लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

अध्याय - 2

हिन्दी गद्य की महत्वपूर्ण विधाओं का ऐतिहासिक विकास

 

प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।

अथवा
हिन्दी कहानी के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिये।

उत्तर -

19वीं सदी का उत्तरार्द्ध आधुनिक हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल का प्रस्थान बिन्दु है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इस काल को 'गद्य काल' की संज्ञा दी है। इसका कारण स्पष्ट है कि मध्यकाल तक काव्य ही साहित्य के केन्द्र में था। यद्यपि इस दौरान ब्रजभाषा में गद्य भी लिखा जाता रहा है, किन्तु विशुद्ध साहित्यिक दृष्टि से उसका महत्व नगण्य है। आधुनिक काल में गद्य हिन्दी साहित्य की प्रधान विधा बनकर उभरा। इसका कारण आधुनिक युग की तेजी से उदीयमान परिस्थितियों में ढूंढा जा सकता है। यूरोपीय सभ्यता के संपर्क में आने से युवा वर्ग में नई चेतना का संचार हुआ। युवाओं को अपनी मध्यकालीन जड़ता का बोध हुआ तथा साथ ही इन्हें यूरोप की वैज्ञानिक व साहित्यिक प्रगति ने चमत्कृत किया। अतः जीवन और जगत के प्रति उनकी सोच और समझ का दायरा बढ़ा तथा कविता की संकुचित सीमा छोड़कर गद्य की विभिन्न विधाओं में अभिव्यक्ति की संभावना तलाशी जाने लगी।

19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में विज्ञान के विकास तथा औद्योगिक प्रगति के साथ जब छापेखाने का आवष्किार हुआ तो हिन्दी में समाचार पत्रों एवं पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। इन पत्र-पत्रिकाओं में ही सबसे पहले गद्य ने आकार लेना आरंभ किया। कहानी, आलोचना, निबंध एवं रेखाचित्र जैसी विधायें इन्हीं पत्र-पत्रिकाओं के सहारे विकसित हुईं। अतएव यह कहा जा सकता है कि गद्य की विभिन्न दूसरी विधाओं के साथ गद्य की कहानी विधा भी अपने वर्तमान रूप में 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध की देन है।

कहानी वह गद्य रचना है जिसमें जीवन के किसी एक अंश का चित्रण होता हैं। इसमें उपन्यास की भाँति जीवन को समग्रता में चित्रित नहीं किया जाता है, अपितु उसके किसी विशेष पहलू या किसी विशेष आतंरिक भाव को चित्रित किया जाता है। रोचकता एवं कलात्मकता इसके आवश्यक तत्व हैं। कहानी का उद्देश्य मात्र मनोरंजन करना नहीं होता, वरन यह मनुष्य में छिपी आन्तरिक व्यथा, अनुभूति आदि को उद्घाटित करके पाठक की चेतना पर मर्मस्पर्शी चोट करती है। उत्कृष्ट कहानी वही है जो अपने सजीव चित्र एवं कथ्य से पाठक के मन-मस्तिष्क को भाव-विभोर कर दें।

आधुनिक कहानी का स्वरूप और गठन पश्चिम की कहानी पर आधारित है। कहानी क्या होती है ? या उसे कैसा होना चाहिए ? इन प्रश्नों पर पश्चिमी देशों के साहित्य जगत में पर्याप्त चर्चा हुई है। अच्छी कहानी की सात विशेषताएँ बतायी गयी हैं -

1. एकमात्र प्रधान घटना
2. एक चरित्र की प्रधानता,
3. कल्पना,
4. कथावस्तु
5. कसाव : संक्षिप्तता,
6. गठन, एवं
7 प्रभाव की अन्विति।

इन्हीं उपर्युक्त सातों तत्त्वों की प्रभावशाली अन्विति से अच्छी कहानी निर्मित होती है। कहानी में आदि से अंत तक एक ही प्रधान कहानी घटना होती है व लेखक उसी घटना का विकास करता है। कहानी एक ही चरित्र के जीवन से संबंधित होती है व उसी के सहारे चिकसित होती है। कथावस्तु का गठन संक्षिप्त एवं कसावपूर्ण होना चाहिए। लेखक कल्पना के सहारे कथावस्तु को रोचकता प्रदान करता है। कल्पना होते हुए भी जीवन के किसी यथार्थ का संकेत होना चाहिए। कहानी में किसी अनावश्यक बात को नहीं रखना चाहिए और न किसी महत्वपूर्ण बात को छोड़ना चाहिए। कोई भी वस्तु अपनी समग्रता में जितनी महत्वपूर्ण होती है उतनी उस स्थिति में नहीं, जब हम उसके प्रत्येक अंग का अलग-अलग विश्लेषण करके देखते हैं। किसी वस्तु के कुल परिणाम की अपनी विशिष्टता होती है व उसमें अपना एक जीवित व्यक्तित्व होता है। कहानी के लिए भी यही सत्य है। कहानी के सभी अंगों का सम्यक् समायोजन होना चाहिए।

दूसरी गद्य विधाओं की तुलना में कहानी के आकार की एक सीमा होती है। एडगर एलन पो के अनुसार कहानी पढ़ने में आधे घण्टे से लेकर अधिक से अधिक दो घण्टे का ही समय लगना चाहिए। मुंशी प्रेमचंद जी तो पंद्रह-बीस मिनट का समय काफी मानते हैं। उनका इस संबंध में विचार है कि -

"हम ऐसी कहानी चाहते हैं कि वह थोड़े-से थोड़े शब्दों में कहीं जाय, उसमें एक वाक्य एक शब्द भी अनावश्यक न आने पाये, उसका पहला ही वाक्य मन को आकर्षित कर ले और अन्त तक उसे मुग्ध किये रहे और उसमें कुछ चटपटापन हो, ताजगी हो, कुछ विकास हो और इसके साथ ही कुछ तत्व भी हो।'

इस प्रकार संक्षिप्तता कहानी का महत्वपूर्ण गुण है। एडगर एलन पो के अनुसार कहानी को प्रभावित करने वाला एक तत्व है वर्णन शैली कहानी जीवन के एक लघु किन्तु रोचक अंश को व कुछ ऐसे अनुभव को जिसमें नाटकीय संभावनाएँ निहित रहती हैं, एक उत्तेजक परिस्थिति को अथवा एक ऐसे क्षण को, जो घटनाओं और अनुभूतियों का केन्द्र-बिन्दु सिद्ध होता है, अपना विषय बनाती है। लघु कहानी के विषय तथा प्रभाव में विस्तार की अपेक्षा तीव्रता एवं एकाग्रता अधिक होती है।

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी का कहानी संबंधी दृष्टिकोण जानना रोचक होगा। उनके अनुसार सरलता एवं बोधगम्यता कहानी के लिए आवश्यक है। उनका कहना है कि -

"यहाँ तो सरलता में सरलता पैदा कीजिए यही कमाल है। कहानी वह ध्रुपद की तान है जिसमें गायक महफिल शुरू होते ही अपनी संपूर्ण प्रतिभा दिखा देता है। एक क्षण में चित्त को इतने माधुर्य से परिपूरित कर देता है, जितना रात भर गाना सुनने से भी नहीं होता।"

मुंशी प्रेमचंद के अनुसार वर्तमान कहानी मनोवैज्ञानिक विश्लेषण और जीवन के यथार्थ और स्वाभाविक चित्रण को अपना ध्येय समझती है। उसमें कल्पना की मात्रा कम अनुभूतियों की मात्रा अधिक होती है। अनुभूतियाँ ही रचनाशील भावना से अनुरंजित होकर कहानी बनती हैं।

मुंशी प्रेमचंद जी के अनुसार सबसे उत्तम कहानी वह होती है, जिसका आधार किसी मनोवैज्ञानिक सत्य पर हो। बुरा आदमी भी बिल्कुल बुरा नहीं होता, उसमें भी कहीं देवता अवश्य छिपा होता है, यह - मनोवैज्ञानिक सत्य है। उस देवता को खोल कर दिखा देना सफल कहानी लेखक का काम है।

इस प्रकार प्रेमचंद कहानी को मनुष्य के चरित्र के उज्ज्जवल पहलू के उद्घाटन का साधन मानते हैं, जो कहानी मनुष्य के अंदर के देवता को न प्रकट कर दे वह कहानी अपने उद्देश्य से भटकी हुई होती है तथा वह अपने दायित्व से दूर केवल मनोरंजन मात्र होती है।

विकास कविता और नाटक की तरह आधुनिक कहानी की भी प्राचीन परंपरा हमें संस्कृत साहित्य में उपलब्ध होती है। 'कथा सरित्सागर' दशकुमार चरित्र, हितोपदेश, पंचतंत्र जैसी कथा साहित्य की पुस्तकें संस्कृत साहित्य में लिखी गयी थीं। परन्तु यहाँ पर जिस कहानी की विकास प्रक्रिया का अध्ययन हम करने जा रहे हैं, वह आधुनिक युग की देन है और उसके मूल में पश्चिम में विकसित कहानियों की प्रेरणा ही सबसे मुख्य है, इसके अलावा बांग्ला कहानियों का प्रभाव भी है। हिन्दी कथा साहित्य के विकास में मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व केन्द्रीय महत्व का है। अतः हिन्दी कहानी की विकास प्रक्रिया के सम्यक अध्ययन के लिए प्रेमचंद को केंद्र में रखकर उसे तीन भागों में विभाजित किया जाता है।

1. प्रेमचंद पूर्व युग,
2. प्रेमचंद युग
3. प्रेमचंदोत्तर युग।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book