बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
छायावादी कवि एवं उनके काव्य
छायावादी युग में अनेक ऐसे कवि हुए जिनकी रचनाओं से आधुनिक हिन्दी साहित्य को गौरव प्राप्त हुआ। जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' छायावाद की वृहत्रयी है। महादेवी वर्मा, रामकुमार वर्मा एवं माखन लाल चतुर्वेदी, छायावाद की लघुत्रयी के अन्तर्गत आते हैं। छायावाद के महासागर में प्रशंसनीय योगदान देने वाले कवियों में मिलिन्द, भगवती चरण वर्मा, बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' एवं सुभद्रा कुमारी चौहान आदि का नाम भी उल्लेखनीय है।
(1) जयशंकर प्रसाद - छायावादी युग के स्रष्टा प्रसाद जी के प्रारम्भिक काल में ब्रजभाषा काव्य का सृजन किया गया। उनकी ब्रजभाषा सम्बन्धी कविताओं का संग्रह चित्राधार के नाम से प्रकाशित हुआ। इसके अनन्तर खड़ी बोली काव्य 'कानन कुसुम' 'महाराणा का महत्व' 'करुणालय' और प्रेम पथिक, प्रकाशित हुए। 1912 में उनका काव्य 'झरना' प्रकाशित हुआ। 1930-32 में राष्ट्रीय आन्दोलन के दिनों में इनके 'आँसू' काव्य का प्रकाशन हुआ। 'आँसू' में प्रसाद ने प्रेम वेदना की एक दिव्य झाँकी प्रस्तुत की जिसमें सुख और दुख है। इसमें प्रसाद जी का व्यक्तवाद अपने समग्र रूप में प्रकट हुआ है।' प्रेम पथिक इनका एक लघुबन्ध काव्य है। इसमें नायक के मुख से एक असफल प्रेम की कहानी कहलायी गई है। आँसू की करुणा लहर में आकर आशामय सन्देश से आलोकित है। इसमें कवि जीवन के नये अरुणोदय की कल्पना करता है।
'कामायनी' प्रसाद जी - की अन्तिम बिन्दु सर्वश्रेष्ठ कृति है और यह छायावादी युग का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। आधुनिक युग का एकमात्र प्रतिनिधि महाकाव्य कामायनी में मनु, श्रद्धा और इड़ा की पौराणिक कथा के माध्यम से कविवर प्रसाद ने आज के युग के मनुष्य के बौद्धिक और भावात्मक विकास और आज के जीवन के वैषम्य की जीती-जागती कहानी प्रस्तुत की है।
प्रसाद जी के काव्य में विषय नवीनता, नवीन कल्पनाओं की सृष्टि, मानवीय सौन्दर्य-कला निरूपण, भावानुसारिणी, भाषा, प्रलय साधना, रहस्यात्मकता, एवं लाक्षणिक भंगिमा आदि छायावाद की सभी विशेषताएँ सन्निहित हैं।
'प्रसाद' एक मानवतावादी युगान्तकारी महाकवि है। सुमित्रानन्दन पन्त सुकोमल भावनाओं में कवि पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि कहे जाते हैं। उनका प्रकृति के प्रति अक्षय प्रेम रहा है। विशम्भर मानव के शब्दों में- पन्त जी ने प्रकृति की एक-एक वस्तु में रचना पहचानी है। प्रकृति का उन्होंने शरीर ही नहीं देखा है, उस मन की भावनाएँ भी देखी हैं। कविवर पन्त की रचनाओं का प्रकाशन इस क्रम में हुआ। वीणा, ग्रन्थि, पल्लव, गुंजन, स्वर्ण किरण, स्वर्ण भूमि, युगान्तर, उत्तरा, शिल्पी और प्रतिमा आदि उनकी काव्य-कृतियाँ हैं।'
युगान्त में आकर पन्त में छायावादी प्रवृत्तियों का अन्त हो जाता है। वीणा में इनकी प्रारम्भिक रचनाएँ हैं। वीणा काल का कवि प्रकृति की अनुपम छटा से विमुग्ध प्रतीत होता है। बाला का सौन्दर्य भी उसे महत्वहीन प्रतीत होता है - "बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा है - "बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूँ मृदोलोचन'' 'ग्रन्थि' एक छोटा-सा प्रबन्ध है जिसमें असफल प्रेम की कहानी है।
'पल्लव' में पन्त की सुप्रसिद्ध कविता परिवर्तन भी संग्रहित है। पल्लव का छायावादी काव्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। 'गुंजन' में कविवर पन्त व्यक्तगत सुख-दुःखों के ऊपर उठकर विश्व मानव कल्याण के लिए पुकार उठे हैं -
नव छवि, नव रंग, नप मधु से,
मुकुलित पुलकित हो जीवन।
'युगान्त', 'युगवाणी' और 'ग्राम्या' में पन्त जी का प्रगतिवादी रूप मुखर हो उठा है। स्वर्ण किरण में कवि ने आध्यात्मिक भावनाओं को व्यक्त किया है। शिवदान सिंह चौहान ने उचित ही कहा है
" पन्त काव्य को यदि समग्र रूप से देखें तो उनकी सूक्ष्म सौन्दर्य दृष्टि और सुकुमार उदात्त कल्पना हिन्दी साहित्य में अनन्य है।"
सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला - निराला आधुनिक युग के महान कवि है। उनकी वाणी क्रान्ति सौन्दर्य और प्रेम की त्रिवेणी है। उनके अपने ही शब्दों में "देखते नहीं मेरे पास एक कवि की वाणी, कलाकार के हाथ, पहलवान की छाती और फिलास्फर के पैर है। सन् 1915 में इन्होंने काव्य सृजन प्रारम्भ किया उनका प्रथम काव्य संग्रह 'परिमल' प्रकाशित हुआ। इनके अन्य काव्य - 'अनामिका', 'तुलसीदास', 'कुकुरमुत्ता', 'बेला', 'नये पत्ते', 'अर्चना' और 'आराधना'। 'परिमल' और अनामिका में छायावाद की सभी विशेषताएँ दृष्टिगत होती है। छायावाद को अद्वैत दर्शन की मातृभूमि पर स्थित करने का सर्वाधिक श्रेय निराला को है। 'परिमल' को छायावाद का प्रतिनिधि काव्य कहा जा सकता है। जूही की कली, पंचवटी विधवा भिक्षुक, बादल गीत एवं बहुत सी अनेक कविताओं में छायावाद अनेकमुखी प्रवृत्तियों के उदात्त झलक मिलती है निराला ने बहु-वस्तु स्पर्शिनी प्रतिभा है।
आचार्य शुक्ल के शब्दों में- "संगीत को काव्य और काव्य को संगीत के अधिक निकट लाने का सर्वाधिक प्रयास निराला जी ने किया है।' उन्होंने हिन्दी को नवीन भाव, नवीन भाषा और नवीन मुक्त छन्द प्रदान किये। निराला जी ने प्रलयकर शंकर के समान स्वयं वस्तु विष पान करके हिन्दी साहित्य जगत को पीयूष वितरित किया।
महादेवी वर्मा - छायावादी रहस्यवादी काव्य परम्परा में यदि पन्त जी अपनी सौन्दर्य भावना और सुकुमारता के लिए प्रसिद्ध है, तो महादेवी जी की कविता में वेदना की प्रमुखता है।' सजल गीतों की गायिका महादेवी वर्मा आधुनिक युग की मीरा कही जाती है। इनकी कविता में संगीत कला, चित्रकला तथा काव्य कला का अपूर्व समन्वय है।
महादेवी वर्मा छायावाद के क्षेत्र में पन्त, निराला और प्रसाद के बाद प्रविष्ट हुई। किन्तु उसका सबसे अधिक साथ दे रही हैं। उनके साहित्य में पीड़ा, आँसू, माधुर्य, आनन्द तथा उल्लास सभी कुछ-कुछ आलोचकों ने पीड़ा के तत्व की प्रधानता को देखकर पीड़ावाद की कवियित्री कहा है। स्वयं महादेवी जी के शब्दों में "दुख मेरे निकट जीवन का ऐसा काव्य है। जो संसार को एक सूत्र में बाँध रखने की क्षमता रखता है। विश्व जीवन में अपने जीवन को और विश्व वेदना को अपनी वेदना में इस प्रकार मिला देना जिस प्रकार एक बिन्दु समुद्र में मिल जाता है। कवि का मोक्ष है।'
महादेवी की रचनाएँ नीहार, रश्मि, नीरजा और सान्ध्य गीत, दीपशिखा और यात्रा, 'नीहार' में प्रारम्भिक कविताओं का संकलन है तो रश्मि में कवियित्री का जीवन-मृत्यु, सुख और दुख विषयक मौलिक चिन्तन नीरजा में मानवीय भावनाओं की भव्य झाकियाँ तथा विरह वेदना के चित्र है तो सान्ध्य गीत में कवियित्री ने सुख और दुख, विरह और मिलन में समन्वय स्थापित किया है।
भाव पक्ष की दृष्टि से महादेवी वर्मा की कविताओं में विरह वेदना, रहस्यवाद एवं छायावाद की विषयगत एवं शैलीगत प्रवृत्तियों का भव्य रूप चित्रित हुआ है। इन्होंने प्रभु को पीड़ा और पीड़ा में प्रभु को ढूँढ़ा है। इनकी भाषा में प्रसाद का परिष्कर, निराला की संगीतात्मकता और पन्त की कोमलता सभी कुछ चित्रित है। डॉ. जगन्नाथ मदान के शब्दों में- "छायावादी काव्य में प्रसाद ने यदि प्रकृति तत्व को मिलाया, निराला ने मुक्तक छन्द दिया, पन्त ने शब्दों को खरीदी पर चढ़ाकर सुडौल और सरस बनाया तो महादेवी जी ने उसमें प्राण डालें।'
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- प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
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- प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
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- प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
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- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
- प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
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- प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
- प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।