बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञानसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 गृहविज्ञान
प्रश्न- बच्चों में पाये जाने वाले भाषा सम्बन्धी दोष तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइए।
उत्तर -
बच्चों में पाये जाने वाले उच्चारण सम्बन्धी दोष
जहाँ तक बच्चों में भाषा दोष का प्रश्न है तो 4 वर्ष की उम्र तक बच्चों में प्रायः कुछ भाषा दोष पाये जाते हैं, पर यदि इनके लिए बच्चों को रोका जायें अर्थात् उन्हें शुरू से ही सुधारा जाये तो यह दोष दूर हो जाते हैं अथवा ये दोष स्थायी हो जाते हैं। उदाहरण स्वरूप बच्चे तुतला कर बालते हैं, जो 2-5 वर्ष की उम्र में एक अस्थायी भाषा दोष है। यदि इसे सुधारा न जाये तो बढ़ती उम्र के साथ यह दोष दूर होने के बदले स्थायी हो जाता है। बड़ी उम्र में इन दोषों को दूर करना कठिन हो जाता है और तब ये दोष बच्चों में हीनता की भावना भर देते हैं जो सामाजिक समायोजन में समस्या पैदा कर देती है। बच्चों में निम्न भाषा दोष पाये जाते हैं-
(1) गलत उच्चारण (Lisping) गलत उच्चारण का कारण शारीरिक होता है। जब बच्चों के दांत, ओंठ या जबड़े का विकास सामान्य नहीं होता है। वे बच्चे गलत उच्चारण करते हैं। कई बार ऊपर और मध्य में दांत एक साथ टूट जाने से बच्चा गलत उच्चारण करता है या फिर बड़ों के द्वारा उच्चारण पर खुश होकर बच्चा गलत बोलता है, जैसे र को स बोलना, श को स कहना, कुछ तुतलाने वाले शब्द निम्न हैं-
र को स कहना।
रोटी को लोटी कहना
रिक्शा को लिक्शा कहना
शीशी को सीसी आदि।
बच्चा बोलते समय पूरा शब्द नहीं बोलता है। बीच का शब्द छोड़ देता है जैसे -अनार आर।
(2) अस्पष्ट उच्चारण ( Sluring) - बच्चा जो शब्द बोलता है उसे स्पष्ट नहीं बोलता हैं। उसका उच्चारण अस्पष्ट होता है। 4 वर्ष के बाद बच्चों में यह दोष दूर होने लगता है पर यदि किसी शारीरिक रचना की खराबी और जीभ जबड़े या फिर बच्चे को कभी लकवे का झटका लगने से मुँह की माँसपेशियों की निष्क्रियता के कारण दोष है तो ठीक होना मुश्किल है। कई बार संवेगात्मक तनाव के कारण भी बच्चे अस्पष्ट बोल जाते हैं।
(3) हकलाना (Stammering) - बोलते समय बीच-बीच में रुकना, आवाज में रुकावट आना, जिससे वह बोलते-बोलते अटक जाता है तथा वहाँ उच्चारण गलत व अशुद्ध हो जाता है। बोलने वाले अंग मुँह, होंठ, जबड़े में क्रिया होती है पर आवाज मुँह से नहीं निकलती। विभिन्न अध्ययनों से हकलाने के प्रमुख दो कारण ज्ञात हुए हैं -
(a) बच्चों में बोलने से संबंधित अंगों का असन्तुलित होना।
(b) मस्तिष्क में जो सुनने बोलने के केन्द्र होते हैं, उनमें कोई दोष होना।
(4) तुतलाना (Stattering) - बच्चे में तुतलाने की क्रिया दो प्रकार से होती है। कभी-कभी वो बोलते समय एक शब्द पर अटक कर उसे दोहराता है पर बच्चों में तुतलाना पृथक ढंग से होता है। बच्चा शब्द को सही नहीं बोलता है, जैसे उसे कहना है हम घूमने जायेंगे तो वह कहेगा हम घूमने जायेंगे।
यह दोष ढाई वर्ष से प्रारम्भ होता है। बच्चों में बोलने में सुधार उत्पन्न किया जाये तो वह शीघ्र ठीक हो जाता है।
बच्चे के भाषा-दोष दूर करने के उपाय
प्रायः बच्चों के बोलने में थोड़ा सुधार लाकर अभिभावक इन दोषों को दूर कर सकते है। प्रारम्भ से ही ध्यान न देने पर ये दोष स्थायी हो जाते है, इसलिए -
(1) बच्चों को अपनी से कम उम्र के बच्चों के साथ कुछ देर खेलने दें, बात करने दें।
(2) बच्चे के भाषा दोष उसे बताने चाहिए। उसे टोकना चाहिए पर यह ध्यान रहे कि अलोचना से उसमें हीनता की भावना न लायें, पर गलती समझकर दूर करने के लिए विश्वास पैदा करें।
(3) बच्चों के सामने शुद्ध भाषा तथा अच्छे उच्चारण के नमूने पेश करने चाहिए। यह नमूने अभिभावक, रेडियों, टेलिवीजन द्वारा प्रस्तुत किये जा सकते हैं।
(4) बच्चों के साथ अधिक से अधिक बात की जायें ताकि बच्चा सही उच्चारण सीख सके, शुद्ध बोल सके।
( 5 ) उसको वाणी दोषों के लिए हतोत्साहित न करें, उसके तुतलाने, हकलाने पर अभिभावक स्पष्ट बोले ताकि बच्चें की वाणी सही हो जाये।
(6) गलत, भ्रष्ट उच्चारित शब्दों का बार-बार सही अभ्यास करायें।
(7) बच्चों को शब्दों का अर्थ सही ढंग से समझायें।
(8) बच्चे को एक अच्छा श्रोता बनाना सिखाएँ, उसे शिक्षाप्रद अच्छी-अच्छी कहानियों सुनाएँ, फिर उससे सुनें ताकि वह उसे सही उच्चारित कर सुना सके।
अभिभावकों द्वारा बच्चों को सही दिशा में कराये गये अभ्यास से बच्चों की भाषा विकार एवं अन्य दोष दूर किया जा सकता है।
बच्चे के बौद्धिक विकास को भाषा के साथ-साथ मानसिक शक्तियाँ भी प्रभावित करती हैं। पहले ये माना जाता था कि बच्चों में मानसिक शक्तियाँ नहीं होती हैं, पर अब मनोवैज्ञानिक अध्ययनों से स्पष्ट हो गया है कि बच्चों में सभी मानसिक शक्तियाँ होती हैं। ये मानसिक शक्ति स्मृति, कल्पना, तर्क निर्णय की शक्ति तथा ध्यान होती हैं।
(1) स्मृति (Memory) - बच्चे में स्मृति का प्रदर्शन तीसरे माह के प्रारम्भ से ही हो जाता है, तब वह अपनी माँ को पहचानने लगता है अर्थात् उसे माँ की शक्ल याद रहती है। 5 माह का बच्चा अपनी माँ की आवाज पहचानने लगता है। 11 महीने में यह अस्पष्ट शब्द उच्चारित करता है। इसी प्रकार श्री बुहलर के अनुसार 10 माह का बच्चा अपना खिलौना खो जाने पर 1 मिनट तक याद रखता है व उसके बाद उसे भूल जाता है। इसी घटना को डेढ़ वर्ष का बच्चा 8 मिनट तक याद रखता है फिर भूलता है। 2 वर्ष का बच्चा अपनी खोई वस्तु को 15-16 मिनट तक याद रख सकता है व फिर भूल जाता है। यह देखा गया है कि 1 वर्ष का बच्चा 30 सेकण्ड से 60 सेकण्ड तक की पहले की घटनाओं को याद रखता है बाकी भूल जाता है।
बुहलर के अनुसार एक वर्ष का बच्चा यदि 4 महीने बाद अपने माता-पिता को देखता है तो भूल चुका होता है. पहचान नहीं पाता है पर यदि पिता 10 या 15 दिन बाद लौटता है तो 1 वर्ष का बच्चा उसे पहचान लेता है। दो वर्ष के बच्चे की स्मृति तेज हो जाती है। अब वह 3-4 दिन तक वस्तु याद रखता है और अपने रिश्तेदारों को 2 वर्ष का बच्चा 3-4 माह बाद देखकर भी पहचान लेता है। दो वर्ष की उम्र में बच्चा नकल करना शुरू कर देता है। 2 वर्ष का बच्चा पहले देखें चित्रों में एक चित्र पहचान लेता है। इसी प्रकार 3 वर्ष का बच्चा 4 चित्र तथा 4 वर्ष का बच्चा 8 चित्र और 5 वर्ष का बच्चा 10 चित्रों को पहचान लेता है। चित्रों की स्मृति में लड़कों को लड़कियों से श्रेष्ठ पाया गया। 1 वर्ष की उम्र से ही बच्चों में पुनः स्मरण की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।
स्टार ने बच्चों के अंकों को स्मरण करने की शक्ति पर अध्ययन किया कि 4 वर्ष का बच्चा एक बार सुने अंकों से 4 अंक याद रखता है। 6 वर्ष का बच्चा 8 अंकों को याद रख सकता है। 9 से 12 वर्ष की उम्र में लडकियों के याद करने की शक्ति लड़कों से अधिक होती है।
स्टार के अनुसार देखी वस्तु की याद सुनी हुई वस्तुओं की याद से तीव्र होती है क्योंकि सुनने की स्मरण शक्ति का विकास धीमी गति से होता है। बुक के अनुसार 4-5 वर्ष का बच्चा 3-4 दिन तक किसी वस्तु को याद रख सकता है। स्मृति शक्ति जितनी तीव्र होती है बुद्धि उतनी ही तीव्र होती है। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्टेनफोर्ड बिने ने तो अपने बुद्धि परीक्षण में स्मृति सम्बन्धी प्रश्न भी रखे हैं।
(2) कल्पना (Imagination) - हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों से देख-सुनकर जो भी ज्ञान प्राप्त करते हैं उसी ज्ञान से कल्पना का जन्म होता है, उसी ज्ञान से कल्पना का सम्बन्ध है। बच्चों में भाषा विकास के साथ-साथ कल्पना विकास होता है। भाषा विकास 10-11 माह में होता है, इसलिए कल्पना का विकास भी इसी उम्र में होता है। बच्चे की कल्पना उसके प्रत्यक्षीकरण के स्मृति के अनुसार होती है। एक बच्चे को अपने आस-पास के वातावरण में जितनी विभिन्नता दिखाई देती है, वह उतनी ही अधिक कल्पना कर सकेगा। 2 वर्ष की उम्र तक बच्चे में कल्पना का विकास बहुत मन्द गति से होता है। बच्चा अनुभवों को ही अपनी कल्पना में स्थानान्तरित करता है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ उनकी कल्पना के पूर्वानुमान बढ़ने लगते हैं।
बच्चों के खेलों में उनकी कल्पना के अनुमान होते हैं। 3 वर्ष की उम्र में बच्चों की कल्पना में झूठी उड़ाने होती हैं, जैसे- कल्पना में रेल चलाना, हवाई जहाज उड़ाना आदि। 3-4 वर्ष की उम्र में गुड्डे-गुड़ियों के खेल में घर बनाना, मम्मी-पापा बनाना, डाक्टर, टीचर बनना और कल्पना करना। 5-6 वर्ष की उम्र में बच्चा राजा-रानियों की कहानी सुनना पसन्द करता है। नाटक खेलना रुचिकर लगता है। उत्तर बाल्यावस्था में बच्चे दंड से बचने के लिए काल्पनिक बीमारियों का सहारा लेने लगते हैं। जादर, मंत्र भाग्य की कल्पना करता है। कलूपर के अनुसार, "बच्चा कल्पना जगह में अधिक रहता है। इसलिए बच्चे के सपने बड़ों की तुलना में दुःखद होते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ जैसे-जैसे वह कल्पना छोड़, वास्तविकता से नाता जोड़ता है, स्वप्न कम दुःखद होने लगते हैं।
बच्चा कल्पनाओं में अपनी अनेक इच्छाओं की पूर्ति करता है, इसलिए उसके व्यक्तित्व विकास के लिए कल्पना आवश्यक हैं।
(3) तर्क या निर्णय की शक्ति - बच्चों में तर्क या निर्णय शक्ति को जाँचने के लिए बिने साइमन ने बुद्धि परीक्षण बनाये हैं।
(a) 4 वर्ष के बच्चे के लिए छोटी-बड़ी रेखाओं में छोटी बड़ी रेखा की पहचान करना है।
(b) घोड़े कुर्सी के उपयोग सम्बन्धी प्रश्न।
(c) 5 वर्ष के बच्चे से अलग-अलग वस्तुओं के भारी हल्केपन के विषय में प्रश्न।
भाषा विकास के साथ ही बोलने का ज्ञान होने पर ही तर्क + निर्णय शक्ति आती है। जब तक बच्चा को काम में सफलता मिलती है, तर्क शक्ति का विकास नहीं होता है असफलता, इच्छानुसार काम न होने पर तर्क तथा निर्णय लेने की शक्ति का विकास अनुभवों के आधार पर बढ़ता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ने के साथ अनुभव बढ़ता है वैसे-वैसे यह शक्ति भी बढ़ती है। बच्चा समस्या को जितने अच्छे ढंग से समझता है उतना ही सही तर्क कर सकता है, निर्णय ले सकता है।
(4) ध्यान - किसी वस्तु में ध्यान लगाना बच्चा प्रथम माह से प्रारम्भ कर देता है। सबसे पहले तो रोशनी की ओर ध्यान लगाता है शुरू में वह बहुत देर तक ध्यान नहीं लगा सकता है। 4-5 माह बाद बच्चा रंगीन वस्तु की ओर आकर्षित होता है, उसे पकड़ना चाहता है। बुलाने पर उसका ध्यान आकर्षित होता है। वह मुस्कुरा कर प्रत्युत्तर देता है। 10-11 माह के उम्र में बच्चे की पसन्द-नापसन्द का विकास होता है। कई खिलौनों को वह एक विशेष ध्यान लगाकर खेलता है। 2 वर्ष का बच्चा 78 मिनट तक वस्तु पर ध्यान स्थिर रख सकता है। 5 वर्ष का बच्चा 15 मिनट तक ध्यान स्थिर रख सकता है।
बालक का ध्यान कितना स्थिर होगा यह उसके स्वभाव, स्वास्थ्य, पसन्द तथा उद्देश्य पर निर्भर है। बच्चे का ध्यान जबरदस्ती किसी ओर नहीं लगाया जा सकता है। इसके लिए आवश्यक हैं कि जिस ओर ध्यान लगाना हो उसमें बच्चे की रुचि पैदा की जाये। ध्यान तथा मानसिक विकास का घनिष्ठ सम्बन्ध है। बौद्धिक मानसिक विकास जितना अधिक होगा उतना ही स्थिर होगा।
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- प्रश्न- एक दस वर्षीय बालक के पौष्टिक तत्वों की मांग बताइए व उसके स्कूल के लिए उपयुक्त टिफिन का आहार आयोजन कीजिए।
- प्रश्न- "आहार आयोजन करते हुए आहार में विभिन्नता का भी ध्यान रखना चाहिए। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आहार आयोजन के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
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- प्रश्न- वृद्धावस्था में समायोजन को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार से समझाइए।
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