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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।

अथवा
"स्वतन्त्रता पश्चात् आलोचना में एक नयी दिशा आयी" इस कथन की समीक्षा कीजिए।
अथवा
'नई आलोचना' या 'नई समीक्षा' के स्वरूप का विवेचन कीजिए।

उत्तर -

नई आलोचना (नई समीक्षा)

साहित्य की अन्य विधाओं में नयेपन के समान आलोचना के क्षेत्र में भी छठे दशक की कम समाप्ति के समय नयेपन ने प्रवेश किया जिसे नयी आलोचना की संज्ञा दी गयी। इसी नयी आलोचना या समीक्षा पर अमेरिकी विद्वान जान को रेन्शम की पुस्तक 'द न्यू क्रिटिसिज्म' तथा शिकागो स्कूल के आलोचकों को प्रभाव स्पष्ट है। नया समीक्षक समीक्षा को वैज्ञानिक आधार प्रदान कर भ्रतिकम के परिवेश, वातावरण आदि को महत्व न देकर रचनाकार द्वारा प्रयुक्त भाषा की स्थिति में विसंगति, विडम्बना, तनाव, तनाव की व्यापकत्व और घनत्व को गणितीय पद्धति पर महत्व देता है। उसका ध्यान कृति की भाषिक संरचना पर केन्द्रित रहता है। वह किसी पूर्व निर्धारित आलोचना के मानदण्ड को अमान्य समझकर आलोच्य वस्तु को ही उसका प्रतिमान मानता है। उसके लिए रसवादी एवं मनोविश्लेषणवादी आदि समीक्षा पद्धतियाँ सर्वथा अस्वीकार्य और अनुपयोगी हैं। नया आलोचक रचना की आन्तरिक संगति पर ध्यान देकर उसके अंग की अन्य अंगों के साथ आपेक्षिक अनुबद्धता को परखता है। कुछ नये आलोचक तो अंगागि-आलोचना में ही नयी आलोचना की इति कर्त्तव्यता समझते हैं और कुछ नये समीक्षक इससे आगे बढ़कर उसका मूल्यांकन अर्थात् जीवन के साथ उसकी प्रासांगिकता की भी तलाश करते हैं। नयी आलोचना के क्षेत्र में डॉ. देवीशंकर अवस्थी, नेमिचन्द्र जैन, डॉ. नामवर, डॉ. शिव प्रसाद सिंह, डॉ. रघुवंश, डॉ. देवराज, डॉ. बच्चन सिंह, डॉ. रमेश कुन्तर मेघ, डॉ. शंभूनाथ सिंह, डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के नाम उल्लेखनीय हैं। कुछ नये कवियों में भी आलोचकोचित गहरी व प्रखर समीक्षा शक्ति दृष्टिगोचर होती है। उनमें मुख्य-मुख्य हैं - अज्ञेय, गजानन, मुक्तिबोध, गिरिजाकुमार माथुर, शमशेर बहादुर सिंह, धर्मवीर भारती, नलिन विलोचन शर्मा, लक्ष्मीकांत वर्मा तथा जगदीश गुप्त आदि।

निःसन्देह किसी रचना की समीक्षा में उसकी संरचना प्रक्रिया के विश्लेषण का अपना महत्व है और इसी प्रकार कृतिकार के अन्तस् के अभिव्यक्ति साधना भाषिक सर्जना का विश्लेषण व मूल्याँकन भी उपादेय है किन्तु आलोचना की परिधि की इतिश्री केवल इतने तक ही नहीं होती। उसे प्रेरणा, मार्गदर्शन और नवीन सृजन की नयी दिशाओं के पथ को भी प्रशस्त करना होता है। आलोचना को वैज्ञानिक आधार देना बुरा नहीं है किन्तु वैज्ञानिकता या आधुनिकता के नाम पर आधुनिक अमरीकी या पाश्चात्य समीक्षा की कोरी नकल करना अवांछनीय है, जो बात हम पीछे "हिन्दी साहित्य : आधुनिकता का बोध" में साहित्यकार के दायित्व के विषय में कह चुके हैं वह आज के नये समीक्षक पर भी उतनी चरितार्थ होती है कोई भी नवीन पद्धति अपनी पूर्व की स्वस्थ मूल्यवान परंपराओं से सर्वथा सम्बन्ध विच्छेद कर अपनी अर्थवत्ता को सिद्ध नहीं कर सकती। नयी आलोचना में समन्वयात्मकता अनिवार्य है। पिछली परम्पराओं के साथ अपेक्षित तालमेल में उसकी सार्थकता निहित है। केवल भाषिक संरचना की परख महत्वपूर्ण नहीं है, सृजन की आन्तरिक विवशता भी भाषा की रचनात्मकता व साहित्यिकता का स्तर हो सकती है।

पुस्तक समीक्षा का भी समीक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान है। 'प्रतीक', 'आलोचना' - 'वार्षिकी', 'मध्यम' आदि पत्रिकाओं में समय-समय पर पुस्तकीय समीक्षाएँ प्रकाशित होती रही हैं।

आज आलोचना के उन सर्वसम्मत प्रतिमानों के निर्धारण की आवश्यकता है जिससे हिन्दी समीक्षा का स्वस्थ विकास हो सके और आलोचक अपने सही दायित्व को महसूस करे। आज हिन्दी साहित्य के आलोचना क्षेत्र में पाश्चात्य साहित्य के आलोचना-प्रतिमानों के अन्धानुकरण की अवांछनीय प्रवृत्तियाँ अपेक्षाकृत अधिक बल पकड़ रही हैं। इससे हिन्दी आलोचना अपने मूल धर्म- मौलिक चिन्तन और निजी अनुभूतियों की सम्पत्ति से वंचित होती जा रही हैं। आज की आलोचना की सबसे बड़ी आवश्यकता यह है कि वह पौर्वात्य और पाश्चात्य के ग्राह्य मानदण्डों में स्वस्थ एवं सन्तुलित समन्वय द्वारा साहित्य और जीवन में आस्थावाद, आशावाद तथा आनन्दवाद का पावन संचार करे। आधुनिक सौन्दर्य-बोध की दुहाई देकर जीवन एवं साहित्य को निराशा और अतिभोगवाद की अन्य तिमिस्रामयी-गुहाओं में धकेलना निश्चित रूप से एक जघन्य कार्य है।

आलोचना को साहित्याकाश में रवि के समान व्यापक प्रकाश द्वारा भ्रम-कुहेलिका को हटाकर जीवनदायिनी ज्योति का संचार करना है। इसी दशा में ही वह साहित्य में सर्जनात्मक शक्तियों की विद्यायिनी बन सकती है। आज का अति-आधुनिकता के मद में चूर हुआ 'नया- आलोचक परम्परागत आलोचना के सिद्धान्तों की सर्वथा अवहेलना करने अपने वैयक्तिक आग्रहों से बुरी तरह आबद्ध होकर डेढ़ चावल की अपनी खिचड़ी पकाने में लगा हुआ है। नई कविता और नई कविता के नये आलोचक को यह याद रखना होगा कि तथाकथित नये साहित्य के लेखकों की अकविता एवं कहानी को दलबद्ध होकर आलोचना के नये प्रतिमानों की जोरदार नारेबाजी से साहित्य और जनमानस में प्रतिष्ठित नहीं किया जा सकता है। निःसन्देह प्रत्येक युग के साहित्य के अंकन के प्रतिमान अपने हुआ करते हैं किन्तु यह आवश्यक है कि वे मानदण्ड स्वस्थ, ठोस, वैज्ञानिक और संतुलित होने चाहिए। आधुनिक बोध और नवीनता के व्यामोह में आलोचना से सर्वमान्य एवं सुनिश्चित परम्परागत प्रतिमानों से सर्वथा सम्बन्ध-विच्छेद करके आधुनिक आलोचना मानों की अपनी-अपनी ढपली बजाने मात्र से तथाकथित नये साहित्य को समादृत नहीं बनाया जा सकता है। ऐसी दशा में आलोचना क्षेत्र में अराजकता की स्थिति अनिवार्य है। इस प्रकार की आलोचना द्वारा साहित्य का विकास न होकर ह्रास अवश्यम्भावी है। जन-जीवन की भाँति साहित्य के जीवन में भी अराजकता बहुत खतरनाक वस्तु है। महाभारत के शब्दो में "जिस कुल में सभी नेता मानी हों, उसका विपन्न होना निश्चित है।'

सर्वे यत्र विनेतारः कुलं तदवसीदति।

आज के युग की सबसे बड़ी माँग यह है कि जीवन के अन्य क्षेत्रों के सदृश साहित्य के आलोचना के क्षेत्र में समन्वयवादी दृष्टिकोण अपनाया जाये। ऊपर जिन आलोचना-पद्धतियों का निर्देश किया जा चुका है उन पर सबसे ग्राह्य उपादानों को लेकर साहित्य में प्रगतिशील समीक्षा का एक ऐसा पथ प्रशस्त किया जाये जिससे साहित्य की सृजनात्मकता में अपेक्षित समृद्धि हो सके।

आज के प्रगतिशील समीक्षक के सम्मुख यह एक गुरुतर दायित्व है कि वह अपनी प्रगतिशील समीक्षा को वर्ग विशेष की आलोचना एकांगिता के पूर्वाग्रह तथा प्रचार समीक्षा के सीमित स्वार्थ से मुक्त रखकर उसे उन समस्त स्वस्थ प्रतिमानों से मंडित करे जनसे साहित्य की उर्वरता और उदात्तता अक्षुण्य रह सके।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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