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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2680
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य

प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।

अथवा
कहानी के विकास में प्रेमचन्द के योगदान को रेखांकित कीजिए।

उत्तर -

उपन्यास सम्राट एवं महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द मूलतः सामाजिक कहानीकार थे। कहानी विधा के क्षेत्र में प्रेमचन्द ने एक क्रान्तिकारी परिवर्तन की शुरूआत की। प्रेमचन्द से पूर्व जो कहानी लिखी जाती थीं उनमें मनोरंजन के तत्व होते थे किन्तु मुंशी प्रेमचन्द ने सामाजिक समस्याओं को लेकर कहानियाँ लिखीं। मुंशी प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में तत्कालीन समाज विशेष रूप से ग्रामीण समाज की दशा को यथार्थ रूप में प्रस्तुत किया है। वे उस वातावरण से भली-भाँति परिचित थे। उन्होंने उस वातावरण को स्वयं भोगा, समझा और परखा था। अपने युग की सम्पूर्ण सम्भावनाएँ और उपलब्धियाँ उनकी कहानियों में व्याप्त हैं। कहानी विषय के बारे में वे स्वयं कहते हैं- "कहानी जीवन के बहुत निकट आ गयी है। कथा शिल्पी के रूप में जितना उदात्त उनका अनुभूति पक्ष है उतना ही श्रेष्ठ एवं उदात्त उनका अभिव्यक्ति पक्ष है अर्थात वे अनुभूति एवं अभिव्यक्ति में सदैव सफल रहे हैं।

रचनाएँ- मुंशी प्रेमचन्द की प्रथम कहानी 'सौत सन् 1915 में प्रकाशित हुई थी। यह कहानी 'सरस्वती' पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। प्रारम्भ में उन्होंने धनपतराय और नवाबराय के नाम से कहानियाँ लिखीं, परन्तु बाद में वे 'प्रेमचन्द के नाम से उपन्यास और कहानी क्षेत्र में आये। उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों के अनेक कहानी-संग्रह प्रकाशित हुए, जैसे सप्तसरोज, नवनिधि, प्रेम पूर्णिमा, प्रेम पचीसी, प्रेम द्वादशी। उनकी प्रतिनिधि कहानियों में कफन, पूस की रात, पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा, सवासेर गेहूँ, सद्गति, शतरंज के खिलाड़ी, बूढ़ी काकी और परीक्षा आदि उल्लेखनीय हैं। डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने मुंशी प्रेमचन्द के बारे में लिखा है "मुंशी प्रेमचन्द शताब्दियों से पददलित, अपमानित और शोषित कृषकों की आवाज थे। पर्दे में कैद पग-पग पर लांछित, अपमानित और शोषित नारी जाति की महिमा के वे जबरदस्त वकील थे। गरीबों और बेबसों के महत्व के वे प्रचारक थे। अगर आप उत्तर भारत की समस्त जनता के विचार भाषा-भाव, रहन-सहन, आशा-निराशा, सुख-दुःख और सूझ-बूझ जानना चाहते हैं तो प्रेमचन्द से उत्तम परिचायक आपको नहीं मिल सकता। अन्तिम समय तक उनकी कलम से महान रचनाएँ निकलती रहीं। उनकी कहानियों की विशेषताएँ निम्नांकित हैं -

1. कथावस्तु अथवा कथानक - वस्तु का चयन और वस्तु-विधान किसी भी सजग कहानीकार के शिल्प का प्रथम एवं प्रमुख अंग माना जाता है। प्रेमचन्द की कहानियों का विषय अत्यन्त व्यापक था। उनकी प्रारम्भिक कहानियों में घटनाओं की प्रधानता तथा चरित्र चित्रण अपेक्षाकृत कम मिलता है। वे अपनी कहानियों में सामाजिक, राजनीति, आर्थिक, धार्मिक और आर्थिक विषमताओं और विसंगतियों का चित्रण करते हुए आदर्शमूलक समाधान खोजते रहे हैं। परन्तु धीरे-धीरे आदर्शमूलक समाधान उन्हें औचित्यपूर्ण प्रतीत नहीं हुआ और अन्त में वे यथार्थवादी कहानीकार बन गए। प्रेमचन्द स्वयं ग्राम परिवेश में जन्में पले एवं बढ़े हुए थे, इसलिए ग्राम परिवेश में विद्यमान विविध प्रकार की विषमताओं, विसंगतियों, विडम्बनाओं, अन्धविश्वासों, रूढ़िवादी रीति-रिवाजों, अत्याचारों और अनेक प्रकार के मानसिक और दैहिक शोषणों को न केवल उन्होंने देखा था बल्कि स्वयं भोगा भी था। यही कारण था कि उनकी कहानियों के कथानक सीधे जीवन से सम्बन्ध रखते हैं। भोगे हुए व्यापक जीवन को उन्होंने अपनी कहानियों में उकेरा है। उनकी कहानियों में समाज के सभी पारिवारिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक आदि पक्ष अभिव्यंजित हुए हैं। मुख्य रूप से उन्होंने अपनी कहानियों के वर्ण्य विषय निम्नवर्ग, निम्न मध्यमवर्ग एवं मध्यवर्ग से चुने, परन्तु उच्चवर्ग को भी उन्होंने कभी उपेक्षित नहीं होने दिया। उन्होंने उन लाखों, करोड़ों दीन दुःखियों की वेदना को स्वरित किया, जो युग-युगों से उपेक्षित एवं प्रताड़ित थे। क्योंकि प्रेमचन्द का व्यक्तित्व अत्यन्त गतिशील था इसलिए उनकी कहानियों में जीवन के अनेक रंग उभरते हुए प्रतीत होते हैं।

2. पात्र-योजना अथवा चरित्र-चित्रण - मुंशी प्रेमचन्द की कहानियों में जितनी उदारता और विविधता कथावस्तु में परिलक्षित होती है, उनके पात्रों के चित्रण और चयन में भी उतनी ही विविधता एवं व्यापकता दिखाई देती है। उनके पात्रों का वैशिष्ट्य प्रमुखतः इस तथ्य को लेकर रेखांकित किया जा सकता है कि वे व्यक्ति न होकर बल्कि वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले हैं। उनकी कहानियों में स्थिर पात्रों की संख्या नगण्य है जबकि उनके अधिकांश पात्र गतिशील हैं।

कथावस्तु की तर्ज पर उन्होंने पात्र-योजना में भी आदर्शवादी और यथार्थवादी, कल्पित और ऐतिहासिक, शोषक और शोषित, अच्छे-बुरे, पीड़ित और पीड़क सभी प्रकार के पात्रों की झाँकी प्रस्तुत की है। ये सभी पात्र हमें अपने आस-पास विचरते जान पड़ते हैं। चरित्रों का चुनाव, चारित्रिक गठन और उनका क्रमिक विकास सहज एवं कलात्मक दिखाई पड़ता है। यही कारण है कि प्रेमचन्द की कहानियों में 'पूस की रात' का हल्कू, 'कफन' के माधव और घीसू 'सवासेर गेहूँ' का शंकर ठाकुर का कुआँ के जंगी और जोख, 'सदगति का दुखिया चमार तथा 'बड़े घर की बेटी की आनन्दी जैसे पात्र न केवल हिन्दी कथा साहित्य के बल्कि विश्व साहित्य के उच्च पात्रों की श्रेणी में बैठकर अमर हो गये हैं।

3. संवाद-योजना अथवा कथोपकथन - कथा साहित्य में संवाद - योजना का आयोजन मुख्यतः कथा-विस्तार, चरित्र-चित्रण एवं वातावरण के निर्माण के लिए किया जाता है। कथा शिल्पी प्रेमचन्द की कहानियों में संवादों की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि प्रायः इनकी प्रारिम्भक कहानियों के संवाद साधारण, लम्बे एवं उबाऊ हैं। इन कहानियों में उन्होंने नाटकीय शैली की संवाद-योजना को अपनाया है। शिल्प-योजना के स्तर पर इनकी वर्तमान कहानी में संवादों की नाटकीय शैली अवश्य खटकने लगती है तथा अस्वाभाविक सी लगती है।

प्रेमचन्द द्वारा कहानियों में कहीं-कहीं नाटकीय और औपन्यासिक दोनों प्रकार की संवाद- योजना की गयी है, परन्तु जैसे-जैसे प्रेमचन्द की कहानी कला का विकास होता गया उनकी कहानियों की संवाद शैली का यह दोष दूर होता गया। अनेक कहानियों में प्रेमचन्द ने संवादों को भाषण अथवा व्याख्यान में परिवर्तित कर दिया है। इस प्रकार के संवादों को पढ़कर पाठक का मन ऊब जाता है परन्तु ऐसा भी प्रतीत होता है कि लेखक के जो कुछ भी मन में है, वे सब कुछ एक साथ कह देना चाहते हैं। ऐसे संवादों में उपदेशात्मकता की गन्ध आने लगती है।

4. देशकाल और वातावरण - कथा साहित्य में वर्णित देशकाल के अनुरूप अन्तः तथा बाह्य वातावरण का चित्रण एक अनिवार्य शैल्पिक तत्व स्वीकार किया गया है क्योंकि मुंशी प्रेमचन्द एक प्रगतिशील, सजक सचेत एवं जागरूक कथाकार थे इसलिए उनकी कहानियों में वर्ण्य- विषयों, उनसे संबंधित पात्रों की मानसिकता और परिवेशगत आवश्यकता, प्रकृति और भूगोल आदि का भी पूर्ण ध्यान रखकर ही स्वरूप विधान और समग्र अभियोजन किया गया है। वस्तुतः इस तथ्य में कोई संदेह नहीं कि प्रेमचन्द ने कई कहानियाँ पूर्णतः वातावरण प्रधान लिखी हैं। 'रामलीला', 'सत्याग्रह', 'शतरंज के खिलाड़ी', 'बैंक का दीवाला', 'आत्माराम' और 'दो बैलों की कथा' आदि अनेक कहानियाँ इस श्रेणी में रखी जा सकती हैं।

5. भाषा-शैली - प्रेमचन्द उर्दू तथा हिन्दी के समान्तर जानकार थे। वे नवाबराय के नाम से उर्दू में कथा सजृन किया करते थे। नाम परिवर्तन के पश्चात् वे प्रेमचन्द के नाम से हिन्दी कथा साहित्य में प्रविष्ट हुए। इसी कारण उनकी कहानियों में उर्दू की सी तरलता एवं रोमानीयत है। आवश्यकतानुसार उन्होंने तत्सम्, तद्भव, आँचलिक और देशज सभी प्रकार के शब्दों का उन्मुक्त भाव से प्रयोग किया है। पात्रों की सामाजिक स्थिति, शिक्षा, व्यय आदि का प्रायः सर्वत्र ध्यान रखा गया है। आँचलिकता उनकी कहानियों की खास पहचान है। आँचलिक शब्दों का प्रयोग पात्रानुकूल एवं प्रसंगानुकूल किया गया है, विशेष प्रयोग के लिए नहीं। जब वे वर्णनात्मक चित्रण करने लगते हैं तो भाषा-शैली की तरलता, सैम्यता और सौन्दर्य देखते ही बनता है। प्रेमचन्द की भाषा-शैली मुहावरों, लोकोक्तियों, कहावतों और सूक्तियों से सम्पन्न तो है ही, अपनी समग्रता में वह सहज, सरल, रोचक एवं प्रभावशाली भी निश्चय ही है।

6. उद्देश्य अथवा संदेश - कथा साहित्य में स्वर्गीय मुंशी प्रेमचन्द को विशेष रूप से सामाजिक जीवन का एक सशक्त एवं जीवन्त कलाकार माना जाता है। उन्होंने समाज के विभिन्न वर्गों के प्रश्नों और समस्याओं को अपनी कहानियों में सजीव व सार्थक रूप में उभारकर अभिव्यक्त किया है। उद्देश्यहीनता उनकी कहानियों में कहीं भी दिखाई नहीं पड़ती। मानवतावादी दृष्टिकोण होने के कारण उनकी कहानियों में समाज के सभी वर्गों का चित्रण पूर्णतः भारतीय संवेदनाओं अथवा सहानुभूतियों के संदर्भ में हुआ है। फिर भी मुख्य रूप से उन्हें निम्नवर्ग, निम्न- मध्यवर्ग और मध्यमवर्ग का चितेरा स्वीकार किया जाता है। उनकी प्रारम्भिक कहानियों में उनका दृष्टिकोण आदर्शवादी रहा है, वहीं परवर्ती कहानियों में वे यथार्थवादी दिखते हैं। प्रेमचन्द साहित्य में मानवतावादी और उपयोगितावादी दृष्टिकोण अपनाते हैं। उनका यही दृष्टिकोण सम्पूर्ण मानवता के प्रति मंगलकारी एवं कल्याणकारी सिद्ध हुआ है। इसी मानवतावादी दृष्टिकोण ने उनकी कहानियों के भाव एवं कला पक्ष को अत्यन्त सजीव सार्थक एवं प्रभावशाली बनाया है। वस्तुतः वे आम आदमी के कहानीकार हैं।

निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि प्रेमचन्द की कहानियों की कथावस्तु सुसंगठित तथा सोद्देश्य, पात्र जीवंत और व्यावहारिक, संवाद कथ्योपयुक्त, सटीक और सार्थक, वातावरण कल्याणकारी और मानवतावादी जान पड़ता है। वस्तुतः उनकी कहानियों में व्यक्त विचारों के साथ उनके कला पक्ष में एक चिरन्तन आत्म-तत्व विद्यमान रहता है, जो थोड़ी देर के लिए दब तो जाता है, परन्तु पूर्णतः लुप्त नहीं होता है। निश्चय ही कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
  3. प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
  4. प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
  6. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
  7. प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
  8. प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
  9. प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
  10. प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
  12. प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
  13. प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
  16. प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
  17. प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  19. प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
  20. प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
  22. प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
  23. प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
  24. प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
  25. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
  27. प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
  28. प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
  30. प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
  32. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  34. प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
  35. प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  36. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
  37. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  38. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
  39. प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  40. प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
  43. प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
  44. प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
  45. प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  46. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
  47. प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  48. प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  49. प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
  50. प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
  51. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  52. प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
  53. प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
  54. प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
  55. प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
  56. प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
  57. प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
  58. प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
  59. प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
  60. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
  61. प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  64. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
  65. प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
  67. प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
  68. प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
  69. प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
  70. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
  71. प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
  73. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  74. प्रश्न- 'यही सच है' कहानी की प्रमुख विशेषताओं का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  75. प्रश्न- कुबरा मौलबी दुलारी को कहाँ ले जाना चाहता था?
  76. प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
  77. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
  78. प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
  79. प्रश्न- 'चीफ की दावत' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  80. प्रश्न- चीफ की दावत की केन्द्रीय समस्या क्या है?
  81. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (चीफ की दावत)
  82. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  84. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  85. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- 'तीसरी कसम उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन-परिचय लिखिए।
  89. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  90. प्रश्न- क्या फणीश्वरनाथ रेणु की कहानियों का मूल स्वर मानवतावाद है? वर्णन कीजिए।
  91. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है?
  92. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (तीसरी कसम)
  93. प्रश्न- 'परिन्दे' कहानी संग्रह और निर्मल वर्मा का परिचय देते हुए, 'परिन्दे' कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  94. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परिन्दे' कहानी की समीक्षा अपने शब्दों में लिखिए।
  95. प्रश्न- निर्मल वर्मा के व्यक्तित्व और उनके साहित्य एवं भाषा-शैली का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  96. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (परिन्दे)
  97. प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
  98. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  99. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
  100. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  101. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  103. प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)

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