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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2653
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।

उत्तर -

भारत में साधारणत: वेद शब्द ही वेदान्त समझा जाता है। वेदान्त का सामान्य अर्थ है वेद का अन्त अर्थात् वेदों का अन्तिम भाग अथवा वेदों का सार। वस्तुतः वेद के तीन भाग माने जाते है।

1. वैदिकमन्त्र
2. ब्राह्मण
3. उपनिषद।

इस प्रकार उपनिषद वेद का अन्तिम चरण भाग और वैदिक युग का अन्तिम साहित्य माना जाता है। उपनिषदों को वेद का गूढ़ रहस्य माना जाता है। इसी कारण इन्हें वेदान्त कहा जाता है।

वेदान्त के तीन रूप है-

1. द्वैत
2. विशिष्टद्वैत
3. अद्वैत।

अनेक विद्वान अद्वैत समर्थक हैं। उनके अनुसार ये तीनों वेदान्त दर्शन के तीन चरण है और अन्तिम लक्ष्य अद्वैत की अनुभूति है।

1. मूल्य मीमांसा - वेदान्त के अनुसार सत् और जगत (Phenomenon) परस्पर भिन्न सत्ताए नहीं है। माया शून्य या असत् नहीं है। यह सत् भी नहीं है। क्योंकि इसी के कारण निरपेक्ष अपरिवर्तनशील सत् व्यक्ति जगत के रूप में प्रतिभाषित होता है। परमार्थिक दृष्टि से तो माया को असत् कहा जाना चाहिये। किन्तु इसे असत् भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि तब तो इसके कारण जगत का प्रतिभाषित होना भी सम्भव नहीं हो सकता।

अतः यह न तो सत् है और न असत् वेदान्त में इसे अनिर्वचनीय कहते हैं। यही जगत का यथार्थ कारण है।

 

2. तत्व मीमांसा - अद्वैत के अनुसार परम तत्व के विघटन से संसारिक नाम रूपों के प्रतिभाषित होने के कारण मनुष्य का परमार्थिक स्वरूप दिया जाता है। वेदान्तियों के अनुसार जीवात्मक ही दुःखों का कारण है। तथा इनके अनुसार पूर्णत्व ही जीवन का अभीष्ट है।

3. ज्ञान मीमांसा - वेदान्तियों के अनुसार व्यक्ति जब अपने आप का यथार्थ ज्ञान प्राप्त कर लेता है तो इसके लिए संसार का मानो लोप हो जाता है। संसार का फिर से प्रत्यक्ष तो होता है किन्तु अब वह दुःख मय नहीं रह जाता है। जो संसार पहले दुःखमय कारागार था अब वह संच्चिदानन्द हो जाता है। अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार सच्चिदानन्द को अवस्था को प्राप्त करना ही जीवन का अभीष्ट ज्ञान है।

वेदान्त दर्शन परम् निराशावाद को लेकर प्रारम्भ होता है और उसकी समाप्ति यथार्थ आशावाद है।

वेदान्त शिक्षा देता है निर्वाण लाभ यही अभी हो सकता है उसके लिए हमें मृत्यु की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं।

निर्णय का अर्थ आत्म साक्षात्कार कर लेनान - वेदान्त एक विशाल सागर है इसके वक्ष पर युद्धपोत और साधारण बेड़ा दोनों आस-पास रह सकते है। वेदान्त में यथार्थ योगी मूर्तिपूनक नास्तिक, इन सभी के लिए पास-पास रहने के स्थान है। इतना ही नहीं वेदान्त सागर में हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, पारसी सभी एक साथ एक है - सभी उस सर्व शक्तिमान परमात्मा की सन्तान है।

वेदान्त दर्शन के मौखिक अभिप्रेतार्थ - वेदान्त दर्शन की तत्वमीमांसा, ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा के शैक्षिक अभिप्रेतार्थ को निम्न प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. तत्व ज्ञान और शिक्षा - तत्व ज्ञान के अन्तर्गत सत्य को जाना जाता है। इसमें सत्ता और प्रकटनो पर विचार किया जाता है। यह देखने का प्रयास किया जाता है कि यथार्थ क्या है? इसका विषय सम्पूर्ण विश्व है। विश्व के व्याप्त सामान्य नियमों की खोज करना तत्व ज्ञान का विषय है।

हम जिस संसार में रह रहे हैं वह वास्तविक है या कल्याण मात्र? दर्शन इस प्रश्न का उत्तर खोजता भी है। हमारे लिए यह ज्ञान आवश्यक है। शिक्षा से हमारा उद्देश्य यथार्थ ज्ञान प्रदान करना है। जो असत् या मिथ्या है। उसे क्यों पढ़ाया जाय? जो व्यक्ति एक विशेष प्रकार की सत्ता को असत् मानते हैं इनके लिए उसकी शिक्षा निरर्थक है। जो ईश्वर को असत् मानते हैं। उन्हें ईश्वर के ज्ञान से क्या मतलब है? जो इस संसार के गोरख धन्धे को मिथ्या मानते है उनके लिए इसमें कुशलता प्राप्त करने का क्या प्रयोजन? जो व्यक्ति छल- छंद को व्यवहारिक कौशल मानते हैं छल छंद की शिक्षा तो उन्हीं के लिए आवश्यक है जो व्यक्ति आत्मा का केवल कल्पना मानते है उनके लिए आत्मा व अरे द्रष्टव्य, श्रोतव्यों, निदिध्यासित्वः " जैसे उपनिषद वाक्यों से तथा अपने को जानो' जैसे वाक्यों से क्या मतलब हैं।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि शिक्षा तत्व ज्ञान की उपेक्षा नहीं कर सकती है।

2. ज्ञान शास्त्र और शिक्षा - ज्ञानशास्त्र में ज्ञान से अभिप्राय उसके मौलिक रूप उसकी प्राप्ति की सम्भावना उसकी प्राप्ति के उपाय आदि पर विचार किया जाता है। ज्ञान में सत्य और असत्य का भेद क्या है, और यह भेद कैसे किया जाय? इस पर भी विचार होता है।

साधारण रूप में हम विश्वास करके चलते हैं। हम यह मानकर चलते है कि लेखक जो कुछ कह रहा है। ठीक कह रहा है। इतिहास और भूगोल पढ़ते समय हम यह मान लेते है कि जो कुछ हमें पढ़ाया जा रहा है ठीक ही पढ़ाया जा रहा है। जहाँ पर हमें कोई त्रुटि दिखाई देती है, वहाँ पर हम सन्देह करने लगते है। जब हम कहते है कि हमें अमुख तथ्य अमुक सम्बन्ध का ज्ञान है तो इसका तात्पर्य यह है कि हमारी जानकारी सन्देह से खाली है और उस ज्ञान को हम अपने व्यवहार का आधार बना सकते हैं। कभी-कभी यह विश्वास मिथ्या सिद्ध हो सकता है। इसे मिथ्या या त्रुटिपूर्ण ज्ञान कहते है।

ज्ञान को हम प्राप्त कर सकते हैं या नहीं प्रश्न के उत्तर में मतभेद है। यथार्थवादी इस प्रश्न का उत्तर 'हाँ' में देता है तो सन्देह 'न' में ज्ञान प्राप्त कैसे होता है। इस प्रश्न के उत्तर में कुछ व्यक्ति सभी ज्ञान को इन्द्रिय जन्य बताते हैं। अनुभववाद ने स्पष्ट कहा है कि हमारा सारा ज्ञान बाहर से प्राप्त होता है। और इन्द्रियां ही इस ज्ञान के साधन है। इसके विरुद्ध बुद्धिवाद ने सारे ज्ञान को मनन का परिणाम बताया है।

शिक्षाशास्त्र में ज्ञान शास्त्र का उपयोग है। हम किस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करें और कैसे करें। इसके निर्णय में ज्ञान शास्त्र हमारी सहायता करता है। जब हम पाठ्यक्रम का निर्माण करने चलते है तो हमारे समक्ष यह समस्या आ जाती है कि अब तक के अनुभवों में से हम क्या लें और क्या न ले। अनुभवों को किस क्रम में रखें? ज्ञानशास्त्र हमारी इस विषय में सहायता करता है।

3. नीतिशास्त्र और शिक्षा - नीतिशास्त्र में शुभ और अशुभ पर विचार होता है। अच्छा क्या है और बुरा क्या है इसका निर्णय नीतिशास्त्र करता है। हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिये। इसकी भी जानकारी नीति शास्त्र के अन्तर्गत प्राप्त होती है।

नीतिशास्त्र व्यक्ति के व्यवहार से सम्बन्धित है। मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं मानव विज्ञान की व्यवहार के ही शास्त्र है। किन्तु ये विज्ञान के व्यवहार के सम्बन्ध में केवल तथ्य एकत्र कर लेते है और उनका स्पष्टीकरण करते है। नीतिशास्त्र में व्यवहार का मूल्यांकन होता है। नीतिशास्त्र में इस पर विचार होता है कि अच्छा या बुरा क्या है? किसी भी कार्य को करने में मनुष्य कितना स्वतन्त्र है? इसमें साध्य और साधन पर भी विचार किया जाता है। अरस्तू की पुस्तक निकोनेकियन एथिक्स पश्चिमी नीति शास्त्र का अच्छा ग्रन्थ है। भारत में नीति शास्त्र पर बड़ी गम्भीरता से विचार हुआ है। श्रीमद्भागवत् गीता' में कार्य के शुभाशुभ गुणों पर विचार किया गया है। गीता भारत का हो नही संसार का नीतिशास्त्र का अनूठा ग्रन्थ है।

जब हम कहते हैं कि शिक्षा आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है तो इसका तात्पर्य शिक्षा हमारे व्यवहार, सोच, क्रिया-कलापों में निरन्तर सुधार करती रहती है। शिक्षा का हम पर प्रभाव रहता है। इसलिए शिक्षाशास्त्र को नीतिशास्त्र से बड़ी सहायता मिलती है।

इस प्रकार हम देखते है कि दर्शन की तीनों शाखाओं तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा से शिक्षाशास्त्र को सहायता मिलती है। हम शैक्षिक उद्देश्यों को निर्धारण करने में एवं विनयशीलता की स्थापना करने में नीतिशास्त्र से सहायता मिलती है। अनुशासन की समस्त मुख्यताः नैतिक समस्या है। अनुशासन हीन यूवक में अनुशासन के प्रति नैतिक भावना का उदयन नहीं हो सकता और यह सोच नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं शिक्षण विधि ने निश्चय ही हमें ज्ञानशास्त्र और नीतिशास्त्र दोनों में सहायता मिलती है। पाठ्यपुस्तकों के निर्माण के तत्व ज्ञान, ज्ञानशास्त्र, नीतिशास्त्र तीर्थ से सहायता ली जा सकती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
  4. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  5. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  7. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  8. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
  9. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  10. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  14. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  15. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  17. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
  19. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  21. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
  22. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  23. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  24. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  25. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  26. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  27. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  28. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
  31. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
  32. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  33. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  34. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  36. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  37. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
  40. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
  43. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
  44. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  45. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  46. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  47. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  48. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  52. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  53. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  54. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  57. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  58. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
  62. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  63. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
  64. प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
  66. प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
  71. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
  72. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
  76. प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
  77. प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
  80. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
  82. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
  84. प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
  85. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
  86. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  88. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  91. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
  93. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
  95. प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
  96. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  97. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  98. प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
  103. प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
  105. प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
  106. प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
  107. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
  108. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  109. प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
  116. प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
  118. प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
  121. प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
  123. प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
  124. प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
  125. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।

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