्कार्य क्या बताये हैं?
  132. प्रश्न- मैक्स वेबर के अनुसार, 'कार्य ही जीवन तथा कुशलता ही धन है' किस तरह से?
  133. प्रश्न- “जो व्यक्ति व्यवसाय में कुशल है, धन और समाज दोनों ही पाते हैं।" मैक्स वेबर की विचारधारा पर स्पष्ट करें।
  134. प्रश्न- मैक्स वेबर की धर्म के समाजशास्त्र की कौन-कौन सी विशेषताएँ हैं? स्पष्ट करें।
  135. प्रश्न- मैक्स वेबर का पद्धतिशास्त्र क्या है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
  136. प्रश्न- वेबर का धर्म का सिद्धान्त क्या है?
  137. प्रश्न- वेबर का पूँजीवाद समाज में नौकरशाही व्यवस्था पर लेख लिखिये।
  138. प्रश्न- प्रोटेस्टेन्टिजम और पूँजीवाद के बीच सम्बन्धों पर वेबर के विचारों की विवेचना कीजिए।
  139. प्रश्न- वेबर द्वारा प्रतिपादित आदर्श प्ररूप की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
  140. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा क्या है?
  141. प्रश्न- परेटो के अनुसार समाजशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
  142. प्रश्न- परेटो की वैज्ञानिक समाजशास्त्र की अवधारणा का वर्णन कीजिये।
  143. प्रश्न- विलफ्रेडो परेटो की प्रमुख कृतियों के साथ संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  144. प्रश्न- पैरेटो के “सामाजिक क्रिया सिद्धान्त का परीक्षण कीजिए?
  145. प्रश्न- परेटो के अनुसार तर्कसंगत और अतर्कसंगत क्रियाओं की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  146. प्रश्न- परेटो ने अतर्कसंगत क्रियाओं को कैसे समझाया?
  147. प्रश्न- विशिष्ट चालक की अवधारणा का वर्णन कीजिए एवं महत्व बताइये।
  148. प्रश्न- विशिष्ट चालक का महत्व बताइये।
  149. प्रश्न- पैरेटो के भ्रान्त-तर्क के सिद्धांत की विवेचना कीजिए।
  150. प्रश्न- पैरेटो के 'अवशेष' के सिद्धांत का क्या महत्त्व है?
  151. प्रश्न- भ्रान्त तर्क की अवधारणा क्या है?
  152. प्रश्न- भ्रान्त-तर्क का वर्गीकरण कीजिये।
  153. प्रश्न- संक्षेप में परेटो का समाजशास्त्र में योगदान बताइये।
  154. प्रश्न- पैरेटो की मानवीय क्रियाओं के वर्गीकरण की चर्चा कीजिये।
  155. प्रश्न- तार्किक क्रिया व अतार्किक क्रिया में अन्तर स्पष्ट कीजिये।

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