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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2653
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र

अध्याय - 1
शिक्षा एवं दर्शन
(Education and Philosophy)

प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।

अथवा
भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षाशास्त्रियों की परिभाषाओं के द्वारा शिक्षा का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षा के अर्थ एवं परिभाषा को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षा के शाब्दिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
गाँधी जी एवं स्वामी विवेकानन्द द्वारा प्रतिपादित शिक्षा की परिभाषा लिखिए।
अथवा
शिक्षा के संकुचित, व्यापक एवं वास्तविक अर्थ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिक्षा के विस्तृत अर्थ से आप क्या समझते हैं? संक्षेप में लिखिए।
अथवा
'शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।' इस कथन के सम्बन्ध में अपने विचार दीजिए।

उत्तर -

शिक्षा का शाब्दिक अर्थ
(Etymological Meaning of Education)

शिक्षा अपने आप में एक विस्तृत शब्द है जिसके माध्यम से कोई भी मनुष्य विशेषकर शिशु अपनी आंतरिक भावनाओं को प्रकट कर सकता है। शिक्षा का अंग्रेजी पर्यायवाची शब्द एजुकेशन Education) होता है। इस अंग्रेजी भाषा के शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के तीन शब्दों से हुई है, 'एडूकेटम' (Educatum) 'एडयूसियर' (Educere ) व 'एडूकेयर' (Educare)।

एडूकेटम शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों 'ए) तथा 'डूको '(Duco) के योग से हुई है। इसका अर्थ है आगे की ओर बढ़ना अथवा अन्दर से विकास होना। इस अर्थ को हम इस परिप्रेक्ष्य में ले सकते हैं कि जन्म के समय शिशु में जन्मजात प्रवृत्तियाँ होती हैं तथा कुछ समय पश्चात् जब वह अपने आसपास के वातावरण के सम्पर्क में आता है उस शिशु के अन्दर छिपी हुई शक्तियाँ विकसित होना प्रारम्भ कर देती हैं। प्रारम्भ में ये शक्तियाँ अल्प विकसित या सुषुप्तावस्था में होती हैं परन्तु उन्हें विकसित करने का कार्य या जाग्रत करने का कार्य शिक्षा के द्वारा होता है।

इसी प्रकार 'एडूसियर' व 'एडूकेयर' शब्दों का भी यही अर्थ है। 'एडूसियर' का अर्थ है निकालना तथा 'एडूकेयर' का अर्थ है आगे बढ़ना या विकास करना। इस प्रकार शिक्षा का शाब्दिक अर्थ मनुष्य की जन्मजात शक्तियों को विकसित करना व उन्हें आगे बढ़ाना है। शिक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के 'शिक्ष' धातु से हुई है, जिसका तात्पर्य है 'सीखना व सिखाना'। इस प्रकार शिक्षा के अन्तर्गत सीखने व सिखाने की प्रथा का भी प्रचलन है।

इस सम्बन्ध में प्रो. जी. एच. थॉमसन ने कहा है कि- "शिक्षा एक विशेष प्रकार का वातावरण है, जिसका प्रभाव बालक के चिंतन, दृष्टिकोण व व्यवहार करने की आदतों पर स्थाई रूप से परिवर्तन के लिए डाला जाता है।"

शिक्षा का संकुचित अर्थ

शिक्षा के संकुचित अर्थ से तात्पर्य है कि शिक्षा एक निश्चित स्थान, जैसे-स्कूल, कॉलेज अथवा विश्वविद्यालय में प्रदान की जाती है। इस प्रकार की शिक्षा निश्चित व्यक्तियों के द्वारा निश्चित व्यक्तियों को दी जाती है। इसका रूप निश्चित पाठ्यक्रम व एक निश्चित समय होता है। इस सम्पूर्ण शैक्षणिक कार्यवाही में शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक का स्थान मुख्य तथा शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों का स्थान गौण होता है। इस प्रकार की शिक्षा से विद्यार्थियों का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता है। इस प्रकार शिक्षा-पद्धति में विद्या प्रदान करने वाले शिक्षक से यह उम्मीद की जाती है कि वह विद्या ग्रहण करने वाले विद्यार्थी के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व को प्रभावित करें तथा उनका सर्वांगीण विकास हो। परन्तु आज के परिप्रेक्ष्य में यह कम ही देखने को प्राप्त होता है कि केवल विद्यालय की शिक्षा प्राप्त करके किसी शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र के सम्पूर्ण व्यक्तित्त्व का विकास हो।

इस क्रम में-

प्रो. त्रेवर ने कहा है- "शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसमें तथा जिसके द्वारा बालक के ज्ञान, चरित्र व व्यवहार को एक विशेष सांचे में ढाला जाता है। "

जी. एच. थाम्सन - शिक्षा एक विशेष प्रकार का वातावरण है जिसका प्रभाव बालक के चिन्तन दृष्टिकोण तथा व्यवहार करने की आदतों पर स्थाई रूप से परिवर्तन के लिए डाला जाता है।

डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार - "छात्रों के जीविका उपार्जन करने में सहायता देना शिक्षा का कार्य है।"

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार - "शिक्षा का अर्थ मस्तिष्क को इस योग्य बनाता है कि वह सत्य की खोज करके उस तथ्य को अपना बनाते हुए व्यस्त कर दे। ".

याज्ञवल्क्य के अनुसार - "शिक्षा मनुष्य को सचरित्र बनाने का साधन है। "

शिक्षा का व्यापक अर्थ

मूल रूप से हम देखें तो शिक्षा की प्रक्रिया अपने आप में अत्यन्त व्यापक है। सही अर्थों में देखा जाए तो कोई भी मनुष्य प्रत्येक समय किसी-न-किसी व्यक्ति से कोई-न-कोई शिक्षाप्रद बात सीखता रहता है। इस प्रकार यह एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। प्रत्येक व्यक्ति अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक व्यक्तियों, घटनाओं, संस्थाओं व विचारों से परिचित होता है तथा कुछ परिस्थितियों में उनसे प्रभावित भी होता है। वह उन सभी घटनाओं से कुछ-न-कुछ सीखने का प्रयास करता है जिनसे वह प्रभावित होता है। इस प्रकार शिक्षा एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है, इससे हमें नया ज्ञान, नया अनुभव प्राप्त होता है तथा हमारे विचारों, आदतों व व्यवहार में भी परिवर्तन उत्पन्न होता है तथा हमारे सीखने की प्रवृत्ति जाग्रत होती है। इस प्रकार की शिक्षा के लिए किसी स्थान विशेष की आवश्यकता नहीं होती है और न ही कुछ विशेष प्रकार के व्यक्ति शिक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक होते हैं। यहाँ पर प्रत्येक व्यक्ति, प्रत्येक घटना जो उसके सामने घटित होती है प्रत्येक अनुभव तथा प्रत्येक संस्था उसकी शिक्षक है, वह प्रत्येक से कुछ-न-कुछ शिक्षा ग्रहण करता है। इस प्रकार प्रत्येक उसका शिक्षक है तथा शिक्षण की यह प्रक्रिया निरन्तर व सतत् चलती रहती है।

इस सन्दर्भ में-

डम्बिल के अनुसार - "शिक्षा के व्यापक अर्थ में वे सभी प्रभाव आ जाते हैं जो व्यक्ति को जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रभावित करते हैं। "

एस. एस. मैकन्जी के अनुसार - "व्यापक अर्थ में शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है तथा जीवन के प्रत्येक अनुभव में उसमें वृद्धि होती है। "

स्वामी विवेकानन्द के अनुसार - "मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। " शंकराचार्य के अनुसार - " सा विद्या या विमुक्ता। "

महात्मा गाँधी के अनुसार - "शिक्षा से मेरा तात्पर्य उस प्रक्रिया से है जो बालक और मनुष्य के शरीर मन तथा आत्मा का सर्वोत्कृष्ट एवं सर्वांगीण विकास करे।"

शिक्षा का वास्तविक अर्थ

शिक्षा के संकुचित व व्यापक अर्थों को दृष्टिगत रखें तो हमें शिक्षा के सीमित रूप के ही दर्शन होते हैं। यदि संकुचित अर्थ को देखें तो शिक्षा सीमित तथा परिवर्तन विरोधी होती है तथा व्यापक अर्थ को ध्यान में रखें तो शिक्षा आवश्यकता से अधिक उदार, सार्वभौमिक दृष्टिकोण तथा प्रगतिशील मापदण्ड उत्पन्न करने में कुछ हद तक अक्षम रहती है। इस प्रकार संकुचित व व्यापक अर्थ दोनों अपने आप में सीमित हैं। दोनों दृष्टिकोण पूर्ण नहीं है इसीलिए वर्तमान समय में आवश्यकता यह है कि इसका सही व वास्तविक अर्थ तो समझा जाएँ। कोई एक ऐसा रूप जो दोनों का समन्वय करता हो। जो उदार दृष्टिकोण व प्रगतिशील भावना का विकास करता हो। बालक शिक्षा को एक व्यवस्थित व क्रमबद्ध रूप में भी ग्रहण कर सकें तथा अपने अनुभवों को भी शिक्षा के क्षेत्र में समाहित कर सकें। इसी प्रकार उनका सम्पूर्ण विकास होगा। शिक्षा के वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करते हुए टी. रेमण्ट ने लिखा है कि- "शिक्षा उस विकास का नाम है जो शैशव अवस्था से प्रौढ़ अवस्था तक होता ही रहता है अर्थात् शिक्षा वह क्रम है जिससे मानव अपने को आवश्यकतानुसार भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है। "

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार - "सर्वोच्च शिक्षा वह है जो हमें मात्र सूचनाएँ ही नहीं देतीं अपितु हमारे जीवन और सम्पूर्ण सृष्टि में तादात्म्य स्थापित करती है।'

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
  4. प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
  5. प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
  7. प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
  8. प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
  9. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
  10. प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
  11. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
  12. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
  13. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
  14. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
  15. प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
  17. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
  18. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
  19. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  21. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
  22. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  23. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  24. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  25. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  26. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  27. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  28. प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  29. प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
  31. प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
  32. प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
  33. प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
  34. प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
  36. प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
  37. प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
  39. प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
  40. प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
  41. प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  42. प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
  43. प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
  44. प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
  45. प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  46. प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
  47. प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
  48. प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
  49. प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  50. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  51. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  52. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  53. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  54. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  55. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  56. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  57. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  58. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  59. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  60. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  61. प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
  62. प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
  63. प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
  64. प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
  66. प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  67. प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
  69. प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  70. प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
  71. प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
  72. प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
  73. प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
  76. प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
  77. प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
  78. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
  80. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
  82. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
  83. प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
  84. प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
  85. प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
  86. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
  87. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  88. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
  89. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
  90. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
  91. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
  92. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
  93. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
  94. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
  95. प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
  96. प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
  97. प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
  98. प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  99. प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
  100. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
  101. प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
  102. प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
  103. प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
  104. प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
  105. प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
  106. प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
  107. प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
  108. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
  109. प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
  110. प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
  112. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
  113. प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  114. प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
  115. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
  116. प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
  117. प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
  118. प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
  119. प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  120. प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
  121. प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
  122. प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
  123. प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
  124. प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
  125. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
  126. प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  127. प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
  128. प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।

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