बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
उत्तर -
महात्मा बुद्ध के समान महावीर स्वामी ने भी अपने धर्म का प्रचार लोकभाषा के माध्यम से किया। इस प्रकार जैन धर्म के अनुयायियों से अपने धार्मिक सिद्धान्तों का ज्ञान अपभ्रंश में प्राप्त हुआ वैसे तो जैन उत्तर भारत में जहाँ-तहाँ फैले रहे किन्तु आठवीं से तेरहवीं शती तक काठियावाड़, गुजरात में इनकी प्रधानता रहीं। वहाँ के चालुक्य, सोलंकी, राष्ट्रकूट राजाओं पर इनका प्रभाव पड़ा।
जैन मुनियों ने अपभ्रंश में प्रचुर रचनाएँ लिखी जो कि धार्मिक है। इनमें सम्प्रदाय की रीति नीति का पद्यपद्ध उल्लेख है अहिंसा, कष्ट, सहिष्णुता, विरक्ति, और सदाचार की बातों का इनमें वर्णन है। कुछ गृहस्थ जैनों का लिखा हुआ साहित्य भी उपलब्ध होता है। इसके अतिरिक्त उस समय के व्याकरणादि ग्रन्थों में भी साहित्य के उदाहरण मिलते हैं। कुछ जैन कवियों ने हिन्दुओं की रामायण और महाभारत की कथाओं से राम और कृष्ण के चरित्रों को अपने धार्मिक सिद्धान्तों और विश्वासों के अनुरूप अंकित किया है। इन पौराणिक कथाओं के अतिरिक्त जैन महापुरुषों के चरित्र लिखे गये तथा लोक प्रचलित इतिहास प्रसिद्ध आख्यान भी जैन धर्म के रंग में रंग कर प्रस्तुत किये गये। इसके अतिरिक्त जैनों ने रहस्यात्मक काव्य भी लिखे हैं। इस साहित्य के प्रणेता शील और ज्ञान-सम्पन्न उच्चवर्ग के थे। अतः उनमें अन्य धर्मों के प्रति कटु उक्तियाँ नहीं मिलती हैं और न ही लोक व्यवहार की उपेक्षा मिलती हैं। इनके साहित्य में धार्मिक अंश को छोड़ देंगे पर उनमें मानव हृदय की सहज कोमल अनुभूतियों का चित्रण मिलता है। इस प्रकार हमने देखा कि जैन साहित्य के अन्तर्गत पुराण साहित्य, चरित्र काव्य, कथा काव्य एवं रहस्यवादी काव्य सभी लिखे गये। इसके अतिरिक्त व्याकरण ग्रन्थ तथा श्रृंगार, शौर्य, नीति और अन्योक्ति सम्बन्धी फुटकर पद्य भी लिखे गये। पुराण सम्बन्धी आख्यानों के रचयिताओं में स्वयंभू पुष्पदत, हरिभद्र, सूरि, विनयचन्द्र सूरि धनपाल, जोइन्दु तथा रामसिंह का विशेष स्थान है।
स्वयंभू - (आठवीं सती) ने पउम चरिउ (पद्य चरित) और ट्ठिजेमी चरिउ (अरिष्टनेमि चरित हरिवंश पुराण) प्रबन्धों के अतिरिक्त छन्दशास्त्र से सम्बन्धित 'स्वयंभू छन्दस की भी रचना की। पद्य चरित में राम की कथा है और अरिष्टनेमि चरित में कृष्ण की। इन्होंने नाग कुमार चरित नामक एक अन्य ग्रन्थ भी लिखा है किन्तु इनकी कीर्ति का आधारस्तम्भ पद्य चरित ही है। इन्हें अपभ्रंश का वर्णन वाल्मीकि रामायण के कांडों से मिलता है। इन्होंने बालकाण्ड का नाम विद्याधर कांड रखा है। अरण्य तथा किष्किन्धा कांड को एकदम उड़ा दिया है। स्वयंभू ने जैन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए राम की कथा में यत्र-तंत्र परिवर्तन कर दिये हैं, और कुछ नये प्रसंग जोड़ दिये हैं। पद्य चरित में कथा प्रसंगों की मार्मिकता, चरित्र चित्रण की पटुता, स्थल एवं प्रकृति वर्णन की उत्कृष्टता और आलंकारिक तथा हृदयस्पर्शी उक्तियों की प्रचुरता दर्शनीय हैं। सीता के चरित्र की उदारता दिखाने में कवि ने कमाल ही कर दिया है और इसी प्रकार अरिष्टनेमि चरित में द्रौपदी के चरित्र को भी अपनी तूलिका से एकदम निखार दिया है। नारी चरित्रों के प्रति लेखक ने अतीव सहानुभूति और दक्षता से काम लिया है। इनकी कविता का एक उदाहरण दृष्टव्य है -
एवहि तिह करोनि पुणु रहुवइ।
जिहण होमि पंडियारे तिय मई
सीता की अग्नि परीक्षा के पश्चात् राम ने क्षमा याचना कर ली और भारतीयता की मूर्ति किन्तु परित्यक्त स्नेहशीला सीता देवी ने उन्हें आश्वस्त करते हुए कहा "इसमें न तुम्हारा दोष है न जन समूह का। दोष तो दुष्कृत कर्म का है और इस दोष से मुक्त होने के लिए एकमात्र उपाय यही है कि ऐसा किया जाये जिससे फिर स्त्री योनि में जन्म न लेना पड़े। नारी पर पुरुष के अत्याचार की इतनी मार्मिक अनुभूति और क्या हो सकती है। डॉ. नामवर सिंह इनके सम्बन्ध में लिखते हैं- "स्वयंभू के काव्य का परिसर बहुत व्यापक है। हिमालय से लेकर समुद्र तक, रनिवासों से लेकर जनपदों तक, राजकीय जल क्रीड़ा से लेकर युद्धक्षेत्र तक, जीवन के सभी क्षेत्रों में उनका प्रवेश हैं। वे प्रकृति के चित्रकार है, भावों के जानकार हैं, चिन्तन के आगार हैं। अपभ्रंश भाषा पर ऐसा अचूक अधिकार किसी भी कवि का फिर दिखाई नहीं पड़ा। अलंकृत भाषा तो बहुतों ने लिखी, किन्तु ऐसी प्रवाहमयी और लोक प्रचलित अपभ्रंश भाषा फिर नहीं लिखी गयी। स्वयंभू सचमुच ही अपभ्रंश के वाल्मीकि हैं, परवर्ती अपभ्रंश कवियों ने उन्हें वैसे ही श्रद्धा के स्मरण किया है।'
पुष्पदन्त ( दसवीं शती) - पुष्पदन्त या पुष्प कश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे और शिवाजी के भक्त थे और अंत में जैन हो गये। इनके अनेक उपनाम थे। इनमें से एक अभिमानमेरू भी है क्योंकि यह स्वभाव से बड़े अक्खड़ एवं अभिमानी थे। इनके महापुराण के आदि पुराण खण्ड में तीर्थकर ऋषभदेव तेइस तीर्थकरों तथा उनके समसामाजिक महापुरुषों के चरित हैं। उत्तर पुराण में पद्य पुराण (रामायण) और हरिवंश (महाभारत) है। नाग कुमार चरित तथा यशोधरा चरित जैन धर्म से सम्बद्ध खण्ड काव्य है। पुष्पदन्त ने राम की कथा में बहुत अधिक परिवर्तन कर दिये हैं। इन्होंने श्वेताम्बर मतावलम्बी कवि गुणभद्र के उत्तर पुराण में वर्णित राम कथा का अनुसरण किया है। राम कथा की अपेक्षा इनकी वृत्ति कृष्ण काव्य में अधिक रमी है। वहाँ इन्होंने खूब रस लिया है और कथा में कोई खास परिवर्तन भी नहीं किया। इन्हें अपभ्रंश भाषा का व्यास कहा जाता है। पुष्पदंत की अपेक्षा स्वयंभू अधिक उदार थे। पुष्पदन्त अत्यन्त असहिष्णु थे और उन्होंने खुलकर ब्राह्मणों का विरोध किया है। ये दोनों कवि कालिदास और बाण की परम्परा के अन्तर्गत आते हैं। दोनों दरबारी कवि थे और अपार ऐश्वर्य से उनका निकट का परिचय था। अतः भाषा, शैली, कल्पना और संगीत का जो ऐश्वर्य कालिदास और बाण में मिलता है, वह स्वयंभू और पुष्पदंत में भी उपलब्ध होता है।
अपभ्रंश भाषा में लिखे गये राम और कृष्ण काव्यों में कहीं-कहीं धार्मिकता का पुट अवश्य आ गया है परन्तु दिव्यता और अलौकिकता का रंग प्रायः नहीं है और भक्ति भावना का तो उसमें अभाव ही है। हिन्दी वैष्णव कवियों के राम और कृष्ण काव्यों से इनकी कोई तुलना नहीं है।
लौकिक कथाओं का आश्रय लेकर जैन धर्म की शिक्षा देने के लिए अनेक काव्य लिखे गये। इनमें धनपाल की "भविसंयत्त कथा" प्रसिद्ध है जो कि एक भविष्यदत्त नामक बनिये से सम्बन्धित है। जो इन्दु के "परमात्मा प्रकाश" तथा "योगासार" में सहिष्णुता का दृष्टिकोण हैं। रामसिंह के "पाहुड़ दोहा " में भी यही बात है। धर्म सूरि (13वीं शती) के "जम्बू स्वामी रासा में गृहस्थ जीवन की मधुरता की झांकी है। हेमचन्द्र के "शब्दानुशासन' में अनेक दोहों में नारी - हृदय की मधुरता, रोमांस और श्रृंगार का हृदयहारी वर्णन है। "प्रबन्ध चिन्तामणि' में मंज के प्रति मृणालवती के विश्वासघात की प्रतिक्रिया की मार्मिक उक्तियाँ हैं।
हिन्दी साहित्य के विकास में जैन धर्म का बहुत बड़ा हाथ है। अपभ्रंश भाषा में जैनों द्वारा अनेक ग्रन्थ लिखे गये हैं। अपभ्रंश से हिन्दी का विकास होने के कारण जैन साहित्य का हिन्दी पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। केवल भाषा विज्ञान की दृष्टि से ही नहीं बल्कि हिन्दी के प्रारम्भिक रूप से सूत्रपात करने में भी इस साहित्य का गहरा हाथ हैं। अपभ्रंश साहित्य अपने आप में एक अत्यन्त व्यापक साहित्य है। इसमें महाकाव्यों, खण्डकाव्यों, गीतिकाव्यों, ऐहिकतापरक लौकिक प्रेम काव्यों, धार्मिक काव्यों, रूपक साहित्य, स्फुट साहित्य तथा गद्य साहित्य आदि साहित्य की नाना विधाओं का प्रणयन हुआ है। हिन्दी साहित्य की उचित जानकारी के लिए अपभ्रंशों के विशाल साहित्य के गहन अध्ययन की महती आवश्यकता है।
जैनेतर अपभ्रंश साहित्य में "संदेश रासक" "कीर्तिलता" और "कीर्ति पताका" नामक ग्रन्थों का प्रणयन हुआ।
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- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।