बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
अथवा
विद्यापति की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
अथवा
विद्यापति की सौन्दर्य भावना पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
अथवा
विद्यापति की भक्ति भावना का सोदाहरण विवेचन कीजिए।
अथवा
'विद्यापति पदावली' में चित्रित संयोग एवं वियोग श्रृंगार की विशेषतायें निरूपित कीजिए।
सम्बन्धित लघु प्रश्न
1. विद्यापति के साहित्य पर प्रकाश डालिए।
2. विद्यापति भक्त कवि हैं अथवा श्रृंगारी? स्पष्ट कीजिए !
3. विद्यापति की बहुज्ञता को समझाइये।
उत्तर -
विद्यापति का साहित्य
विद्यापति की रचनायें तीन भागों में विभाजित की जा सकती हैं संस्कृत की रचनाएं अवहट्ट की रचनाएं और मैथिली में रचित काव्य।
इनकी संस्कृत की रचनाओं में शैव सर्वस्वासार, प्रणामभूत पुराण संग्रह, भू-परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, 'गंगावाक्यवली, दानवाक्यवली, विभाग सार, वर्ग क्रिया, पतलक और दुर्गाभक्ति तरगिणी मुख्य है। अवहट्ट की रचनाओं में कीर्तिलता, और कीर्तिपताका का नामोल्लेख किया जाता है। हिन्दी के कुछ विद्या इन दोनों रचनाओ को प्राचीन हिन्दी की ही रचनायें मानते हैं। महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ऐसे ही विद्वानों में से एक है। इनमें से 'कीर्तिलता' महाराज कीर्ति सिंह के समय लिखी गई थी। इनमें विद्यापति ने उनकी दानशीलता और वीरता का वर्णन किया है। यह उनकी 20 वर्ष की अवस्था में रचित रचना कही जाती है। इसमें महाराज कीर्ति सिंह और वीरसिंह को पदयात्रा का वर्णन बड़ा कारण और हृदयपर्शी है। भाषा की दृष्टि से यह पुस्तक बड़ी महत्वपूर्ण समझी जाती है। यद्यपि इस पर प्राकृत का पर्याप्त प्रभाव देखा जा सकता है, पर इसे पूर्वी अपभ्रंश की ही रचना कहा जाना चाहिए।
कीर्ति पताका की रचना महाराज कीर्ति सिंह के पुत्र शिवसिंह के समय हुई थी। महाराज की कीर्ति का वर्णन ही इस पुस्तक का मूल विषय है। इसमें पद्य के अतिरिक्त गद्य भी मिलता है, जो पूर्वी अपभ्रंश के तत्कालीन रूप को समझने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राधाकृष्ण के प्रेम ने विद्यापति को और विद्यापति के पदों ने राधा कृष्ण को सदैव के लिये अमर बना दिया। न केवल मिथिला में वरन ब्रजभूमि और बंगाल में भी विद्यापति के पद कृष्ण भक्तों की वाणी के भूषण बने हुये हैं।
विद्यापति भक्त या शृंगारिक कवि
विद्यापति के काव्य की आलोचना करते हुए किसी आलोचक ने लिखा है कि विद्यापित का काव्य भक्तिमय है परन्तु उस पर शृंगार का ऐसा मोटा आवरण चढ़ा है कि उसमें से भक्ति दिखाई नहीं देती है। या यूँ कहा जा सकता है कि शृंगारिकता की पृष्ठभूमि पर भक्ति की झिलमिलाती हुई झीनी रेखा है जिसमें, से शृंगारिकता स्वतः ही प्रकट होना चाह रही है। यही कारण है कि विद्यापति के भक्त या शृंगारी होने के विषय पर एक बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ।
आस्तिकता भारत की निजी सम्पत्ति है। भारत का मानव सदा से 'भीषण भीषणानाम' के प्रति नतमस्तक हो उसकी उपासना करता मापा है। हमारे साहित्य में भक्ति और श्रृंगार का घनिष्ठ संबन्ध रहा है। ये दोनों प्रवृत्तियाँ मध्य कंवि साहित्य में बड़ी प्रमुख रही है। उनकी भक्ति में माधुर्य भाव का पुट आ गया है, क्योंकि इस समय के कवियों ने भगवान का आनन्द रूप ग्रहण करके उसका लीलामय चित्रण किया है। आचार्य शुक्ल ने भी इस विषय पर प्रकाश डालते हुये लिखा है कि पात्रों के आत्मा और परमात्मा होने पर कवि की पूज्य बुद्धि उनके साथ रहती है जिससे की श्रृंगार बुद्धि में बदल जाता है।
अब हमें पदावली के विषय में यह निश्चय करना है कि पदावली शुद्ध शृंगार रस की रचना है या इसमें अध्यात्ममूलक श्रृंगार है। कतिपय आलोचक विद्यापति को अन्यतम भक्त कहने का कठिन प्रयास करते हैं। कुछ आलोचक विद्यापति को रहस्यवादी मानकर इनके समस्त पदों में अन्योक्ति और रहस्योक्ति या रूपों का आरोप करते हैं।'
पदावली को रहस्यवादी रचना मानने वालों में सर्वप्रमुख है। ग्रियर्सन का कहना है "पश्चिम के ठण्डे देशों के निवासी के ईश्वर प्रेम को पिता और युग के अटूट प्रेम का रूपक देकर सन्तुष्ट रहे। किन्तु, उष्ण देशों के सत्यान्वेषियों ने पूजक के पूज्य के प्रति प्रेम की तुलना परमभावमयी देवी राधा के भगवान कृष्ण के प्रति किये गये प्रेम से की है। जिस प्रकार सोलोमन के गीतों को क्रिश्चियन पादरी पढ़ते हैं, उसी प्रकार भक्ति हिन्दू विद्यापति के चमत्कारपूर्ण पदों को पढ़ते है और जरा भी कामवासना का अनुभव नहीं करते।
इसी मत की पुष्टि करते हुये नगेन्द्रनाथ गुप्त ने कहा हैं "विद्यापति की पदावली मूलतः रहस्यवादी रचना है। इसमें आत्मा परमात्मा के लिये बेचैन है। वह परमात्मा से निर्जन स्थान मिलने लिए आकुल है।
श्री जनार्दन मिश्र ने विद्यापति को रहस्यवादी सिद्ध करने के लिये अपनी पुस्तक 'विद्यापति' में. खूब जोर लगाया है। उनका मत है विद्यापति के समय रहस्यवाद का मत जोरो पर था। उसके प्रभाव से बच निकलना और किसी निष्कलक मार्ग का अवलम्बन करना उन्हें शायद अभीष्ट न था। अथवा अभीष्ट होने पर भी तुलसीदास की तरह अपने वातावरण से विरुद्ध जाने की शक्ति उनमें न थी। उन्होनें विद्यापति की रचना को दादू आदि सन्त कवियों से मिलाया है
"तन आभरन बसन भेल भार।
नयन बहे जल निर्मल धारा।"
बंगला के अधिकांश कवि विद्यापति की कवितो को भक्ति रस से ओत-प्रोत मानते है। वास्तव में विद्यापति के वर्ण बंगाली वैष्णवों की विचारधारा के अनुसार थे विद्यापति के कुछ पदों को लेकर कुछ विद्वान उन्हें भक्त कवि सिद्ध कहते हैं जिसका कारण उनके द्वारा की गई गौरी भावनी, शिव तथा राधा आदि की स्तुति है, शायद विद्यापति ने अतिशय रसिकता से ऊब कर इन पदों की रचना की होगी जैसे -
'माधव हम परिणाम निरासा।
तुहु जग तारण दीन दयामय।
अतह तोर विश्वासा।
जयदेव की रचना में विलास कला में कौतूहन रखने वाले व्यक्ति हरि स्मरण का भाव हृदय में ले आवें, परन्तु विद्यापति ने कहीं यह संकेत नहीं किया है कि उनकी कविता हरि स्मरण के लिये बनी है। अतः स्पष्ट है कि विद्यापति का काव्य श्रृंगार रस से परिपूरण है। विद्यापति को श्रृंगारी कवि मानने वाले प्रमुख विद्वान है - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डॉ. रामकुमार वर्मा, गुलाबराय आदि।
पदावली की रचना का क्रम वयः सन्धि, सद्यः स्राता, अभिसार, मान, विरह-मिलन आदि के रूप में रखा गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि नायक और नायिका का कार्य व्यापार कवि की अपनी वासनामयी प्रवृत्ति के अनुसार ही हुआ है।
वर्तमान मनोवैज्ञानिक फ्राइड ने रति भावना को मानव हृदय का अनिवार्य तत्व नहीं माना है। परन्तु फ्रायड से पूर्व प्राचीन भारतीय आचार्यों ने रति भावना को ध्यान में रखकर ही श्रृंगार को रसराज़ माना है। अतः विद्या का शृंगार ग्रहण व्यर्थ या अतिमानवीय तत्व नहीं कहा जा सकता।
विद्यापति का शृंगार चित्रण निःसन्देह लौकिक है। भक्त के जो भाव अपने आराध्य देव के प्रति होने चाहिये, वे उनके काव्य के तनिक भी नहीं हैं। वहाँ तो यौवन की मदिरा से उनमत्त हुये नायक कृष्ण हैं तो नायिका मुग्ध राधा। दोनों के जीवन का उद्देश्य आनन्द ही है, और कुछ नहीं। विद्यापति की नायिका की आलोचना करते हुये डॉ. वर्मा लिखते हैं- बाल सौन्दर्य ही उसका सबकुछ है, कोमलता ही उसका स्वरूप है। जहाँ इसके पांव पड़ते हैं, कमल खिल उठते हैं, उसकी चितवन में कामदेव के बाण हैं, पाँच नहीं वरन सहस्त्र जो समस्त दिशाओं में छूटते हैं।
विद्यापति ने संयोग और विप्रलम्भ दोनों प्रकार के शृंगार का वर्णन किया है। विरह मान, प्रेमप्रंसग, अभिसार आदि सभी प्रकरणों में भावों की सरस मन्दाकिनी प्रवाहित हुई है।
इन विचारों के आधार पर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विद्यापति श्रृंगारी कवि थे। पदावली के सभी पद विद्यापति की इस प्रवृत्ति के पोषक हैं। उसका प्रत्येक पद शृंगारिकता की ओर जाने का स्वतः ही आग्रह करता प्रतीत होता है।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।