बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
उत्तर-
हिन्दी कविता की सार्थक परम्परा में नागार्जुन एक अविस्मरणीय हस्ताक्षर हैं। संवेदना के धरातल पर मानव मात्र की व्याकुल चिन्ता उन्हें हिन्दी समाज से निकाल कर अखिल भारतीय स्वीकृति प्रदान करती है। वे हमारे समय को निर्भय वाणी देने वालों में प्रमुख हैं। नागार्जुन का रचनाकार व्यक्तित्व बहुआयामी है। विद्यापति की विरासत, कालिदास के संस्कार वाले निराला के सौन्दर्य बोधी वैविध्य के कवि नागार्जुन भाषा के बतरस और काव्य की जनचरित्री अन्तर्वस्तु की दृष्टि से बेजोड़ हैं। उनकी रचना के मूल स्रोतों में उन स्थानों और उनके सांस्कृतिक परिवेश की गंध मौजूद है। जहाँ-तहाँ कवि जीवन का दीर्घ- प्रखण्ड व्यतीत हुआ। आत्म चेतना का ऊर्ध्व मुखी विकास करते हुए क्रान्तिकारी चेतना की प्राप्ति, नागार्जुन के रूप में बौद्ध चेतना का विकास उनकी काव्य चेतना का पर्याय है। नागार्जुन की प्रतिभा एक साथ अनुभव के दो ध्रुवान्तों पर काम करती है एक तरफ प्रेम, वात्सल्य करुण और सौन्दर्य जैसे गम्भीर समझे जाने वाले विषय हैं तो दूसरी ओर एकदम सघः घटित आसन्न एवं तात्कालिक विषय। नागार्जुन को हिन्दी के 'वल्टविटमैन' की संज्ञा करते हुए श्री विष्णु खरे ने उन्हें यथार्थगत अन्तर्विरोधों के उद्घाटनकर्ता के रूप में स्वीकार करते हुए सच ही कहा है "सैंतालीस के बाद भारत को यदि कविता में पूरी तरह किसी ने प्रतिबिम्बित किया है - वह नागार्जुन हैं। उनके काव्य की विशिष्ट प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-
संवेदनागत प्रवृत्तियाँ
(1) समकालीन यथार्थ का चित्रण - समकालीन यथार्थ को नागार्जुन की कविता में सजीव वाणी मिली है। नागार्जुन ने जो चित्र उपस्थिति किये हैं वे इतने वास्तविक और सजीव हैं कि इन्हें बिना देखे प्रस्तुत नहीं किया जा सकता। 'देखना ओ गंगा मइयाँ' कविता में नंग-धड़ंग मल्लाह छोकरों का चित्र, अत्यन्त यथार्थ है 'जनगाथा', 'छोटी मछली बड़ी मछली जैसी कविताओं के माध्यम से उन्होंने यथार्थवादी को निरन्तर ऊँचे धरातल पर पहुँचाया। उनकी प्रखर यथार्थवादी चेतना ने उन्हें निराला के समीप पहुँचा - दिया है।
'अकाल और उसके बाद के यथार्थ का चित्रण करते हुए वे कहते हैं-
"कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उसके पास
X X X
दाने आये घर के अन्दर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन के ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठीं घर भर की आँखें कई दिनों के बाद"
यहाँ अकालग्रस्त परिवेश और कई दिन बाद अन्न आने की प्रसन्नता का स्वाभाविक चित्र अंकित किया है।
(2) निम्न मध्यवर्ग के प्रति सहानुभूति एवं साम्राज्यवादी ताकतों के प्रति आक्रोश - नागार्जुन सर्वहारा वर्ग के प्रति गहरी सहानुभूति रखते हैं। दबी कुचली जनता के साथ अटूट भाईचारा और तज्जन्य विवेक ये दो चीजें नागार्जुन की वह पूँजी हैं जिनके बूते वे तमाम बहाव के बावजूद अपनी प्रकृत भूमि पर टिके रहते हैं।
नागार्जुन पूँजीवाद, साम्राज्यवाद, सम्प्रदायवाद की सेठों साहूकारों की शोषकों की शक्तियों का तीव्र विरोध करते हैं। निम्न मध्यम वर्ग के जीवन को जर्जर करने वाली ताकतों के विरुद्ध वे प्रति हिंसा की भावना रखते हैं-
"नफरत की मेरी भट्टी में
तुम्हें गलाने की कोशिश ही
मेरे अन्दर बार-बार ताकत भरती है।
प्रतिहिंसा ही स्थायी भाव है मेरे कवि का
वियत्कांड के तरुण गुरिल्ले जो करते थे
मेरी प्रिया वही करती है ---
प्रति हिंसा ही स्थायी भाव है मेरे कवि का"
क्योंकि यही वे ताकते हैं जो आम आदमी को 'प्रेत के वमान' नामक कविता के नायक प्राइमरी मास्टर की तरह नरक पहुंचाते हैं -
"तनखा भी तीस, सो भी मिली नहीं
मुश्किल से काटे हैं
एक नहीं, दो नहीं, नौ-नौ महीने
घरनी थी, मां थी, बच्चे थे चार
आ चुके हैं वे भी दयासागर करुणा के अवतार
आपकी छाया में।
मैं ही था बाकी
क्योंकि करमी की पंक्तियाँ अभी कुछ शेष थी
हमारे अपने पुश्तैनी पोखर में"
राजनीतिक चेतना - राजनीति नागार्जुन की कविताओं की रीढ़ है। साहित्य और राजनीति के अन्तः सम्बन्ध को प्रकट करते हुए वे लिखते हैं-
"ऐंठ रहा है जीवन, सुलग रहा है जीवन
राजनीति पर हावी हो रहा है जीवन
X X X
जीवन है राजनीति, राजनीति है जीवन
अन्तस की अभिव्यक्ति ही तो होगा साहित्य"
जन कवि नागार्जुन की राजनीति एकदम स्पष्ट है। शासक, सत्तापक्ष की जन विरोधी नीति के विरुद्ध यह कवि बहुजन के मंगल विधान के लिए मानवीय राजनीति का समर्थक है। नागार्जुन आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र, शोषण मुक्त, समताघृत समाज की स्थापना करना चाहते हैं-
'व्यक्ति-व्यक्ति में नई चेतना संचारित हो।
सुख-सुविधा का और शान्ति का सम अवसर सभी के लिए"
इसीलिए कवि ने नेताओं की बदली हुई नियत और पूँजीवादी आदि का पर्दाफाश किया है। शासन सत्ता को नागार्जुन उसके वर्गमूल से सम्बद्ध करके देखते हैं। वे जानते हैं कि शासन और जनता के सत्य अलग-अलग हैं। हजार-हजार बाहों वाली कविता में वे कहते हैं -
'अँगरेजी, अमरीकी जोंके, देसी जोंके एक हुई
नेताओं की नीयत बदली, भारत माता टेक हुई
राजाओं को अभय दान देकर परजा को आप ठगें"
आत्म-विश्वास और अभिनव संकल्प - कवि नवजीवन की आशा और उसके भावी स्वप्नों को मूर्तिमान करना चाहता है। दुखों और वैषम्यों को पार कर अन्तिम विजय उसी की होगी ऐसे दृढ़ विश्वास के साथ 'सतरंगे पंखों वाली। काव्य संग्रह में कई कविताएँ लिखी गई हैं। 'तुम किशोर तुम तरुण, 'यह कैसे होगा। 'हरे जनु जदल मिटे अमंगल आदि कविताएँ इसी प्रकार की हैं।
यथा - लो मशाल, अब घर घर को आलोकित कर दो।
सेतु बनो प्रज्ञा प्रयत्न के मध्य
शान्ति को सर्व मंगला बन जाने दो
एवम्
पुलकित तन हो। मुकलित मन हो। सरस और सक्षम जीवन हो।
फिर न युद्धों हो। गति न रुद्ध हो। निर्भय निरातंक यौवन हो।
ग्राम्य-प्रकृति चित्रण - प्रकृति नागार्जुन में पुलक और प्रसन्नता का संचार करती है। प्रकृति के साथ नागार्जुन का लगाव पलायन वृत्ति का नहीं है अपितु जीवन के प्रति उनके अनुराग का सूचक है। ग्राम्य अंचल के प्राकृतिक परिवेश में पहुंचकर उन्हें लगता है -
"बहुत दिनों के बाद
अबकी मैंने जी भर भोगे
गंध रूप रस शब्द - स्पर्श सब साथ-साथ इस भू पर"
लगभग हर ऋतु हर मौसम का चित्र उन्होंने खींचा है। 'शिशिर की कपूरी धूप उनके रोम-रोम की ताजगी की प्यास को तृप्त करती है तो ग्रीष्म के सूर्य की प्रचण्ड किरणें शीतकाल में 'हजार हजार बाहों वाली शिशिर - विष कन्या के समान प्रतीत होती है जो साँसों में 'प्रलय की वन्या लेकर उतरती है और अपने हिमदग्ध होंठों से' 'प्राणशोषी चुम्बन करती है। नागार्जुन का सर्वाधिक स्नेह पावस का प्राप्त है।
लोचन अंजन, मानस रंजन, पावस तुम्हें प्रणाम
तापतप्त वसुधा दुखभंजन, पावस तुम्हें प्रणाम
ऋतुओं के प्रतिपालक ऋतुवर, पावस तुम्हें प्रणाम
अतुल अमित अंकुरित बीज धर, पावस तुम्हें प्रणाम।
वर्षा ऋतु के मेघ उन्हें बहुत प्रिय हैं। निराला के बाद हिन्दी साहित्य में नागार्जुन के साहित्य में बादलों को इतनी प्रतिष्ठा मिली है। उनके काव्य में बादल ही नहीं बदलियाँ भी हैं। मेघकुल की बदलियाँ, 'शरारती और बदनाम बदलियाँ', 'चौकड़ी मारते घन कुरंग', 'शशि से शरमाते घन कुरंग सभी मिल जाते हैं।
अतीत की नास्टैल्जिया - नागार्जुन अपनी यायावरी के कारण प्रायः घर से दूर या सत्ता पक्ष के विरोध के कारण जेलों में ही रहे हैं। किन्तु अतीत की स्मृति रह-रह कर उनके मस्तिष्क में कौंध जाती है जो नास्टैल्जिया बनकर उनके काव्य में उभरी है। अपनी मातृभूमि को वे एक क्षण विस्मृत नहीं कर पाते। मिथिला की धरती, अमराइयाँ कटहल व लीचियों के बाग, तालमखान बार-बार नागार्जुन को याद आते हैं-
"याद आता मुझे वह अपना 'तरउनी' ग्राम
याद आतीं लीचियाँ वे आम
याद आते धान
याद आते कमल कुमुदनी ताल मखान ...
याद आते वेणु वन वे नीलिमा के निलय अति अभिराम"
अपनी सघन स्मृतियों के माध्यम से वे दूरस्थ होते हुए भी अपने देश में हो रही होगी वर्षा का ध्यान करते हैं -
"आज होगी सजनि, वर्षा हो रहा विश्वास
किन्तु अपने देश में तो सुंमुखि, वर्षा हुई होगी।
एक क्या कै बार
गा रहे होंगे मुदित हो लोग खूब मल्हार"
अभिव्यक्तिगत प्रवृत्तियाँ -
भाषा - नागार्जुन बहुभाषाविद् थे। संस्कृत, पालि, प्राकृत के साथ-साथ बंगला, पंजाबी, गुजराती, सिंहली, तिब्बती भाषाओं के पंडित होने पर भी उनकी भाषा का प्रमुख गुण है सहजता। इसी कारण उनकी कविता पर तरह-तरह के आक्षेप लगाये गये और उसे रूप की दृष्टि से कमजोर कविता कहा गया। विशेषतः राजनीति सम्बन्धी कविताओं में ये आरोप निराधार हो जाते हैं जब उनकी कविताओं को वाचिक परम्परा में देखते हैं। भाषा के कोमल और खुरदरे होने का सम्बन्ध उसकी अर्थवत्ता से है तो निश्चय ही नागार्जुन की कविता इस दृष्टि से श्रेष्ठ है। उनकी संवाद की भाषा बोलचाल की भाषा है। मुहावरे दानी, शब्दों वाक्यों की लयात्मकता, स्वरों के आरोह-अवरोह ऐसी कविता के अर्थ क्रे प्राण हो गये हैं। 'प्रेत का बयान' कविता की भाषा मर्म को जितने ढंग से उद्घाटित करती है अन्य भाषा नहीं कर सकती थी। कहीं 'युग नदु मिथुन की भव भूमि, तुम रस-पिच्छल' जैसे संस्कृत बहुल भाषा है तो कहीं 'आवामी जद्दोजहद के तेवर को सलाम' जैसी उर्दू बहुल भाषा का प्रयोग है। 'डाकचो खोकीन' 'नक्शाल बाडीर', 'छेड़िए पडूक दिके-दिके' आदि बंगाली भाषा तथा छुच्छी, कलमुँही, बंसफोड़, मुच्छड़, 'पचास हो रुपिया' जैसे ग्रामीण व स्थानीय प्रभाव की अद्भुत सृष्टि है। सहज, सुन्दर ललित भाषा के लिए 'बादल को घिरते देखा है कविता हमेशा स्मरण की जायेगी।
लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता - भाषा की लाक्षणिक शक्ति से नागार्जुन खूब परिचित हैं और अवसर पाते उसका उपयोग करने से नहीं चूकते।
'सत्तर चूहे खाकर रीझा वृद्ध बिलौटा अब जन मन पर'
'वतन बेच कर पंडित नेहरू फूले नहीं समाते हैं
X X
'महलों की महंगी बिजली से डरती संध्या डरता प्रभात'
नागार्जुन ने प्रतीकों के प्रयोग से अभिव्यक्ति को पैनापन प्रदान किया है। पुराने कांग्रेसियों के लिए बूढ़े घायल शेर का प्रतीक कितना सटीक है-
'परसों था जंगल रा राजा कल था घायल बूढ़ा शेर'
अलंकारों का प्रयोग - नागार्जुन अलंकारों का सायास प्रयोग नहीं करते अपितु सहजता में प्रायः सभी पारम्परित अलंकार उनकी कविता की शोभा बढ़ाते हैं 'पूसमाह की सुहावन धूप' को 'घिसे हुए पीतल से पांडुर' कहकर उपमा का जितना सुन्दर प्रयोग किया है उतना ही सुन्दर रूपक का प्रयोग है -
'हजारो बाहों वाली शिशिर विष कन्या
उतरी लेकर सांसों में प्रलय की वन्या'
अनुप्रास, विरोधाभास, असंगति, विशेषण विपर्यय, मानवीकरण अलंकारों का प्रयोग प्रायशः कविता में मिल जाता है। हवा का मानवीकरण देखिए -
"हवा हूँ, हवा मैं
बसन्ती हवा हूँ
चढ़ी पेड़ महुआ, थपाथप मचाया
गिरी धम्म से फिर चढ़ी आम ऊपर
किया कान में कूँ, उतरकर भगी मैं
हरे खेत पहुँची, वहाँ गेहुँओं में
लहर खूब मारी"
छन्द योजना - छन्द की दृष्टि से भी नागार्जुन की कविता में पर्याप्त वैविध्य है। उन्होंने छन्दबद्ध व छन्दमुक्त दोनों प्रकार की काव्य सर्जना की है। कहीं-कहीं एक ही कविता में छन्दबद्धता और मुक्त छन्द या मुक्त छन्द की कई-कई लयों का प्रयोग किया है। जैसे पुरानी जूतियों का कोरस कविता नागार्जुन की छन्दबद्ध कविताओं में क्लासिकल छन्दों के साथ लोकधुनों का प्रयोग भी मिलता है। कवि ने प्राचीन छन्दों के साथ खिलवाड़ एवं नये छन्दों की रचना भी की है। दोहा, कवित्र सवैया, वरवै आदि छन्द नई विषय- वस्तु के साथ आपकी कविता में मिल जाते हैं। बरवै तो उनका 'घरू' और 'दुलरूवा' छन्द है। उन्होंने अपना प्रसिद्ध खण्ड काव्य 'भस्मांकुर' बरवै छन्द में ही लिखा है। -
बिम्ब विधान - बिम्बों की दृष्टि से नागार्जुन बड़े सशक्त कवि हैं। ऐन्द्रिय, वस्तुपरक, आध्यात्मिक एवं भावात्मक सभी प्रकार के बिम्ब आपके काव्य में प्राप्त हो जाते हैं। ऐन्द्रिय बिम्बों में दृश्य, श्रव्य, स्पर्श्य, घ्राण आस्वाद्य सभी का प्रयोग विभिन्न कविताओं में प्राप्त हो जाता है। बिम्ब की दृष्टि से सबसे समृद्ध कविता के रूप में 'बादल को घिरते देखा है। का नाम लिया जा सकता है। यह कविता जिन छह बिम्बों से मिलकर बनी है वे सभी प्रशंसनीय हैं। अन्तिम बिम्ब बड़े लम्बे दृश्य विधान को समेटे हुए हैं उतना ही नयना भिराम है।
मृगछालों पर पत्थी मारे
मदिराकण आँखों वाले उन
उन्मद किन्नर किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अंगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।"
इस प्रकार नागार्जुन की काव्यानुभूति एवं अभिव्यक्ति के अनुशीलन से स्पष्ट होता है कि नागार्जुन प्रगतिशील काव्यधारा के सशक्त कवियों में एक हैं। जन से इनका जुड़ाव पहले है। ये संघर्ष और विद्रोह के कवि हैं। कबीर जैसे फक्कड़ हैं उतने ही भावनामय।
विष्णु चन्द्र शर्मा के साक्ष्य से कहा जा सकता है -
'नागार्जुन एक इतिहास है। अक्सर मैं बाबा को शब्द रूप, रस, गन्ध, स्पर्श का / पाँच दरवाजा /खोले सहस्र नेता भारत वर्ष कहता हूँ।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।