बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र
प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
उत्तर -
'क्रान्ति' शब्द का प्रयोग राजनैतिक सत्ता में होने वाले किसी आकस्मिक और अप्रत्याशित परिवर्तन के लिए ही किया जाता है। उदाहरण- रूस में जार की सत्ता समाप्त करके बोलेशेविकों द्वारा राजसत्ता ग्रहण कर लेने को, मिस्र के राजा फारुख को निर्वासित करके पहले जनरल नजीब तथा बाद में कर्नल नासिर द्वारा राजनैतिक सत्ता अपने हाथ में लेने को तथा पाकिस्तान में जनरल इस्कन्दर मिर्जा व जनरल अय्यूब द्वारा संसद भंग करके सैनिक शक्ति द्वारा राजनैतिक सत्ता ग्रहण कर लेने को हम क्रान्ति के नाम से पुकारते हैं। सामाजिक जीवन में अचानक होने वाले ऐसे समस्त परिवर्तन क्रान्ति के अन्तर्गत आते हैं जिनसे कि सामाजिक जीवन या उसका कोई पक्ष बिल्कुल ही बदल जाता है।
क्रान्ति का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of Revolution)
शक्ति और हिंसा द्वारा राजनैतिक सत्ता के आकस्मिक एक समूह से दूसरे समूह को हस्तान्तरित हो जाने के फलस्वरूप समाज में आर्थिक, सामाजिक, नैतिक आदि परिस्थितियों में जो अचानक परिवर्तन होता है, उसी को क्रान्ति कहा जा सकता है। परन्तु वास्तव में क्रान्ति की धारणा के अनुसार क्रान्ति का अर्थ केवल राजनैतिक सत्ता का आकस्मिक हस्तान्तरण नहीं है बल्कि किसी भी प्रकार के आकस्मिक सांस्कृतिक परिवर्तन से है। इस धारणा के अनुसार यूरोप में प्रोटेस्टेंट आन्दोलन के फलस्वरूप होने वाले धार्मिक परिवर्तन तथा भारत में राजा राममोहन राय द्वारा सती प्रथा का उन्मूलन या विधवा-पुनर्विवाह के प्रचलन को भी क्रान्ति की संज्ञा दी जा सकती है।
क्रान्ति का अर्थ सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था आधारभूत सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक वर्गों, शक्ति के वितरण तथा जनता की समस्त मनोवृत्तियों तथा आदतों में तीव्र गति से परिवर्तन होना है। 1760 में यूरोप तथा इंग्लैंड में आरम्भ होने वाली औद्योगिक क्रान्ति इस प्रकार की क्रान्ति का एक उज्ज्वल उदाहरण है।
परिभाषाएँ - श्री बोगार्डस ने सामाजिक क्रान्ति की परिभाषा देते हुए कहा है- "सामाजिक क्रान्ति राजनैतिक क्रान्ति में पूर्ण परिवर्तन कर देती है, अच्छे और बुरे प्रकार के मूल्यों को उखाड़ फेंकती है, रक्तपात कराती है, मनमुटाव पैदा करती है और विस्तृत रूप में सामाजिक पुनर्संगठन की मांग करती है।'
प्रो. किम्बाल यंग के अनुसार, "किसी राज्य में राज्य शक्ति का नये प्रकारों की शक्ति या सत्ता. में अचानक हस्तान्तरण क्रान्ति है।"
श्री फेयरचाइल्ड के मतानुसार, "यदि किसी समाज में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन धीरे-धीरे और बिना विशेष संघर्ष या रक्तपात के प्राप्त होते हैं तो उसे उद्विकास ही कहा जायेगा न कि क्रान्ति। क्रान्ति का मूल सार तो अचानक परिवर्तन है न कि हिंसा
क्रान्ति के प्रमुख कारण
(Chief causes of Revolution)
क्रान्ति के लिये कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है बल्कि अनेक कारण जिम्मेदार हैं -
1. सांस्कृतिक विलम्बना (Cultural Lag) - श्री ऑगबर्न का मत है कि सांस्कृतिक विलम्बना क्रान्ति का एक कारण बन सकता है और वह इस रूप में कि सांस्कृतिक विलम्बना समाज में एक असन्तुलन की स्थिति को उत्पन्न करता है। यह देखा गया है कि समाज में भौतिक प्रगति जिस रफ्तार से होती है, उस गति से लोगों के विचार, परम्परा प्रथा आदि में परिवर्तन नहीं होता है क्योंकि ये सब रूढ़िवादी होती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि बदलती हुई सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति इनके द्वारा नहीं हो पाती है और लोगों के दिल में इनके प्रति असन्तोष की भावना धीरे-धीरे उग्र होती जाती है और अन्त में इन्हें पलटने के लिये सक्रिय कदम उठा ही लेते हैं। यही क्रान्ति की स्थिति है।
2. शासक वर्ग की रूढ़िवादिता (Conservativeness of the Ruling Class) - वर्ग की रूढ़िवादिता भी क्रान्ति का कारण बन जाती है। शासक वर्ग अपनी रूढ़िवादिता के कारण ही अपने स्वार्थी तथा आदर्शों को सर्वोच्च स्थान देता है और इसीलिये बदलती हुई परिस्थितियों और जनता की मांगों को समझने और उसी के अनुरूप अपनी नीति को बदलने में हिचकिचाहट है या उन्हें जानबूझकर ठुकरा देता है। इसके फलस्वरूप आम जनता में असंतोष की भावना धीरे-धीरे दृढ़ होती रहती है और अंत में वे संगठित होकर स्वयं शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिये उठ खड़ी होती है, तभी सामाजिक क्रान्ति होती है। फ्रांस की क्रान्ति का यही कारण था।
3. नगरीकरण (Urbanization) - कुछ विद्वानों का मत है कि नगरों का विकास भी अप्रत्यक्ष रूप से क्रान्ति का एक कारण बन जाता है क्योंकि नगरों की अपनी गम्भीर समस्याएँ होती हैं जो कि असन्तोष की भावना को उभारने में सहायक होती हैं। साथ ही नगरों में पढे-लिखे लोग भी होते हैं, राजनीतिक पार्टियाँ अधिक सक्रिय होती हैं तथा प्रचार के सभी संगठित साधन, जैसे समाचार-पत्र पत्रिका, रेडियो, टेलीविजन आदि, क्रान्तिकारी विचारों को फैलाने में सहायक होते हैं। इसी से लोगों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता पनपती है और वे हर अन्याय के प्रति आवाज उठाने के लिये क्रान्तिकारी कार्यक्रमों में सक्रिय भाग लेते हैं। -
4. नवीन आविष्कार (New Invention) - नवीन आविष्कारों के फलस्वरूप भी समाज में क्रान्ति की भावना फैल सकती है। प्रत्येक नवीन आविष्कार नये विचारों तथा मूल्यों को जन्म देता हैं। इन नये विचारों तथा मूल्यों का पुराने मूल्यों तथा विचारों के साथ संघर्ष होता है। पुराने मूल्य अपने को सर्वोत्तम समझते हैं जबकि नये मूल्य उन्हें सहन नहीं करते। इसका फल यही होता है कि नये और पुराने मूल्यों तथा विचारों की सीधी टक्कर होती है और समाज में क्रान्ति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
5. मौलिक इच्छाओं का दमन (Suppression of Fundamental Desires) - मनोवैज्ञानिकों का विचार है कि क्रान्ति का सबसे महत्वपूर्ण कारण मौलिक इच्छाओं का दमन है। यह सत्य है कि जब मानव व्यवस्था में किसी भी प्रभुत्ता सम्पन्न वर्ग या समूह द्वारा लोगों की आधारभूत इच्छाओं, आकांक्षाओं तथा भावनाओं को दबाया जाता है तो लोगों में असन्तोष की भावना पनप जाती है और उनमें विद्रोह की आग जलने लगती है। क्रान्ति इसी का परिणाम है।
6. नेता क्रान्ति के एक कारक के रूप में (Leaders as a factor in revolution) - नेतागण स्वयं क्रान्ति के एक कारक बन सकते हैं क्योंकि उनके प्रयत्नों के फलस्वरूप ही जनता में संगठन, एकमत्य अधिकारों के प्रति जागरूकता, दमनों के प्रति सचेतना स्पष्ट रूप से पनप जाती है। लोग यह समझ जाते हैं कि उन्हें किन-किन बातों से वंचित किया जा रहा है, उनके अधिकारों को किस सीमा तक उनसे छीना जा रहा है, और किन आशाओं व आकांक्षाओं पर धूल झोंकी जा रही है। यह सब बातें उन्हें समझना उनको संगठित करना, उन्हें उपाय सुझाना, उनके सम्मुख क्रन्तिकारी योजना को प्रस्तुत करना तथा क्रान्ति के दौरान जनता का पथ-प्रदर्शन करना, ये सब काम नेतागण ही करते हैं। नेतागण ही जनता के मन में यह बात जमा देते हैं। इन सब अन्याय व अत्याचारों से मुक्ति का एकमात्र रास्ता क्रान्ति ही है।
7. सामाजिक अन्याय (Social Injustice ) - सामाजिक अन्याय भी क्रान्ति को जन्म दे सकता है और देता भी है। सामाजिक अन्याय असमानता के सिद्धान्त पर आधारित होता है। जब समाज में केवल कुछ लोगों को ही विशेषाधिकार व समस्त सामाजिक सुविधायें प्राप्त होती हैं और अधिकांश लोगों को सामान्य अधिकारों तथा सुविधाओं से भी वंचित किया जाता है, जब एक वर्ग बंगलों में ऐश-आराम की जिन्दगी व्यतीत करता है और अन्य लोगों को पेट भर खाना, तन ढकने के लिये मोटा कपड़ा और साधारण निवास स्थान तक नहीं मिल पाता है तो सामाजिक अन्याय अपनी चरम सीमा पर होता है और तभी आम जनता में असन्तोष की भावना जागृत होती है। इसी असन्तोष की कटु अभिव्यक्ति ही क्रान्ति है।
8. आर्थिक असमानता व अन्याय (Economic inequality and injustice) - अधिकांश विद्वानों का मत है कि आर्थिक असमानता व अन्याय क्रान्ति का एक प्रमुख कारण है। यह स्थिति उसी समय उत्पन्न होती है जबकि देश का शासक वर्ग भी इस असमानता व अन्याय का पोषण करता है और सरकार की ओर से इसे रोकने के लिये कोई क्रियात्मक कदम नहीं उठाया जाता है। अर्थात् जब सरकार राष्ट्रीय धन के असमान वितरण की समर्थक होती है, जब राष्ट्र का सारा धन और उत्पादन के साधन कुछ गिने-चुने लोगों के हाथों में ही केन्द्रित हो जाते हैं और उस केन्द्रीयकरण को तोड़ने के लिये कोई सरकारी प्रयत्न नहीं होते हैं, जब धनी वर्ग द्वारा निर्धन वर्ग का खूब शोषण होता है और सरकार उस शोषण के प्रति उदासीन रहती है तो देश में असहनीय निर्धनता, बेरोजगारी, भुखमरी आदि की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। जनता एक सीमा तक इस शोषण, अन्याय व अत्याचार को चुपचाप सहन करती है पर सहन करने की भी एक सीमा होती है, उस सीमा के बाद शोषित वर्ग संगठित होकर राजकीय व अर्थव्यवस्था को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये उठ खड़ा होता है और क्रान्ति का बिगुल बज उठता है। श्री कार्ल मार्क्स ने इस आर्थिक अन्याय व असमानता को ही क्रान्ति का प्रमुख कारण माना है। रूस की क्रान्ति इसका उदाहरण है।
क्रान्ति के दुष्परिणाम / परिणाम
(Evil Consequences of Revolution)
क्रान्ति के निम्नलिखित दुष्परिणामों / परिणामों का उल्लेख किया जा सकता है -
1. सामाजिक व्यवस्था का टूट जाना (Breakage of Social System) - क्रान्ति सामाजिक व्यवस्था व संरचना को चकनाचूर कर देती है और सामाजिक जीवन क्रान्ति के दौरान और उसके बाद भी पूर्णतया अस्त-व्यस्त हो जाता है। सामाजिक जीवन में संगठन व शान्ति दूर का स्वप्न बन जाता है। इसका कारण है कि क्रान्ति के दौरान न केवल क्रान्तिकारियों के द्वारा अपितु राज्य के द्वारा भी क्रान्ति को दबाने के लिये हिंसात्मक साधनों का खुले तौर पर प्रयोग किया जाता है। साथ ही तोड़-फोड़ की नीति अपनी चरम सीमा पर होती है। लूट-पाट और आग लगाना तो रोज का खेल बन जाता है। ऐसी स्थिति में चारों ओर अराजकता का राज्य होता है और सामाजिक संगठन व व्यवस्था को बनाये रखना असम्भव हो जाता है।
2. धन-सम्पत्ति की हानि (Loss of Wealth and Property - ) क्रान्ति में धन या सम्पत्ति की खूब बर्बादी होती है। यह बर्बादी क्रान्ति के दौरान की जाने वाली तोड़-फोड़, लूट-पाट और आग लगाने के कारण होती है। क्रान्तिकारी तो आग लगाते और तोड़-फोड़ करते हैं, पर देश का अपराधी वर्ग उस अवसर का लाभ उठाकर खूब लूट मार करता है और चल सम्पत्ति को इकट्ठा करता रहता है। तोड़-फोड़ और आग से भी पर्याप्त मात्रा में राष्ट्रीय सम्पत्ति बर्बाद होती है। इस प्रकार क्रान्ति से जनता व देश को धन-सम्पत्ति की अत्यधिक हानि उठानी पड़ती है।
3. यौन अपराधों में वृद्धि (Increase in Sex - crimes ) - क्रान्ति के दौरान यौन अपराध अपने आप बढ़ जाते हैं, क्योंकि देश की कानून-व्यवस्था पर्याप्त ढ़ीली पड़ जाती है। इसका कारण यह है कि सरकार का सारा ध्यान व शक्ति क्रान्ति को दबाने में लगा हुआ होता है, अतः इस परिस्थिति का फायदा लोग पूर्ण रूप से उठाते हैं। क्रान्ति के दौरान केवल चल सम्पत्ति ही नहीं, महिलाओं की इज्जत भी लूटी जाती है।
4. प्राण हानि (Loss of lives) - क्रान्ति के दौरान केवल धन-सम्पत्ति की ही हानि नहीं होती, अपितु असंख्य प्राणों की भी हानि होती है। इसका कारण भी स्पष्ट है और वह यह है कि क्रांन्ति हिंसा पर आधारित होती है और उग्र हिंसा की लपेट में जो भी आ जाता है उसे बहुधा अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। क्रान्ति में सक्रिय रूप से भाग लेने वाले अपने विपक्षी को मारने पर तुल जाते हैं, जबकि शासक वर्ग क्रान्तिकारियों को निर्दयतापूर्वक कुचल डालने के लिए कठोरतम उपायों को अपनाता है। दोनों ही स्थिति में बहुत से लोगों की जान चली जाती हैं और असंख्य लोग घायल होते हैं। हताहतों की संख्या इस पर निर्भर होती है कि क्रान्ति कितने दिन चलेगी और कितनी उग्र होगी।
5. धर्म व प्रथाओं पर आघात (Attack on Religion and Customs) - क्रान्ति नवीनता की इच्छा करने वाली तथा परिवर्तन की पुजारिन होती है। जो भी प्राचीन परम्परायें है उस सबको जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ही क्रान्ति की आवश्यकता होती हैं। यही विचार क्रन्तिकारियों का होता है। अतः क्रान्ति धर्म तथा प्रथा-परम्परा पर भी गहरा आघात करती है। फ्रांस व रूस की क्रान्ति के समय ऐसा ही हुआ था।
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- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
- प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
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- प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
- प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
- प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
- प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
- प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
- प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
- प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
- प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
- प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
- प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
- प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
- प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
- प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
- प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
- प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
- प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
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- प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
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- प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
- प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
- प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
- प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?