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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2651
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 समाजशास्त्र

प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।

उत्तर -

सामाजिक आन्दोलन 

भारतीय समाज एक अति प्राचीन समाज है। इतिहासज्ञों ने इस समाज का लगभग पिछले 5000 वर्षों का इतिहास लिपिबद्ध किया है। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में भारतीय समाज को हम चार कालों में विभाजित कर सकते हैं। प्राचीन काल (लगभग 3000 ईसा पूर्व से 700 ई० तक), मध्यकाल (701 से 1750 ई० तक ), आधुनिक काल ( 1751 से 1947 ई० तक) एवं समकालीन काल (1947 ई० से आज तक)।

यह काल विभाजन विश्लेषण की सरलता की दृष्टि से किया गया है अन्यथा काल-प्रवाह को किसी भी तरह निश्चित अवधियों में बाँटा नहीं जा सकता, क्योंकि प्रत्येक युग में पिछले युग के तत्व भी सम्मिलित होते हैं और यह भावी युग की सम्भावनाओं को अपने में समाए होता है।

प्राचीन भारत का लगभग 4000 वर्ष का इतिहास एक दीर्घकालीन सांस्कृतिक विकास की प्रक्रिया को प्रकट करता है जिसमें भारतीय समाज की मूल परम्परायें पूर्ण रूप से विकसित हुई। वैदिक संस्कृति के इसी युग में भारतीय सामाजिक संरचना की संस्थागत आधारशिलायें एवं वैचारिक मान्यतायें भी विकसित हुईं। वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था, जाति व्यवस्था, पितृसत्ता, लिंग विभेदीकरण तथा ग्राम प्रधानता भारतीय सामाजिक संरचना की प्रमुख संस्थागत आधारशिलायें हैं। धर्म, कर्म, पुनर्जन्म, पुरुषार्थ तथा संसारेतर (other worldliness) इसकी प्रमुख वैचारिक मान्यताएँ हैं मध्यकाल तथा आधुनिक काल में इन संस्थागत आधारशिलाओं में काफी परिवर्तन हुआ है। परन्तु इनका महत्व किसी-न-किसी रूप में समकालीन भारतीय समाज में पाया जाता है।

भारतीय समाज का अध्ययन करने वाले विद्वानों ने इसकी प्रमुख संरचनात्मक विशेषताएँ खोजने का प्रयास किया है। एम० एन० श्रीनिवास ने भारतीय सामाजिक संरचना की प्रमुख विशेषता इसकी सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को बताया है। ड्यूमों ने श्रेणीबद्धता को भारतीय समाज का प्रमुख लक्षण माना है। उनके अनुसार, इस समाज को वर्ण और जाति के ऊँचे-नीचे श्रेणीबद्ध क्रम सोपान के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। योगेन्द्र सिंह ने भारतीय समाज के चार प्रमुख संरचनात्मक व परम्परागत लक्षण बताये हैं-

श्रेणीबद्धता, समग्रवाद, निरन्तरवाद तथा लोकातीतत्व। मैण्डलबाम ने भारतीय समाज को समझने के लिये दो अवधारणाओं को इसकी कुँजी के समान मानावे हैं-जाति तथा धर्म।

 

सामाजिक आन्दोलन के कारण -

सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार सामाजिक आन्दोलन की ऐतिहासिकता बहुत लम्बी है। आन्दोलन के मूल में सामाजिक प्रतिकूलता व व्युतक्रमता का विशेष महत्व होता है जिनको हम निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से स्पष्ट कर सकते हैं -

(1) सामाजिक सरंचना में असमानता - सामाजिक आन्दोलन संरचना की असमानता के आधार पर अधिक गतिमान होता है। समाज की व्यवस्था जब अलग-थलग हो जाती है सामाजिक ताना-बाना कमजोर हो जाता है नियन्त्रण शिथिल पड़ने लगता है तो सामाजिक आन्दोलन अवश्यम्भावीर हो जाता है। सामाजिक व्यवस्थापन में सहगामी भूमिका निभाने वाले घटक (संस्थाओं, रूढ़ियों जनरीतियों, प्रथाओं आदि) जब कमजोर हो जाते हैं तो आन्दोलन का स्वर तीव्र हो जाता है।

(2) वितरण प्रणाली में व्युतक्रमता - सामाजिक आन्दोलन की कार्य-विधि में बदलाव के तत्व वितरण प्रणाली की व्युतक्रमता में देखे जा सकते हैं। सर्वसमाज में यदि वितरण व्यवस्था सन्तुलित हो तो समाज की संरचना व व्यवस्था प्रगति की ओर उन्मुख रहती है परन्तु वितरण प्रणाली जब असन्तुलित हो जाती है जो जनआक्रोश बढ़ने लगता है और आन्दोलन की ज्वाला भड़क उठती है। वितरण व्यवस्था से स्वस्थ समाज का निर्माण होता है। स्वस्थ समाज ही आदर्शता को प्रतिस्थापित करता है। वितरण प्रणाली की ऐतिहासिकता यह दर्शाती है कि उसके व्यवस्थापन से ही समाज श्रेष्ठ हो सकता है।

(3) वर्ग विशेष को प्राथमिकता - आन्दोलनों के इतिहास का सिंहावलोकन करने से यह तथ्य निष्कर्षीकृत होता है कि जब भी आन्दोलन हुए उसके मूल में अकर्मण्य व्यक्तियों व अवसरवादियों को अधिक महत्व दिया गया जिसके फलस्वरूप जनमानस आन्दोलन करने के लिये विवश हुआ। भाई-भतीजावाद को जब-जब प्राथमिकता मिलेगी तब-तब आन्दोलन व क्रान्तियाँ जनित होगी। जाति, प्रजाति नृजाति, उपजाति, क्षेत्रवाद सम्प्रदायवाद, व्यक्तिवाद को प्रश्रय मिलेगा तो आन्दोलनों और क्रान्तियों का दौर आयेगा ही।

(4) परिवर्तन के प्रति सजगता - आन्दोलन के लिये प्रबल जिज्ञासु वृत्ति उत्तरदायी मानी जाती है। जब समाज का बहुसंख्यक वर्ग वर्तमान की व्यवस्थाओं से सन्तुष्ट नहीं होता तो वह नये विचारों, मान्यताओं को स्थापित करता है जिसके फलस्वरूप आन्दोलन की लहर चल पड़ती है। मानव स्वभावतः परिवर्तन के प्रति लालायित रहता है। वह अपनी मानवीय वृत्ति के कारण नित नये आयामों को स्थापित करता रहता है और यह वाद, प्रतिवाद, समवाद की प्रवृत्ति चलती रहती है। भौतिक अभौतिक तत्वों में जब असमानता उत्पन्न होती है तो परिवर्तन अवश्यम्भावी हो जाता है। संसार के सभी विद्वानों को एक मत नहीं हो सकता। जब-जब बहुसंख्यक समाज नवीनता को प्राथमिकता देता है तब-तब आन्दोलन आरम्भ होता है। आन्दोलनों से वस्तुनिष्ठ व्यवहारिक, वैज्ञानिक तथ्य निष्कर्षीकृत होते हैं जो समाज के लिये फलदायी होते हैं।

(5) परम्पराओं व मान्यताओं के प्रति उदासीनता - शासक वर्ग जब समाज की पुष्ट परम्पराओं मान्यताओं के प्रति उदासीन हो जाता है और महत्वहीन व्यवस्थाओं, संस्थाओं, मान्यताओं को प्राथमिकता प्रदान करता है तो जनमानस आन्दोलन का सहारा लेता है। स्वस्थ मान्यताएं जनमानस को प्रेरणा प्रदान करती हैं इन प्रेरणाओं से वह प्रेरित होकर अनेक कार्यविधिओं को सम्पादित करता है। जिसके फलस्वरूप आदर्श नागरिक व श्रेष्ठ समाज निर्मित होता है। मानव क्रियाशील प्राणी है, वह हमेशा प्राचीन मान्यताओं से सीखता रहता है और भविष्य के लिये वर्तमान में श्रेष्ठ मान्यताओं को निर्मित करता रहता है परन्तु जब जनमानस ऐसा नहीं कर पाता तो आन्दोलनों के माध्यम से श्रेष्ठता को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है। वास्तव में श्रेष्ठ परम्पराओं व मान्यताओं से समाज की दिशा और दशा में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ करता है।

(6) बुद्धिजीवियों व युवाओं के प्रति अनदेखी - जब-जब कोई समाज अपनी धरोहरों और वर्तमान की थाती को चुका हुआ मानकर व्यवहार करता है, आन्दोलनों का होना स्वाभाविक है। युवा वर्ग अपने कार्य व्यवहार से समाज की काया कल्प करता है। बुद्धिजीवी वर्ग अहितकारी व्यवस्थाओं को को र्निमूलीकृत कर श्रेष्ठ विचारों को पल्लवित करते हैं। आन्दोलनों के मेरुदण्ड मे विचारकों के विचारों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जब इसके विपरीत बुद्धिजीवियों के दर्शनों और युवाओं की प्रतिभाओं को नजरअंदाज किया जाता है तो आन्दोलनों का दौर प्रगाढ़ होने लगता है।

प्रत्येक आन्दोलनों में ये सामाजिक आधार अवश्य विद्यमान रहते हैं। आन्दोलन एक दिन की विधा न होकर अनेक दिनों में घटने वाली घटनाओं का प्रतिफल है।

सामाजिक आन्दोलन के परिणाम

सामाजिक आन्दोलन के परिणाम निम्नवत् है -

(1) सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन - जब आन्दोलन होता है तो सामाजिक परिवर्तन अवश्यम्भावी है। व्यवस्था की निष्क्रियता आन्दोलन को जन्म देती है और जब उन्ही विषयों को लेकर आन्दोलन छिड़ता है तो व्यवस्था में परिवर्तन होना स्वाभविक है। आन्दोलनों से सन्तुलन को प्राथमिकता मिलती है जिसके फलस्वरूप सामाजिक व्यवस्थापन को स्थिरता व मजबूती मिलती है।

(2) नवीन संस्थाओं व मूल्यों का निर्माण - सामाजिक आन्दोलन के फलस्वरूप नये मूल्यों का सृजन होता है व अनेक नवीन संस्थाओं के प्रस्फुटन का अवसर प्राप्त होता है। विद्वानों के शिष्ट मण्डल द्वारा आधुनकतम विचारों को सम्बधिंत होने का अवसर मिलता है जिसके फलस्वरूप समाज के अनेक क्षेत्रों में नयी-नयी संस्थाओं, व्यवस्थाओं का सृजन होता है। जिन संस्थाओं में श्रेष्ठता के तत्व निहित नहीं होते हैं वे संस्थाएं आन्दोलन के समय मृत हो जाती हैं, उनका स्थान नयी संस्थाएं ग्रहण कर लेती हैं। मुल्य मानव को उच्चतम शिखर पर आरूढ़ करते हैं और जब मूल्य ही अस्तित्वहीन हो जायेगे तो मानव किर्त्तव्यविमूढ़ता की ओर उन्मुख हो सकता है।

(3) प्रौद्योगिकी व यन्त्रीकरण का विकास - सामाजिक आन्दोलन के परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकी व यन्त्रीकरण के क्षेत्र में अभूतपूर्ण प्रगति हुई है। भारत में यन्त्रीकरण ने ऐसा संजाल विकसित किया है कि खाद्यान्न के क्षेत्र अपना देश आत्मनिर्भर ही नहीं हुआ है बल्कि निर्यात कर, विदेशी राज्यस्व का भण्डारण भी कर रहा है। इंडियन टैक्नोलाजी को आज विदेशों में वरीयता मिल रही है और लभभग सभी क्षेत्रों में भारत कीर्तिमान स्थापित करता चला जा रहा है। हरित क्रान्ति, आपरेशन फ्लड योजना नीली क्रान्ति, पीली क्रान्ति, भूरी क्रान्ति इन्द्रधनुषी क्रान्ति, मोबाइल क्रान्ति, रंगीन क्रान्ति आदि सामाजिक आन्दोलनों के परिणामस्वरूप भारत वैश्विक पटल पर दैदिप्यमान हो रहा है।

(4) राजनैतिक संचेतना - सामाजिक आन्दोलन के परिणामस्वरूप नये दर्शनो, प्राक्कथनों व सन्दर्भों को पल्लवित होने का अवसर मिलता है। जनमानस में राजनैतिक भावनाओं को प्राक्कट्टीकरण का संचार तेजी से होने लगता है। अपने कर्त्तव्यों व अधिकारों से मानव परिचित होने लगता है और अनेक निहितार्थो व छद्म भावनाओं को समझने लगता है। पूर्व की अपेक्षा समाज अधिक जागरूक व क्रियाशील हो जाता है। मानव स्वभाव से जितना दार्शनिक होता है उतना ही सामाजिक व राजनैतिक होता है जनश्रुतियों में कहा जाता है कि 'हित अनहित पशु-पक्षीव जाना'। आन्दोलनों के परिणामस्वरूप जनसामान्य प्रत्येक विधाओं से परिचित हो जाता है व अनेक घटनाओं के कार्य-कारण व सम्बन्धों तथा सूत्रों से परिचित हो जाता है। प्रत्येक स्थिति में उसकी अतंसचेतना विकसित हो जाती है।

सामाजिक आन्दोलन स्वस्थ समाज के लिये अपरिहार्य तथ्य है। सामाजिक आन्दोलनों से जहाँ नवीन व्यवस्थाओं को प्रोत्सहान मिलता है वही अनेक व्यवस्थाएं हतोत्साहित होकर मृतप्राय हो जाती हैं। सामाजिक आन्दोलन से जन-धन की हानि तो होती ही है साथ ही साथ अमूल्य समय भी नष्ट होता है। सामाजिक आन्दोलनों का परिणाम लाभकारी के साथ-साथ विनाशकारी भी होता है। जनमानस को इनके परिणामों का दंश झेलना पड़ता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारकों का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के भौगोलिक कारक की विवेचना कीजिए।
  3. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जैवकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  4. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारक की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के राजनैतिक तथा सेना सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में महापुरुषों की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रौद्योगिकीय कारक की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक की विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विचाराधारा सम्बन्धी कारक की विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारक की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक कारक की विवेचना कीजिए।
  12. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा बताते हुए इसकी विशेषताएं लिखिए।
  13. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषतायें बताइये।
  14. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की प्रमुख प्रक्रियायें बताइये तथा सामाजिक परिवर्तन के कारणों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जैविकीय कारकों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  16. प्रश्न- माल्थस के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  17. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्राकृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों व प्रणिशास्त्रीय कारकों का वर्णन कीजिए।
  18. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक कारकों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- प्राणिशास्त्रीय कारक और सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में जनसंख्यात्मक कारक के महत्व की समीक्षा कीजिए।
  21. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के आर्थिक कारक बताइये तथा आर्थिक कारकों के आधार पर मार्क्स के विचार प्रकट कीजिए?
  22. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में आर्थिक कारकों से सम्बन्धित अन्य कारणों को स्पष्ट कीजिए।
  23. प्रश्न- आर्थिक कारकों पर मार्क्स के विचार प्रस्तुत कीजिए।
  24. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकीय कारकों की भूमिका की विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सांस्कृतिक कारकों का वर्णन कीजिए। सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन (Cultural Lag) के सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना या पश्चायन का सिद्धान्त प्रस्तुत कीजिए।
  27. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में सहायक तथा अवरोधक तत्त्वों को वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- सामाजिक संरचना के विकास में असहायक तत्त्वों का वर्णन कीजिए।
  29. प्रश्न- केन्द्र एवं परिरेखा के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- प्रौद्योगिकी ने पारिवारिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित व परिवर्तित किया है?
  31. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में सूचना प्रौद्योगिकी की क्या भूमिका है?
  33. प्रश्न- निम्नलिखित पुस्तकों के लेखकों के नाम लिखिए- (अ) आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन (ब) समाज
  34. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी एवं विकास के मध्य सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सूचना तंत्र क्रान्ति के सामाजिक परिणामों की व्याख्या कीजिए।
  36. प्रश्न- जैविकीय कारक का अर्थ बताइये।
  37. प्रश्न- सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन में अन्तर बताइए।
  38. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के 'प्रौद्योगिकीय कारक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  39. प्रश्न- जनसंचार के प्रमुख माध्यम बताइये।
  40. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी की सामाजिक परिवर्तन में भूमिका बताइये।
  41. प्रश्न- सूचना प्रौद्योगिकी क्या है?
  42. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास से आप क्या समझते हैं? सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  43. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास के विभिन्न स्तरों का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- भारत में सामाजिक उद्विकास के कारकों का वर्णन कीजिए।
  45. प्रश्न- भारत में सामाजिक विकास से सम्बन्धित नीतियों का संचालन कैसे होता है?
  46. प्रश्न- विकास के अर्थ तथा प्रकृति को स्पष्ट कीजिए। बॉटोमोर के विचारों को लिखिये।
  47. प्रश्न- विकास के आर्थिक मापदण्डों की चर्चा कीजिए।
  48. प्रश्न- सामाजिक विकास के आयामों की चर्चा कीजिए।
  49. प्रश्न- सामाजिक प्रगति से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ लिखिए।
  50. प्रश्न- सामाजिक प्रगति की सहायक दशाएँ कौन-कौन सी हैं?
  51. प्रश्न- सामाजिक प्रगति के मापदण्ड क्या हैं?
  52. प्रश्न- निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
  53. प्रश्न- क्रान्ति से आप क्या समझते हैं? क्रान्ति के कारण तथा परिणामों / दुष्परिणामों की विवेचना कीजिए |
  54. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास एवं प्रगति में अन्तर बताइये।
  55. प्रश्न- सामाजिक उद्विकास की अवधारणा की व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- विकास के उपागम बताइए।
  57. प्रश्न- भारतीय समाज मे विकास की सतत् प्रक्रिया पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  58. प्रश्न- मानव विकास क्या है?
  59. प्रश्न- सतत् विकास क्या है?
  60. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  61. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के रेखीय सिद्धान्त का वर्णन कीजिए।
  62. प्रश्न- वेबलन के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  63. प्रश्न- मार्क्स के सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन क्या है? सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय तथा रेखीय सिद्धान्तों में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  65. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की समीक्षा कीजिये।
  66. प्रश्न- सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त की आलोचना कीजिए।
  67. प्रश्न- अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा क्या है?
  68. प्रश्न- विलफ्रेडे परेटो द्वारा सामाजिक परिवर्तन के चक्रीय सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  69. प्रश्न- माल्थस के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- आर्थिक निर्णायकवादी सिद्धान्त पर टिप्पणी लिखिए।
  71. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का सोरोकिन का सिद्धान्त एवं उसके प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- ऑगबर्न के सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- चेतनात्मक (इन्द्रियपरक ) एवं भावात्मक ( विचारात्मक) संस्कृतियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  74. प्रश्न- सैडलर के जनसंख्यात्मक सिद्धान्त पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  75. प्रश्न- हरबर्ट स्पेन्सर का प्राकृतिक प्रवरण का सिद्धान्त क्या है?
  76. प्रश्न- संस्कृतिकरण का अर्थ बताइये तथा संस्कृतिकरण में सहायक अवस्थाओं का वर्गीकरण कीजिए व संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  77. प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- संस्कृतिकरण की प्रमुख विशेषतायें बताइये। संस्कृतिकरण के साधन तथा भारत में संस्कृतिकरण के कारण उत्पन्न हुए सामाजिक परिवर्तनों का वर्णन करते हुए संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
  79. प्रश्न- भारत में संस्कृतिकरण के कारण होने वाले परिवर्तनों के विषय में बताइये।
  80. प्रश्न- संस्कृतिकरण की संकल्पना के दोष बताइये।
  81. प्रश्न- पश्चिमीकरण का अर्थ एवं परिभाषायें बताइये। पश्चिमीकरण की प्रमुख विशेषता बताइये तथा पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणामों की विवेचना कीजिए।
  82. प्रश्न- पश्चिमीकरण के लक्षण व परिणाम बताइये।
  83. प्रश्न- पश्चिमीकरण ने भारतीय ग्रामीण समाज के किन क्षेत्रों को प्रभावित किया है?
  84. प्रश्न- आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन में संस्कृतिकरण एवं पश्चिमीकरण के योगदान का वर्णन कीजिए।
  85. प्रश्न- संस्कृतिकरण में सहायक कारक बताइये।
  86. प्रश्न- समकालीन युग में संस्कृतिकरण की प्रक्रिया का स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
  87. प्रश्न- पश्चिमीकरण सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया के रूप में स्पष्ट कीजिए।
  88. प्रश्न- जातीय संरचना में परिवर्तन किस प्रकार से होता है?
  89. प्रश्न- स्त्रियों की स्थिति में क्या-क्या परिवर्त हुए हैं?
  90. प्रश्न- विवाह की संस्था में क्या परिवर्तन हुए स्पष्ट कीजिए?
  91. प्रश्न- परिवार की स्थिति में होने वाले परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
  92. प्रश्न- सामाजिक रीति-रिवाजों में क्या परिवर्तन हुए वर्णन कीजिए?
  93. प्रश्न- अन्य क्षेत्रों में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- आधुनिकीकरण के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचार प्रकट कीजिए।
  95. प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं की व्याख्या कीजिए।
  96. प्रश्न- आधुनिकीकरण को परिभाषित करते हुए विभिन्न विद्वानों के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों का वर्णन कीजिए।
  97. प्रश्न- डा. एम. एन. श्रीनिवास के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को बताइए।
  98. प्रश्न- डेनियल लर्नर के अनुसार आधुनिकीकरण की विशेषताओं को बताइए।
  99. प्रश्न- आइजनस्टैड के अनुसार, आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइये।
  100. प्रश्न- डा. योगेन्द्र सिंह के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को समझाइए।
  101. प्रश्न- ए. आर. देसाई के अनुसार आधुनिकीकरण के तत्वों को व्यक्त कीजिए।
  102. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ तथा परिभाषा बताइये? भारत में आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  103. प्रश्न- आधुनिकीकरण के प्रमुख लक्षण बताइये।
  104. प्रश्न- भारतीय समाज पर आधुनिकीकरण के प्रभाव की व्याख्या कीजिए।
  105. प्रश्न- लौकिकीकरण का अर्थ, परिभाषा व तत्व बताइये। लौकिकीकरण के कारण तथा प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  106. प्रश्न- लौकिकीकरण के प्रमुख कारण बताइये।
  107. प्रश्न- धर्मनिरपेक्षता क्या है? धर्मनिरपेक्षता के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिये।
  108. प्रश्न- वैश्वीकरण क्या है? वैश्वीकरण की सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिक्रिया की व्याख्या कीजिए।
  109. प्रश्न- भारत पर वैश्वीकरण और उदारीकरण के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर प्रभावों का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- भारत में वैश्वीकरण की कौन-कौन सी चुनौतियाँ हैं? वर्णन कीजिए।
  111. प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. वैश्वीकरण और कल्याणकारी राज्य, 2. वैश्वीकरण पर तर्क-वितर्क, 3. वैश्वीकरण की विशेषताएँ।
  112. प्रश्न- निम्नलिखित शीर्षकों पर टिप्पणी लिखिये - 1. संकीर्णता / संकीर्णीकरण / स्थानीयकरण 2. सार्वभौमिकरण।
  113. प्रश्न- संस्कृतिकरण के कारकों का वर्णन कीजिये।
  114. प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के किन्हीं दो दुष्परिणामों की विवचेना कीजिए।
  115. प्रश्न- आधुनिकता एवं आधुनिकीकरण में अन्तर बताइए।
  116. प्रश्न- एक प्रक्रिया के रूप में आधुनिकीकरण की विशेषताएँ लिखिए।
  117. प्रश्न- आधुनिकीकरण की हालवर्न तथा पाई की परिभाषा दीजिए।
  118. प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण की व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- भारत में आधुनिकीकरण के दुष्परिणाम बताइये।
  120. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन से आप क्या समझते हैं? सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
  121. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन का अध्ययन किस-किस प्रकार से किया जा सकता है?
  122. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के गुणों की व्याख्या कीजिये।
  123. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के सामाजिक आधार की विवेचना कीजिये।
  124. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन को परिभाषित कीजिये। भारत मे सामाजिक आन्दोलन के कारणों एवं परिणामों का वर्णन कीजिये।
  125. प्रश्न- "सामाजिक आन्दोलन और सामूहिक व्यवहार" के सम्बन्धों को समझाइये |
  126. प्रश्न- लोकतन्त्र में सामाजिक आन्दोलन की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  127. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलनों का एक उपयुक्त वर्गीकरण प्रस्तुत करिये। इसके लिये भारत में हुए समकालीन आन्दोलनों के उदाहरण दीजिये।
  128. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के तत्व कौन-कौन से हैं?
  129. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विकास के चरण अथवा अवस्थाओं को बताइये।
  130. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के उत्तरदायी कारणों पर प्रकाश डालिये।
  131. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के विभिन्न सिद्धान्तों का सविस्तार वर्णन कीजिए।
  132. प्रश्न- "क्या विचारधारा किसी सामाजिक आन्दोलन का एक अत्यावश्यक अवयव है?" समझाइए।
  133. प्रश्न- सर्वोदय आन्दोलन पर टिप्पणी लिखिए।
  134. प्रश्न- सर्वोदय का प्रारम्भ कब से हुआ?
  135. प्रश्न- सर्वोदय के प्रमुख तत्त्व क्या है?
  136. प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन का मूल्यांकन कीजिए।
  137. प्रश्न- भारत में नक्सली आन्दोलन कब प्रारम्भ हुआ? इसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- नक्सली आन्दोलन के प्रकोप पर प्रकाश डालिए।
  139. प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की क्या-क्या माँगे हैं?
  140. प्रश्न- नक्सली आन्दोलन की विचारधारा कैसी है?
  141. प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का नवीन प्रेरणा के स्रोत बताइये।
  142. प्रश्न- नक्सली आन्दोलन का राजनीतिक स्वरूप बताइये।
  143. प्रश्न- आतंकवाद के रूप में नक्सली आन्दोलन का वर्णन कीजिए।
  144. प्रश्न- भ्रष्टाचार के विरुद्ध आंदोलन पर एक निबन्ध लिखिए।
  145. प्रश्न- "प्रतिक्रियावादी आंदोलन" से आप क्या समझते हैं?
  146. प्रश्न - रेनांसा के सामाजिक सुधार पर प्रकाश डालिए।
  147. प्रश्न- 'सम्पूर्ण क्रान्ति' की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  148. प्रश्न- प्रतिक्रियावादी आन्दोलन से आप क्या समझते हैं?
  149. प्रश्न- सामाजिक आन्दोलन के संदर्भ में राजनीति की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  150. प्रश्न- भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में सरदार वल्लभ पटेल की भूमिका की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  151. प्रश्न- "प्रतिरोधी आन्दोलन" पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  152. प्रश्न- उत्तर प्रदेश के किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिए।
  153. प्रश्न- कृषक आन्दोलन क्या है? भारत में किसी एक कृषक आन्दोलन की विवेचना कीजिये।
  154. प्रश्न- श्रम आन्दोलन की आधुनिक प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
  155. प्रश्न- भारत में मजदूर आन्दोलन के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  156. प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' के बारे में अम्बेडकर के विचारों की विश्लेषणात्मक व्याख्या कीजिए।
  157. प्रश्न- भारत में दलित आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारकों की विवेचना कीजिये।
  158. प्रश्न- महिला आन्दोलन से क्या तात्पर्य है? भारत में महिला आन्दोलन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारणों की विवेचना कीजिये।
  159. प्रश्न- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक आन्दोलनों पर एक लेख लिखिये।
  160. प्रश्न- "पर्यावरणीय आंदोलन" के सामाजिक प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
  161. प्रश्न- भारत में सामाजिक परिवर्तन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी कीजिये। -
  162. प्रश्न- कृषक आन्दोलन के प्रमुख कारणों की व्याख्या कीजिए।
  163. प्रश्न- श्रम आन्दोलन के क्या कारण हैं?
  164. प्रश्न- 'दलित आन्दोलन' से आप क्या समझते हैं?
  165. प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलनों के सामाजिक महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  166. प्रश्न- पर्यावरणीय आन्दोलन के सामाजिक प्रभाव क्या हैं?

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