बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास
प्रश्न- वैदिक यज्ञों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
वैदिक कालीन प्रमुख यज्ञों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
वैदिक कालीन यज्ञों का विवेचन कीजिए।
अथवा
वैदिक यज्ञ और कर्मकाण्ड पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
ऋग्वैदिक आर्यों का सामाजिक तथा आर्थिक जीवन जितना ही सरल था, धार्मिक जीवन उतना ही अधिक विशद् तथा जटिल। ऋग्वैदिक काल में पुरुष देवताओं की संख्या ही अधिक थी। कुछ ही देवियों के नाम मिलते हैं। ऋग्वैदिक आर्यों ने अपने देवताओं की कल्पना मनुष्य रूप में ही किया तथा उनमें समस्त मानवोचित गुणों को आरोपित कर दिया। देवता तथा मनुष्य में मुख्य अन्तर यह था कि देवता अमर माने गये जबकि मनुष्य मर्त्य। देवता मनुष्यों की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होते थे। हालाँकि देवताओं की उपासना यज्ञों द्वारा की जाती थी। यज्ञ में दूध, अन्न, घी, मॉस तथा सोम की आहुतियाँ दी जाती थीं। यज्ञीय विधि- विधान अत्यत्त जटिल था। ऋग्वेद में धर्म शब्द विधि (Laws) के अर्थ में प्रयुक्त होता है। इसका सम्बन्ध नैतिकता से नहीं है। देवोपासना मुख्यतः भौतिक कल्याण, जैसे- युद्ध में विजय, अच्छी खेती, संतान उत्पत्ति आदि के लिये की जाती थी। उपासना का लक्ष्य पारमार्थिक सुख नहीं था। देवता आहुतियों द्वारा प्रसन्न होते थे तथा फल प्रदान करते थे। कुछ यज्ञ अत्यन्त विस्तृत एवं खर्चीले होते थे जिनका अनुष्ठान सामान्य व्यक्ति के वश की बात नहीं थी। ऋग्वेद का दृष्टिकोण स्पष्टतः कुलीन तन्त्रीय था, जिसमें जनता के लिये उपयुक्त लोकप्रिय धर्म बहुत कम मिलता है।
परन्तु देवताओं की बहुलता एवं कर्मकाण्डों की जटिलता बहुत दिनों तक नहीं चल सकी। शीघ्र ही ऋग्वैदिक ऋषियों ने बहुदेववाद को चुनौती दी। देवताओं की संख्या कम करने के लिये कुछ को मिलाकर एक ही श्रेणी में कर दिया गया। पृथ्वी तथा आकाश को मिलाकर घावा पृथ्वी नाम दिया गया। मित्र- वरुण ऊषा रात्रि को संयुक्त किया गया। मरुतो, आदित्यों तथा आश्विनों की भी एक ही श्रेणी मानी गयी।
वैदिक काल में संस्कृति का मूल थे यज्ञ और अनुष्ठान। जिस कारण अनेकानेक अनुष्ठान और मंत्र विधियाँ प्रचालित हुयीं। यज्ञों में सामूहिक यज्ञ और निजी यज्ञ का चलन था। निजी यज्ञों को लोग अपने-अपने घर में ही करते थे। घर का प्रत्येक व्यक्ति, अग्नि में आहुति देता था और ऐसा प्रत्येक कर्म ( अनुष्ठान या यज्ञ) का रूप कहा जाता था। वास्तविकता में अनुष्ठानों के अवसर पर ही यज्ञ किये थे। यज्ञ व अनुष्ठानों में बड़े पैमाने पर पशुबलि दी जाती थी। अतिथि गोहन कहलाते थे क्योंकि उन्हें गोमांस खिलाया जाता था।
यज्ञों (अनुष्ठान) में कर्म के साथ मंत्र पढ़े जाते थे। यज्ञकर्ताओं को इन मंत्रों का उच्चारण बड़ी सतर्कता से करना होता था। यज्ञ करने वाला यजमान कहलाता था और यज्ञ का फल बहुत कुछ इस पर निर्भर करता था कि यज्ञ में मंत्रों का उच्चारण कितनी शुद्धता से किया गया। वैदिक आर्यों में प्रचलित बहुत से अनुष्ठान हिन्दू-यूरोपीय भाषाभाषियों के कर्मकाण्ड से मिलते हैं। लेकिन कुछ हिन्द-भूमि पर विकसित हुये।
इन अनुष्ठानों में किये सारे मंत्रों और यज्ञों का सृजन अंगीकरण और विस्तारण पुरोहितों ने किया जो ब्राह्मण कहलाते थे। ब्राह्मण धार्मिक ज्ञान-विज्ञान पर अपना एकाधिकार समझते थे। उन्होंने बहुत सारे अनुष्ठानों को चलाया जिनमें कुछ आर्योत्तर लोगों से भी लिये।
इतने सारे अनुष्ठानों को चलाने और इसको विस्तृत बनाने का कारण सम्भवतः धन- लोलुपता की भावना रही होगी, कि राजसूय अनुष्ठान कराने वाले पुरोहित को दक्षिणा में 2,40,000 गायें मिलती थीं।
अनुष्ठानों में हुये यज्ञ में गायें और दासियाँ भी दी जाती थीं। साथ ही साथ सोना- कपड़ा और घोड़े भी दिये जाते थे। कभी-कभी पुरोहित दक्षिणा में राज्य का कुछ भाग भी माँग लेते थे।
देवताओं की अराधना के जो भौतिक उद्देश्य पूर्व में थे वे ही इस काल में भी रहे। लेकिन अराधना की रीति में महान अंतर आया। स्तुतिपाठ पहले की तरह ही चलते रहे। लेकिन वे देवताओं को प्रसन्न करने की प्रमुख रीति नहीं रहे।
वैदिक काल के अंतिम दौर में पुरोहितों के प्रभुत्व के विरुद्ध तथा यज्ञ और कर्मकाण्डों के विरुद्ध प्रबल प्रतिक्रिया प्रारम्भ हुयी। यह प्रतिक्रिया पांचालों और विदेह के राज्य में विशेषकर हुयी। जहाँ 600 ई. पू. के आसपास उपनिषदों का संकलन हुआ था। इन दार्शनिक ग्रन्थों ने कर्मकाण्ड की निंदा की और सम्यक विश्वास एवं ज्ञान पर ही बल दिया।
वैदिक काल में विशेषकर उत्तर वैदिक काल में यज्ञों का प्रचलन बढ़ा। उसमें मुख्यतः तीन प्रकार के यज्ञों का सम्पादन होता था दैनिक यज्ञ, विशेष त्यौहारों, अवसरों पर किए जाने वाले यज्ञ तथा लम्बे समय तक चलने वाले यज्ञ। वैदिक कालीन यज्ञों का विवरण इस प्रकार है-
अग्निहोतृ यज्ञ - यह यज्ञ प्रातः और सायं अग्नि उपासना के साथ सम्पन्न किया जाता था। इसे पापों के क्षय और स्वर्ग की ओर ले जाने वाले नाव के रूप में वर्णित किया गया है।
दर्श और पूर्णमास यज्ञ - ये यज्ञ क्रमशः अमावस्या और पूर्णिमा को सम्पन्न किए जाते थे। दर्श यज्ञ में अग्नि एवं इन्द्र प्रधान देवता हैं जबकि पूर्णमास में अग्नि एवं सोम्।
चतुर्मास यज्ञ - प्रत्येक चार-चार मास पर जब ऋतु बदलती थी तब इसका विधान किया जाता था। इस यज्ञ में पशुओं की बलि दी जाती थी। इसमें अग्नि, सोम, पूषन, सविता आदि देवताओं को आहुति दी जाती थी।
सौत्रामणि यज्ञ - इस शब्द की उत्पत्ति सूत्रामन (एक अच्छा रक्षक) शब्द से हुई है, जो इन्द्र की एक उपाधि है। इस यज्ञ में पशु और सुरा की आहुति दी जाती थी।
पुरुषमेघ यज्ञ - यह यज्ञ पाँच दिनों तक चलता था। इसको करने वाले ब्राह्मण या क्षत्रिय होते थे। इसमें पुरुषों की बलि दी जाती थी। इसमें सर्वाधिक 25 यूपों का निर्माण किया जाता था।
पंच पशु यज्ञ - इसमें पाँच पशुओं की बलि दी जाती थी। पंचपशुओं में भेड़, बकरा, घोड़ा, बैल के साथ एक मनुष्य भी होता था।
अश्वमेध यज्ञ - यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण यज्ञ था इसे राजा अपनी साम्राज्य सीमा की वृद्धि के लिए करता था। यह यज्ञ दो या तीन दिन तक चलता था परन्तु इसकी तैयारी एक साल से की जाती थी। चार अनुष्ठाता, चार रानियाँ और उनके 400 अनुचर इसमें हिस्सा लेते थे। वर्ष की समाप्ति पर 600 साड़ों के साथ कुछ-कुछ घोड़ों की बलि दी जाती थी। यह यज्ञ 21 बन्ध्या गायों के दान तथा पुरोहितों को दक्षिणा देकर पूरा होता था।
राजसूय सज्ञ - यह राजा के राज्याभिषेक से सम्बन्धित था। इस यज्ञ में वरुण और इन्द्र का अभिषेक किया जाता था। इस यज्ञ में मुख्य पुरोहित को कभी-कभी दो लाख चालीस हजार गायें दान में दी जाती थी।
वाजपेय यज्ञ - राजा अपनी शक्ति के प्रदर्शन के लिए इस यज्ञ का आयोजन करता था। इसमें रथदौड़ का आयोजन होता था।
उत्तर वैदिक काल में प्रत्येक वेद के अपने पुरोहित हो गए। इन पुरोहितों के सहायक भी होते थे। इन सब पर ( याज्ञिक कर्मकाण्डों) नजर रखने वाले पुरोहितों को ब्राह्मण या ऋत्विज् कहा गया।
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- प्रश्न- पुरातत्व के विषय में बताइए। पुरातत्व के अन्य उप-विषयों व उसके उद्देश्य व सिद्धान्तों से अवगत कराइये।
- प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- पुरातत्व स्रोत में स्मारकों की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- शिलालेख, पुरातन के अध्ययन में किस प्रकार सहायक होते हैं?
- प्रश्न- न्यूमिजमाटिक्स की उपयोगिता को बताइए।
- प्रश्न- पुरातत्व स्मारक के महत्वपूर्ण कार्यों पर प्रकाश डालिए।
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- प्रश्न- सभ्यता का प्रसार पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के विस्तार के विषय में बताइए।
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- प्रश्न- बेबिलोनियन विधि संहिता की मुख्य धाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बेबीलोनिया की स्थापत्य कला पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बेबिलोनियन सभ्यता की प्रमुख देनों का मूल्यांकन कीजिए।
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- प्रश्न- मिस्र का समाज कितने भागों में विभक्त था? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मिस्र की सभ्यता के पतन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
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- प्रश्न- प्राचीन चीन की सामाजिक व्यवस्था का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- चीनी सभ्यता के भौगोलिक विस्तार का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- चीन के फाचिया सम्प्रदाय के विषय में बताइये।
- प्रश्न- चिन राजवंश की सांस्कृतिक उपलब्धियों का वर्णन कीजिए।