बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र
प्रश्न- बादामी की गुफाओं की चित्रण शैली की समीक्षा कीजिए।
अथवा
अजन्ता युग की चित्रकला की विवेचना कीजिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. बादामी की गुफाएँ कहाँ स्थित हैं?
2. इस गुफा में किसके शासनकाल का लेख प्राप्त है तथा उसमें किसका वर्णन है?
3. बादामी के चित्रों की खोज का श्रेय किसको प्राप्त है?
4. बादामी की गुफा के प्रथम दृश्य का संक्षिप्त वर्णन करिए।
5. बादामी की गुफा के द्वितीय दृश्य में किसका उल्लेख मिलता है?
6. बादामी के चित्रों की विस्तार से व्याख्या कीजिए।
उत्तर -
बादामी की गुफाएँ
वात्यापपुरम् नामक स्थान का आधुनिक नाम बादामी है। बादामी की गुफाएँ बीजापुर जिले के अन्तर्गत आईहोल' के निकट महाराष्ट्र प्रान्त में स्थित हैं। वात्यपिपुरम् पर्वतों के बीच सुरक्षित रूप से बसा हुआ था और अपने तालाबों, मंदिरों तथा झीलों के कारण किसी समय एक सुन्दर नगर रहा होगा। परन्तु आज यह सभी काल के आघातों से नष्ट हो चुके हैं। बादामी के मध्य में एक पत्थर की शिला पर अभिलेख उत्कीर्ण है जो पल्लव राजा नरसिंह वर्मन का है। इस लेख के अनुसार इस पल्लव-वंशीय राजा नरसिंह वर्मन ने महान चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय की राजधानी बादामी को ध्वस्त कर दिया था। बादामी के चार गुफा मंदिरों में शिल्प तथा चित्रकला के उत्तम उदाहरण सुरक्षित हैं।
दक्षिण में वाकाटक वंश के पश्चात् चालुक्य वंश का उदय हुआ था। चालुक्य वंश में पुलकेशिन का पुत्र कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेशिन द्वितीय प्रतापी राजा हुए। मंगलेश राजा कीर्तिवर्मन का छोटा भाई था और पुलकेशिन द्वितीय के पश्चात् चालुक्य साम्राज्य का शासक बना। वह भवन तथा कला प्रेमी शासक था। उसके राज्यकाल में बादामी की चौथी गुफा बनकर पूर्ण हुई। बादामी की चौथी गुफा (मुख्य-मंडप) शिल्प - सज्जा, चित्रकारी तथा वास्तु के दृष्टिकोण से श्रेष्ठ हैं। इस गुफा में मंगलेश के शासनकाल के बारहवें वर्ष का एक लेख प्राप्त है, जिसका समय शाका 500 है। इस अभिलेख में बादामी की इस गुफा के निर्माण के सम्बन्ध में पर्याप्त सूचना दी गई है। इस लेख के अनुसार- विष्णु की प्रतिमा इस मुख्य मंडप (चौथी गुफा) में स्थापित की गई और मंदिर में पूजा पाठ के लिए अनुदान स्वरूप 'लन्जीसवाड़ा' नामक ग्राम की जागीर इस मंदिर के प्रबन्धन के लिए बाँधी गई थी। इस लेख के अनुसार यह गुफा मंगलेश ने बनवाई थी। बराह पैनल के समीप उत्कीर्ण इस लेख में इस प्रकार का संकेत है कि 'दर्शकों को मंगलेश की कला का रसास्वादन करने के लिए गुफा की छत, दीवारों तथा मूर्तियों की ओर देखना चाहिए।
अजन्ता में उत्कीर्ण लेखों से स्पष्ट है कि अजन्ता के चित्र वाकाटक राजाओं ने बनवाये। इसी प्रकार बादामी के अलंकरण सम्बन्धी अभिलेखों से स्पष्ट है कि- 'मंगलेश के दरबारी चित्रकारों ने अपने से पूर्व के वाकाटक कलाकारों की शैली को अपनाया।'
बादामी के चित्रों की खोज का श्रेय स्टेला क्रैमरिश को है। पहले बर्गीज तथा बनर्जी ने इस गुफा के बाहरी भाग में चित्रों के धुंधले चिह्न पाये थे। बादामी गुफा के चित्र ब्राह्मण मंदिरों के सबसे पहले प्राप्त चित्र उदाहरण माने जा सकते हैं। बादामी की इस गुफा में जो भव्य शिल्प तथा चित्रकारी के नमूने प्राप्त हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि मंगलेश ने चित्रकारों को आश्रय दिया। सर्वप्रथम स्टेला क्रैमरिश ने इन चित्रों का अध्ययन किया और उन्होंने चित्रों के विषय को शिवविवाह से सम्बन्धित दृश्य बताया। यह चित्र बहुत खराब अवस्था में है। श्री कार्ल खण्डालावाला ने 1938 ई० में प्रकाशित अपनी पुस्तक 'इंडियन स्कल्पचर एण्ड पेंटिंग' (बम्बई) में बादामी का एक रंगीन चित्र प्रकाशित किया।
बादामी के भित्तिचित्रों की प्रतिकृतियाँ ललित कला अकादमी के निमंत्रण पर भारत के प्रसिद्ध चित्रकार जे० एन० अहिवासी तथा उनके सहायकों ने तैयार की। यह कार्य श्री कार्ल खण्डालावाला तथा श्री के० के० हैब्बर की देख-रेख में किया गया। यह प्रतिकृतियाँ राष्ट्रीय संग्रहालय - नई दिल्ली ने ललित कला अकादमी से प्रदर्शन हेतु मँगवायीं और यहाँ वह जनता के लिए प्रदर्शित की गईं।
बादामी के मुख्य-मंडप (चौथी गुफा) की छत पर पैनलों में चार दृश्य बनाए गए हैं। इनमें से प्रथम दो 5x 5 आकार के हैं परन्तु दूसरे दो पैनल 1, 5 - 3 / 4x 1, 10 आकार के हैं।
प्रथम दृश्य - यह दृश्य शिव विवाह पर आधारित है। इस चित्र में एक विशाल महल के अन्तर्गत इन्द्र की सभा वैजयन्ता या देवताओं की सभी सुधर्मा का अंकन है। इस चित्र में इन्द्र की मुख्य आकृति नीलिमायुक्त हरे वर्ण की है और वह अपना एक पैर आसन पर रखे हैं तथा दूसरा पैर पदपीठा पर रखे आसीन हैं। इस आकृति का सिर नष्ट हो गया है। इसके दाहिने हाथ की उंगलियाँ कत्तकामुख मुद्रा में और बाएँ हाथ की उंगलियाँ शिखरहस्त मुद्रा में बनाई गई हैं। इस आकृति की गर्दन में कम्बुकन्ठा तथा कंधे पर मोतियों की लड़ियों से बना यज्ञोपवीत सुशोभित होता दर्शाया गया है। इस आकृति के बाएँ कान का एक पत्राकार कुण्डल शेष रह गया है। इस आसनासीन आकृति के नीचे आकृतियाँ बैठी हैं। इन्द्र के पीछे पाँच चँवरधारणियों के दल में केवल एक जटाधारी पुरुष आकृति है, शेष सब स्त्रियाँ हैं। इस दल के ऊपर स्तम्भों पर आधारित दीर्घा में देवतागण राजसी ढंग से बैठे हैं। इस मुख्य आकृति से बायीं ओर चित्र में नर्तक-मंडली अंकित की गई है। इनमें दो नृत्य करती हुई आकृतियाँ बड़ी गतिपूर्ण मुद्रा में अंकित की गई हैं। इनमें से पुरुष नर्तक का मुख दर्शकों की ओर है। यह नर्तक चतुरा मुद्रा में नृत्य कर रहा है और उसका बायाँ हाथ दण्डहस्त मुद्रा में है और दाहिना हाथ कत्तकामुख मुद्रा में उठा चित्रित किया गया है। स्त्री नृतकी, जो नर्तक सम्मुख है, का दाहिना हाथ दण्डहस्त मुद्रा और बायाँ हाथ कत्तकामुख हस्त मुद्रा में चित्रित है। पुरुष नर्तक के बाल जटाजूट आकार के हैं, उसके कानों में पत्र- कुण्डल चित्रित हैं और उसको प्रचलित आभूषण तथा वस्त्र, माला, अनन्त, कड़े तथा घुटनों तक धोती (आन्ध्रा - धोती) पहने दर्शाया गया है। स्त्री नर्तकी का वर्ण गहरा नीलिमायुक्त दर्शाया गया है। उसके बाल एक भव्य पगड़ीनुमा जूड़े में बँधे हैं, उसके कानों में पत्रकुंडल, भुजाओं पर अनन्त सुशोभित हैं। इन नर्तकों के समीप वाद्य मंडली अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र बजा रही है। इस वाद्य मंडली में सब स्त्रियाँ हैं। इनमें से दो बाँसुरीवादक हैं, एक ढोलक तथा एक अंक्य-मृदंग बजाती आकृति है और एक ताल (मंजीरा) बजाती स्त्री की आकृति चित्रित की गई है। इस चित्र में अनुमानतः स्त्री नर्तकी उर्वशी अप्सरा है जिसके सम्मुख काली पुरुष आकृति स्वयं ताँडू की आकृति है जो इन्द्र के सम्मुख अप्सरा के नृत्य कौशल का प्रदर्शन कर रहे हैं। कुछ दर्शक इस रंगारंग कार्यक्रम को ऊपर झरोखों में से देख रहे हैं।
दूसरा दृश्य - दूसरा चित्र एक राजमहल के कक्ष का दृश्य है। इस दृश्य में राजसी युगल का अंकन है। राजसी पुरुष महाराजलीला मुद्रा में अपना दाहिना पैर पदपीठा पर तथा बायाँ पैर आसन पर रखे, आसन पर विराजमान अंकित किया गया है। उसका बायाँ हाथ घुटने पर है और दाहिना हाथ त्रिपताका मुद्रा में है। उसके सिर पर ऊँचा मुकुट है तथा वह सामान्य आभूषण पहने हैं। यज्ञोपवीत उसके दाहिने कंधे से लहराकर लटक रहा है। उसके दाहिनी ओर मुकुट धारण किए अनेक युवराज धरती पर बैठे इस भव्य राजसी पुरुष के आदेश की प्रतीक्षा करते चित्रित किए गए हैं, परन्तु अधिकांश आकृतियाँ अस्पष्ट हैं और नष्ट हो चुकी हैं। इन आकृतियों के छोर पर एक स्त्री प्रतिहारी की आकृति है जो नीचे शरीर में टखनों तक अपारदीना जैसा वस्त्र पहने है और हाथ में दण्ड धारण किए है। इस राजसी आकृति के बायीं ओर प्रसाधिकाएँ या परिचारिकाएँ रानी की सेवा में खड़ी हैं, रानी के पास ही राजकुमार भी चित्रित है। यह रानी एक नीचे आयताकार पीठ वाले आसन पर बैठी चित्रांकित की गई है, इस आसन में तकिये लगे हैं। इस रानी की सेवा में राजा के समान चँवर धारणियाँ खड़ी हैं जिनके केश खुले (धामिला) या जटा रूप में बनाए गए हैं। इनमें से एक के हाथ में दण्ड है। रानी की मुद्रा मनोरम है। उसका दाहिना पैर पदपीठा पर है और बायाँ पैर मुड़ा हुआ है और आसन पर रखा चित्रित है। उसका दाहिना हाथ आसन पर है, परन्तु बायाँ हाथ सोचिमुद्रा में दर्शाया गया है। उसके कानों में पत्र- कुण्डल लटक रहे हैं। उसकी भुजाओं में अनन्त तथा भुजबंद हैं और वह ग्रीवा में मालाएँ पहने है। उसके बाल धमीला प्रकार के हैं और लहराते चिकुर उसके माथे पर बनाए गए हैं। वह कमर से नीचे जांघों पर धारीदार अर्धरूका पहने है। इस चित्र में लाल रंग का स्वस्थ राजसी पुरुष पल्लव नरेश कीर्तिवर्मन है, जिसको रानी के साथ चित्रित किया गया है। रानी का वर्ण गौर है। इन दोनों के नीचे तीन सेनानायक बैठे हैं जिनमें से एक गौर, एक ताम्र तथा एक हरे वर्ण का है। ऐसा विचार किया जाता है कि मंगलेश ने अपने भाई राजा कीर्तिवर्मन, जिसको वह बहुत प्रेम करता था, की स्मृति में वह चित्र बनवाया। सम्भवतः यह राजा कीर्तिवर्मन के परिवार का चित्र है।
तीसरा तथा चौथा दृश्य - बादामी के इन दो खंडित दृश्यों में युगल विद्याधर बादलों में उड़ते हुए बनाए गए हैं। तीसरे दृश्य में विद्याधर तथा विद्याधरी अपने-अपने हाथ एक-दूसरे के गले में डाले हैं और उनके सिर पर मुकुट हैं। विद्याधरी के बाल धमीला ढंग में बँधे हैं और उसका रंग गहरा है परन्तु विद्याधर का वर्ण गौर दर्शाया गया है।
दूसरे युगल में आकृतियाँ अधिक सुन्दर रूप में अंकित हैं। इस चित्र में विद्याधर कानों में कुण्डल पहने हैं परन्तु विद्याधरी के कान में कुण्डल नहीं हैं। विद्याधर का केश विन्यास जटा-ढंग का है और कमल पुष्प से युक्त है। विद्याधरी वीणा बजा रही है। इस दृश्य में पुरुष आकृति गहरे नीलिमायुक्त हरे वर्ण की तथा स्त्री आकृति गौर वर्ण की चित्रित की गई है।
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- प्रश्न- कला अध्ययन के स्रोतों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रागैतिहासिक भारतीय चित्रकला की खोज का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
- प्रश्न- भारतीय प्रागैतिहासिक चित्रकला के विषयों तथा तकनीक का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय चित्रकला के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए हैं तथा वे किस प्रकार के हैं?
- प्रश्न- भीमबेटका क्या है? इसके भीतर किस प्रकार के चित्र देखने को मिलते हैं?
- प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल किसे कहते हैं? इसे कितनी श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं?
- प्रश्न- प्रागैतिहासिक काल का वातावरण कैसा था?
- प्रश्न- सिन्धु घाटी के विषय में आप क्या जानते हैं? सिन्धु कला पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी में चित्रांकन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मोहनजोदड़ो - हड़प्पा की चित्रकला को संक्षेप में समझाइए।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी सभ्यता की कला पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जोगीमारा की गुफा के चित्रों की विषयवस्तु तथा शैली का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कार्ला गुफा के विषय में आप क्या जानते हैं? वर्णन कीजिए।.
- प्रश्न- भाजा गुफाओं पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नासिक गुफाओं का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं की खोज का संक्षिप्त इतिहास बताइए।
- प्रश्न- अजन्ता की गुफाओं के चित्रों के विषय एवं शैली का परिचय देते हुए नवीं और दसवीं गुफा के चित्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता की गुहा सोलह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता की गुहा सत्रह के चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता गुहा के भित्ति चित्रों की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- बाघ गुफाओं के प्रमुख चित्रों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता के भित्तिचित्रों के रंगों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अजन्ता में अंकित शिवि जातक पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिंघल अवदान के चित्र का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता के चित्रण-विधान पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अजन्ता की गुफा सं० 10 में अंकित षडूदन्त जातक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सित्तन्नवासल गुफाचित्रों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बादामी की गुफाओं की चित्रण शैली की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सिगिरिया की गुफा के विषय में बताइये। इसकी चित्रण विधि, शैली एवं विशेषताएँ क्या थीं?
- प्रश्न- एलीफेण्टा अथवा घारापुरी गुफाओं की मूर्तिकला पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- एलोरा की गुहा का विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध एवं काल निर्धारण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- एलोरा के कैलाश मन्दिर पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- एलोरा के भित्ति चित्रों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- एलोरा के जैन गुहा मन्दिर के भित्ति चित्रों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौर्य काल का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
- प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
- प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- “गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
- प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
- प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।