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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2642
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।

सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. सिजविक की उपयोगिता क्या है? वर्णन कीजिए।
अथवा
उपयोगितावाद की व्याख्या कीजिए।
2. उपयोगितावाद क्या है?

उत्तर -

आधुनिक सुखवाद की इस परार्थवादी मान्यता के ही कारण इस सिद्धान्त को 'सुखवाद' न कहकर 'उपयोगितावाद (Utilitarianism) कहा जाता है। उपयोगितावाद के भी दो रूप हैं। उपयोगितावाद के एक रूप में सुख को स्थूल रूप में ही अभीष्ट माना गया है। इस सिद्धान्त को स्थूल उपयोगितावाद (Gross Utilitarianism) कहा गया है। इस सिद्धान्त का प्रतिपादन बैन्थम (Bentham) ने किया। उपयोगितावाद के दूसरे रूप में सुख के परिष्कृत रूप को जीवन का लक्ष्य माना गया है। इस मान्यता से सम्बद्ध सिद्धान्त को परिष्कृत उपयोगितावाद (Refined Utilitarianism) कहा गया है तथा इसके प्रतिपादक मिल (J.S. Mill) हैं। 

वैन्थम का स्थूल उपयोगितावाद - आधुनिक सुखवाद में बैन्थम के सिद्धान्त का विशेष स्थान है। बैन्थम के सुखवाद को स्थूल उपयोगितावाद के नाम से जाना जाता है। वैन्थम ने अपने सिद्धान्त को प्रतिपादित करने के लिये मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथा नैतिक सुखवाद को समन्वित रूप में स्वीकार किया है। बैन्थम के सिद्धान्त का प्रारम्भिक परिचय उसके इस कथन से प्राप्त हो जाता है - "प्रकृति ने मनुष्य जाति को दुःख और सुख इन दो सर्वशक्तिमान शासकों की अधीनता में रख दिया है। उनको ही यह निर्देश देना है कि हमको क्या करना चाहिये और हम क्या करेंगे?" 

इस कथन से जहाँ एक ओर मनोवैज्ञानिक सुखवाद का परिचय मिलता है वहीं साथ ही साथ नैतिक सुखवाद का समर्थन भी किया गया है। बैन्थम ने स्पष्ट किया है कि मनुष्य सुख की प्राप्ति तथा दुःखों से मुक्ति प्राप्त करना चाहता है। नैतिक दृष्टिकोण से भी मनुष्य के लिये यही उचित है। बैन्थम के स्थूल उपयोगितावाद के मुख्य पक्षों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

स्वार्थ एवं परार्थ का समन्वय - मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव को स्पष्ट करते हुए बैन्थम ने कहा है, "अपने लिए सुख का अधिकांश भाग प्राप्त करना प्रत्येक बौद्धिक प्राणी का लक्ष्य है। प्रत्येक मनुष्य किसी अन्य मनुष्य की अपेक्षा अपने अधिक निकट है और कोई भी मनुष्य उसके लिये उसके सुख-दुःख को नहीं तौल सकता। उसके ही शब्दों में, "यह स्वप्न मत देखो कि कोई व्यक्ति तुम्हारे लिये अपनी छोटी उंगली भी हिलायेंगे जब तक कि ऐसा करने में उनको अपना लाभ स्पष्ट न हो। मनुष्यों ने ऐसा कभी नहीं किया और जब तक मानव स्वभाव वर्तमान तत्वों से बना है तब तक वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। परन्तु वे तुम्हारी सेवा करने की इच्छा करेंगे जबकि ऐसा करने से वे अपनी सेवा कर सकते हैं। इस प्रकार सुख-दुःख के सन्दर्भ में ही व्यक्ति के लिये कर्तव्य, नियम तथा सद्गुण आदि का महत्व है।

मनुष्य को स्वभाव से स्वार्थी मानते हुए भी बैन्थम ने परार्थवाद का समर्थन किया है। नैतिक दृष्टिकोण को स्वीकार करते हुए बैन्थम ने कहा है कि व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य व्यक्तिगत सुख नहीं है बल्कि सामाजिक या सार्वजनिक सुख को ही व्यक्ति के लिये अभीष्ट लक्ष्य मानना चाहिये। व्यक्ति को चाहिये कि वह मनुष्यमात्र के लिये अधिकतम सुख को अर्जित करने के लिये प्रयास करें। व्यक्ति के लिये उच्चतम नैतिक आदर्श है "अधिकतम परिणाम में अधिकतम व्यक्तियों का सुख।" इस प्रकार बैन्थम मानवमात्र के सुख की प्राप्ति को सर्वोच्च लक्ष्य स्वीकार करता है परन्तु इसके साथ ही वह व्यक्ति के सुख की भी किसी प्रकार से अवहेलना नहीं करता। बैन्थम ने समानता या निष्पक्षता के सिद्धान्त का समर्थन किया है।

स्थूल उपयोगितावाद - बैन्थम के सिद्धान्त में नैतिकता का मापदण्ड 'उपयोगिता' माना गया है। व्यक्ति उपयोगिता से प्रेरित होकर ही कर्म करता है। जहाँ तक सुख के रूप या प्रकार का प्रश्न है, उसके विषय में बैन्थम ने सुख के परिमाणात्मक पक्ष को अधिक महत्व दिया है। सुख के गुणात्मक पक्ष को कोई महत्व नहीं दिया गया है। यदि दो भिन्न-भिन्न साधनों द्वारा सामने परिमाण में सुख की प्राप्ति होती है तो उनमें किसी प्रकार का अन्तर स्वीकार नहीं किया जा सकता। यदि व्यक्ति को ताश खेलने तथा शेक्सपीयर का नाटक देखने या पढ़ने में बराबर परिणाम में सुख की प्राप्ति होती है तो इन दोनों में किसी प्रकार का अन्तर नहीं मानना चाहिये। वैन्थम ने स्वयं ही कहा है, "सुख का परिणाम समान होने पर पुश्पिन ( एक खेल) उतना ही शुभ है जितनी कविता बैन्थम द्वारा सुख के गुणात्मक भेद की अवहेलना तथा सुख के परिमाणात्मक पक्ष को महत्व देने के कारण ही इस सिद्धान्त को स्थूल उपयोगितावाद कहा गया है।

सुखों का मापन - बैन्थम का दृष्टिकोण है कि "सुखों को तौलो और दुःखों को तौलो और जो अधिक ठहरे वैसा ही उचित-अनुचित का प्रश्न ठहरेगा।' सुखों के मापन के लिये बैन्थम ने गणित की गणना के सिद्धान्त से प्रेरित होकर एक ऐसा मापदण्ड प्रस्तुत किया था, जिसके निम्नलिखित सात आयाम थें -

(i) तीव्रता (Intensity),
(ii) दीर्घकालीनता (Duration),
(iii) सन्निकटता (Nearness),
(iv) निश्चितता (Certainty),
(v) विशुद्धता (Purity),
(vi) उत्पादकता (Fruitfulness) तथा
(vii) व्यापकता (Extent)।

बैन्थम द्वारा प्रतिपादित उपरोक्त सात आधारों को नैतिक गणित (Moral Arithmetic) या सुखवादी गणना (Hedonistic Calculus) कहा जाता है। इस मापदण्ड द्वारा विभिन्न सुखों का मापन किया जा सकता है तथा प्राप्त परिणाम के आधार पर सुख के महत्व एवं जीवन में स्थान को आंका जा सकता है। नैतिक गणित द्वारा जिस सुख को सर्वाधिक अंक प्राप्त हों वही परम सुख है। बैन्थम ने सुखों के मूल्यांकन में व्यापकता के आधार को सर्वाधिक महत्व देकर स्वार्थ परार्थ की खाई को पाट दिया।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- गीता में वर्णित स्थितप्रज्ञ की अवधारणा की विवेचना कीजिए।
  2. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित लोक संग्रह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  3. प्रश्न- गीता के नैतिक या आदर्श सिद्धान्त का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
  4. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की विस्तारपूर्वक व्याख्या कीजिए।
  5. प्रश्न- गीता में वर्णित गुण की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- गीता में प्रतिपादित स्वधर्म की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- गीता में वर्णित योग शब्द की विवेचना कीजिए।
  8. प्रश्न- गीता में वर्णित वर्ण एवं आश्रम का विवेचन कीजिए।
  9. प्रश्न- स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या हैं? क्या मनुष्य जीवन में इस स्थिति को प्राप्त कर सकता है? संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  10. प्रश्न- निष्काम कर्मयोग का परिचय दीजिए।
  11. प्रश्न- गीता में प्रवृत्ति और निवृत्ति से आप क्या समझते हैं?
  12. प्रश्न- कर्म के सिद्धान्त का महत्व बताइए।
  13. प्रश्न- कर्म सिद्धान्त के दोष बताइए।
  14. प्रश्न- कर्मयोग के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  15. प्रश्न- लोक संग्रह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- भगवद्गीता में 'लोकसंग्रह के आदर्श' की विवेचना कीजिए।
  17. प्रश्न- पुरुषार्थ के अर्थ एवं महत्व की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- पुरुषार्थ की अवधारणा व विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
  19. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के सिद्धान्त के रूप में पुरुषार्थ की व्याख्या कीजिए।
  20. प्रश्न- विभिन्न पुरुषार्थ की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- पुरुषार्थ का विश्लेषण कीजिए।
  22. प्रश्न- पुरुषार्थ में सन्निहित मानवीय मूल्यों के अन्तर्सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
  23. प्रश्न- पुरुषार्थ किसे कहते हैं?
  24. प्रश्न- धर्म किसे कहते हैं?
  25. प्रश्न- अर्थ किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- काम किसे कहते हैं?
  27. प्रश्न- धर्म पुरुषार्थ का जीवन में क्या महत्व है?
  28. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र में 'पुनर्जन्म के सिद्धान्त' की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप परिभाषा दीजिए तथा इसके क्षेत्रों का उल्लेख करते हुए इसकी समस्याओं का विश्लेषण कीजिए।
  30. प्रश्न- धर्म-दर्शन एवं धर्म के परस्पर सम्बन्धों का विश्लेषणात्मक विवेचन कीजिए।
  31. प्रश्न- धर्म-दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। यह ईश्वरशास्त्र से किस प्रकार भिन्न है?
  32. प्रश्न- धर्म और दर्शन में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- धर्म का क्या अभिप्राय है? सामान्य धर्म के लिए मनुस्मृति में किन मानवीय गुणों का उल्लेख किया गया है?
  34. प्रश्न- विशिष्ट धर्म किसे कहते हैं? इसके प्रमुख स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
  35. प्रश्न- सामान्य धर्म और विशिष्ट धर्म में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? व्याख्या कीजिए।
  37. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के पंचमहाव्रत सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  38. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र के अणुव्रत सिद्धान्त का विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की तात्विक पृष्ठभूमि का विवेचन कीजिए।
  40. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  41. प्रश्न- परमश्रेय की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  42. प्रश्न- जैन नीतिशास्त्र में 'त्रिरत्न' की अवधारणा की विवेचन कीजिए।
  43. प्रश्न- बुद्ध के अष्टांगिक मार्ग की व्याख्या कीजिए।
  44. प्रश्न- 'बोधिसत्व' किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
  45. प्रश्न- निर्वाण के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  46. प्रश्न- 'अर्हत्' पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  47. प्रश्न- बुद्ध के नीतिशास्त्र में साधन विचार का विवेचन कीजिए।
  48. प्रश्न- बौद्ध के नीतिशास्त्र सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  49. प्रश्न- गांधीवाद से आप क्या समझते हैं? राज्य के कार्यक्षेत्र के सम्बन्ध में महात्मा गांधी की विचारधारा का वर्णन कीजिए।
  50. प्रश्न- गांधीवादी दर्शन का मूल आधार धर्म (सत्य और अहिंसा) था, संक्षेप में स्पष्ट करें।
  51. प्रश्न- गांधी जी की कार्य पद्धति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- सत्याग्रह से आप क्या समझते हैं संक्षेप में समझाइये?
  53. प्रश्न- महात्मा गाँधी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  54. प्रश्न- गाँधी जी के सात सामाजिक पाप कौन-से हैं?
  55. प्रश्न- गाँधी जी के एकादश व्रत कौन-से हैं? व्याख्या कीजिए।
  56. प्रश्न- नीतिशास्त्र से आप क्या समझते हैं? परिभाषा देते हुए इसका अर्थ स्पष्ट कीजिए।
  57. प्रश्न- नीतिशास्त्र मानवशास्त्र से किस तरह जुड़ा है? स्पष्ट कीजिये।
  58. प्रश्न- नीतिशास्त्र की विषय-वस्तु क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  59. प्रश्न- नीतिशास्त्र से क्या अभिप्राय है? इसकी प्रकृति एवं क्षेत्र बताते हुए भारतीय एवं पाश्चात्य नीतिशास्त्र में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  60. प्रश्न- नीतिशास्त्र की प्रणालियों पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  61. प्रश्न- टेलीलॉजिकल नैतिकता और कर्तव्य आधारित नैतिकता का क्या अर्थ है? इन दोनों में अन्तर बताइए।
  62. प्रश्न- कान्ट के नैतिक सिद्धान्त को समझाइए।
  63. प्रश्न- नैतिक विकास का क्या अर्थ है? नैतिक विकास के चरणों का उल्लेख कीजिए।
  64. प्रश्न- नीतिशास्त्र एक आदर्श निर्देशक सिद्धान्त है। व्याख्या कीजिए।
  65. प्रश्न- भारतीय नीतिशास्त्र को प्राथमिक जड़े कहाँ मिलती हैं? स्पष्ट कीजिए।
  66. प्रश्न- क्या नीतिशास्त्र एक विज्ञान है?
  67. प्रश्न- नैतिक तथा नैतिक-शून्य कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  68. प्रश्न- गीता के निष्काम कर्म की अवधारणा की व्याख्या कीजिए और उसकी काण्ट के कर्तव्य की अवधारणा से तुलना कीजिए।
  69. प्रश्न- नैतिक कर्म तथा नैतिक-शून्य कर्म में अन्तर लिखिए।
  70. प्रश्न- ऐच्छिक तथा अनैच्छिक कर्मों से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- ऐच्छिक व अनैच्छिक कर्म में अन्तर बताइए।
  72. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? इसका स्वरूप तथा विशेषताएँ बताइए।
  73. प्रश्न- क्या नैतिक निर्णय कर्मों के परिणाम के आधार पर होता है? विवेचना कीजिए।
  74. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं अन्य निर्णयों में क्या अन्तर है?
  75. प्रश्न- 'साध्यों का साम्राज्य।' व्याख्या कीजिए।
  76. प्रश्न- नैतिक चेतना से आप क्या समझते हैं?
  77. प्रश्न- नैतिक चेतना के मुख्य तत्व बताइए।
  78. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति से आपका क्या तात्पर्य है?
  79. प्रश्न- नैतिक परिस्थिति के लक्षण बताइए।
  80. प्रश्न- नैतिक निर्णय से आप क्या समझते हैं? साधन व साध्य का नीतिशास्त्र में क्या महत्व है?
  81. प्रश्न- नैतिक निर्णय एवं तार्किक निर्णय में अंतर क्या है?
  82. प्रश्न- क्या साध्य साधन को प्रमाणित करता है?
  83. प्रश्न- नैतिक निर्णय की आवश्यक मान्यताएँ क्या हैं? व्याख्या कीजिए।
  84. प्रश्न- नैतिकता की मान्यताओं की व्याख्या कीजिए।
  85. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक मान्यताओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- नैतिकता में किसका प्राधिकार है "चाहिए" का या आवश्यक का।
  87. प्रश्न- अनैतिक कर्म क्या है? व्याख्या कीजिए।
  88. प्रश्न- सुखवाद से आप क्या समझते हैं? यह कितने प्रकार का होता है?
  89. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक सुखवाद से आप क्या समझते हैं? समीक्षा कीजिए।
  90. प्रश्न- प्राचीन सुखवाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- विकासवादी सुखवाद क्या है?
  92. प्रश्न- उपयोगितावाद के लिये सिजविक की क्या युक्तियाँ हैं? व्याख्या कीजिए।
  93. प्रश्न- बैन्थम के उपयोगितावाद की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  94. प्रश्न- बैंन्थम के स्थूल परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  95. प्रश्न- मिल के परिष्कृत उपयोगितावाद का आलोचनात्मक विवरण प्रस्तुत कीजिए।
  96. प्रश्न- मिल के परिष्कृत परसुखवाद की समीक्षात्मक विवेचना कीजिए।
  97. प्रश्न- उपयोगितावाद एवं अन्तःअनुभूतिवाद के सापेक्षिक गुणों का संकेत कीजिए।
  98. प्रश्न- कर्मवाद का सिद्धान्त भारतीय दर्शन का मुख्य स्तम्भ है। व्याख्या कीजिए।
  99. प्रश्न- मिल के उपयोगितावाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है?
  100. प्रश्न- "सुखवाद के विरोधाभास" को स्पष्ट कीजिए।
  101. प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  102. प्रश्न- नैतिक सिद्धान्त के रूप में अन्तः प्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  103. प्रश्न- रसेन्द्रियवाद क्या है? विवेचन कीजिए।
  104. प्रश्न- दार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का समीक्षात्मक विवेचन कीजिए।
  105. प्रश्न- बटलर के अन्तःकरणवाद या अन्तःप्रज्ञावाद सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  106. प्रश्न- नैतिक गुण के विषय में अन्तः प्रज्ञावाद के विचार का विवेचन कीजिए।
  107. प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
  108. प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
  109. प्रश्न- बुद्धिवाद या कठोरतावाद तथा सुखवाद क्या है? वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- स्टोइकवाद क्या है? व्याख्या कीजिए।
  111. प्रश्न- मध्यकालीन बुद्धिवाद या ईसाई वैराग्यवाद की व्याख्या कीजिए।
  112. प्रश्न- काण्ट के कठोरतावाद के रूप में आधुनिक बुद्धिवाद की व्याख्या कीजिए।
  113. प्रश्न- काण्ट द्वारा प्रतिपादित नैतिक सूत्र का आलोचनात्मक परिचय दीजिए।
  114. प्रश्न- काण्ट के नैतिक सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  115. प्रश्न- काण्ट के नीतिशास्त्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए एवं गीता के निष्काम कर्म से इसकी तुलना कीजिए।
  116. प्रश्न- काण्ट के बुद्धिवादी नीतिशास्त्र का समीक्षात्मक मूल्यांकन कीजिए।
  117. प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
  118. प्रश्न- दण्ड के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं? दण्ड के प्रतिशोधात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  119. प्रश्न- दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए। क्या मृत्युदण्ड उचित है? विवेचना किजिये।
  120. प्रश्न- दण्ड के विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
  121. प्रश्न- दण्ड का अर्थ तथा उद्देश्य क्या है?
  122. प्रश्न- दण्ड का दर्शन क्या है?

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