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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।

उत्तर -

प्रथम अङ्क - सर्वप्रथम कंविकुलगुरु कालिदास 'अभिज्ञानशाकुन्तलम् नामक नाटक की निर्विघ्न समाप्ति के लिए नान्दी पाठ के द्वारा अष्टमूर्ति भगवान शङ्कर की वन्दना करते हैं। ततश्च सूत्रधार ग्रीष्म ऋतु का मनोहारी वर्णन प्रस्तुत करता है। इसके पश्चात् आश्रम के मृग का पीछा करते हुए आखेट प्रेमी, धनुर्धारी राजा दुष्यन्त सारथी के साथ महर्षि कण्व के तपोभूमि आश्रम में प्रविष्ट होते हैं। जैसे ही राजा मृग का वध करना चाहते हैं वैसे ही एक तपस्वी प्रवेश करके राजा को सूचना देता है कि यह मृग आश्रम का है, अतएव इसका वध न किया जाये। राजा के द्वारा तपस्वी का कथन मान लिये जाने पर तपस्वी प्रसन्न हो जाता है और राजा को चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति का आर्शीवाद देता है। इसके अतिरिक्त राजा से आग्रह करता है कि वह आश्रम के आतिथ्य को स्वीकार करें। राजा रथ को त्याग कर साधारण वेशभूषा में आश्रम में प्रविष्ट होता है। वहाँ पर शकुन्तला द्वारा राजा का अतिथि सत्कार किया जाता है क्योंकि महर्षि कण्व सोमतीर्थ को गये हुए हैं। आश्रम में वृक्षों के सिञ्चन कार्य में रत तीन अत्यन्त सुन्दर कन्याओं का दर्शन कर राजा अत्यन्त प्रसन्न होता है। इतना ही नहीं, शकुन्तला की मनमोहिनी, ललित लावण्य से युक्त भोली-भाली सूरत पर तो वह इतना अधिक आकृष्ट हो जाता है कि राजा की शकुन्तला पर आसक्ति हो जाती है। इसी बीच एक भ्रमर शकुन्तला को परेशान करता है और वह अपनी रक्षा के लिए प्रार्थना करती है। इसी समय दुष्यन्त उन तीन सखियों के पास जाकर शकुन्तला कि विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त करता है। तब उसे पता चलता है कि शकुन्तला विश्वामित्र और मेनका की पुत्री है और वह दृढनिश्चय कर लेता है कि वह शकुन्तला से ही विवाह करेगा। उसके अलौकिक सौन्दर्य को देखकर शकुन्तला भी उस पर आकृष्ट हो जाती है। इसी मध्य एक विक्षुब्ध हाथी आश्रम मे प्रविष्ट होता है। राजा द्वारा अपने सैनिकों का रोकने के लिए प्रस्थान किया जाता है और तीनों सखियाँ भी वहाँ से चली जाती हैं।

द्वितीय अङ्क - शकुन्तला पर आसक्त राजा कामुक अवस्था में प्रवेश करता है और आखेट के शौकीन सेनापति द्वारा ठीक प्रकार से समझाये जाने पर भी राजा आखेट पर जाने की इच्छा प्रकट नहीं करता है और सेनापति को भी शिकार पर जाने से रोकता है। वह अपने सैनिकों को आदेश भिजवाता है कि आश्रम में रहने वाले लोगों को परेशान न करें। राजा शकुन्तला के प्रति अपनी आसक्ति को विदूषक के सामने प्रकट कर शकुन्तला के कमनीय सौन्दर्य व रमणीय क्रिया-कलापों का वर्णन करता है। साथ ही विदूषक से आश्रम में रुकने हेतु किसी निमित्त को पूछता है। इसी बीच दो ऋषिकुमार प्रविष्ट होकर राजा से आश्रम में ठहरने का आग्रह करते हैं क्योंकि राक्षसों के द्वारा उनके यज्ञादि कार्यों में बाधा डाली जाती है। यह प्रस्ताव राजा खुशी से स्वीकार कर लेते हैं। इसी बीच राजधानी से माता का सन्देश लेकर दूत आता है और कहता है कि माता द्वारा देवी के पारण (व्रत की समाप्ति पर किया जाने वाला भोजन) के दिन महाराज की उपस्थिति प्रार्थनीय है। राजा दुविधा में पड़ जाता है और विदूषक को अनुयायियों के साथ राजधानी माता के पास भेज देता है। विदूषक द्वारा राजा की शकुन्तला पर आसक्ति का बखान कहीं रानियों पर प्रकट न कर दिया जाये, इसलिए राजा उससे शकुन्तला के प्रति अपने प्रेम को केवल परिहास मात्र ही बताता है।

तृतीय अङ्क - तृतीयाङ्क के प्रारम्भ में ही यह संकेत मिल जाता है कि राजा के प्रति आसक्ति के कारण शकुन्तला अस्वस्थ हो गई है। ततश्च कामपीड़ित अवस्था में राजा दुष्यन्त प्रविष्ट होता है। सखियों से सेवित कुसुमास्तरण से युक्त शिलापट्ट पर लेटी हुई शकुन्तला व उसकी सखियों के मध्य हो रहे वार्तालाप का श्रवण राजा वृक्षों के झुरमुट से छिपकर करता है। जिस समय विरह व्यथित शकुन्तला अपनी सखियों के कथनानुसार कमलिनी के पत्ते पर नाखूनों से से दुष्यन्त के लिए अपने प्रणय व्यापार को लिखती है, उसी समय छिपे हुए दुष्यन्त शकुन्तला के समीप पहुँचते है और शकुन्तला के प्रति अपने प्रेम को स्पष्ट करते हैं। राजा के शकुन्तला के समीप आ जाने पर दोनों सखियाँ वहाँ से चली जाती है। राजा शकुन्तला के समक्ष गन्धर्व विवाह का प्रस्ताव रखता है, परन्तु इसी समय सखियाँ शकुन्तला को राजा से विदा लेने का संकेत करती हैं। इसी बीच गौतमी शान्ति जल लेकर प्रविष्ट होती है तथा राजा दुष्यन्त वृक्ष की ओट में छिप जाता है। गौतमी शकुन्तला को लेकर प्रस्थान कर जाती है तथा राजा दुष्यन्त यज्ञ में विघ्न डालने वाले राक्षसों को समूल नष्ट करने के लिए धनुषबाण लेकर अपने कार्य में रत हो जाता है।

चतुर्थ अङ्क - इस नाटक का सर्वश्रेष्ठ अङ्क ही है। इस अङ्क के प्रारम्भ में ही राजा दुष्यन्त का शकुन्तला के साथ गान्धर्व विवाह हो जाने की सूचना मिल जाती है। कुछ समयोपरान्त शकुन्तला को अपने यहाँ बुलाये जाने का आश्वासन देकर राजा अपनी राजधानी प्रस्थान कर जाते है। शकुन्तला राजा के वियोग से व्यथित हो जाती है ओर इसी कारण वह आश्रम में आये हुए अतिथिप्रवर दुर्वासा मुनि का ठीक प्रकार से आदर-सत्कार नहीं कर पाती है। दुर्वासा मुनि शकुन्तला के इस प्रकार के व्यवहार से क्षुब्ध होकर उसको शाप दे देते हैं कि जिसको (राजा दुष्यन्त को) स्मरण करती हुई तुम आश्रम के आये हुए मुझ जैसे तपस्वी अतिथि की ओर ध्यान नहीं दे रही हो, उसी प्रकार वह (दुष्यन्त) तुम्हारे द्वारा याद दिलाये जाने पर भी तुमको पहचान नहीं सकेगा। दुर्वासा मुनि द्वारा शकुन्तला को दिये गये इस दारुण शाप का श्रवण कर प्रियम्वदा उनके पीछे दौड़ कर उन्हें रोकती है और उनका उचित अतिथि सत्कार करती है। प्रियम्वदा के अतिथि सत्कार से प्रसन्न होकर दुर्वासा मुनि यह आश्वासन देते हैं कि शकुन्तला द्वारा किसी अभिज्ञान (पहचानने का आभूषण) के दिखाये जाने पर राजा शकुन्तला को पहचान लेगा और इस प्रकार मेरे द्वारा प्रदत्त शाप का प्रभाव समाप्त हो जायेगा।

दुर्वासा द्वारा दिये गये शाप का वृत्तान्त प्रियम्वदा और अनसूया किसी को भी नहीं बतलाती है क्योंकि वे भली प्रकार से जानती हैं कि राजा की अंगूठी शकुन्तला के पास है ही और शकुन्तला द्वारा उस अंगूठी को दिखाये जाने पर राजा शकुन्तला को पहचान ही लेगा। इसी बीच तीर्थयात्रा से वापस आये हुए महर्षि कण्व को यह पता चल जाता है कि शकुन्तला का गान्धर्व विधि से विवाह संपन्न हो चुका है और वह इस समय गर्भावस्था में है। महर्षि कण्व शकुन्तला के इस विवाह का अनुमोदन करते हैं। इधर महाराज दुष्यन्त दुर्वासा मुनि के शाप के प्रभाव के कारण शकुन्तला को विस्मृत कर देता है, उधर महर्षि कण्व शकुन्तला को उसके पति के समीप भेजने का विचार करते हैं। शकुन्तला को उसके पति के गृह भेजने की तैयारियाँ शुरू हो जाती हैं। वन वृक्ष उसके लिए वस्त्राभूषण प्रदान करते हैं। शकुन्तला अपनी प्रिय सखियों, लताओं, वृक्षों और वनमृगों आदि से विदा लेती है। इस विदायी का वर्णन अत्यन्त ही रोचक मार्मिक व हृदयस्पर्शी है। इसी समय महर्षि कण्व शकुन्तला को पतिगृह के लिए उपयुक्त आदर्श शिक्षा देते हैं और राजा के इस सन्देश का भी देते हैं। शकुन्तला महर्षि कण्व से मिलकर विदा लेती है। शकुन्तला के साथ गौतमी और दो अन्य तपस्वी भी प्रस्थान करते हैं। महर्षि कण्व शकुन्तला को पतिगृह भेजकर परम शान्ति का अनुभव करते हैं।

पञ्चम अङ्क - पञ्चम अङ्क के आरम्भ में शांर्गरव शारद्वत और गौतमी शकुन्तला के साथ राजा दुष्यन्त के राजद्वार पर पहुँचते हैं। राजा को इन सभी लोगों के आगमन की विधिवत् सूचना दी जाती है। राजा उन्हें राजदरबार में प्रवेश कराने का आदेश देता है। परस्पर अभिनन्दन कार्य संपन्न हो जाने के पश्चात् शाँर्गरव, महर्षि कण्व के सन्देश को राजा से कहकर उसके सम्मुख शकुन्तला को प्रस्तुत कर देता है। दुष्यन्त द्वारा शकुन्तला को दी गई अभिज्ञानभूत अंगूठी के खो जाने के कारण राजा दुष्यन्त दुर्वासा मुनि के शाप से मुक्त नहीं हो पाता है। इस कारण वह शकुन्तला के साथ अपने विवाह वृत्तान्त का श्रवण कर आश्चर्यचकित हो उस घटना को मिथ्या ही बतलाता है। गौतमी द्वारा शकुन्तला के अवगुण्ठन को दूर किये जाने पर भी राजा उसे पहचान नहीं पाता है। इसी बीच शकुन्तला राजा को उसके द्वारा प्रदत्त अंगूठी को दिखलाकर विश्वास दिलाने का यथासंभव प्रयास करती है, परन्तु उस अंगूठी के रास्ते में कहीं गिर जाने पर शकुन्तला का वह प्रयास भी असफल ही हो जाता है। राजा और तपस्वियों के बीच बड़ी गहमा गहमी से वार्तालाप होता है, परन्तु राजा शकुन्तला को स्वीकारने के लिए तैयार नहीं होता है। अन्त में राजा का पुरोहित राजा के समक्ष यह प्रस्ताव रखता है कि आपके विषय में यह कहा गया है कि आपको सर्वप्रथम चक्रवर्ती पुत्र की प्राप्ति होगी, इसीलिए यदि शकुन्तला से चक्रवर्ती पुत्र की उत्पत्ति हो तो इन्हें स्वीकारना अन्यथा नहीं। पुरोहित तब तक के लिये शकुन्तला को अपने घर में रखने का प्रस्ताव करता है तथा राजा इस प्रस्ताव की स्वीकार कर दुष्यन्त शकुन्तला को अपने घर में रखने का आदेश दे देता है। शकुन्तला को छोड़कर तपस्वीजन प्रस्थान कर जाते हैं। शकुन्तला का मन खिन्न हो जाता है और वह विलाप करने लगती है। उसी समय मेनका नामक अप्सरा का आगमन होता।

षष्ठ अङ्क - राजा दुष्यन्त द्वारा शकुन्तला को अभिज्ञानस्वरूप दी गई अंगूठी शकुन्तला की उंगली में से शचीतीर्थ में गिर गई थी जोकि एक धीवर को मिलती है। धीवर उस अंगूठी के विक्रय हेतु बाजार जाता है। चूँकि वह अंगूठी राजा की मुद्रा से अङ्कित थी अतएव सिपाही उसे चोर समझकर पकड़ लेते हैं और न्याय के लिए धीवर को राजा के समक्ष प्रस्तुत करते हैं। राजा उस अंगूठी को लेकर धीवर को पुरस्कृत कर छोड़ देता है। राजा द्वारा उस अंगूठी को देखते ही दुर्वासा मुनि प्रदत्त शाप का प्रभाव समाप्त हो जाता है और दुष्यन्त को अपने व शकुन्तला का सारा प्रणय वृत्तान्त स्मृत हो जाता है। वह शकुन्तला के लिए बहुत दुःखी हो जाता है। मेनका की सखी सानुमती अप्रकट रूप से राजा की इस अवस्था का अवलोकन करती है। राजा और विदूषक परस्पर वार्तालाप करते है। वह अंगूठी को देखकर अत्यन्त खिन्न होता है। इसके पश्चात् शकुन्तला के अधूरे चित्रफलक को लेकर चतुरिका प्रविष्ट होती है। राजा शकुन्तला के उस अधूरे चित्रफलक को लेकर उसके अधूरे चित्र को पूरा करता है। इसके बाद प्रतीहारी द्वारा राजा को मंत्री का एक पत्र दिया जाता है जिसके पढ़ने के पश्चात् पता चलता है कि धनमित्र नामक एक व्यापारी समुद्र में डूब गया है। उसके कोई संतान नहीं है, अतएव उसकी सारी संपत्ति राजकोष में शामिल कर ली जायेगी। अतः यह सब वृत्तान्त पढ़कर राजा खिन्न होकर मूर्छित हो जाता है। इसी बीच मातलि आकर राजा का इन्द्र को संदेश सुनाता है कि इन्द्र ने राक्षसों के समूल विनाश हेतु आपको आमंत्रित किया है और राजा मातलि के साथ इन्द्र के समीप जाने के लिए चला जाता है।

सप्तम अङ्क - राजा दुष्यन्त युद्ध में दुर्जेय राक्षसों पर विजय प्राप्त करते हैं। इससे प्रसन्न होकर इन्द्र स्वर्ग में राजा का अत्यधिक स्वागत-सत्कार करते हैं। इसके पश्चात् इन्द्र से विदा लेकर राजा दुष्यन्त मातलि के साथ मृत्युलोक में वापस लौटते हैं। मार्ग में राजा दुष्यन्त हेमकूट पर्वत पर महर्षि मारीच के आश्रम को देखते हैं। इसी समय राजा दुष्यन्त आश्रम में दो तपस्विनियों के साथ सिंह के बच्चे के दांत गिनने का प्रयास कर रहे एक होनहार बालक को प्रविष्ट होता हुआ देखते हैं। राजा उस बालक से अत्यधिक प्रभावित होता है और उससे पुत्रवत् स्नेह करने लगता है। बालक के समीप स्थित तपस्विनी के द्वारा पता चलता है कि इस बालक की माता का नाम शकुन्तला है और वह बालक पुरुवंश का है। राजा को अपराजिता नामक औषधि के द्वारा ज्ञात हो जाता है कि वह बालक उसका ही पुत्र है। तदनन्तर मैले- कुचैले वस्त्र धारण किये हुए अस्त-व्यस्त केशों वाली विरह-व्यथित शकुन्तला आकर राजा को प्रणाम करती है। राजा शकुन्तला के पैरों पर गिरकर क्षमा माँगता है। राजा दुष्यन्त शकुन्तला एवं भरत तीनों मिलकर एक साथ महर्षि मारीच के दर्शन के लिए जाते हैं। महर्षि मारीच दुर्वासा मुनि प्रदत्त शाप के वृत्तान्त की चर्चा कर राजा को निर्दोष बतलाते हैं। इसके पश्चात् महर्षि मारीच दोनों को आशीर्वाद देते हैं और राजा दुष्यन्त को अपनी प्रियतमा शकुन्तला तथा पुत्र भरत के साथ इन्द्र के रथ पर आरूढ़ होकर राजधानी की ओर प्रस्थान करने के लिए कहते हैं। अन्त में भरतवाक्य के साथ नाटक की सुखद एवं मंगलमयी समाप्ति हो जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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