बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर -
जिस समय भारत में बंगाल प्रान्त को विभाजित करने की घोषणा के बाद बंग-भंग आन्दोलन चलाया जा रहा था उसी समय से स्वतंत्रता प्राप्ति को विशेष रूप से आन्दोलन का लक्ष्य बनाया गया। उन्हीं दिनों में रवीन्द्र नाथ टैगोर की रचना गीतांजलि को विशेष प्रतिष्ठा मिली। अंग्रेजी साहित्य के माध्यम से भी एक काव्य परिपाटी सामने आयी। इस सब के प्रभाव वश हिन्दी छायावाद के नाम से एक विशेष रूप प्रारम्भ किया गया छायावादी काव्यधारा के कवियों ने प्रकृति के साथ रागात्मक सम्बन्ध स्थापित की और अत्यन्त चित्रमयी भाषा में मनोरम रूप एवं भाव संकेत उपस्थित किए। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार यद्यपि इस धारा का प्रवर्तन मैथिलीशरण गुप्त और पांडेय से हुआ तथापि रहस्यवाद के संदर्भ में प्रसाद, निराला एवं महादेवी वर्मा के नाम से ही प्रमुख हैं। लाक्षणिकता एवं मधुकल्पना के साथ कवि की अज्ञात प्रिय के प्रति प्रेम में विह्वलता उससे मिलने के लिए अभिसार उसके पदचापों की ध्वनि को सुनना और तम के परदे में उसके आने की आकुल प्रतीक्षा करते हुए नीरव गान गाना रहस्यवाद एवं छायावाद की विशेषता बन गई। कबीर, जायसी, मीरा आदि के साहित्य में भी ऐसी रहस्यात्मकता के दर्शन होते हैं। छायावादी कविता में सौन्दर्य के प्रति आकर्षक, प्राकृतिक विभिन्न रूप - व्यापारों में अनेक प्राणों की छाया देखने की प्रवृत्ति आकुलता, और अनुभूतियों की व्यंजना में प्रतीकों का आश्रय ग्रहण किया गया।
प्रसाद, पंत, निराला और महादेवी वर्मा के अतिरिक्त डॉ. रामकुमार वर्मा, भगवतीचरण वर्मा, सियाराम शरण गुप्त, नरेन्द्र शर्मा तथा दिनकर आदि ने इस प्रकार की काव्य रचना को प्रौढ़ता प्रदान की।
छायावाद मूल्यांकन और महत्व - छायावादी कविता अपनी भाव और भंगिमा के लिए अत्यन्त प्रशंसनीय रही है, फिर भी इस कविता की कतिपय विसंगतियाँ हैं जिनके कारण सन् 1935 ई. के आस-पास इसकी गति मन्द पड़ती दिखाई पड़ी। छायावादी कविता की प्रमुख प्रमुख विसंगतियों को हिन्दी के समालोचकों ने इस प्रकार रेखांकित किया है -
(1) छायावादी कविता में लोकमंगल - भावना - सम्पृक्त जीवनदृष्टि का अभाव है।
(2) लोक-संवेदना की उपेक्षा की गयी है।
(3) कल्पना - मंडित वायवी संसार की सृष्टि हुई है।
(4) पीड़ा, निराशा और पलायन की प्रवृत्ति अधिक है।
(5) सौन्दर्य का क्षेत्र व्यापक नहीं है।
(6) शब्दों और अलंकारों के प्रति मोह है।
(7) बुद्धि बहुल प्रतीकों का बाहुल्य है।
(8) भाषा व्याकरण सम्मत नहीं है और अत्यन्त दुरूह दुर्बोध है।
छायावादी कविता में यद्यपि उक्त विसंगतियों थोड़ी बहुत मात्रा में अवश्य दिखाई पड़ेगी, लेकिन इस कविता का जो उज्जवल पक्ष है, उसकी रमणीयता को अनदेखा नहीं किया जा सकता है।
छायावादी कविता की मनोरमता का एक इतिहास है कि यह कविता अपने युग की उत्कट मांग थी। उसकी असाधारण उपलब्धियों को इस प्रकार रेखांकित किया जा सकता है -
(1) छायावादी कविता में सौन्दर्य की सूक्ष्म सत्ता को संस्थापित किया गया है।
(2) छायावादी काव्य में कवियों की बहुआयामी और बहुकोणीय कविता अनावृत्त हुई है।
(3) नारी के गतानुभगतिक रूप अर्थात् भोगिनी रूप की अभ्यर्थना नहीं हुई है, इस प्रकार नारी के उदात्त मानवी रूप को रूपायित किया गया है।
(4) छायावादी कविता में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सुप्रयास दृष्टिगत होता है।
(5) प्रकृति के आलम्बन रूप की व्यापक प्रस्तुति हुई है।
(6) छायावादी कविता में युग चेतना अर्थात् स्वतंत्रता आन्दोलन को भी स्वर प्रदान किया गया है।
(7) भावोत्कर्ष में सहायक भारतीय एवं अभारतीय अलंकारों का अनायास प्रयोग हुआ है।
(8) अभिनव अप्रस्तुतों की प्रस्तुति है
(9) गीतात्मकता और मुक्त छन्द का व्यवहार छायावादी कविता की अन्यतम विशेषता है।
छायावाद युगीन काव्य के समन्वित अध्ययन के उपरान्त यह स्पष्ट हो जाता है कि इस युग की कवि - प्रतिभा सर्जना के विविध क्षेत्रों में गतिशील रही है और उसने नई दिशाओं की ओर संकेत भी किया है। अभिव्यंजना की दृष्टि से इस युग के काव्य की छायावादी धारा में जहाँ सूक्ष्म वक्रता और जटिल संरचना दिखाई देती है। वहाँ राष्ट्रीय सांस्कृतिक कविता में और प्रेमप्रधान स्वच्छन्द वैयक्तिक काव्यधारा में शैली की सरलता तथा आवेग दिखाई देते हैं। इस युग की प्रधान प्रवृत्ति छायवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषता है प्रकृति सम्बन्धी दृष्टिकोण में नवीनता। इस युग के कवियों ने प्रकृति चित्रण में सूक्ष्म, संश्लिष्ट और नूतन उद्भावनाएं की। अनुभूति की दृष्टि से इस युग का साहित्य व्यक्तिनिष्ठ होने पर भी सामाजिकता से विच्छिन्न नहीं रहा है।
छायावादी कवियों ने भौतिक तथा आध्यात्मिक संस्कृतियों के संघर्ष और द्वैत की ज्वलन्त आधुनिक समस्या से जूझने का स्तुत्य प्रयास किया है। इस धारा के सभी कवियों ने अपने-अपने ढंग से द्वैत का निषेध करके दोनों संस्कृतियों का समन्वय का यत्न किया है। यह समन्वय स्पष्टतः आध्यात्मिक सत्ता की प्रमुखता पर आधारित है। जिस प्रकार आध्यात्मिक और भौतिक सत्य इस काल की काव्य चेतना के दो छोर हैं, उसी प्रकार वह काव्य चेतना व्यक्ति और समाज की स्थितियों का न केवल स्पर्श करती है परन्तु उन दोनों में की की दोनों समन्वय का प्रयास करती है। इस स्थिति में विकास की दोनों सम्भावनाएँ निहित हैं -
(1) समाजवादी चेतना का विकास
(2) व्यक्तिवादी चेतना का विकास
पहली सम्भावना छायावादोत्तर काल में प्रगतिवादी काव्य के रूप में और दूसरी सम्भावना प्रगतिवादी की परवर्ती धारा प्रयोगवादी काव्य के रूप में विकास पाती हुई दिखाई देती है।
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- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
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- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
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- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।