बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरणसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण
प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
अथवा
"नाटकों में विदूषक का प्रयोग प्रायः हास्य के निमित्त ही हुआ करता है। किन्तु अभिज्ञानशाकुन्तलम् में इनका प्रयोग कथावस्तु के विकास में हुआ है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं? उपयुक्त उद्धरणों द्वारा सिद्ध कीजिए।
उत्तर -
संस्कृत नाटकों में विदूषक भी एक महत्वपूर्ण पात्र होता है यद्यपि कथावस्तु के संगठन में उसकी विशेष उपयोगिता नहीं होती तथापि नायक के प्रेम व्यापारों में सहायता प्रदान करने तथा दर्शकों का मनोरंजन करने के लिए विदूषक का होना नितान्त आवश्यक है। वह नायक का विनोदी तथा विश्वासपात्र सखा होता है जो अपने विकृत वेष, अटपटे वाक्यों तथा भौंड़ी आकृतियों एवं भंगिमाओं द्वारा हास्य का वातावरण प्रस्तुत करता है और अपने मूर्खतापूर्ण आचरण से प्रायः सभी के लिए हंसी का पात्र बनता है। उसके नाम में कुसुम वसन्त आदि अथवा उसके पर्यायवाची शब्दों का होना अनिवार्य है। साहित्यदर्पणकार ने विदूषक का लक्षण बतलाते हुए लिखा है
हास्यकरः कलहरतिर्विदूषकः स्यात्स्वकर्मज्ञः॥
कालिदास के सभी नाटकों में मुख्यतया विनोद का पात्र विदूषक ही होता है। उनके विदूषक ब्राह्मण होते हुए भी प्रायः अनपढ़ और मूर्ख होते हैं। ये स्वभावतः पेटू, भीरु और सुस्त होते हैं। ये विशेषतायें अभिज्ञानशाकुन्तलम् के विदूषक में भी पायी जाती हैं। इस प्रकार नाटक में विदूषक का प्रयोग हास के लिए ही होता है किन्तु कालिदास ने इसे कथावस्तु के विकास हेतु प्रयोग करके विशिष्ट व्यक्तित्व प्रदान किया है।
संस्कृत नाटकों में यह विदूषक श्रृंगारी नायकों के सहायक के रूप में प्रयुक्त होता है। इसे नर्मसचिव भी कहते हैं। यह स्वामिभक्त मानिनी नायिकाओं को मनाने में चतुर और सचरित्र होता है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् में विदूष श्रृंगारी सहायक के रूप में आया है। यह राजा का परम मित्र है और राजा का इस पर पूर्ण विश्वास है। यही कारण है कि राजा शकुन्तला संबंधी अपनी सभी बातों को इस पर प्रकट कर देता है।
शाकुन्तला का विदूषक अत्यन्त सरल हृदय और मन्द बुद्धि है। द्वितीय अंक में जब राजा उसे राजधानी भेजता है और उसके चलते समय यह सोचकर कि कहीं यह वाचाल मेरे प्रेम-प्रसंग - को अन्तःपुर में प्रकट न कर दे। वह उससे अन्त में कह देता है, कि "परिहासविजल्पितं सखे, परमार्थेन न गृह्यतां क्षमताः" तो वह मूर्ख उसे सत्य ही मान लेता है। काव्योक्ति के गूढ़ार्थ को समझने की क्षमता तो उसमें है ही नहीं। वाच्यार्थ को ही परमार्थ समझकर वह अपने आपको हास्यास्पद बना लेता हे। षष्ठांक में जब राजा वसन्तकालीन आम्रमञ्जरियों को मदन- बाण कहकर उनके द्वारा अपने हृदय को विद्ध किये जाने की बात करता है तो मूर्ख माढव्य दण्ड काष्ठ उठाकर उन मदन बाणों को गिराने दौड़ता है। यह देखकर विरह सन्तप्त राजा को भी हंसी आ जाती है। प्रसंगानुकूल बात करना तो वह जानता ही नहीं। उसे तो सबसे बड़ी चिन्ता अपने पेट की रहती है। पष्ठांक में जब राजा अंगुलीयक को उपालम्भ देता हुआ विदूषक के सामने शकुन्तला के परित्याग पर पश्चात्तापविदग्ध हो रहा है तो विदूषक का उसे कोई सहानुभूति नहीं क्योंकि भूखे पेट से भजन नहीं होता, अतः उसे तो अपने पेट की ही चिन्ता है। भूख से पीड़ित होकर वह कहता है कि 'कथं बुभुक्षया खादितव्योऽस्मि।' उसके इस अव्यावहारिक आचरण से सानुमती भी उसे मूर्ख समझती है और कहती है- "अनभिज्ञः खल्वीदृशस्य रूपस्य मोहदृष्टिरयं जनः।'
विदूषक " कुपितवधूजनमानभञ्जनः " ही होता है। पंचम अंक में कार्यभार से श्रान्ति राजा और विदूषक के कानों में जब मधुर गीति ध्वनि पड़ती है तो राजा का मनोविनोदकर्ता विदूषक राजा से कहता है कि "कलविशुद्धाया गीतेः स्वरसंयोगः श्रूयते। जाने तत्र भवती हसंपदिका वर्णपरिचयं करोति। राजा गीत का तात्पर्यार्थ समझ लेता है और " मदवचनादुच्यतां हंसपदिका निगुणमुपालब्धोऽस्मि" यह कहकर विदूषक को उसे (हंस पदिका को समझाने के लिए जाने का आदेश देता है।) पिटाई के भय से हंसपदिका के पास जाने से अपनी अनिच्छा व्यक्ति करता हुआ विदूषक जब यह कहता है "गृहीतस्य परीकीयैर्हस्तैः शिखण्डके ताड्यमानस्याप्सरसा वीतरागस्येव नास्तीदानीं में मोक्षः " तो राजा उसे नागरिक वृत्ति से समझाने का प्रस्ताव देता "गच्छ नागरिकवृत्या संज्ञापयैनाम्"।
'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' का विदूषक तो कथासूत्र की प्रगति में भी योगदान रखता है। दूसरे अंङ्क में माता के बुलावे पर राजा अपने स्थान पर विदूषक को राजधानी भेज देता है। ऐसा करने से उसे अपने शाकुन्तलाविषयक प्रेम प्रसंग - को आगे बढ़ाने का अवसर मिल जाता है। छठवें अङ्क में जब इन्द्र सारथी मातलि विदूषक को आकाश में उड़ा ले जाकर यातना देने लगता है तो उसे विरही राजा में वीर भाव की जागृति हो जाती है। वह क्रुद्ध होकर ज्यों शर-सन्धान करता है त्यों ही मातलि राजा के समक्ष प्रकट होकर इन्द्र का संदेश देने लगता है। इस प्रकार विदूषक का कार्य केवल सामाजिकों को मनोविनोद करना ही नहीं अपितु कथासूत्र की प्रगति में सहायक होना भी है। अतः यह कहना अनुचित न होगा कि "नाटकों में विदूषक का प्रयोग प्रायः हास्य के निमित्त ही हुआ करता है। किन्तु अभिज्ञानशाकुन्तल में इसका प्रयोग कथावस्तु के विकास में हुआ है।'
|
- प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
- प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
- प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
- प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
- प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
- प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
- प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
- प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
- प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
- प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
- प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
- प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
- प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
- प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
- प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
- प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
- प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
- प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
- प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
- प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
- प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
- प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
- प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
- प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
- प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
- प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
- प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)