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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2677
आईएसबीएन :0

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हिन्दी काव्य का इतिहास

अध्याय - 4

रासो काव्य : परम्परा एवं प्रमुख प्रवृत्तियाँ

 

प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।

अथवा
पृथ्वीराज रासो की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में अपना मत दीजिए।

उत्तर -

पृथ्वीराज रासो

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार चन्दबरदायी हिन्दी के प्रथम कवि थे जिनका पृथ्वीराज रासो नामक हिन्दी का प्रथम महाकाव्य है। उन्होंने चन्दबरदायी को दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान का सामन्त और राजकवि माना है। शुक्ल जी के अनुसार इनका जन्म वर्ष 1168 ई. है। रासो परम्परा के अनुसार ये भट्ट जाति जगात नामक गोत्र के ब्राह्मण थे। इनके पूर्वजों की भूमि पंजाब थी। जहाँ लाहौर में इनका जन्म हुआ था। इनका और पृथ्वीराज का जन्म एक ही दिन हुआ था और दोनों ने एक ही दिन संसार भी छोड़ा था। जिस समय पृथ्वीराज को मुहम्मद गोरी बन्धक बनाकर अपने देश ले जा रहा था उस समय चन्द भी महाराज के साथ गया था। उसने अपने पुत्र जल्ल को पृथ्वीराज रासो सौंप गया था। इस सम्बन्ध में यह कथा प्रचलित है कि "पुस्तक जल्हणहत्थ दै, चालि गज्जन नृपकाज' कहा जाता है कि जल्हण ने चन्द्र के अधूरे महाकाव्य को पूरा किया।

'पृथ्वीराज रासो' के चार संस्करण उपलब्ध है। नागरी प्रचारिणी सभा काशी से प्रकाशित संस्करण प्रथम संस्करण है। इस संस्करण में 69 समय तथा 16306 छन्द है। अबोहर और बीकानेर में सुरक्षित प्रति द्वितीय संस्करण है जिसमें 7000 छन्दों का संकलन हुआ है। तीसरा लघु संस्करण 3500 छन्दों का है जिसमें केवल 19 समय है। इस संस्करण की हस्तलिखित प्रतियाँ भी बीकानेर में सुरक्षित हैं। चौथा संस्करण सबसे छोटा है, जिसमें केवल 1300 छन्द है। इसी को डॉ. दशरथ शर्मा आदि कुछ विद्वान मूल रासो मानते हैं।

पृथ्वीराज रासो की अप्रामाणिकता - हिन्दी साहित्य के वेत्ताओं का एक वर्ग रासो को पूर्णतया जाली ग्रन्थ मानता है। इन विद्वानों में डॉ. 'बूलर' का स्थान सर्वोपरि है। डॉ. बूलर ने 'पृथ्वीराज विजय' की एक प्रामाणिक प्रति के आधार पर पृथ्वीराज रासो को एक जाली ग्रन्थ सिद्ध कर दिया। 'रासो' को जाली ग्रन्थ मानने वालों में प्रसिद्ध साहित्य वाचस्पति गौरीशंकर हीराचन्द ओझा का नाम विशेष उल्लेखनीय है। रासो को प्रामाणिक मानने में ओझा जी की सबसे बड़ी आपत्ति यह है कि उसमें ऐतिहासिक त्रुटियाँ हैं जो 'पृथ्वीराज विजय' और प्राचीन शिलालेखों से सिद्ध हो जाती है। -

(1) 'पृथ्वीराज विजय' के अनुसार पृथ्वीराज का राजकवि पृथ्वी भट्ट था।
(2) रासो में दिये गये अधिकांश नाम और घटनाएँ इतिहास से मेल नहीं खाती
(3) पृथ्वीराज की माता का नाम, माता का वंश, पुत्र का नाम, सामन्तों के नाम गलत है।
(4) रासो में परमार चालुक्य, चौहान, अग्निवंशी माने गये हैं, - शिलालेखों एवं प्राचीन ग्रन्थों के आधार पर वे सूर्यवंशी ठहरते हैं, अग्निवंश की कल्पना पीछे की गयी और इसका श्रेय 'रासो' को है।
(5) 'रासो' में चौहानों की वंशावली पृथ्वीराज के निकट के पूर्वजों के नाम भी शिलालेखों और 'पृथ्वीराज विजय' से भिन्न है। उसमें पृथ्वीराज को दिल्ली के तोमर राजा अनंगपाल का दोहित्र और राठौर वंशीय कहा है,         किन्तु शिलालेखों में वे सर्वत्र गहरवार लिखे गये हैं।
(6) पृथ्वीराज रासो को अनैतिहासिकता के प्रकरण में ओझा जी संयोगिता स्वयंवर तथा जयचन्द्र और पृथ्वीराज की शत्रुता को भी कपोल कल्पित बतलाते हैं। 'रासो' के अनुसार गुजरात का राजा भीमसेन पृथ्वीराज     के हाथों मारा गया, किन्तु शिलालेखों के अनुसार वह पृथ्वीराज के बहुत समय बाद तक जीवित रहा।
(7) रासो के अनुसार शहाबुद्दीन को पृथ्वीराज ने तीर से मारा, किन्तु ऐतिहासिकता तथ्य यह है कि वह सन् 1203 में गक्करों द्वारा मारा गया,
(8) इसी प्रकार 'रासो' के अनुसार पृथ्वीराज की पुत्री पृथा कंवरि की शादी चित्तौड़ के राजा समर सिंह से हुई, किन्तु इतिहास के अनुसार समरसिंह पृथ्वीराज के बाद हुए।

दूसरी आपत्ति - गौरीशंकर हीराचन्द ओझा की दूसरी आपत्ति 'रासो' की तिथियों के सम्बन्ध में है। 'रासो' में पृथ्वीराज का जन्म सम्वत् 1915 तथा मृत्यु संवत् 1158 दिया है। इतिहास से यह क्रमशः संवत् 1220 और संवत् 1248 सिद्ध होता है।

तीसरी आपत्ति - ओझा जी की तीसरी आपत्ति यह है कि 'रासो' में प्रायः दस प्रतिशत शब्द अरबी फारसी के है। इस प्रकार 'रासो' की भाषा चन्द के समय की न होकर सोलहवीं शताब्दी की है।

त्रुटियों का समाधान -

(1) ओझा जी की बतायी हुई ऐतिहासिक भ्रान्तियों का समाधान करने का प्रयत्न मिश्रबन्धु करते हैं। उनके अनुसार रासो में ये त्रुटियाँ अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन से आ गई हैं।

(2) जहाँ तक तिथियों की गलती का प्रश्न है इसके सम्बन्ध में भी विद्वानों ने भ्रान्ति का परिहार करने के प्रयास किया है। पं. मोहनलाल विष्णुलाल पण्ड्या ने 'रासो' तथा इतिहास की तिथियों में सर्वत्र 90 वर्ष का अन्तर पाया है और इसलिए उन्होंने आनन्द संवत् की कल्पना करके नन्द वंशीय शूद्र राजाओं के राजत्व काल के 90 (नब्बे) वर्षों को घटाकर रासो की तिथियों को प्रामाणिक सिद्ध करने का प्रयत्न किया है।

(3) जहाँ तक भाषा में अरबी फारसी के शब्दों के प्रयोग का प्रश्न है उसके विरुद्ध मिश्रबन्धु दो कारण देते हैं- पहली बात तो यह है कि भारत पर उस काल से बहुत पहले ही मुसलमानों के आक्रमण शुरू हो गये थे। सिन्ध और मुल्तान पर उनका अधिकार हो चुका था। चन्द लाहौर का रहने वाला था। अतः उसकी बाल्यावस्था में ही अरबी, फारसी के शब्द उसके मस्तिष्क में प्रवेश करने लगे थे। दूसरे 'रासो' का बहुत सा भाग प्रक्षिप्त है। अतः परवर्ती काल में मुसलमानी आतंक के साथ भाषा पर अरबी फारसी भाषा का आतंक होना भी स्वाभाविक है। इसीलिए प्रक्षिप्त अंकों में और भी मुसलमानी शब्द आ जाने से 'रासो' में दस प्रतिशत शब्द अरबी, फारसी के हैं।

हिन्दी साहित्य के इतिहास में यह ग्रन्थ इस दृष्टि से सर्वाधिक विवादास्पद रहा है। विद्वानों के कई वर्ग बन गये हैं। डॉ. श्यामसुन्दरदास, मोहनलाल, विष्णु लाल पाण्ड्या, मिश्रबन्धु, कर्नलहॉड आदि विद्वानों ने यह माना है कि पृथ्वीराज रासो का जो संस्करण सभा में प्रकाशित हुआ है वहीं प्रमाणिक है। दूसरा वर्ग रामचन्द्र शुक्ल, कविराजा, श्यामलदास, गौरींकर हीराचन्द्र ओझा, डॉ. वूलर, मुंशी देवी प्रसाद आदि विद्वानों का है। जो रासो को सर्वथा अप्रमाणिक ग्रन्थ मानते हैं। तीसरे वर्ग के विद्वान मुनिजिन विजय, डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी आदि यह मानते हैं कि पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्दबरदायी ने ही 'पृथ्वीराज रासो' लिखा था, किन्तु उसका मूल रूप आजकल उपलब्ध नहीं है। चौथा मत नरोत्तम स्वामी का है। उन्होंने सबसे अलग बात यह है कि चन्द ने पृथ्वीराज के दरबार में रहकर मुक्तक रूप में 'रासो' की रचना की थी। उनके इस मत से कि 'रासो' मूलतः प्रबन्ध काव्य नहीं था, अन्य कोई विद्वान सहमत नहीं है।

अप्रमाणिकता सम्बन्धी सभी तर्कों को ही अन्तिम प्रमाण मान लिया जाये, तब तो 'पृथ्वीराज रासो' को अप्रामाणिक रचना ही कहा जा सकता है किन्तु दूसरे पक्ष के तर्क में भी इस सम्बन्ध में विचारणीय है -

(1) डॉ. दशरथ शर्मा का मत है कि इसका मूल रूप प्रक्षेपों में छिपा हुआ है। इधर जो लघुतम प्रतियाँ मिली है, उनमंम इतिहास सम्बन्धी अशुद्धियाँ नहीं हैं।
(2) घटनाओं में 90-100 वर्षों का जो अन्तर है, वह संवत् की भिन्नता के कारण है। मोहनलाल विष्णुलाल पंड्या ने 'आनन्द संवत्' की कल्पना की है और उसके अनुसार तिथियाँ भी शुद्ध सिद्ध होती है।
(3) 'रासो' इतिहास ग्रन्थ न होकर काव्य रचना है। अतः उसमें इतिहास का सत्य खोजना और उसके न मिलने पर उसे अप्रामाणिक घोषित करना अनुचित है।
(4) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह मत भी है कि 'पृथ्वीराज रासों' में बारहवीं शताब्दी की भाषा की संयुक्ताक्षरमयी अनुस्वारान्त प्रवृत्ति मिलती है यह बारहवीं शताब्दी का ग्रन्थ सिद्ध होता है।
(5) डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी का यह मत भी है कि 'पृथ्वीराज रासो' की रचना शुक शुकी संवाद के रूप में हुई थी। अतः जिन सर्गों में यह शैली नहीं मिलती, उन्हें प्रक्षिप्त नहीं मानना चाहिए। यदि यह तर्क मान लिया     जाये, तो वे ही अंश प्रायः प्रक्षिप्त सिद्ध होते हैं, जिनमें इतिहास विरुद्ध तथ्य है।
(6) जिन लोगों ने 'रासो' में अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग देखकर उसे जाली ग्रन्थ माना है, उसके विरुद्ध यह तर्क दिया जाता है कि 'चन्द' लाहौर का निवासी था। वहाँ उस समय मुसमलानों का प्रभाव आ चुका था,     अतः उसकी भाषा में अरबी-फारसी के शब्दों का मिश्रण होना सहज है। 

अन्त में निष्कर्ष रूप में हम 'पृथ्वीराज रासो' की प्रामाणिकता के सम्बन्ध में डॉ. नगेन्द्र का यह कथन प्रस्तुत करना चाहेंगे "वस्तुतः विद्वानों ने बाल की खाल खींचने की चेष्टा में अनेक ऐसे तर्क प्रस्तुत किए हैं, जो इस काव्य की प्रामाणिकता के लिए उचित कसौटी नहीं बन सकते। पृथ्वीराज रासो ही नहीं 'श्रीरामचरितमानस', 'सूरसागर', 'बीजक' आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थों पर भी यदि अनेक प्रकार के तर्क दिये जायें तो उनकी प्रामाणिकता भी किसी न किसी सीमा तक सन्देह का विषय बन सकती है। 'श्रीरामचरितमानस' में तो प्रक्षिप्त अंश स्वीकार भी किये जा सकते हैं। अतः प्रक्षिप्ताशाओं या इतिहास विरोधी कथनों के आधार पर 'पृथ्वीराज रासो' को अप्रामाणिक मानना उचित नहीं है। चन्द ने पृथ्वीराज के जीवन की घटनाओं का जैसा सजीव वर्णन किया है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि वह पृथ्वीराज का समकालीन कवि था। अतः रासो को अप्रामाणिक मानना उचित नहीं है। यदि इस विवाद में कोई सत्यांश झलकता भी है तो वह इतना कि 'पृथ्वीराज रासो' में पर्याप्त प्रक्षिप्त अंशों का भी समावेश हुआ है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- इतिहास क्या है? इतिहास की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी साहित्य का आरम्भ आप कब से मानते हैं और क्यों?
  3. प्रश्न- इतिहास दर्शन और साहित्येतिहास का संक्षेप में विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  5. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के महत्व पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- साहित्य के इतिहास के सामान्य सिद्धान्त का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- साहित्य के इतिहास दर्शन पर भारतीय एवं पाश्चात्य दृष्टिकोण का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का विश्लेषण कीजिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा का संक्षेप में परिचय देते हुए आचार्य शुक्ल के इतिहास लेखन में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन के आधार पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  11. प्रश्न- इतिहास लेखन की समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की समस्या का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- हिन्दी साहित्य इतिहास लेखन की पद्धतियों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  13. प्रश्न- सर जार्ज ग्रियर्सन के साहित्य के इतिहास लेखन पर संक्षिप्त चर्चा कीजिए।
  14. प्रश्न- नागरी प्रचारिणी सभा काशी द्वारा 16 खंडों में प्रकाशित हिन्दी साहित्य के वृहत इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  15. प्रश्न- हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रारम्भिक तिथि की समस्या पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- साहित्यकारों के चयन एवं उनके जीवन वृत्त की समस्या का इतिहास लेखन पर पड़ने वाले प्रभाव का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- हिन्दी साहित्येतिहास काल विभाजन एवं नामकरण की समस्या का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास का काल विभाजन आप किस आधार पर करेंगे? आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास का जो विभाजन किया है क्या आप उससे सहमत हैं? तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।
  19. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास में काल सीमा सम्बन्धी मतभेदों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  21. प्रश्न- काल विभाजन की प्रचलित पद्धतियों को संक्षेप में लिखिए।
  22. प्रश्न- रासो काव्य परम्परा में पृथ्वीराज रासो का स्थान निर्धारित कीजिए।
  23. प्रश्न- रासो शब्द की व्युत्पत्ति बताते हुए रासो काव्य परम्परा की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए - (1) परमाल रासो (3) बीसलदेव रासो (2) खुमान रासो (4) पृथ्वीराज रासो
  25. प्रश्न- रासो ग्रन्थ की प्रामाणिकता पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- विद्यापति भक्त कवि है या शृंगारी? पक्ष अथवा विपक्ष में तर्क दीजिए।
  27. प्रश्न- "विद्यापति हिन्दी परम्परा के कवि है, किसी अन्य भाषा के नहीं।' इस कथन की पुष्टि करते हुए उनकी काव्य भाषा का विश्लेषण कीजिए।
  28. प्रश्न- विद्यापति का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  29. प्रश्न- लोक गायक जगनिक पर प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- चंदबरदायी का जीवन परिचय लिखिए।
  33. प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षित परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
  34. प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
  35. प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
  36. प्रश्न- विद्यापति की भक्ति भावना का विवेचन कीजिए।
  37. प्रश्न- हिन्दी साहित्य की भक्तिकालीन परिस्थितियों की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- भक्ति आन्दोलन के उदय के कारणों की समीक्षा कीजिए।
  39. प्रश्न- भक्तिकाल को हिन्दी साहित्य का स्वर्णयुग क्यों कहते हैं? सकारण उत्तर दीजिए।
  40. प्रश्न- सन्त काव्य परम्परा में कबीर के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
  41. प्रश्न- मध्यकालीन हिन्दी सन्त काव्य परम्परा का उल्लेख करते हुए प्रमुख सन्तों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  42. प्रश्न- हिन्दी में सूफी प्रेमाख्यानक परम्परा का उल्लेख करते हुए उसमें मलिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत का स्थान निरूपित कीजिए।
  43. प्रश्न- कबीर के रहस्यवाद की समीक्षात्मक आलोचना कीजिए।
  44. प्रश्न- महाकवि सूरदास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व की समीक्षा कीजिए।
  45. प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
  46. प्रश्न- भक्तिकाल में उच्चकोटि के काव्य रचना पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- 'भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
  48. प्रश्न- जायसी की रचनाओं का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  49. प्रश्न- सूफी काव्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए -
  51. प्रश्न- तुलसीदास कृत रामचरितमानस पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  52. प्रश्न- गोस्वामी तुलसीदास के जीवन चरित्र एवं रचनाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  53. प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- कबीर सच्चे माने में समाज सुधारक थे। स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी की निर्गुण और सगुण काव्यधाराओं की सामान्य विशेषताओं का परिचय देते हुए हिन्दी के भक्ति साहित्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  58. प्रश्न- निर्गुण भक्तिकाव्य परम्परा में ज्ञानाश्रयी शाखा के कवियों के काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  59. प्रश्न- कबीर की भाषा 'पंचमेल खिचड़ी' है। सउदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- निर्गुण भक्ति शाखा एवं सगुण भक्ति काव्य का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  61. प्रश्न- रीतिकालीन ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनैतिक पृष्ठभूमि की समीक्षा कीजिए।
  62. प्रश्न- रीतिकालीन कवियों के आचार्यत्व पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
  63. प्रश्न- रीतिकालीन प्रमुख प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिए तथा तत्कालीन परिस्थितियों से उनका सामंजस्य स्थापित कीजिए।
  64. प्रश्न- रीति से अभिप्राय स्पष्ट करते हुए रीतिकाल के नामकरण पर विचार कीजिए।
  65. प्रश्न- रीतिकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों या विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- रीतिकालीन रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रमुख कवियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार दीजिए कि प्रत्येक कवि का वैशिष्ट्य उद्घाटित हो जाये।
  67. प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  68. प्रश्न- रीतिबद्ध काव्यधारा और रीतिमुक्त काव्यधारा में भेद स्पष्ट कीजिए।
  69. प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
  70. प्रश्न- रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- रीतिकाल के नामकरण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  72. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्य के स्रोत को संक्षेप में बताइये।
  73. प्रश्न- रीतिकालीन साहित्यिक ग्रन्थों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  74. प्रश्न- रीतिकाल की सांस्कृतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- बिहारी के साहित्यिक व्यक्तित्व की संक्षेप मे विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- रीतिकालीन आचार्य कुलपति मिश्र के साहित्यिक जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  77. प्रश्न- रीतिकालीन कवि बोधा के कवित्व पर प्रकाश डालिए।
  78. प्रश्न- रीतिकालीन कवि मतिराम के साहित्यिक जीवन पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- सन्त कवि रज्जब पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  80. प्रश्न- आधुनिककाल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
  81. प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
  83. प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
  84. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों की सोदाहरण विवेचना कीजिए।
  85. प्रश्न- भारतेन्दु युगीन काव्य की भावगत एवं कलागत सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- भारतेन्दु युग की समय सीमा एवं प्रमुख साहित्यकारों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  87. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य की राजभक्ति पर प्रकाश डालिए।
  88. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन काव्य का संक्षेप में मूल्यांकन कीजिए।
  89. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन गद्यसाहित्य का संक्षेप में मूल्यांकान कीजिए।
  90. प्रश्न- भारतेन्दु युग की विशेषताएँ बताइये।
  91. प्रश्न- द्विवेदी युग का परिचय देते हुए इस युग के हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में योगदान की समीक्षा कीजिए।
  92. प्रश्न- द्विवेदी युगीन काव्य की विशेषताओं का सोदाहरण मूल्यांकन कीजिए।
  93. प्रश्न- द्विवेदी युगीन हिन्दी कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
  94. प्रश्न- द्विवेदी युग की छः प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  95. प्रश्न- द्विवेदीयुगीन भाषा व कलात्मकता पर प्रकाश डालिए।
  96. प्रश्न- छायावाद का अर्थ और स्वरूप परिभाषित कीजिए तथा बताइये कि इसका उद्भव किस परिवेश में हुआ?
  97. प्रश्न- छायावाद के प्रमुख कवि और उनके काव्यों पर प्रकाश डालिए।
  98. प्रश्न- छायावादी काव्य की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- छायावादी रहस्यवादी काव्यधारा का संक्षिप्त उल्लेख करते हुए छायावाद के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
  100. प्रश्न- छायावादी युगीन काव्य में राष्ट्रीय काव्यधारा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  101. प्रश्न- 'कवि 'कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जायें। स्वच्छन्दतावाद या रोमांटिसिज्म किसे कहते हैं?
  102. प्रश्न- छायावाद के रहस्यानुभूति पर प्रकाश डालिए।
  103. प्रश्न- छायावादी काव्य में अभिव्यक्त नारी सौन्दर्य एवं प्रेम चित्रण पर टिप्पणी कीजिए।
  104. प्रश्न- छायावाद की काव्यगत विशेषताएँ बताइये।
  105. प्रश्न- छायावादी काव्यधारा का क्यों पतन हुआ?
  106. प्रश्न- प्रगतिवाद के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करते हुए प्रगतिवाद के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  107. प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियों का वर्णन कीजिए।
  108. प्रश्न- प्रयोगवाद के नामकरण एवं स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए इसके उद्भव के कारणों का विश्लेषण कीजिए।
  109. प्रश्न- प्रयोगवाद की परिभाषा देते हुए उसकी साहित्यिक पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  110. प्रश्न- 'नयी कविता' की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- समसामयिक कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों का समीक्षात्मक परिचय दीजिए।
  112. प्रश्न- प्रगतिवाद का परिचय दीजिए।
  113. प्रश्न- प्रगतिवाद की पाँच सामान्य विशेषताएँ लिखिए।
  114. प्रश्न- प्रयोगवाद का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- प्रयोगवाद और नई कविता क्या है?
  116. प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
  117. प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
  118. प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
  119. प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।

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