बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी चतुर्थ प्रश्नपत्र - कथा-साहित्य
प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर -
'गोदान' उपन्यास में दो कथाएँ एक साथ प्रवाहित होती (1) गाँव की कथा (2) नागरिक कथा। ग्रामीण कथा का सम्बन्ध होरी से है जो लखनऊ के आस-पास बेलारी गाँव में रहने वाले पाँच बीघे जमीन का किसान है। यही समस्त उपन्यास का नायक भी है। दूसरी कथा लखनऊ नगर से सम्बन्धित हैं। जिसमें जमींदार रायसाहब मिल-मालिक खन्ना आदि रहते हैं तो प्रो. मेहता भी। प्रो. मेहता ही इस नागरिक कथा का महत्वपूर्ण पात्र है जो विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र के प्रवक्ता हैं। वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं।" उसकी मांसल भुजाएँ, चौड़ी छाती और मछलीदार जाँघे किसी पुरानी प्रतिभा में सुंगठित अंगों की भाँति उनके पुरुषार्थ का परिचय दे रही थी। जिससे स्पष्ट है कि उसमें योग्यता एवं व्यक्तित्व का मणिकांचन योग है। उनके चरित्र की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(1) शिक्षित आदर्श व्यक्ति - प्रो. मेहता दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर होने के कारण अपने जीवन में दार्शनिक विचारधारा को अपनाते हैं व गम्भीर चिन्तन करते हैं वे उस बुद्धजीवी वर्ग. का प्रतिनिधित्व करते हैं जो दीनों, निर्धनों व दलितों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और बड़े व्यक्तियों की परख उसके समक्ष अपने विचार रखने में नहीं घबराते। समस्त उपन्यास में वे आदर्श पात्र हैं। विचारों की दृष्टि से भी, और व्यवहार पक्ष में भी उनका आकर्षक व्यक्तित्व है - गोरा चिट्ठा रंग, स्वास्थ्य की लालमिमा गालों में चकमती हुई नीली अचकन, चूड़ीदार पायजामा, सुनहरी ऐनक, सौम्यता में देवता से लगते हैं।
दर्शनशास्त्र के अध्यापन के साथ-साथ वे व्यवहारिक जीवन में भी वे दार्शनिक प्रतीत होते हैं। उन्हें एक हजार रुपया वेतन मिलता है परन्तु न जाने समस्त वेतन कहाँ चला जाता है? वे न तो नये कपड़े सिलवाते हैं और न मकान का किराया अदा कर पाते हैं। फिर भी वे तीव्र बुद्धि वाले व प्रतिभाशाली व्यक्तित्व वाले हैं। यद्यपि उनका सम्बन्ध शहरी व्यक्तियों से है राय साहब, मिल मालिक खन्ना और उनकी पत्नी गोविन्दी, बिजली अखबार की सम्पादक ओंकारनाथ वकील डॉ. मिस मालती, धनाढ्य मिर्जा खुर्शेद आदि तथाकथित ऊँचे लोगों से उनका सम्बन्ध है। फिर भी उन्हें शोषकों से घृणा है तथा निर्धन जनता से प्रेम है। प्रेमचन्द की भी भावना यही रही है कि वे शोषितों के प्रति सहानुभूति रखते थे, व शोषणों से घृणा उनका यह आदर्श रूप प्रेमचन्द के विचारों के अनुरूप है।
निर्भीक आलोचक - जिस प्रकार प्रेमचन्द निर्भीक होकर अपनी रचनाओं में समाज के शोषकों, अत्याचारियों, अन्यायियों और धार्मिक ढोंगियों का खुलकर चित्रण करते थे उसी प्रकार प्रो. मेहता भी बड़े लोगों के साथ रहकर भी उनके दोषों को उजागर करते थे। जब रायसाहब अपने जमींदारी के झूठे दुखों का बखान करते हैं और मगरमच्छ के जैसे आंसू बहाते हैं तो मेहता चुप नहीं रहते वे कहते हैं - "मैं चाहता हूँ हमारा जीवन हमारे सिद्धान्तों के अनुकूल हो। आप कृषकों के शुभेच्छु है। उन्हें तरह-तरह की रियायते देना चाहते हैं जमींदारों के अधिकार छीन लेना चाहते हैं बल्कि उन्हें आप समाज का अभिशाप कहते हैं, फिर भी आप जमींदार हैं।' इस प्रकार से राय साहब को उनके दिखावटीपन का आभास करा देते हैं। एक बार खुर्शेद से स्पष्ट कह जाते हैं कि जब तक सारे समाज की व्यवस्था नहीं बदली जायेगी तब तक केवल कुछ क्षेत्रों में सुधार करने से कुछ नहीं होगा खन्ना को भी उन्होंने मजदूरों का वेतन कम न करने का परामर्श दिया था। उनकी राय लेने को सभी उत्सुक रहते हैं। राय साहब को उन्होंने समझाया कि बालिक लड़के की शादी में माँ-बाप को अपनी मर्जी नहीं चलानी चाहिए। प्रो. मेहता इस बात की चिन्ता नहीं करते कि उनका कटु सत्य दूसरों का दर्द बन सकता है। वे तो आदर्श भावना से प्रेरित होकर निर्भीकता से कह डालते हैं।
स्पष्टवादी वक्ता - प्रो. मेहता अच्छी-बुरी और मधुर-कटु सभी बातों को स्पष्ट कहने के आदी हैं। अपने साथियों से वे सभी कुछ स्पष्ट कह देते हैं। मिस मालती से उनके मधुर सम्बन्ध हैं वे प्रो. मेहता से प्रभावित हैं और आकर्षित भी। दूसरी ओर मिल मालिक खन्ना मालती की ओर आकृष्ट है। यह मालती भी जानती है। परन्तु प्रो. मेहता, खन्ना और उनकी पत्नी गोविन्दी में ही आपसी मनमुटाव का कारण मालती को बताते हैं और मालती पर आक्षेप लगाते हुए कहते हैं कि मालती ने मिस्टर खन्ना को आकर्षित कर रखा है इसलिए मिसेज खन्ना दुखी है। मेहता मुँह से इस आक्षेप को सुनकर मालती को बड़ी वेदना होती है वह अपने बंगले पर पहुँचकर मेहता से हाथ मिलाए बिना ही भीतर चली जाती है और भूल जाती है कि उसने मेहता को भोजन का निमन्त्रण दे रखा था। प्रो. मेहता का व्यक्तित्व निष्कलंक हैं। वे जो कहते हैं वही करते हैं। न तो उन्हें धन की आवश्यकता है और न मालती जैसे नारी के प्रेम की जरूरत जीवन की प्रत्येक बात को वे सच्चाई की तराजू पर तौलते हैं। और प्रत्यक्ष कह डालते हैं वस्तुतः प्रेमचन्द की विचारधारा भी इसी प्रकार की थी। उन्होंने अपने उपन्यासों में ऊँचे-से ऊँचे वर्ग के लिए अपने विचार व्यक्त- किये हैं। उनके अन्याय, ढोंग, विलासता, धन प्रेम, धार्मिक अंधविश्वास और दिखावा आदि को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। प्रेमचन्द अपने व्यक्तिगत जीवन में भी इसी प्रकार का व्यवहार करते थे। गाँधी जी के आन्दोलनों से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी 20 वर्ष की नौकरी का परित्याग कर दिया था।
परिश्रमी - प्रो. मेहता दर्शनशास्त्र के अध्यापक होने के कारण एक ओर तो अपने शिक्षा के कार्य में व्यस्त रहते हैं। तो दूसरी ओर, समाज सुधार के कार्यों में इसलिए वे व्यक्तिगत सुख- सुविधाओं पर ध्यान नहीं देते। वे समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। काम में व्यस्त रहते हैं।
प्रेमचन्द का उनके विषय में कथन है- "आधी रात वो सोते थे और बड़ी रात रहे उठ जाते थे। कैसा भी काम हो, उसके लिए कहीं न कहीं से समय निकाल लेते थे। हाकी खेलना हो या यूनीवर्सिटी डिवेट, ग्राम्य संगठन हो या शादी का नैवेद्य। सभी कामों के लिए उनका पास लगन थी और समय था" उन्हें काम करने का नशा है। लेखक के रूप में भी उनकी व्यस्तता कुछ कम नहीं है। वे पत्रों में लेख लिखते हैं। कई साल से एक वृहद ग्रन्थ लिख रहे हैं। बगीचे में बैठकर पौधों पर विद्युत-संचार क्रिया की परीक्षा करते हैं। उन्होंने एक विज्ञान परिषद में यह सिद्ध किया है कि फसलें बिजली के जोर से बहुत थोड़े समय में पैदा की जा सकती है। उनकी एक रचना को फ्रांस की अकादमी में उत्तम कृति के रूप में पुरस्कृत किया है। इतने व्यक्त रहने पर भी प्रो. मेहता कबड्डी खेलने का चाव रखते हैं पठान का रूप धारण करके अच्छा अभिनय करते हैं स्त्रियों की सभा में साहगर्मभिक और बुद्धिमतापूर्ण भाषा देते हैं। मजदूर आन्दोलन में भाग लेते हैं, किसानों की सहायता करते हैं। विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं और अनेक विद्यार्थियों की आर्थिक सहायता भी करते हैं। प्रेमचन्द भी एक सच्चे कथाकार थे वे उपन्यास व कहानीकार के रूप में विख्यात हैं लिखने का उनको इतना चांव था, कि उन्होंने निर्धनता से टूटकर भी लिखना नहीं छोड़ा था। जो विशेषताएँ प्रो. मेहता में परिश्रमी के रूप में व्याप्त हैं। वे ही प्रेमचन्द के जीवन में दिखाई पड़ती है।
प्रकृति प्रेमी - मेहता को प्रकृति से अगाध प्रेम है। वे घर पर भी पौधों के विषय में गंभीर चिन्तन करते हैं। शिकार में उन्हें बहुत आनन्द आता है। प्रकृति उनके आल्हाद और प्रेरणा की वस्तु है। कभी-कभी अपने बगीचे में बैठकर पौधों की सुन्दरता में खो जाते हैं। एक बार चाँदनी रात में वे नदी के तट पर चहककर उठते हैं और मालती से कहते हैं - "प्रकृति का स्पर्श होते ही जैसे मुझमें नया जीवन आ जाता है। नस-नस में स्फूर्ति दौड़ जाती है। एक-एक पक्षी, एक- एक पशु जैसे मुझे आनन्द का निमंत्रण देता हुआ जान पड़ता है। यह आनन्द मुझे और कहीं नहीं मिलता - संगीत के मोहक स्वरों में भी नहीं दर्शन की ऊँची उड़ानों में भी नहीं।' मेहता प्रकृति के पुजारी है। कभी-कभी प्रकृति में उन्हें ज्ञान का विस्तार दिखाई देता है तो कभी पर्वतमाला में दर्शन तत्व। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति के साथ प्रो. मेहता का अटूट सम्बन्ध था।
नारी के प्रति सहृदय - समस्त उपन्यास में प्रो. मेहता नारी के विषय में पर्याप्त विचार व्यक्त करते हैं ऐसा प्रतीत होता है कि प्रेमचन्द अपने उपन्यासों के नारी-विषयक पर्याप्त चिन्तन के बाद नारी के प्रति श्रद्धालु थे। परन्तु नारी का माता का रूप ही उनके लिए सम्मानीय था उसे वे दया, क्षमा, ममता, त्याग व समर्पण की मूर्ति के रूप में देखना चाहते थे। भारतीय नारी इन्हीं गुणों का कारण पूजनीय रही है। उनकी दृष्टि में मनुष्य के लिए क्षमा, त्याग और अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श हैं। नारी इन आदर्शों को प्राप्त कर चुकी हैं। इसलिए वे नारी को पुरुष से इतनी श्रेष्ठ बताते हैं जितना प्रकाश अंधकार से। उनके जीवन में मालती पर्याप्त खुशी लेकर से आयी है जो प्रारम्भ में प्रो. मेहता से आकर्षित भी है उन्हें अपना जीवन साथी बनाना चाहती है। परन्तु एक बार मिर्जा से पूछने पर कि वे मालती से विवाह कर रहे हैं। तो प्रो. मेहता कहते हैं - "मालती मेरी जीवन संगिनी नहीं बन सकती क्योंकि उसमें सौन्दर्य आदि सब गुणों विद्यमानता में भी वे गुण नहीं है जो मैं अपनी जीवन-संगिनी में देखना चाहता हूँ। मेरी धारणा के अनुसार औरत वफा और त्याग की मूर्ति है जो अपने बेजुबानी से अपनी कुर्बानी से अपने को बिल्कुल मिटाकर पति की आत्मा की एक अंश बन जाती है।" नारी के इन्हीं गुणों को प्रो. मेहता आदरणीय मानते हैं।
प्रेमचन्द ने भी शिवरानी देवी में इसी प्रकार के गुण देखें हैं। वर्तमान पाश्चात्य सभ्यता के कारण नहीं को जो घर से बाहर निकलकर तितली का रूप धारण करने तथा अपने अधिकार को प्राप्त करने की भावना से आ रही है प्रेमचन्द इस कथा के विरोधी थे। वे चाहते थे कि नारियाँ अन्याय को अवश्य मिटा दे परन्तु अपने कर्त्तव्यों की इतिश्री न करें। उनकी दृष्टि में पश्चिमी सभ्यता ने नारियों को विलासिनी बनाकर उनके आदर्श रूप को समाप्त कर दिया है। मालती का यही रूप था जो प्रो. मेहता के लिए हेय था। गोविन्दी को वे आदर्श नारी मानते हैं जो विलास को तुच्छ समझती है जो पति से उपेक्षा और अनादर सहकर भी अपने कर्त्तव्यों से विचलित नहीं होती, जो मातृत्व की वेदी पर अपने को बलिदान करती है। प्रो. मेहता की दृष्टि में विवाह एक सामाजिक समझौता है जिसे तोड़ने का अधिकार न तो पुरुष को है न तो नारी को। समझौते से पूर्व ये दोनों स्वाधीन हैं। अतः मेहता तलाक-प्रथा के घोर विरोधी रहे नारी के विषय में अपने विचार अत्यन्त उच्च व आदर्श थे - "स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान है, शान्ति सम्पन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।" वे तो नारी को मातृत्व के रूप में उसकी साधना, तपस्या, त्याग और विजय को देखते थे, इस प्रकार प्रो. मेहता के आदर्शवादी विचार प्रेमचन्द की प्रकृति व मानसिक वृत्ति के अनुरूप हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि मेहता के चरित्र का विकास उन्होंने अपनी आदर्श-भावना के अनुरूप प्रस्तुत किया है।
मेहता के विचार उसके आदर्श व स्पष्टवादिता अवश्य प्रेमचन्द की भावाभिव्यक्ति के रूप में है। विशेष रूप से नारी के सम्बन्ध में जो प्रो. मेहता अपने विचार विस्तारपूर्वक व्यक्त करते हैं, वे निःसन्देह प्रेमचन्द की ही विचारधारा है। 'गोदान' युग-प्रतिनिधि उपन्यास है। इसमें समग्र भारतीय जीवन अपने विविध पक्षी संघर्षों और समस्याओं को लेकर चित्रित हुआ है। कथानक के सभी पात्र अपने-अपने वर्ग की स्थिति और समस्याओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। होरी जहाँ पुराने किसान वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है वहाँ उसका पुत्र गोबर नये विद्रोही किसान का दबा हुआ स्वर लेकर सामने आता है। राय साहब, अमरपाल सिंह जमींदार वर्ग की समस्याओं और स्थिति की प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार 'गोदान के पात्र और धारणायें प्रतीक है। गोदान ही अपने युग का ऐसा उपन्यास है, जो विशाल एवं व्यापक जीवन का चित्र प्रस्तुत करता है।
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- प्रश्न- गोदान में उल्लिखित समस्याओं का विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के नामकरण के औचित्य पर विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द का आदर्शोन्मुख यथार्थवाद क्या है? गोदान में उसका किस रूप में निर्वाह हुआ है?
- प्रश्न- 'मेहता प्रेमचन्द के आदर्शों के प्रतिनिधि हैं।' इस कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- "गोदान और कृषक जीवन का जो चित्र अंकित है वह आज भी हमारी समाज-व्यवस्था की एक दारुण सच्चाई है।' प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यास-साहित्य का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उपन्यास के तत्वों की दृष्टि से 'गोदान' की संक्षिप्त समालोचना कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' महाकाव्यात्मक उपन्यास है। कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गोदान उपन्यास में निहित प्रेमचन्द के उद्देश्य और सन्देश को प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- गोदान की औपन्यासिक विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यासों की संक्षेप में विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादोत्तर उपन्यासों की कथावस्तु का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' की भाषा-शैली के विषय में अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के यथार्थवादी उपन्यासों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' में प्रेमचन्द ने मेहनत और मुनाफे की दुनिया के बीच की गहराती खाई को बड़ी बारीकी से चित्रित किया है। प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- क्या प्रेमचन्द आदर्शवादी उपन्यासकार थे? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- 'गोदान' के माध्यम से ग्रामीण कथा एवं शहरी कथा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- होरी की चरित्र की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- धनिया यथार्थवादी पात्र है या आदर्शवादी? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रेमचन्द के उपन्यास 'गोदान' के निम्न गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल एक सफल आँचलिक उपन्यास है' इस उक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- उपन्यास में समस्या चित्रण का महत्व बताते हुये 'मैला आँचल' की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- आजादी के फलस्वरूप गाँवों में आये आन्तरिक और परिवेशगत परिवर्तनों का 'मैला आँचल' उपन्यास में सूक्ष्म वर्णन हुआ है, सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' की प्रमुख विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणुजी ने 'मैला आँचल' उपन्यास में किन-किन समस्याओं का अंकन किया है और उनको कहाँ तक सफलता मिली है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- "परम्परागत रूप में आँचलिक उपन्यास में कोई नायक नहीं होता।' इस कथन के आधार पर मैला आँचल के नामक का निर्धारण कीजिए।
- प्रश्न- नामकरण की सार्थकता की दृष्टि से 'मैला आँचल' उपन्यास की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' में ग्राम्य जीवन में चित्रित सामाजिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास को आँचलिक उपन्यास की कसौटी पर कसकर सिद्ध कीजिए कि क्या मैला आँचल एक आँचलिक उपन्यास है?
- प्रश्न- मैला आँचल में वर्णित पर्व-त्योहारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल की कथावस्तु संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास के कथा विकास में प्रयुक्त वर्णनात्मक पद्धति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथावस्तु के गुणों की दृष्टि से मैला आँचल उपन्यास की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'मैला आँचल' उपन्यास का नायक डॉ. प्रशांत है या मेरीगंज का आँचल? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मैला आँचल उपन्यास की संवाद योजना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मैला आँचल)
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' का सारांश लिखिए।
- प्रश्न- कहानी के तत्त्वों के आधार पर 'उसने कहा था' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- प्रेम और त्याग के आदर्श के रूप में 'उसने कहा था' कहानी के नायक लहनासिंह की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सूबेदारनी की चारित्रिक विशेषताओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमृतसर के बम्बूकार्ट वालों की बातों और अन्य शहरों के इक्के वालों की बातों में लेखक ने क्या अन्तर बताया है?
- प्रश्न- मरते समय लहनासिंह को कौन सी बात याद आई?
- प्रश्न- चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'उसने कहा था' नामक कहानी के आधार पर लहना सिंह का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (उसने कहा था)
- प्रश्न- प्रेमचन्द की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कफन कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- कफन कहानी के उद्देश्य की विश्लेषणात्मक विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- 'कफन' कहानी के आधार पर घीसू का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं, इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- मुंशी प्रेमचन्द की कहानियाँ आज भी प्रासंगिक हैं। इस उक्ति के प्रकाश में मुंशी जी की कहानियों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- घीसू और माधव की प्रवृत्ति के बारे में लिखिए।
- प्रश्न- घीसू ने जमींदार साहब के घर जाकर क्या कहा?
- प्रश्न- बुधिया के जीवन के मार्मिक पक्ष को उद्घाटित कीजिए।
- प्रश्न- कफन लेने के बजाय घीसू और माधव ने उन पाँच रुपयों का क्या किया?
- प्रश्न- शराब के नशे में चूर घीसू और माधव बुधिया के बैकुण्ठ जाने के बारे में क्या कहते हैं?
- प्रश्न- आलू खाते समय घीसू और माधव की आँखों से आँसू क्यों निकल आये?
- प्रश्न- 'कफन' की बुधिया किसकी पत्नी है?
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (कफन)
- प्रश्न- कहानी कला के तत्वों के आधार पर प्रसाद की कहांनी मधुआ की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'मधुआ' कहानी के नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- 'मधुआ' कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (मधुआ)
- प्रश्न- अमरकांत की कहानी कला एवं विशेषता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमरकान्त का जीवन परिचय संक्षेप में लिखिये।
- प्रश्न- अमरकान्त जी के कहानी संग्रह तथा उपन्यास एवं बाल साहित्य का नाम बताइये।
- प्रश्न- अमरकान्त का समकालीन हिन्दी कहानी पर क्या प्रभाव पडा?
- प्रश्न- 'अमरकान्त निम्न मध्यमवर्गीय जीवन के चितेरे हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (जिन्दगी और जोंक)
- प्रश्न- मन्नू भण्डारी की कहानी कला पर समीक्षात्मक विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से मन्नू भण्डारी रचित कहानी 'यही सच है' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- 'यही सच है' कहानी के उद्देश्य और नामकरण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- 'निशीथ' किस कहानी का पात्र है?
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (यही सच है)
- प्रश्न- कहानी के तत्वों के आधार पर चीफ की दावत कहानी की समीक्षा प्रस्तुत कीजिये।
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- प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- ऊषा प्रियंवदा के कृतित्व का सामान्य परिचय देते हुए कथा-साहित्य में उनके योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर ऊषा प्रियंवदा की 'वापसी' कहानी की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (वापसी)
- प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है। स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
- प्रश्न- निम्न में से किन्हीं तीन गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए। (पिता)