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बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2675
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

प्रश्न- एलोरा की गुहा का विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध एवं काल निर्धारण की विवेचना कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ऐलोरा की गुफा का नामकरण कैसे हुआ?
2. एलोरा गुफा का वर्णन कीजिए।
3. ऐलोरा की गुफा कहाँ स्थित है?
4. एलोरा में कुल कितनी गुफाएँ हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
5. ऐलोरा की गुफा में किन धर्मों से सम्बन्धित चित्रों का उल्लेख मिलता है?
6. ऐलोरा की गुफाओं में कितने विहारों का वर्णन मिलता है तथा ये कैसे बने हुए है?
7. द्वितीय भाग के एलोरा के गुफा मन्दिर कैसे बने हुए हैं?

उत्तर -

एलोरा का नामकरण

इस स्थान का नामकरण अत्यन्त रोचक विषय रहा है तथा इसे कई नामों से अभिहित किया गया है। यहाँ से प्राप्त एक शिलालेख के आधार पर इस स्थान का प्राचीन नाम 'ऐलापुर' प्रतीत होता है जो आगे चलकर ऐलापुर से एलोरा के रूप में प्रसिद्ध हो गया। कुछ विद्वानों ने इसे 'वेरूल' की गुहा के नाम से भी पुकारा है लेकिन यह तर्कसंगत नहीं जान पड़ता है।

एलोरा की गुहा

यह गुहा महाराष्ट्र प्रान्त के औरंगाबाद जिले में स्थित एलोरा नाम स्थान पर होने के कारण एलोरा की गुहा नाम से प्रसिद्ध है। एलोरा नामक स्थल औरंगाबाद जिले से लगभग 29 किलोमीटर दूर तथा अजन्ता की प्रसिद्ध गुहा से लगभग 135 किलोमीटर दूर स्थित है। एलोरा का चित्र वैभव अपने ढंग का सर्वथा अपूर्व है तथा एक पूरे के पूरे पहाड़ को काटकर एक अनोखे कला मन्दिर का निर्माण किया गया है। यहाँ का यह कला मन्दिर बौद्ध, ब्राह्मण व जैन तीनों धर्मों से सम्बन्धित रहा है और तीनों धर्मों की कुल 34 गुहाएँ हैं जिसमें बौद्ध धर्म से सम्बन्धित बारह गुहाएँ हैं, जिनमें विश्वकर्मा का गुहा मन्दिर सर्वाधिक सौन्दर्ययुक्त है। यह मन्दिर विशाल चैत्य के आकार का बनाया गया है जिसमें ऊँचे स्तम्भ बने हुए हैं। इन स्तम्भों में अनेक बौनों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं जो बहुत ही मनमोहक हैं।

इसी प्रकार एलोरा गुहा के पाँच मन्दिर जैन धर्म से सम्बद्ध रहे हैं जिनका निर्माण नवीं शताब्दी में हुआ था। जैन धर्म से सम्बन्धित इस गुहा मन्दिर में इन्द्रसभा मन्दिर विशेष रूप से प्रसिद्ध है जिनमें जैन तीर्थंकरों की कई मनोहारी प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं। यहाँ के गुहा मन्दिर के स्तम्भों एवं छतों पर बहुत ही सुन्दर चित्रकारी की गयी है।

एलोरा गुहा की सत्रह गुहाएँ ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित रही हैं जो अधिकतर राष्ट्रकूट शासकों के समय में निर्मित हुए थे। इनमें कैलाश मन्दिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है तथा प्राचीन वास्तु एवं तक्षण कला का उत्कृष्ट नमूना है। विशाल पहाड़ी को काट-छाँटकर यहाँ मनुष्यों, देवी-देवताओं की अत्यन्त आकर्षक प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं।

एलोरा की गुहाओं का विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध व काल निर्धारण - एलोरा की गुहाओं में बौद्ध चैत्य तथा विहार, हिन्दू (ब्राह्मण) मन्दिर तथा जैन गुहा कुल मिलाकर चौंतीस गुहाओं का निर्माण पर्वत को तराश कर किया गया है। ये दक्षिण से उत्तर की ओर लगभग दो से ढाई किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत हैं। इनमें से गुहा संख्या एक से बारह तक बौद्ध धर्म से सम्बन्धित हैं। इनमें चैत्य एवं विहार दोनों ही हैं। मध्य में तेरह से उन्तीस तक की गुहा ब्राह्मण धर्म से सम्बन्धित हैं। इसके बाद उत्तर दिशा में थोड़े अन्तराल पर गुहा संख्या तीस से चौंतीस तक की गुहा जैन धर्म से सम्बन्धित हैं। इस प्रकार लगभग नौ सौ वर्षों तक एलोरा में कला की अनवरत साधना चलती रही।

एलोरा में बौद्ध शैली की गुहा वास्तुकला का भी विकास हुआ था। यह बात अलग है कि राष्ट्रकूट सम्राटों ने बौद्ध धर्म को अपना संरक्षण प्रदान नहीं किया था। एलोरा में बौद्ध धर्म से सम्बन्धित बारह गुफाओं में केवल गुहा संख्या दस ही चैत्य गृह है बाकी ग्यारह गुहाएँ विहार हैं। एलोरा का यह चैत्यगृह शिल्प-देवता भगवान श्री विश्वकर्मा जी को समर्पित है इसीलिए इसे विश्वकर्मा गुहा भी कहा जाता है। यह चैत्यगृह अजन्ता शैली में ही निर्मित किए गए हैं, किन्तु यह अजन्ता के चैत्यगृहों से बड़ा है। विश्वकर्मा गुहा 85 फुट लम्बा 44 फुट चौड़ा तथा 34 फुट ऊँचा है। इस गुहा में 28 स्तम्भ हैं और स्तम्भ एवं भित्ति के बीच में प्रदक्षिणापथ बना है। पृष्ठभाग में स्तूप बनाया गया है जिसमें ताखे बनाए गए हैं। इस ताखे में भगवान बुद्ध की आसन प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गई हैं। विश्वकर्मा गुहा का मुखमण्डल दोमंजिला है जिसके ऊपर के खण्ड पर सम्भवत: संगीतशाला रही होगी। विश्वकर्मा गुहा में वास्तु कलाकारों ने अनावश्यक अंगों को त्याग करके एक नवीन परम्परा का श्रीगणेश करते हुए इस गुहा का निर्माण किया था।

एलोरा की विहार गुहाएँ भी स्वतन्त्र परम्परा की द्योतक हैं। यहाँ के विहारों में दो समूह रहे हैं। इन विहारों में से अधिकांश के सामने एक बरामदा फिर बाद में सभाकक्ष के दोनों ओर भिक्षुओं के आवास के लिए कोठरियों के स्थान परल्मबोतर बरामदे बने हैं जिनकी भित्तियों पर पाँच-पाँच रथिकाएँ हैं जिसमें भगवान बुद्ध की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गई हैं। गुहा संख्या पाँच को वर्गाकार न बनाकर आयताकार बनाया गया है। इस विशाल मण्डप में 24 स्तम्भ बने हुए हैं जिनमें से चतुर्थ स्तम्भ सम्मुख है तथा दोनों किनारों पर नौ-नौ स्तम्भों की पंक्तियाँ हैं। मण्डप के मध्य में लम्बाई में दो समानान्तर चबूतरे बने हैं। इस गुहा के मण्डप के पीछे गर्भगृह और अन्य विहारों की भाँति पृथक-पृथक कोठरियों का निर्माण किया गया है। एलोरा की बौद्ध गुहा संख्या 1 से 5 को कालक्रम की दृष्टि से प्रथम वर्ग की गुहा समूह में रखा जा सकता है। गुहा संख्या 6 से 12 को द्वितीय वर्ग की गुहा समूह में रखा जा सकता है जिसमें चैत्यगृह एवं विहार दोनों सम्मिलित किए गए हैं।

द्वितीय वर्ग की विहार गुहाओं में वास्तुकला का उत्तम विकास दिखाई पड़ता है। इनमें से दो विहार क्रमश: 11 एवं 12 सबसे विशाल हैं जो 50 फुट ऊँचे त्रिभूमिक हैं। विहार संख्या 12 त्रिभूमिक होने के कारण 'तीन थाल' के नाम से भी प्रसिद्ध रहा है। 108 x 60 फुट के आयत पर निर्मित इस विहार में लगभग 40 भिक्षुओं के निवास हेतु कक्ष बने हैं। प्रवेश द्वार के सामने बरामदा है तथा बरामदे के सामने आठ-आठ स्तम्भों पर आधारित तीन मुखमण्डप हैं जिनसे मण्डप में प्रवेश किया जाता है। मुखमण्डप पूर्णतः सादा है लेकिन अन्तः मण्डप प्रतिमाओं से भरा हुआ है। मण्डप के दोनों ओर कोठरियाँ बनाई गई हैं तथा अगल-बगल की कोठरियों में से ऊपर जाने के लिए सोपान बनाए गए हैं। द्वितीय मंजिल आयताकार है जिसमें आठ-आठ स्तम्भों की पाँच पंक्तियों से पाँच प्रदक्षिणापथ का निर्माण होता है। इसके पृष्ठभाग में आयताकार मण्डप बना है तथा मण्डप के दोनों किनारे पर तृतीय मंजिल पर जाने के लिए सोपान बने हुए हैं। तृतीय मंजिल में सामने एक विशाल बरामदा है, जो आठ स्तम्भों पर आधारित बना हुआ है जिसके पीछे एक (+) धन के आकार का मण्डप बना हुआ है। पाँच-पाँच स्तम्भों की दो पंक्तियों से यह मण्डप (+) धन का निर्माण करता है और इसके पार्श्व में 18 कक्ष निर्मित किए गए हैं।

राष्ट्रकूटवंशी नरेश प्रमुख रूप से शैवमतानुयायी थे और इन्हीं शासकों के संरक्षण में एलोरा में शैव धर्म से सम्बन्धित गुहा मन्दिरों का निर्माण हुआ था। यहाँ पर सत्रह शैव मन्दिरों क्रमश: 13 से 29 तक का निर्माण हुआ था। यहाँ के प्रमुख शैव गुहा मन्दिरों में रावण की खाई, दशावतार, देवाड़ा, कैलाश मन्दिर, रामेश्वर, नीलकण्ठ, सीता की कहानी आदि रहे हैं। शैव गुहा मन्दिरों को बनावट के आधार पर तथा कालक्रम की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा गया है। प्रथम भाग में सामने की ओर चट्टानों को काटकर बरामदे का रूप दिया गया है तथा उसके मध्य में प्रस्तरों को काटकर चार स्तम्भों पर एक मण्डप का निर्माण किया गया है जिसकी बाह्य भित्तियों पर देवताओं की प्रतिमाओं को तराशा गया है। दशावतार गुहा मन्दिर का निर्माण आठवीं शती में दन्तिदुर्ग के शासनकाल में हुआ था। इसी गुहा में इस शासक का अभिलेख (650-665) भी उत्कीर्ण है। यह गुहा दो मंजिला है तथा इसके द्वार पर नन्दिमण्डप बना है। इस गुहा में भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा मूर्तियों के माध्यम से उत्कीर्ण की गयी है। इसी गुहा के वाम भित्ति पर शिवलीला एवं दाहिनी भित्ति पर विष्णु के विविध रूपों का अंकन किया गया है। गुहा के द्वार पर द्वारपालों की दो प्रतिमाएँ बनी हैं तथा एक स्थान पर विष्णु द्वारा नृसिंह रूप धारण करके हिरण्यकश्यप नामक दानव का वध करते हुए का दृश्यांकन किया गया है। यह दृश्य अत्यन्त मनोरम बन पड़ा है। रावण की खाई नामक गुहा का बरामदा चार स्तम्भों पर आधारित है तथा इसके पृष्ठभाग में बारह स्तम्भों पर आधारित मण्डप बनाया गया है। यहाँ के प्रदक्षिणापथ की उत्तरी एवं दक्षिणी भित्तियों पर विभिन्न पौराणिक आख्यानों एवं देवी-देवताओं की प्रतिमाओं का अंकन किया गया है। यहाँ पर नृत्यरत शिव तथा कैलाश पर्वत को ऊपर उठाये हुए महाप्रतापी लंकेश का सुन्दर अंकन किया गया है। शेष गुहा मन्दिरों के निर्माण का समय कैलाश मन्दिर के बाद का है जो कृष्ण प्रथम 766-772 ई० के शासनकाल में निर्मित हुआ था। द्वितीय भाग के एलोरा के गुहा मन्दिर प्रथम भाग के ही समान हैं लेकिन इसमें प्रमुख अन्तर यह है कि गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणापथ इस तरह से बनाया गया है कि वह भी मण्डप का अंग ही जान पड़ता है। रामेश्वर गुहा को इसी भाग में रख सकते हैं। इस गुहा के सम्मुख प्रांगण में एक ऊँचे चबूतरे पर नन्दीपीठ बना है और इस गुहा के द्वार पर द्वारपालों की प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं। इस गुहा के स्तम्भ विशाल एवं अत्यन्त सुन्दर हैं तथा इन पर गणों की प्रतिमाएँ उकेरी गयी हैं।

द्वितीय भाग के गुहा मन्दिरों में प्रायः तीन तरफ से आँगन प्राप्त हुआ है और प्रवेश हेतु तीनों तरफ से तीन प्रवेश द्वार भी मिलते हैं। इसमें मुख्य द्वार गर्भगृह के सामने तथा दो पार्श्व में हैं जो बरामदे में निकलते हैं। इसका उत्कृष्ट उदाहरण आठवीं शती के अन्त में निर्मित गुहा 'सीता की नहानी' है। इस गुहा में तीन ओर बरामदा है तथा मुख्य बरामदे में दोनों तरफ दो देव प्रकोष्ठ बनाये गये हैं। मण्डप के दोनों ओर सात-सात स्तम्भों की पंक्तियाँ बनायी गयी हैं। ये स्तम्भ गोलाकार हैं तथा इनके सिरे गुम्बद के आकार में निर्मित किए गए हैं। प्रदक्षिणापथ में शिव, पार्वती, भैरव आदि की प्रतिमाएँ बड़ी मनोहारी हैं, साथ ही साथ शिव ताण्डव का दृश्यांकन भी बहुत सुन्दर ढंग से किया गया है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- कला अध्ययन के स्रोतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला की खोज का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
  3. प्रश्न- भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रकला के विषयों तथा तकनीक का वर्णन कीजिए।
  4. प्रश्न- भारतीय चित्रकला के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं तथा वे किस प्रकार के हैं?
  5. प्रश्न- भीमबेटका क्या है? इसके भीतर किस प्रकार के चित्र देखने को मिलते हैं?
  6. प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल किसे कहते हैं? इसे कितनी श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं?
  7. प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल का वातावरण कैसा था?
  8. प्रश्न- सिन्धु घाटी के विषय में आप क्या जानते हैं? सिन्धु कला पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- सिन्धु घाटी में चित्रांकन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  10. प्रश्न- मोहनजोदड़ो - हड़प्पा की चित्रकला को संक्षेप में समझाइए।
  11. प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की कला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  12. प्रश्न- जोगीमारा की गुफा के चित्रों की विषयवस्तु तथा शैली का विवेचन कीजिए।
  13. प्रश्न- कार्ला गुफा के विषय में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।.
  14. प्रश्न- भाजा गुफाओं पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- नासिक गुफाओं का परिचय दीजिए।
  16. प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं की खोज का संक्षिप्त इतिहास बताइए।
  17. प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं के चित्रों के विषय एवं शैली का परिचय देते हुए नवीं और दसवीं गुफा के चित्रों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- अजन्ता की गुहा सोलह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  19. प्रश्न- अजन्ता की गुहा सत्रह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  20. प्रश्न- अजन्ता गुहा के भित्ति चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
  21. प्रश्न- बाघ गुफाओं के प्रमुख चित्रों का परिचय दीजिए।
  22. प्रश्न- अजन्ता के भित्तिचित्रों के रंगों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अजन्ता में अंकित शिवि जातक पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  24. प्रश्न- सिंघल अवदान के चित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  25. प्रश्न- अजन्ता के चित्रण-विधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- अजन्ता की गुफा सं० 10 में अंकित षडूदन्त जातक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- सित्तन्नवासल गुफाचित्रों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  28. प्रश्न- बादामी की गुफाओं की चित्रण शैली की समीक्षा कीजिए।
  29. प्रश्न- सिगिरिया की गुफा के विषय में बताइये। इसकी चित्रण विधि, शैली एवं विशेषताएँ क्या थीं?
  30. प्रश्न- एलीफेण्टा अथवा घारापुरी गुफाओं की मूर्तिकला पर टिप्पणी लिखिए।
  31. प्रश्न- एलोरा की गुहा का विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध एवं काल निर्धारण की विवेचना कीजिए।
  32. प्रश्न- एलोरा के कैलाश मन्दिर पर टिप्पणी लिखिए।
  33. प्रश्न- एलोरा के भित्ति चित्रों का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- एलोरा के जैन गुहा मन्दिर के भित्ति चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
  35. प्रश्न- मौर्य काल का परिचय दीजिए।
  36. प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
  37. प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
  38. प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  39. प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
  41. प्रश्न- “गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  42. प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
  43. प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
  44. प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।

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