बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 दर्शनशास्त्र : सर्ल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- अदार्शनिक अन्तःप्रज्ञावाद का विवेचन कीजिए।
उत्तर -
जिस प्रकार व्यक्ति को रूप-रंग आदि का ज्ञान सहज रूप से ज्ञानेन्द्रियों द्वारा हो जाता है, उसी प्रकार कर्म के नैतिक गुणों का ज्ञान कर्ता को बिना किसी विचार, तर्क या उपकल्पना के ही सहज रूप से हो जाता है। जिस प्रकार रंग, स्वाद, गंध, ध्वनि, स्पर्श आदि के लिए क्रमशः हमारे पास आँख, जीभ, नाक, कान, त्वचा आदि ज्ञानेन्द्रियाँ रहती हैं, उसी प्रकार नैतिक गुणों को ग्रहण करने के लिए भी हमारे पास एक विशेष नैतिक इन्द्रिय रहती है। इसी इन्द्रिय द्वारा हमें किसी कर्म के नैतिक मूल्य का पता चल जाता है। "यहाँ अन्तःकरण एक ऐसे शासक की भाँति है, जो प्रत्येक दशा में अपना आदेश देता है।'
अदार्शनिक अन्तः प्रज्ञावाद में दो रूप होते हैं -
(1) नैतिक इन्द्रियवाद - इस मत के अनुसार जिस प्रकार व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियाँ रहती हैं, जिसके द्वारा वह रूप, रंग, गंध, आवाज, स्वाद, स्पर्श आदि का ज्ञान प्राप्त कर लेता है, उसी प्रकार उसके पास एक नैतिक इन्द्रिय भी है, जिसके द्वारा वह सहज रूप से किसी कर्म के नैतिक गुणों का निर्णय कर लेता है। बाह्य वस्तुओं के गुण हममें संवेदन उत्पन्न करते हैं और इन्हीं संवेदनों द्वारा हमें उन वस्तुओं का ज्ञान होता है। ठीक इसी प्रकार कर्म हममें सुखात्मक या दुःखात्मक भावना की उत्पत्ति करते हैं और इसी के अनुरूप हम कर्म को उचित या अनुचित कह बैठते हैं। यहाँ नैतिक भावनाओं के आधार पर नैतिक निर्णय किया जाता है।
यह मत बुद्धिवाद का विरोधी सिद्धान्त है। बुद्धिवाद नैतिक भावनाओं को नैतिक निर्णय में कोई स्थान नहीं देता और केवल विवेक शक्ति को ही इनके लिए पर्याप्त समझता है।
(2) रसेन्द्रियवाद - नैतिक इन्द्रियवाद मानता है कि कर्मों के नैतिक मूल्यों को जानने के लिए व्यक्ति के पास नैतिक इन्द्रिय रहती है। कुछ विचारक इस नैतिक इन्द्रिय को रसेन्द्रिय या सौन्दर्येन्द्रिय मानते हैं। इनके मत को रसेन्द्रियवाद या सौन्दर्येन्द्रियवाद कहा जाता है।
रसेन्द्रियवाद के अनुसार नैतिक गुण कर्मों में ही निहित रहते हैं। नैतिक गुण सौन्दर्य- विषयक गुणों से अभिन्न हैं। उचित और 'सुन्दर' में तथा अनुचित' एवं 'कुरूप में कोई अन्तर नहीं है जिस प्रकार व्यक्ति या वस्तुओं में सौन्दर्य और कुरूपता रहती है, उसी प्रकार कर्मों में भी नैतिक सौन्दर्य और नैतिक कुरूपता पाई जाती है।
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- प्रश्न- मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक सुखवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
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- प्रश्न- काण्ट के अहेतुक आदेश के सिद्धान्त का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
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- प्रश्न- काण्ट के अनुसार निरपेक्ष आदेश “Categorical Imprative” की व्याख्या कीजिए।
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