बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
उत्तर -
शिक्षा के विभिन्न प्रकार
(Various Types of Education)
शिक्षा के अनेक प्रकार के रूप हैं जो प्रमुख रूप से इस प्रकार हैं-
(1) औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा (Formal and Informal Education) - औपचारिक शिक्षा से अर्थ है कि इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थियों को विद्यालय में शिक्षकों के द्वारा एक निश्चित योजना व पाठ्यक्रम के अन्तर्गत दी जाती है। इस प्रकार के शिक्षण की योजना पहले से ही बना दी जाती है तथा इसका उद्देश्य भी निश्चित कर दिया जाता है। इस प्रकार की शिक्षा को विद्यार्थी भी जानते बूझते प्राप्त करता है। इस प्रकार की शिक्षा में विद्यार्थी को निश्चित समय पर, नियमित रूप से ज्ञान प्रदान किया जाता है, इस प्रकार की शिक्षा का प्रमुख साधन व केन्द्र विद्यालय होते हैं परन्तु विद्यालय के साथ-साथ, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, अजायबघर पुस्तकें आदि अन्य साधन होते हैं, जिनसे विद्यार्थी ज्ञानार्जन करते हैं।
अनौपचारिक शिक्षा को अनियमित शिक्षा भी कहते हैं। इस प्रकार की शिक्षा जन्म भर चलती रहती है। इस प्रकार की शिक्षा में विद्यालय या शिक्षक की औपचारिकता नगण्य होती है। इस प्रकार की शिक्षा में बालक को हंसते, खाते-पीते, काम करते, उठते-बैठते, आकस्मिक व अनायास ज्ञान प्राप्त होता है। अपने माँ, बाप, मित्र, भाई-बहन, पड़ोसी समाज के अन्य व्यक्ति जिनसे भी बालक का परिचय होता है वह सबसे कोई-न-कोई ज्ञान की बात ग्रहण करता रहता है। अनौपचारिक शिक्षा में कोई निश्चित योजना, निश्चित सीमा, निश्चित समय नहीं होता है। बच्चे का परिवार, मित्र-समूह, पड़ोसी, समाचार पत्र-पत्रिकायें, टी. वी., रेडियो व जनसंचार के अन्य साधन, दल गुट, खेल आदि उसकी अनौपचारिक शिक्षा के साधन हैं।
(2) प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष शिक्षा (Direct and Indirect Education) इस प्रकार की शिक्षा विद्यार्थियों व शिक्षकों के प्रत्यक्ष सम्पर्क के फलस्वरूप होती है। शिक्षक अपने ज्ञान, व्यवहार, चरित्र, आदर्शों व उद्देश्यों से छात्र के मन को तथा उसके व्यक्तित्त्व को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार की शिक्षा में औपचारिक साधनों का प्रयोग किया जाता है।
अप्रत्यक्ष शिक्षा को अवैक्तिक शिक्षा भी कहा जाता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त की जाती है। इस * प्रकार की शिक्षा स्वतन्त्र वातावरण में अप्रत्यक्ष साधनों के द्वारा प्राप्त की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा में छात्र पर शिक्षक किसी व्यक्तित्त्व का प्रभाव नहीं पड़ता है।
(3) वैयक्तिक व सामूहिक शिक्षा (Individual and Group Education) - वैयक्तिक शिक्षा से आशय है कि कोई शिक्षक अपने विद्यार्थी की रुचि, उसकी मनोवृ त्त, उसकी योग्यता ★ व उसकी विशिष्टता को ध्यान में रखते हुए शिक्षित करता है। इस प्रकार की शिक्षण प्रक्रिया में वैयक्तिक शिक्षण प्रक्रिया तथा शिक्षण विधियों का ही प्रयोग किया जाता है।
सामूहिक शिक्षा से तात्पर्य है कि बालकों के एक समूह को एक साथ शिक्षा प्रदान करना। इस प्रकार की शिक्षा कक्षा में विद्यार्थियों के एक समूह को दी जाती है। इस प्रकार की शिक्षण पद्धति में छात्रों की वैयक्तिक योग्यताओं को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आजकल प्रत्येक देश में प्रत्येक विद्यालय में शिक्षण का यही प्रकार चल रहा है।
(4) सामान्य व विशिष्ट शिक्षा (Normal and Special Education) - सामान्य शिक्षा को आमतौर पर उदार शिक्षा भी कहा जाता है। यह शिक्षा बालकों को सामान्य जीवन जीने के लिए तैयार करती है तथा उनकी सामान्य बुद्धि व सामान्य ज्ञान का विकास करती है, इससे बालकों की सामान्य बुद्धि प्रशिक्षित होती है।
विशिष्ट शिक्षा का अर्थ है किसी विशेष उद्देश्य के लिए प्राप्त की जाने वाली शिक्षा। इस प्रकार की शिक्षा का एक विशिष्ट लक्ष्य होता है तथा यह बालकों को किसी व्यवसाय विशेष में प्रवीणता हासिल करने के लिए प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा को ग्रहण करने के बाद बालक जीवन के एक विशेष क्षेत्र में कार्य करने में सक्षम व निपुण हो जाता है।
(5) सकारात्मक व नकारात्मक शिक्षा (Positive and Negative Education) - सकारात्मक शिक्षा से तात्पर्य है कि बच्चों को विज्ञान से सम्बन्धित बातें जैसे पृथ्वी गोल है, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है, चन्द्रमा पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है आदि तथ्य तथा बह्माणीय सत्य है, जैसे सदा सत्य बोलो, गरीबों की सहायता करो, पाप से घृणा करो आदि को बताया जाता है। इस शिक्षण में बालकों को किसी प्रकार बिना अनुभव के या तर्क से अथवा पूर्व निश्चित तथ्यों एवं मूल्यों को सिखाना ही सकारात्मक शिक्षा कहलाती है।
नकारात्मक शिक्षा में बालकों को स्वयं अनुभव करने के आधार पर तथ्यों की खोज करने व आदर्शों का निर्माण करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं।
शिक्षा के अर्थ को पूर्ण रूप से समझने के लिए निम्न बातों को समझना आवश्यक है-
1. शिक्षा से मानव का विकास होता है - शिक्षा से मानव का विकास होता है बिना शिक्षा के मानव किसी जानवर के समान ही होता है। आज जिस मनुष्य को हम जानते हैं जिससे हम मिलते हैं, जो हमारे चारों ओर विचरता है वह सभ्य मनुष्य शिक्षा के द्वारा ही सभ्य बना है।
2. शिक्षा प्रशिक्षण का कार्य है - जन्म से मानव पशु के समान होता है अतः उसे प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। शिक्षा के कारण ही वह अपने भावों को, अभिलाषाओं को तथा अपने व्यवहारों को नियन्त्रित करना सीखता है।
3. मार्ग-दर्शक का कार्य - शिक्षा मनुष्य का मार्ग-दर्शक है। इसके द्वारा ही मनुष्य का तथा नयी पीढ़ी का मार्ग-दर्शन किया जाता है। इसीलिए बच्चों की शिक्षा देते समय इस बात का ध्यान सर्वाधिक रखा जाता है कि बच्चों की अविकसित भावनाएँ, योग्यताएँ, क्षमताएँ तथा उनकी रूचि के क्षेत्र का अधिकतम विकास हो।
4. शिक्षा अभिवृद्धि - शिक्षा मनुष्य की मानसिक अभिवृद्धि में भी सहायक होती है। अभिवृद्धि के दो मुख्य कारक होते हैं- प्रशिक्षण तथा वातावरण। अपने प्रशिक्षण व वातावरण के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति क्रिया व प्रतिक्रिया करता है तथा इसी प्रक्रिया में उसके व्यक्तित्त्व में परिवर्तन होते हैं। एक सही व सन्तुलित अभिवृद्धि तभी सम्भव है जब शरीर व व्यक्तित्त्व के सभी पक्षों-शारीरिक, मानसिक, नैतिक, आध्यात्मिक तथा सामाजिक पक्ष का सन्तुलित तथा समान विकास हो। इस क्रियाविधि में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
शिक्षा व साक्षरता
(Education and Literacy)
साक्षरता शब्द साक्षर से बना है जिसका अर्थ है अक्षर से परिचित होना। साक्षरता में 3R (Reading, Writing and Arithmetic) अर्थात् लिखना, पढ़ना व गिनना समाहित होते हैं। यह उस- मनोदशा अथवा दृष्टिकोण का परिचायक है जो हमारे प्रत्यक्षीकरण की दिशा प्रदान करते हैं। साक्षरता के बारे में संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपने संगठन यूनेस्को की एक रिपोर्ट में कहा है कि साक्षरता स्त्रियों व पुरुष को सहायता पहुँचाती है जिससे वे अपना सम्पन्न व पूर्ण जीवन बदलते हुए वातावरण से समायोजन प्राप्त करके जी सकें। सही अर्थों में साक्षरता शिक्षा का पर्याय न होकर औपचारिक एवं नियोजित शिक्षा प्राप्त करने की प्रथम सीढ़ी है। यहाँ पर यह तथ्य स्पष्ट कर देना आवश्यक है कि जो व्यक्ति साक्षर नहीं हैं उससे हम यह अर्थ कदापि न लगा लें कि वह व्यक्ति असभ्य अथवा असंस्कृत होगा। वह प्रत्येक व्यक्ति जो समाज को स्वीकार होने वाले आचरण युक्त व्यवहार करता है वह व्यक्ति शिक्षित माना जाता है। साक्षरता से सीखने की क्षमता की वृद्धि होती है तथा क्षमता स्वयं में एक मानसिक प्रक्रिया है। दुनिया के तथा इस समाज के ज्ञान-विज्ञान को प्राप्त करने के लिए साक्षर होना जरुरी है। इस सम्बन्ध में जी. एच. वैण्टॉक ने शिक्षा के महत्त्व को इन शब्दों में स्वीकार किया है- "शिक्षा, सभी प्रकार के अनुभवों का कुल योग है, जिसे मनुष्य अपने जीवन काल में प्राप्त करता है और जिसके द्वारा वह जो कुछ है, उसका निर्माण करता है। "
शिक्षा व अनुदेशन
(Education and Instruction)
शिक्षा तथा अनुदेशन एक विचार के दो क्रम हैं। शिक्षा एक व्यापक तथा विस्तृत अवधारणा है जबकि शिक्षा की तुलना में अनुदेशन एक छोटी व संकुचित अवधारणा है। शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है। मनुष्य प्रत्येक घटना, परिस्थिति, प्रत्येक अनुभव से कोई-न-कोई शिक्षा प्राप्त करता है, इस प्रकार यह प्रक्रिया मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक चलती रहती है। इसके विपरीत अनुदेशन की समय रेखा केवल कक्षा है। अनुदेशन केवल तभी होता है जब शिक्षक कक्षा में छात्रों को पढ़ा रहा होता है जब कक्षा की समय सीमा समाप्त हो जाती है तो अनुदेशन भी समाप्त हो जाता है। इस प्रकार यदि हम देखें तो शिक्षा का क्षेत्र व्यापक है तथा अनुदेशन शिक्षा का ही एक अंग है। एक महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि शिक्षा के विस्तृत परिप्रेक्ष्य में केन्द्र में बच्चा रहता है क्योंकि शिक्षा का प्रारम्भ, उद्भव उसी के लिए है बच्चे के कारण ही शिक्षा विस्तृत है शिक्षा ग्रहण करने वाला बालक है। परन्तु अनुदेशन में शिक्षक महत्त्वपूर्ण है वह केन्द्र में रहता है। शिक्षा को औपचारिक व अनौपचारिक किसी भी प्रकार से ग्रहण कर सकते हैं। यह शिक्षा ग्रहण करने वाले पर निर्भर है कि वह किस माध्यम से शिक्षा प्रभावी ढंग से लेता है परन्तु अनुदेशन सदैव औपचारिक ही होता है। यह औपचारिकताओं के जाल में उलझा होता है तथा कुछ निर्धारित मापदण्डों पर ही उनका पालन किया जाता है। इस प्रक्रिया में एक कृत्रिमता व सीमितता का अनुभव होता है। अनुदेशन किसी विषय को ग्रहण करने व ज्ञान प्रदान करने तक तो सीमित है। परन्तु शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व का विकास होता है।
|
- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।