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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

उत्तर -

डॉ. रामविलास शर्मा

डॉ. रामविलास शर्मा मार्क्सवादी आलोचक हैं। उनके संबन्ध में डॉ. बच्चन सिंह ने लिखा है - "मार्क्सवादी आलोचकों में डॉ. रामविलास शर्मा की दृष्टि सबसे अधिक पैनी, स्वच्छ और तलस्पर्शी है। विचारों के स्तर पर वे कहीं भी समझौता नहीं करते। वे बहुत ही खरे दो टूक बात कहने वाले निर्भीक आलोचक हैं।

मार्क्सवादी आलोचना का प्रादुर्भाव शर्मा जी से पूर्व ही हो चुका था। 'हंस' के संपादक के रूप में डॉ. शिवदान सिंह चौहान उसके सैद्धांतिक पक्ष पर बहुत कुछ लिख चुके थे। प्रकाशचन्द गुप्त ने भी इस सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये थे। आरम्भ में प्रगतिवाद साहित्य की व्यापक प्रगतिशील चेतना के उन्मेष को लेकर अवतीर्ण हुआ था, किन्तु बाद में उसका आशय कम्युनिष्ट पार्टी की नीतियों का उद्घोषणा मात्र रह गया था। कम्युनिष्ट पार्टी अर्थात् मार्क्सवादी साहित्यकार केवल उस साहित्य को उत्तम मानते थे, जिनमें सर्वहारा वर्ग के वर्ग संघर्ष का चित्रण हो, पार्टी की नीतियों के आधार पर जनता को सशस्त्र क्रान्ति की चेतना प्रदान की गई हो। इस संकीर्णता की कटु आलोचना भी हुई। शनैः शनैः साहित्यकारों ने संकीर्णता से मुक्त होने का प्रयास भी किया।

जहाँ तक डॉ. रामविलास शर्मा का प्रश्न है, वे मार्क्सवादी आलोचक होने के कारण साहित्य में सर्वहारा वर्ग के चित्रण पर बल देते हैं। 'साहित्य संदेश में प्रकाशित अपने एक लेख में उन्होंने कहा है- "साहित्य लिखते समय साहित्यकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि वह 'सर्वहारा' का सहयोगी साहित्य निर्मित करे। परन्तु यह एक संकीर्ण मनोवृत्ति है। समाज में केवल सर्वहारा वर्ग की ही समस्याएँ नहीं है, वर्ग-वैषक्य से पीडित जनता भी है। क्या प्रगतिशील साहित्य को उनके विषय में नहीं सोचना चाहिए? केवल 'सर्वहारा वर्ग की बात कहना साहित्य को संकीर्ण परिधि में आबद्ध कर देता है।

रामविलास शर्मा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि उन्होंने हर नये का समर्थन और प्राचीन का विरोध नहीं किया। उन्होंने उन मार्क्सवादी आलोचकों पर आरोप लगाया, जिन्होंने पक्तियाँ खोज-खोजकर तुलसीदास की प्रतिक्रियावादी, ब्राह्मणवादी आदि सब कुछ कहा है। उनका मत है - "यह अत्यन्त आवश्यक है कि हम अपने साहित्य की पुरानी परम्पराओं से परिचित हों। परिचित होने के साथ-साथ हमें उनके श्रेष्ठ तत्वों को भी ग्रहण करना चाहिए।, ( संस्कृति और साहित्य की भूमिका)।

रामविलास शर्मा की समीक्षा-शैली की प्रमुख विशेषता है, व्यंग्य की मार करना। डॉ. नगेन्द्र की विचार और अनुभूति नामक पुस्तक पर चुटकी लेते हुए वे कहते हैं कि- "नगेन्द्र जी के विचार उन्हें एक कदम आगे ढकेलते हैं, तो उनकी अनुभूति उन्हें चार कदम पीछे घसीट ले जाती है। इस पुस्तक का नाम एक कदम आगे और चार कदम पीछे भी हो सकता है।'

एक अन्य उदाहरण देखिए-

"डॉ. नगेन्द्र के यहाँ हर चीज शुद्ध है। उदाहरण देखिए -

(1) साहित्य के क्षेत्र में तो शुद्ध मनोविज्ञान का अधिक विश्वास उचित होगा।
(2) लोक प्रचलित अस्थायी भावों के द्वारा साहित्य का रस शुद्ध हो जाता है।
(3) छायावाद निश्चित ही शुद्ध कविता है। हम अपनी तरफ से यही कह सकते हैं कि नगेन्द्र जी की आलोचना बिल्कुल शुद्ध आलोचना होती है।

शर्मा जी की समीक्षा शैली की एक अन्य विशेषता यह है कि उसमें उदाहरण विद्यमान रहते हैं। इससे आलोचना में बल आ जाता है। उन्होंने जब महापण्डित राहुल सांकृत्यायन की विचारधारा की आलोचना की थी, तो साहित्य में जैसे एक भूचाल आ गया था। किन्तु उन्होंने प्रमाण देकर अपनी बात कही थी, इसलिए आने वाले तूफान से अप्रभावित रहे। स्वयं उनकी आलोचनो जब अमृतराय ने 'हंस' में की तो उन्होंने यही कहा कि आप प्रमाण दीजिए, बिना प्रमाण दिये मैं आपके किसी आरोप पर गम्भीरता से विचार नहीं करूँगा।

शर्मा जी एक सफल आलोचक हैं। उनके जिन गुणों ने उन्हें सफल आलोचक बनाया है 5 वे हैं- विद्वता, भाषाधिकार प्रमाणिक बात कहने की आदत, वैज्ञानिक दृष्टि, निष्पक्षता। निष्पक्षता 1 के गुण ने जहाँ एक ओर उनसे किसी की भी बौद्धिक आलोचना कराई है, वहाँ दूसरी ओर छोटे- छोटे लेखकों को यथोचित सम्मान भी दिलवाया है। उनकी विशेषता है कि उनमें अहंकार नाममात्र को भी नहीं है। प्रायः जाने-माने विद्वान् नवोदित साहित्यकारों की उपेक्षा करते हैं। किन्तु शर्मा जी किसी भी नये रचनाकार का उद्धरण बड़ी उदारता से अपनी रचना में दे देते हैं। यह उनकी निष्पक्षता ही है, जो वे एक ओर पन्त और राहुल जैसे ख्यातिलब्ध साहित्यकारों को नहीं छोड़ते और दूसरी ओर नये रचनाकारों की वांछनीय सराहना करते हैं।

रामविलास शर्मा ने हिन्दी में सन्त - साहित्य, भारतेन्दु युग, छायावाद, प्रेमचन्द्र, निराला आदि पर अत्यन्त सुलझे हुए विचार व्यक्त किये हैं। सन्त कवियों के विषय में वे लिखते हैं - सदियों के सामन्ती शासन की शिला के नीचे जन-साधारण की सहृदयता का जल सिमट रहा था, सन्त कवियों की वाणी के रूप में यह अचानक फूट पड़ा और उसने समूचे भारत को रस- सिक्त कर दिया। भारतेन्दु युग की नव्यचेतना और नव जागरण ने उन्हें प्रभावित किया और उन्होंने मुक्त कंठ से उसकी सराहना की। प्रेमचन्द की जनकटी चेतना के वह मुक्तकंठ से प्रशंसक हुए। उनका कथन है - "हिन्दुस्तान के किसानों को प्रेमचन्द की रचनाओं में जो आत्मभिव्यंजन मिला, वह भारतीय साहित्य में बेजोड़ है।

छायावादी काव्यधारा का उन्होंने अभिनन्दन किया और नई रोमांटिक कविता की दाद देते हुए कहा है- 'नई रोमांटिक कविता के नायक-नायिकाओं की क्रीड़ा के स्थान पर व्यक्ति और उसके भावों विचारों को प्रतिष्ठित किया। निष्प्राण प्रतीकों के बदले सजीव भावों के द्वारा वे साहित्य को जीवन के निकट लाये।' निराला के वे प्रशंसक हैं। उन्होंने ईमानदारी के साथ स्वीकार किया है। "बारह वर्ष तक इतने निकट सम्पर्क में रहने के कारण उन पर पूर्ण तटस्थता से लिए लिखना मेरे लिए प्रायः असम्भव है। किन्तु उन्होंने अपने प्रयास के विषय में घोषित किया है- "साहित्य के हित को ध्यान में रखते हुए, मैंने यही प्रयास किया है कि कहीं उनकी अनुचित प्रशंसा न हो और कहीं भी उनके साहित्य की कमजोरियों पर पर्दा डालने से हमारी नई साहित्यिक प्रवृत्तियों का अहित न हो। कहना न होगा कि यही दृष्टि प्रत्येक आलोचक में होनी चाहिए तभी उसकी आलोचना रही होगी।

डॉ. रामविलास शर्मा आमतौर पर छन्दोबद्ध कविता के समर्थक है फिर भी उन्होंने निराला के मुक्तछन्द की प्रशंसा की है। कारण यह है कि निराला के मुक्त छन्द में गेयता, ध्वनि-साम्य, सानु प्रासंगिता, काव्य-गुणों की सत्ता आदि विशेषताएँ रहती है। इसके विपरीत जिन कवियों के मुक्तछन्द कोरे गद्य में बदल जाते हैं, उनकी कटु आलोचना की है।

डॉ. रामविलास शर्मा साम्राज्यवाद, पूँजीवाद आदि के कट्टर शत्रु हैं, और जिन रचनाओं में इनकी याकिंचित भी झलक मिलती हो, उनकी वे आलोचना करते हैं, उनका मत है- "जो पूँजीवाद या साम्राज्यवाद की खुशामद करे, उन्हें स्थायी बनाने में मदद करे, प्रगति के मार्ग में काँटे बिछाए, वह देश का शत्रु है और हिन्दी का शत्रु है, धर्म और संस्कृति के नाम पर जनता का गला घोंटकर वह पूँजीवाद के दानव को मोटा करना चाहता है। उनसे सभी लेखकों और पाठकों को सावधाना रहना चाहिए।'

डॉ. रामविलास शर्मा की विचारधारा में काव्यशास्त्र की परम्परागत मान्यताओं के लिए कोई स्थान नहीं। वे रस और अलंकार विषयक प्राचीन मान्यताओं के विरुद्ध है। रस को 'ब्रह्मानन्द सहादर' कहने वालों के साथ उन्होंने खूब चुटकियाँ ली हैं। आधुनिक युग में प्राचीन रस- सिद्धांत की निःसारता उन्होंने सिद्ध की है। परन्तु इसका आशय यह नहीं है कि वे हर प्राचीनता के विरोधी हैं। हम देख चुके हैं कि वे सन्त-साहित्य और तुलसी के प्रशंसक रहे हैं। मध्यकालीन हिन्दी कविता में गेयता में वे लिखते हैं "गाँव के किसानों को आए दिन के व्यवहार में तुलसी, रहीम, सूर, गिरधर आदि की उक्तियाँ उद्धृत करते सुलिए तो पता चलेगा कि वे साहित्यकारों के शब्दों को किस प्रकार अपने जीवन में परखते चलते हैं। जो साहित्य इस तरह उनके जीवन में घुल-मिल जाता है, वही टिकाऊ होता है, दूसरा नहीं।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि डॉ. रामविलास शर्मा आधुनिक हिन्दी आलोचकों की अग्रिम पंक्ति में आसीन है।

 

 

 

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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